सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना 'श्वास अंतिम दौर में' से
साँझ ढलती कह रही है
चक्र पूरा हो चला
काल पासा फेंकता है
सोच अपना अब भला
आ कभी फिर मिल जरा तू
श्वास अंतिम दौर में।।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: दोहे "वरिष्ठ नागरिक दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बड़े-बुजुर्गों का दिवस, देता है सन्देश।
इनकी पूजा कीजिए, ये हैं देव गणेश।।
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पग-पग पर जो सीख दें, होते वही वरिष्ठ।
कभी कनिष्ठों का नहीं, करते अहित अनिष्ठ।।
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भूलता अस्तित्व अपना
खो रहा इस ठौर में
राह से भटका हुआ हूँ
बन गया कुछ और मैं।।
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न प्यार था न परिचय
बस दो अजनबी…
न वो सूरज था न वो किरन
न वो दिया था न वो बाती।
न वो चाँद था और न वो चाँदनी
एकदम विपरीत थे वे दोनों…
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एक सन्नाटा
एक ख़ामोशी
किस कदर
एक दूजे के साथ है
"सन्नाटा" जमे हुए लावे का
"ख़ामोशी "सर्द जमी हुई बर्फ की
दोनों एक दूजे के विपरीत
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पहाड़ों की खुशनुमा,
घुमावदार सडक किनारे,
ख्वाब,ख्वाहिश व लग्न का
मसाला मिलाकर,
'तमन्ना' राजमिस्त्री व 'मुस्कान'
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नहीं बताया,
तो बस इतना
कि बिग बाज़ार से,
शॉपर्स स्टॉप से
या पैंटालूंस से,
कहाँ से ख़रीदी
तुमने यह मुस्कराहट?
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ऐसा भी घर !
उस मकान से
कभी आतीं नहीं
ऐसी आवाजें
जिनमें खुशियों की हो खनखनाहट।
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गिरीश पंकज: आ जाओ अब कान्हा मेरे...
कान्हा की मुरली की धुन में,
गऊ माता जब इठलाती थी।
चारा चरती थी जंगल में,
और सुखी तब हो जाती थी।
आज कहाँ चारा-सानी अब,
कचरा किस्मत में है भैया।
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सोहर के बीच
माँ यशोदा ने जब मुझे कसकर गले लगाया
उनके बहते आँसुओं को
अपनी नन्हीं हथेली पर महसूस करते हुए
मेरा आँखें माँ देवकी को
वासुदेव बाबा को ढूंढ रही थीं .
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“क्या सोचा तुमने?” सुबह नाश्ते पर लवलीन ने उसी बात का छोर फिर से झटक दिया जो रात को हुई थी।“शांत रहो लवी! कुछ भी नहीं सोचा या फिर ये कहो कि बहुत सोचा लेकिन समझ नहीं आया कि उन दो दिशाओं का मेल मैं कराऊँ भी तो कैसे? कहते हुए प्राकेत के चेहरे से असहाय निरीहता टपकने लगी। पति की परेशान सूरत देख कर लवलीन फिर बोली।“प्राकेत मेरे पास एक युक्ति है। तुम मेरा साथ दो, तो...!""बोलो तो पहले...।" इस बार पति ने झुंझलाहट से कहा।
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“क्या कर रही हैं माँजी ? इतनी देर से देख रही हूँ, आप बार-बार आँख बन्द करती हैं और खोलती हैं.. क्या है ? कोई बात है क्या ?”“अरे नहीं बेटा..कोई बात नहीं.. बस कुछ सिलन टूट गई है, उसी को सिलने में लगी हूँ..पर सिल ही नहीं पा रही ।
“बिना सुई धागे के ।”
“तुम्हें दिख नहीं रहा बस.. है सुई धागा ।”
“ तो लाइए न.. मैं सिल देती हूँ”
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आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
उपयोगी लिंको के साथ पठनीय चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
सुंदर प्रस्तुति.धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना से आज के अंक का शुभारंभ करने के लिए आपका हृदय तल से आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक रचनाओं से परिपूर्ण चर्चा प्रस्तुति।मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार प्रिय अनीता जी । सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंपठनीय चर्चा प्रस्तुति…मेरी रचना शामिल करने का बहुत शुक्रिया । पढ़ती सबको फुर्सत से😊🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक शुक्रिया आपका बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सभी सामग्री पठनीय सुंदर।
सादर सस्नेह।
बहुत शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सादर सस्नेह।
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जवाब देंहटाएं-अनुपमा जी -अनुरिमा
-शास्त्री जी के - वरिष्ठ नागरिक दिवस पर दोहे
-अभिलाषा जी -श्वास अन्तिम दौर में…
-रन्जु भाटिया जी -लावा
-पी सी गोदियाल जी - बादल फटे पहाड़ पर…
-रेखा श्रीवास्तव- ऐसा भी घर..
-ओंकार जी- मुस्कराहट
- गिरीश पंकज जी -आ जाओ अब कान्हा…
- रश्मिप्रभा जी- मैं अपना ही अर्थ ढूँढता हूँ…
- मुदिता- ऐतबार तो है…
- कल्पना जी- कागा सब तन खाइयो…
- जिज्ञासा सिंह- टाँके
सभी रचनाएं बहुत बढ़िया व विविधता- पूर्ण ।हर बार की तरह बेहतरीन व आकर्षक लिंक चुन कर लाई हैं आप। सभी रचनाकारों को और आपको हार्दिक बधाई। मेरी रचना का चयन करने के लिए हार्दिक आभार ।
बेहतरीन चर्चा संकलन
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