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बुधवार, फ़रवरी 09, 2022

"यह है स्वर्णिम देश हमारा" (चर्चा अंक-4336)

 मित्रों...! 

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक!

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तेरी है ज़मीं तेरा आसमाँ परमात्मा ने हमें अनगिनत उपहार दिए हैं। यह सारा जगत, तन, मन तथा बुद्धि उसकी नेमत ही तो हैं। वही प्रकृति के सौंदर्य द्वारा हमें लुभाता है। रंग-रूप और ध्वनि का यह सुंदर आयोजन क्या उसकी लीला नहीं है ? हम उसकी दी हुई नेमतों का उपयोग किस भावना के साथ करते हैं, इसी पर हमारे सुख-दुःख निर्भर हैं। डायरी के पन्नों से 

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दोहे "आज दिवस प्रस्ताव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

प्रेमदिवससप्ताह कादिवस दूसरा आज।
पश्चिम के अनुकरण काबढ़ने लगा रिवाज।।
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कल गुलाब का दिवस थाआज दिवस प्रस्ताव।
लेकिन सच्चे प्रेम का, सचमुच दिखा अभाव।।
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राजनीति जैसा हुआआज प्रणय का खेल।
झूठे हैं प्रस्ताव सबझूठा मन का मेल।।
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मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव।
खींचातानी में भला, कैसे हो समभाव।।

उच्चारण 

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लेखा 

"चले आए दोबारा मुँह उठाये।”

प्रगति ख़ाली  बर्तनों को सिंक में पटकते हुए कहती है।

" इतनी निर्मोही न बनो; पसंद नहीं हूँ सीधा कह दो, व्यवहार तो ऐसे कर रही हो जैसे  ट्रैफ़िक-पुलिस का काटा चालान हूँ।”

लेखा बड़े स्नेह से प्रगति के कंधे पर ठुड्डी रखते हुए कान में कहता है।

"पूछा कब था? पिछले एक वर्ष से देख रही हूँ तुम्हें ; क्या चल रहा है ये,और ये अट्ठाईस दिन पहले आने वाला क्या झंझट है!" 

अवदत् अनीता 

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प्रपोज डे पर आज की शायरी 

मैं मुहब्ब्त तुझसे करता हूँ,करता रहूँगा,
दामन  में खुशियां  मैं तेरे यूं भरता रहूँगा। 
आवाज सुख़न ए अदब 

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टकराव 

 मध्य अहम् की दीवारों से

कैसे पायें पार।

रखें ताक पर धीरज को, ढूँढ़ रहें क्यों सेज,

पहन प्रेम का आभूषण, पाती मन की भेज 

बनता है राई का पर्वत, बात बात पर रार।।

मध्य अहम् की दीवारों से,कैसे पायें पार।। 

काव्य कूची 

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छुप-छुप खड़े हो की मेरी लता 

लता मंगेशकर का मतलब मेरे लिए है उनका गाया गीत ''चुप-चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...।" यह गाना मेरी ज़बान पर चढ़ गया था और मैं अपने पापा को यह गाकर चिढ़ाती थी। मेरे पापा गाना सुनने के बहुत शौकीन थे; घर में एक रेडियो-रेकॉर्ड प्लेयर और ढेरों रेकॉर्ड थे। मेरे घर में दिनभर गाना बजता रहता था। उन दिनों गीत के बोल मेरी समझ में नहीं आते थे, और अपनी समझ से कोई भी शब्द जोड़ देती थी। उन्हीं में यह गीत था चुप-चुप खड़े हो, जिसके बोल मेरे लिए थे छुप-छुप खड़े हो...। पापा अपने कमरे में ही ज़्यादा समय पढ़ते-लिखते रहते थे। मुझे लगता कि पापा सबसे छुपकर कमरे हैं और मैं जैसे लुका-चोरी खेलने में उनको पकड़ ली होऊँ, मैं ऊँगली के इशारे से बोलती, "पापा, हम तुमको पकड़ लिए। छुप-छुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...।" 

