सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
आज का चर्चा अंक समर्पित है--
हमारे ब्लॉग जगत की हर दिल अजीज रचनाकार, एक विद्वान मराठी शिक्षिका, एक सुदक्ष कवयित्री और उससे भी कहीं ज्यादा एक संवदेनशील इन्सान आदरणीया मीना शर्मा जी को
वैसे तो उनकी सभी रचनाएं ही प्रशंसा से परे है...
परन्तु सभी को तो ला नही सकती....
उन सभी का आनंद उठाने के लिए तो आप को
उनके ब्लॉग का भ्रमण करना होगा..
उनकी कविताओं की व्याख्या करना या उसके विषय में
चंद पंक्तियाँ भी कहना मेरे लिए तो
सूरज को दीपक दिखाने जैसी बात होगी....
इसलिए बिना किसी व्याख्या के प्रस्तुत है,
मेरी पसंद की उनकी कुछ रचनाएं...
*****
इस तरह से प्रकृति से बातें तो
एक प्रकृति प्रेमी कवि हृदय ही कर सकता
पंछी अपने गीतों की
दे जाते हैं सौगातें,
वृक्ष-लता सपनों में आ
करते हैं मुझसे बातें ।
झरने दुग्ध धवल बूँदों से
मुझे भिगो देते हैं,
अपने संग माला में मुझको
फूल पिरो लेते हैं ।
******भगवान को उलाहना देता भक्त हृदय कितना समय लगाया कान्हा !!! बारह महीने सावन-भादोंमेरी आँखों में रहते हैं,तुम आओ तो चरण पखारूँ
नयनों से झरने बहते हैं !
टूट ना जाए साँस की डोरी
कितना समय लगाया कान्हा !!!******मन तु क्यों इस सांसारिक प्रवजना में उलझ खुद को दुखी करता रहता है, परमात्मा की शरण लें और सुखी हो जा.... अध्यात्म की ओर ले जाता लाजवाब सृजन मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !
नदिया के जैसे, तू तृष्णा को हर ले
बादल के जैसे, अहं रिक्त कर ले !
फूलों के जैसे, तू महका दे परिसर
वृक्षों के जैसे, स्थितप्रज्ञ बन ले !
तू अब मौन हो जा, मनन में तू खो जा,
प्रभु से लगा के लौ, हो जा सुखी !
मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !!!
*******************
एक तड़प... प्रियतम के हृृदय तक
जाने 'उसने' कब, किसको,क्यों, किससे, यहाँ मिलाया !
दुनिया जिसको प्रेम कहे,
वो नहीं मेरा सरमाया !
जाते-जाते अपनेपन की,
सौगातें दे जाऊँ !
कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ?
जिससे पहुँचे भाव हृदय तक,
मैं वह गीत कहाँ से लाऊँ ?******प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, बस दो नयनों का मिलन होता है और सारी बातें हो जाती....
एक मुद्दत बाद खुद के साथ आ बैठे
यूँ लगा जैसे कि रब के साथ आ बैठे !
कौन कहता है कि, तन्हाई रुलाती है,
हम खयालों में, उन्हीं के साथ जा बैठे।
मेघ की गोदी से जब ढुलक पड़ी
बूँद एक संग हवा के बह चली,
छलक पड़ी !!!
तृप्त करने चल पड़ी सूखी मही,
मेघ को भूली नहीं !
देह छूटी, प्राण का बंधन वही !
डोर टूटी, नेह का बंधन नहीं !
विकल मन से पूछती वह मेघ से -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
****************
वतन के लिए आपके हृदय में पीड़ा नहीं
तो आप कवि क्या इंसान भी नहीं....
ओ भाई मेरे,ओ बंधु मेरे,क्या अमन से रिश्ता कुछ भी नहीं?
जिस माटी में तुम जन्मे, खेले-खाए और पले - बढ़े
उस माटी से गद्दारी क्यों, ये कैसी जिद पर आज अड़े ?
