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बुधवार, अगस्त 03, 2022

"नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक-4510)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में देखिए कुछ लिंक!

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दोहे "नागपंचमी-बहुत खास त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

श्रावण शुक्ला पञ्चमी, बहुत खास त्यौहार।
नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार।१।
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महादेव ने गले में, धारण करके नाग।
विषधर कण्ठ लगाय कर, प्रकट किया अनुराग।२।
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उच्चारण 

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छिपा बूँद में भी इक सागर 

छोटा सा दिल लघु सी चाहत 

उससे बनती मन की कारा, 

उठो आज अम्बर को छू लो 

है अनंत सामर्थ्य तुम्हारा !

मन पाए विश्राम जहाँ 

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राजकुमार- तू अपने और मैं अपने घर का 

कड़ाकी की सर्दी का मौसम था। घनी पहाड़ियों के बीच बसी सपेरों की बस्ती में एक कच्चे मकान में बाबा दीनानाथ अपने बेटे-बहू और इकलौते पोता और उसके एक छोटे से कुत्ते के पिल्ले के साथ दुबका पड़ा था। पिछले दो दिन की बारिश के बाद ठण्ड बढ़ गयी थी।  बाबा दीनानाथ का पोता बबलू उससे चिपका हुआ था और उसके बगल में उसका प्यारा पिल्ला छैलू  दुबका पड़ा था। ठण्ड के मारे किसी को भी नींद नहीं आ रही थी। बबलू अपने दादा दीनानाथ को बाबा कहकर ही पुकारता था। वह बार-बार उठकर उससे पूछता- “बाबा! बड़ी ठण्डी लग रही है, सुबेरा कब होगा? कब सूरज निकलेगा?  

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व्यवहार 

“पापा ये बाबा तो हर वक्त गाली ही देते रहते हैं..जब इनके पास आओ या बग़ल से गुजरो..ये अपनी छड़ी पटकते हैं और कुछ न कुछ बड़बड़ाने लगते हैं और आप कहते हैं कि मुझे इनके पास बैठना चाहिए, समय बिताना चाहिए.. सम्मान करना चाहिए..आदर करना चाहिए ।”

“अब आप ही बताइए भला ऐसे में कोई इनके साथ ज़्यादा देर तक तो नहीं बैठ सकता न.. मैं बाबा के काम कर दूँगा पर उनके साथ बैठना मुझसे न होगा न ।” 

गागर में सागर जिज्ञासा सिंह

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प्रकृति का आलम 

भावों की उत्तंग तरंगें

जब विशाल  रूप लेतीं

मन के सारे तार छिड़ जाते

उन्हें शांत करने में |

पर कहीं कुछ बिखर जाता

किरच किरच हो जाता

कोई उसे समेंट  नहीं पाता

अपनी बाहों में 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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अंग्रेजी की इन पाँच क्रियाओं(Verbs) के अर्थ और प्रयोग आपको जानने चाहिए! 

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आहट 

घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....
हर तरफ, एक धुंधली सी नमीं,
भीगी-भीगी, सी ज़मीं,
हैं नभ पर बिखेरे, किसी ने आंचल,
और बज उठे हैं, गीत छलछल,

हर तरफ इक रागिनी! 

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भींजे ख़्वाबों में .. बस यूँ ही ... 

यूँ तो कहते हैं सब कि

"समुन्दर में 

नहा कर तुम 

और भी 

नमकीन हो गई हो ~~~ 

बंजारा बस्ती के बाशिंदे 

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विचार प्रवाह : जीवन-संध्या का मुकाबला  वैसे  बूढ़े वृक्ष पर तो न तो परिन्दें बैठते हैं और फल- फूल न आने की वजह से न मधुमक्खियां आती हैं और न ही भँवरे डोलते हैं और न ही तितलियां उस पर मंडराती हैं। यह प्रकृति का नियम है।अतः इस सत्य को स्वीकारते हुए कि सुबह के बाद शाम तो आनी ही है, चिंता छोड़कर  चिन्तनशील बने रहें । 

Mera avyakta रामकिशोर उपाध्याय 

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किसी अनजाने के साथ... 

कभी निकल जाऊं में किसी ऐसे सफर पर..
जिसकी राहो का मुझे पता ना हो...
कही बैठ जाऊं किसी अनजाने के साथ,
कह दूं सारी मन की बाते...
जो मुझे जानता ना हो... 

'आहुति' सुषमा कुमारी

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मौत 

दरिया-ए-जिंदगी की मंजिल मौत है ,
आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .

बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी ,
मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है . 

! कौशल ! 

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बारिश से धुलता अवसाद 

खुशियां तलाश रही हूं बारिश की बूंदों में, जो बरस कर ठहर गई हैं फूलों और पत्तियों में...

बारिश की बौछार से गुम हो गए 
पहाड़ को तलाशती है निगाहें 
और जाकर ठहर जाती है 
एक बच्ची के पावों में 
जो पड़ोस में छोटे से घर के 
दरवाजे का पल्ला पकड़े हुए 
बाहर पायल वाले नाजुक पैर को 
ओसारे से बरसती - टपकती बूंदों के नीचे धर 
खिलखिला रही है।

रूप-अरूप रश्मि शर्मा

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मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो. ममता सिंह का नवगीत "सोचें क्यों अन्जाम" 

सोचें क्यों अन्जाम।। 

नियम ताक पर रख कर सारे, 

वाहन तेज भगायें। 

टकराने वाले हमसे फिर, 

अपनी खैर मनायें । 

साहित्यिक मुरादाबाद 

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मुहब्बत 

ये क्या बला है मुहब्बत, 
नाराज़ सा रहने लगा हूँ 

कविता 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात! नाग पंचमी का त्योहार कर्नाटक में भी उत्साह से मनाया जाता है। पठनीय रचनाओं के संयोजन से सजा सुंदर चर्चा मंच, आभार मुझे भी इसमें शामिल करने हेतु!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सार्थक और सुंदर चर्चा प्रस्तुति । मेरी लघुकथा को शामिल करनेके लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी । आपको मेरा नमन और वंदन।

    जवाब देंहटाएं

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