लता मंगेशकर को मैंने अपने पापा के माध्यम से जाना है। हालाँकि उस उम्र में मुझे नहीं मालूम था कि गाना किसने गाया और रेकॉर्ड में बजता कैसे है। 'हिज मास्टर्स वॉइस' के रेकॉर्ड में लाउडस्पीकर के सामने एक कुत्ता बैठा रहता है। मैं सोचती थी कि वह कुत्ता कितना अच्छा गाता है, औरत-मर्द दोनों की आवाज़ में गाता है। लेकिन बाहर का कुत्ता क्यों नहीं गाता, सिर्फ भौं-भौं क्यों करता है? यह ऐसा अनसुलझा प्रश्न था जो मैं सोचती रहती थी, आश्चर्यचकित रहती थी, मेरी खोजबीन जारी थी। लेकिन इसका उत्तर कभी पूछा नहीं किसी से। जब समझ आया कि गाना इंसान गाता है, तो अपनी मूर्खता पर चुचाप ख़ुद ही हँसती थी। लता जी को हार्दिक श्रद्धांजलि!

 

साझा संसार 

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जयमाल गीत 

करि सोलह सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।

दर्पण देखूँ, देखि लजाऊँ ।
अपने पिया की छवी सजाऊँ ।
जैसे राजकुमार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

जिज्ञासा के गीत 

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सुनो!! हम अब जाग गये है!! 

कल रात ठीक से सो नहीं पाए और सुबह चल दिये हमेशा की तरह ट्रेन से ऑफिस के लिए.

थोड़ी देर किताब पढ़ते रहे और न जाने कब नींद का झोंका आया और हम सो गये. पूर्व से पश्चिम तक १०० किमी में फैले इस रेल्वे ट्रैक पर मेरे ऑफिस टोरंटो डाउन टाउन के लिए पूर्व से पश्चिम की ओर ५० किमी ट्रेन से जाना होता है. दूसरी तरफ फिर ५० किमी पश्चिम की तरफ ओकविल और हेमिल्टन शहर है. मगर मेरी ट्रेन डाऊन टाऊन पहुँच कर समाप्त हो जाती है. आगे नहीं जाती सवारी लेकर. 

उड़न तश्तरी .... 

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विरक्ता भाव 

प्रीत नगरिया हेलो मारे 

शांत पात री छाया ओढ्या 

शीतळ झोंक रो उद्गार।

दूबड़ धरती हिवड़ा सजती 

काळजड़ रो है सिणगार।

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किताबों की दुनिया - 250 

इश्क़ का राग जो गाना हो, मैं उर्दू बोलूंँ 
किसी रूठे को मनाना हो, मैं उर्दू बोलूंँ 

बात नफरत की हो करनी तो ज़बानें हैं कई 
जब मुझे प्यार जताना हो, मैं उर्दू बोलूंँ 

उर्दू ज़बान से बेइंतहा मुहब्बत करने वाले हमारे आज के शायर से तमाम उर्दू और हिंदी पढ़ने वाले तो मुहब्बत करते ही हैं इसके अलावा जितने भी देश-विदेश के बड़े ग़ज़ल गायक हैं वो भी इनकी ग़ज़लों के दीवाने हैं । यही कारण है कि इनकी ग़ज़लों को इतने जाने माने गायकों ने अपना स्वर दिया है कि यहाँ उन सब का नाम देना तो संभव नहीं है अलबत्ता कुछ का नाम बता देता हूँ ताकि सुधि पाठकों को उनके क़लाम के मयार और लोकप्रियता का अंदाज़ा हो जाये। इस फेहरिश्त की शुरुआत जनाब चन्दन दास जी से होती है जो जगजीत सिंह जी, पंकज उधास,अनूप जलोटा, तलत अज़ीज़ ,भूपेंद्र -मिताली, अनुराधा पौडवाल, सुरेश वाडेकर, रेखा भारद्वाज, पीनाज़ मसानी , ग़ुलाम अब्बास खान , शिशिर पारखी और सुदीप बनर्जी पर भी ख़तम नहीं होती बल्कि ग़ज़ल गायक राजेश सिंह तक जाती है। यहाँ मैं ख़ास तौर पर गायक 'राजेश सिंह' साहब का ज़िक्र जरूर करना चाहूंगा जिन्होंने हमारे आज के शायर के क़लाम को जिस अनूठे अंदाज़ में गाया है उसकी मिसाल ढूंढें नहीं मिलती।
 