क्या अक्ल गई मारी तेरी, किसके बहकावे में बिगड़े,
जी पाओगे अपने दम पर, क्या आपस में करके झगड़े?********************जब कवि हृदय देश की,समाज की तथा मानवता की दुर्दशा देखता है तो चीत्कार कर उठता है और फिर प्रतिकार लिखने को विवश हो जाता है...नसों में खौलते लहू का,
ज्वार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
मत लिख अब बंसी की धुन,
मत लिख भौंरों की गुनगुन,
अब झूठा विश्वास ना बुन,
लिख, फूलों से काँटे चुन !
बहुत हुआ, अब कटु सत्य
स्वीकार, लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !********एक संघर्ष...एक तपस्या के बाद जब फूल खिलते हैं तो उसकी खुशबु चहुँ दिशा में फैलना लाज़मी है...गुलमोहर की खुशबू हर दिशा में फ़ैले यही कामना करती हूं'तब गुलमोहर खिलता है' - मेरा तीसरा कविता संग्रहउनकी रचना यात्रा का अहम पड़ाव है उनकी तीसरी पुस्तक ' जब गुलमोहर खिलता है '! ये एक अनन्य साहित्य साधिका के उस संघर्ष का प्रतीक है जिसमें घर और आजीविका के सभी दायित्व निभाते हुए साहित्य सृजन को समय देना बहुत बड़ी चुनौती है।मीना जी, चर्चा मंच परिवार की ओर से आप को इस सफलता के लिए अनन्त शुभकामनाएं एवं बधाईआप का सफर यूँ ही जारी रहें, यही कामना करती हूँ।**************आज का सफर यही तक, अब आज्ञा देंआप का दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा
प्रिय कामिनी, हमारी ब्लॉग जगत की अत्यंत प्रतिभाशाली और संवदेनशील रचनाकर प्रिय मीना शर्मा को समर्पित ये भावपूर्ण अंक निश्चित रूप से बेजोड़ है। उनसे परिचव मेरा गर्व है! 'जब गुलमोहर खिलता है ' उनकी अविस्मरणीय रचना है किससे मैं उनके ब्लॉग से परिचित हुई। बाद में यही शीर्षक उनकी तीसरी पुस्तक को मिला। ये पुस्तक कल मेरे हाथो में आ चुकी जिसकी रचनाएँ निश्चित रूप से बहुत हृदय स्पर्शी और साहित्यिक दृष्टि से उत्तम हैं। म्मीना जी बालसुलभ कोमलमना कवयित्री हैं। अपने जीवन में गृहणी और शिक्षिका की दोहरी भूमिका निभाते हुए भी अपने भीतर के रचनाकर को हमेशा सक्रिय रखा और साहित्य को सुंदर सृजन दिया, यही उनका अनन्य साहित्य प्रेम है। उनकी पुस्तक काव्य रसिकों को खूब पसंद आए यही दुआ करती हूं। मेरे ब्लॉग जगत के मित्रों से विनम्र निवेदन है कि यदि सम्भव हो तो सहयोगियों की पुस्तकें मंगवा कर उन्हें प्रोत्साहित करें। एक आम पुस्तक का मोल कोक की दो बोतल जितना भी नहीं पड़ता या फिर एक पिज्जा जितना भी नहीं। सहयोगियों की पुस्तकें न सिर्फ उनके स्मृति चिन्ह के रूप मेंहमारे साथ रहेंगी अपितु पुस्तकों का अस्तित्व बनाए रखने में सहायक होंगी। प्रिय मीना को ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं। सभी रचनाएँ बाद में देखकर प्रतिक्रिया देती हूं। वैसे यहां शामिल सभी रचनाएं कविताऐं नहीं अनमोल मोती है उनके ब्लॉग के। तुम्हें आभार और प्यार इस उत्तम प्रस्तुति के लिए 🌷🌷❤️❤️🎉🎉🎊🎊🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु, आज आप दोनों बहनों के स्नेह ने सुबह सुबह खुशी के आँसुओं से आँखें नम कर दी हैं। बहुत भाग्यशाली हूँ मैं कि इतने अच्छे लोग मिले मुझे !!! बहुत सारा प्यार आपके लिए !
हटाएंचर्चामंच का भी बहुत बहुत शुक्रिया !!!
