सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीया कल्पना मनोरमा जी की रचना 'अंश और अंशी का द्वंद्व'से -
जब हमें बराबर ये लगता और खटकता रहता है कि हमारे साथ जो हो रहा है, वह बहुत बुरा हो रहा है, लोग चालें चल रहे हैं। उस समय जगतनियंता आपके दोषों और अहम को परमार्जित कर चालन लगाकर तुम्हें निखार कर आदमी बना रहा होता है। क्योंकि आप जिस जगह को सर्वोत्तम मानकर टिकना चाहते हो, उस अदृश्य को मालूम होता है, वह स्थान आपके अनुकूल नहीं है। तभी तो वह इंसानी मुहरों को आपके खिलाफ भड़का देता है। और हम ठगे से देखते रह जाते हैं।यहाँ पहुँचकर अंश और अंशी का जो द्वंद्व पैदा होता है, वह जान लेवा, कठिनतम कहलाता है। आपकी अपेक्षाओं के पर कतर कर वह आपको ऐसे स्थान पर पहुँचा देता है, जहाँ आपके स्वाभिमान को सम्मान ही नहीं मिलता बल्कि आप सुकून भी महसूस करने लगते हैं।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: बालकविता "मम्मी मैं झूलूँगी झूला"
मैं किस घर को अपना मानूँ
जिसे मायका बना दिया या
इस घर को अपना मानूं !
कितनी बार तड़प कर माँ
भाई की यादें आतीं हैं !
पायल, झुमका, बिंदी संग , माँ तेरी यादें आती हैं !
भानु सहेजे किरन भोर की
दृग झपकाए लाल गरभ का ।
जैसे कमलनी खिले कलिका बिच
माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥
थाल सजाए दीपक बाती
राह निहारे द्वार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
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खैर, जब आप कुशलता से सुस्थान पहुँच जाएँ तब आप अगर कुछ किसी को देना चाहें तो ऊपर वाले के उपकार के प्रति धन्यवाद दे सकते हैं। लेकिन अपने साथ घटित सुख-दुःख की सच्ची बात का भान रह पाना भी कठिन है। फिर भी आपको यदि याद बनी रहे तो समझिए भले आपसे कोई खुश रहे न रहे, ईश्वर बहुत प्रसन्न रहता है।
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दिसंबर में उन्हें रेस्टुरेंट खुलवा दिया जो लाख रपये महीने के खर्च के कारण फ़रवरी में ही बंद हो गया | इस बीच उन दोनों ने कितने पैसे खुद खाये कोई नहीं जानता | बाबा अपने ढाबे पर वापस हैं लेकिन गालीमत हैं कि अभी भी उनके पास उन्नीस लाख रूपये बचे हैं | जो आयु बाबा की थी उसको देखते तो उनके लिए नया बिजनेस खोलना मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीं था और वो भी रेस्टुरेंट जैसा बिजनेस इस कोरोना और लॉकडाउन में | उसकी जगह उनके ढाबे पर और सुविधा उन्हें दे दी जाती या बैठ कर उसी दुकान पर बेचने के लिए सामान भर दिए जाते तो उनकी आयु देखते बेहतर था |
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सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
सुंदर रचनाओं से सजा गुलदस्ता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन, सभी का आनंद लिया । फिर से धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चा मे मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को मंच पर जगह देने के लिए
धन्यवाद दिल से ।
बहुत सुंदर, सारगर्भित रचनाओं से परिपूर्ण अंक ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार और अभिनंदन अनीता जी । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌹🌹
अत्यंत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंआभार रचना पसंद करने के लिए !
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