सादर अभिवादन
मंगलवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीय ज्योति खरे सर जी की रचना से)
दोहे "सोच-समझ कर ही सदा, यहाँ बनाओ मित्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शीत का उजड़ा घरौंदा
धूप मध्यम है बसंती
खग विहग लौटे प्रवासित
जल मुकुर सरिता हसंती
फूल खिल उस डग उठे अब
राह कल तक थी कटीली।।
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अथवा वास्तविक स्वयं से रिक्त मन से
मायावी स्वयं को हटाने का नाम !
और मायापति को बिठाने का भी ?
या फिर स्वयं जो जानकार बना फिरता है
उसे अज्ञानी बनाने की यात्रा का ?
जीवन एक सीमित भाव से
असीम में प्रवेश की यात्रा भी तो है !
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तेरे बिन अधूरी सी
जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,
जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में |
दिल धड़कता पर रहेगा आस रख फ़रियाद में |
आज हम बनाएंगे बिना मोयन के बाजरे के आटे की खस्ता मीठी मठरी। इस मठरी में मोयन न होने से तलते वक्त भी ये तेल कम पीती है। इसके बावजूद खस्ता इतनी बनती है कि बाजार की कुकीज जैसी लगती है। आइए बनाते है बाजरे के आटे की खस्ता मीठी मठरी... ******
बहुत उत्तम चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी|
सुप्रभात, पठनीय रचनाओं के सूत्र देती सुंदर चर्चा, आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद🙏
बहुत सुंदर पठनीय रचनाओं को संकलित किया है,
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
सम्मलित रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सार्थक, पठनीय सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरे संस्मरण को आज की चर्चा में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चर्चा आदरनीय । । मेरी रचना चर्चा में शामिल करने हेतु शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंआप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर अभिवादन 🙏
जवाब देंहटाएंपठनीय सामग्री, शीर्षक की सुंदर पंक्तियां एंव विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार कामिनी जी।
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति!
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