बस मीना जी , आप के कविता रुपी चन्द मोतियों को पिरोना चाहती थी एक माला में। आप रचनाएं हैं ही अनमोल। ढ़ेर सारा स्नेह और शुभकामनाएं आपको 🙏
हटाएंहो विदा की घड़ी में भी जिसका स्मरण
जवाब देंहटाएंकब उसे काल भी, है अलग कर सका ?
था विरोधों का स्वर जब मुखर हो चला,
प्रेम सोने सा तपकर, निखरकर उठा।
चिर प्रतीक्षा में मीरा की भक्ति था वह,
प्रेम राधा का अभिमान कब बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
👌👌👌👌👌🌷🌷
येभाव निरामय, निर्मल-से
जवाब देंहटाएंकोमलता में हैं मलमल-से
मन के दूषण भी हर लेंगे
ये पावन हैं गंगाजल-से !
मत रिक्त कभी करना इनको
ये मंगल कलश भरे रखना !
ये मंगल कलश भरे रखना !!!
ना तुम होगे, ना मैं हूँगी,
उत्सव की प्रथाएँ अमर रहेंगी ।
👌👌👌👌👌👌🌷🙏
शब्दो और भावों की अद्भुत 'मीना'कारी!
हटाएंबहुत सार्थक और श्रमसाध्य चर्चा|
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी|
सादर प्रणाम आदरणीय शास्त्रीजी
हटाएंप्रिय कामिनी,
जवाब देंहटाएंआज सुबह सुबह ब्लॉग्स चेक करते समय आपका अनमोल तोहफा मिला चर्चामंच के आज के अंक के रूप में।
सुखद आश्चर्य का धक्का सा लगा। फिर उस पर रेणु की टिप्पणी। ये तो डबल धमाका !
बहुत बहुत आभार, बहुत सारा प्यार !!!
🌹💐❤️🙏❤️💐🌹
वाह बहुत ही शानदार!
जवाब देंहटाएंहर एक रचना एक से बढ़कर एक सबकी अपनी एक अलग ही विशेषता है!और हर एक रचनाओं पर कामिनी मैम की प्रतिक्रिया ने तो चार चांद लगा दिया!🌟🌹🌹🌺🌸
आज का चर्चा मंच फूलों के खूबसूरत बगीचे जैसा है
जिस में तरह-तरह की खूबसूरत फूल लगे हुए हैं और अपनी खुशबू बिखेर रहे हैं पूरे बगीचे में और हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं फूल तो अनेक पर उसका माली तो एक है!और वह हैं आदरणीय मीना मैम!
बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मीणा मैम आपको इस खूबसूरत तोहफे के लिए💐💐💐💐💐
कितनी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत आभार प्रिय मैम🙏
बहुत सारा स्नेह व आभार प्रिय मनीषा
हटाएंकामिनी दी, मीना दी कि मैं नियमित पाठक हु। ब्लॉग जगत में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उनकी रचनाओं को समर्पित यह अंक सचमुच बेजोड़ है। मनीषा के कहे अनुसार सचमुच आज का अंक खूबसूरत फूलों से सजा है। बहुत बहुत बधाई मीणा दी एवं कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंमीना दी कि किताबे पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय जो यही शुभकामनाएं।
आदरणीया ज्योतिजी सादर, सस्नेह धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर मनमोहक और आत्मीयता से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक ।
जवाब देंहटाएंमीना जी के काव्य सृजन को समर्पित यह अंक वास्तव में संग्रहणीय है,जिसके लिए कामिनी जी बधाई की पात्र हैं, उन्हें मेरा आभार और शुक्रिया ।
मीना जी को मैने शुरू से तो नहीं पढ़ा है परंतु जितना पढ़ा है, उनमें उनकी रचनाएं हमेशा उच्चकोटि और सारगर्भित रचनाधर्मिता का बोध कराती हूं, उनको पढ़के ऐसी अनुभूति होती है कि अरे मीना जी कितना अच्छा लिखती हैं । उनसे हमेशा सीख मिलती है । उनकी पुस्तक के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और असंख्य बधाइयां 💐💐❤️❤️😀😀