उम्र भर कुछ न किया जिसकी तमन्ना के सिवा 
उसने पूछा भी नहीं मेरी तमन्ना क्या है 

इश्क़ इक ऐसा जुआ है जहांँ सब कुछ खोकर 
आप ये जान भी पाते नहीं खोया क्या है 

नीरज 

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आसमान से 

मिसरा  -- मुझको जमीं से लाग उन्हें आसमान से
                शायर दाग देहलवी
2    2 1      21      21   12    2 1  21  2

ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
©️
इंसां   जो   छेड़   करता  रहा  आसमान  से,
डरते   रहेंगे    यूँ    ही     परिंदे   उड़ान  से।

कुछ हाल  तो हो जाता है आँखों से भी बयां,
हर  एक  बात   की  नहीं  जाती  ज़ुबान  से। 

मेरा सृजन 

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सम्मानित जो सकल विश्व में महिमा जिनकी बहुत रही है , अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे , उपनिषदों का देश यही है , गायेंगे हम सब यश इसका , यह है स्वर्णिम देश हमारा ,  आगे कौन जगत में हम से , यह है भारत देश हमारा।  सुब्रमणयमभारती कबीरा खडा़ बाज़ार में 

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गली हसनपुरा- रजनी मोरवाल 

यूँ तो रजनी मोरवाल जी का साहित्य के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है और मेरा भी उनसे परिचय फेसबुक के ज़रिए काफी समय से है लेकिन अब से पहले कभी उनका लिखा पढ़ने का संयोग नहीं बन पाया। इस बार के पुस्तक मेले से पहले ही ये ठान लिया था कि इस बार मुझे उनकी लिखी किताबें पढ़नी हैं। इसी कड़ी में जब मैंने उनका ताज़ा लिखा उपन्यास "गली हसनपुरा" पढ़ना शुरू किया तो शुरुआती पृष्ठों से ही उनकी धाराप्रवाह लेखनशैली और ज़मीन से जुड़े मुद्दों ने मन मोह लिया  हँसते रहो 

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मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की रचना चलो सभी मतदान करो, उनके सुपुत्र अनंत मनु के स्वर में 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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काश, नवजात बच्चे की माँ के दर्द को हम समझ पाते!! 

 

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कुछ हाइकु 

किया किसी से 

कभी भी  बैर नहीं 

दी है  ममता  


सारी दुनिया 

 सोती थी बेखबर   

 तुम  अचेत  

Akanksha -asha.blog spot.com 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच के इस अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की विस्तृत चर्चा में पढ़ने के लिए काफ़ी कुछ संजो कर रखा गया है, आभार मुझे भी इस सुंदर प्रस्तुति में शामिल करने हेतु!

    जवाब देंहटाएं
  3. --
    गुरू-शिष्य पागल हुए, ज्ञान हुआ विकलांग।

    नहीं भरोसा कर्म पर, बाँच रहे पंचांग।।

    सुन्दर है दोहावली

    --
    राजनीति जैसा हुआ, आज प्रणय का खेल।
    झूठे हैं प्रस्ताव सब, झूठा मन का मेल।।जीवनभर की प्रीत का, सिमट रहा आधार।
    रासरंग के लिए ही, उमड़ रहा अब प्यार।।छोड़ो ढोंग-ढकोसले, तजो पश्चिमी रीत।
    अमर हमेशा जो रहे, वो होती है प्रीत।।
    शास्त्री जी के दोहरे जैसे गंगा नीर ,
    तन मन को शीतल करें हर लें सबकी पीर।

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  4. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

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  5. आदरणीय शास्त्री जी प्रणाम👏
    वैविध्यपूर्ण रचनाओं से सज्जित सार्थक अंक ।
    सुंदर और श्रमसाध्य प्रस्तुति ।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।
    सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐

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  6. बहुत सुंदर..सभी लिंक से एक से बढ़कर एक दिए हैं आपने...बहुत खूब आदरणीय शास्‍त्री जी

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  7. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय सर।
    मेरे विरक्ता भाव और लेखा को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सभी को बधाई।
    सादर

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  8. बहुत खूबसूरत चर्चा संकलन

    जवाब देंहटाएं

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