सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
दोहे "वासन्ती परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
फूली सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त।
आसमान से हो गया, कुहरे का अब अन्त।३।
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शिव-तेरस का आ रहा, अब पावन त्यौहार।
बम-भोले की हो रही, अब तो जय-जयकार।४।
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इन्द्रधनुषी सुन्दरता तुम ।
उतुंग गिरि की उर्ध्व शिखा पर
हिम किरीट सी आभा तुम ।
अम्माँ की बोली
गुणकारक जैसे
नीम निबोली
अम्माँ की बोली
उनींदी पलकों पे
मीठी सी लोरी
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फुर्सत मिले तो अपना,
लिखना जरूर जी।
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एक सामयिक गीत -शांति के कपोतों के रास्ते कठिन
जियो और
जीने दो
होकर विषपायी,
बारूदी
गन्धों में
भर दो अमराई,
चुप क्यों
हो टालस्टाय
और गागरिन।
”अच्छा, बताओ बहू कहा है? बड़े बुजुर्गो के आगे ढोक देना भी भूल गई क्या?”
रोहिणी चारपाई से उठती है, निगाहें कमरा तो कभी किचन की तरफ़ दौड़ाती है।
"बुआ जी आप तो मिठाई खाइए, स्टेट बैंक में मेरा सिलेक्शन हुआ है, दो दिन बाद जॉइनिंग है।”
दीक्षा प्लेट में मिठाई लिए आती है।
”मैं कहूँ न, लाखों में एक है हमारी दीक्षा; तुम तो बौराय गई हो भाभी।”
झोंके-सी बदलती रोहिणी दीक्षा की बलाएँ लेते हुए अपने सीने से लगा लेती है।
व्यवस्थित और बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी|
बेहतरीन चर्चामंच,शानदार पोस्ट।हार्दिक आभार आपका।
जवाब देंहटाएंपठनीय एवं सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को आज की चर्चा में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक , एक से बढ़कर एक , सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक शुभ कामनाएं और बधाई , मेरी रचना अब वसंत ने दी है दस्तक को भी आप ने शामिल किया बड़ी ख़ुशी हुयी आभार ! राधे राधे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा अंक ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत आकर्षक, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंबुलावा पत्र को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
सादर
सरहानीय अंक!
जवाब देंहटाएंसादर...
सराहनीय और सधा हुआ अंक है। मर्मस्पर्शी रचनाएँ वागर्थ को स्थान देने के लिए एडमिन जी का कृतज्ञ मन से आभार ।
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