मैं रेणु जी की बात से सहमत हूं कि हमें अपने साथी रचनाकारों को प्रोत्साहित करते हुए उनकी पुस्तकों को जरूर पढ़ना चाहिए,जो एक दिन हमारी स्मृतियों की अमूल्य धरोहर होंगी । सादर 👏👏💐💐
सादर, सस्नेह आभार जिज्ञासाजी
हटाएं*हूं/हैं
जवाब देंहटाएंसच कहें तो मीनाजी मेरे लिए गुरु स्वरूपा हैं, जिनकी कविताओं को पढ़-पढ़ कर हमने छंद-विधान से बिम्ब-विधान तक का ककहरा सीखा है। वह एक सम्पूर्ण शिक्षक हैं। ऊपर से, मराठी और हिंदी दोनों के व्यापक ज्ञान ने निश्चय ही उन्हें अभिव्यक्ति का एक विस्तृत आकाश दिया है जहां उनकी भावनाओं की 'चिड़िया' अनंत की उड़ान भरती है। इस महान साहित्य साधिका को सादर प्रणाम और उनकी अनंत की साधना को असीम शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंयहाँ अतिशयोक्ति अलंकार हो गया आदरणीय विश्वमोहन जी ! आपसे मिलनेवाली प्रशंसा मेरा सौभाग्य है परंतु आप जैसे विद्वान और हिंदी संस्कृत भाषाओं पर पकड़ रखनेवाले को मैं क्या सिखा सकती हूँ भला ! उल्टा मैं ही आपके लेखन से सीखती हूँ।
हटाएंआपके बड़प्पन और विनम्रता को सादर प्रणाम। सादर आभार !!!
कामिनी जी को इस प्रस्तुति का विशेष आभार!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और अनुपम प्रस्तुति कामिनी जी ! मीना जी के ब्लॉग “चिड़िया“ पर उनकी कविताएँ पढ़ना सदैव सुखद अनुभव रहा है ।
जवाब देंहटाएंउनके द्वारा रचित पुस्तकें साहित्य जगत में लोकप्रियता के आयाम
स्थापित करें इसके असीम शुभकामनाएँ ।
कृपया *इसके लिए असीम शुभकामनाएँ * पढ़ें ।
हटाएंआदरणीया मीनाजी, हृदयपूर्वक आभार एवं स्नेह।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंसादर आभार संजय जी
हटाएंवाह!सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना दी जी का लेखन शीतल झरने सा होता मधुर प्रवाह। आज की प्रस्तुति सहेज ली है धीरे-धीरे सभी रचनाएँ पढूंगी।
हार्दिक आभार कामिनी दी रचनाएँ पढ़वाने हेतु।
सादर
शीतल झरने सा तो आपका स्नेह है प्रिय अनिता।बहुत सारा प्यार व धन्यवाद।
हटाएंधन्यवाद कामिनी जी , आज मीना शर्मा जी की कलम से रू-व -रू हुआ , मीना जी के सृजन हेतु साधुवाद देता हूँ,
जवाब देंहटाएंऔर मंच से माफ़ी भी चाहता हूँ कि न नित्य लेखन हो पाता ना ब्लॉग पर आना फिर भी जब कभी अपनी साहित्य पिपासा निमित पहुँच जाऊँ तो अपने सैनिक भाई को स्वीकार कीजयेगा,
आप तो यूं भी परम आदरणीय है राणा जी, आप सैनिक भाई तो हमारे देश के आन बान और शान है। जहां तक आप के लेखन की बात है आप तो मेरे पसंदीदा लेखको में से एक है।समय निकाल कर मंच पर उपस्थित होने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपको 🙏
हटाएंआदरणीय बलवीर राणाजी, आप देश के प्रहरी हैं। मेरा प्रणाम स्वीकारें। आपके प्रोफाइल से आपके ब्लॉग देखे। मैं भी उन्हें पढूँगी। आपने मेरे लेखन को सराहा, सादर धन्यवाद।
हटाएंआदरणीय राणा जी, आप देश के प्रहरी हैं। मेरा प्रणाम स्वीकारें। आपने मेरे लेखन को सराहा, सादर धन्यवाद। आपकी रचनाएँ मैं अवश्य पढूँगी।
हटाएंमंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार 🙏
जवाब देंहटाएं