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Friday, August 26, 2022

'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533)

सादर अभिवादन। 

शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आज 'महिला समानता दिवस' है। 

      1893 में सर्वप्रथम न्यूज़ीलैंड द्वारा इस विचार को आगे बढ़ाया गया। भारत में आज़ादी के 45 साल बीत जाने के बाद 1992 में  73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से महिलाओं को पंचायतों एवं स्थानीय निकायों के चुनावों में प्रत्याशी बनने का अधिकार मिला। यहाँ तक कि स्त्री-पुरुष की मज़दूरी में भी भेद किया गया। आज भी महिला समानता के विचार से भारतीय समाज अंतरविरोध से गुज़र रहा है। 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

दोहे "याददाश्त कमजोर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सबको अपनी ही पड़ीजाय भाड़ में देश।

जनता का धन खा रहेकब से उजले वेश।।

शस्यश्यामला धरा सेनष्ट हो रहे फूल।

उपवन में उगने लगेकाँटे और बबूल।।

*****

राह देखते रहे

धोखेबाज खुश्बुओं के वृत
केंद्र बदबुओं से शासित है 
नाटक-त्राटक,चढ़ा मुखौटा 
रीति-नीति हर आयातित है 

भागें कहां, 
खडे सिर दुर्दिन
पड़ा फूंस है, लगे पलीते--
*****

कौन फूल खिलने से रोके

एक बीज धरती में बोते 
बना हजार हमें लौटाती,
इक मुस्कान हृदय से उपजी
अनगिन दिल के शूल मिटाती!
*****
कितने भी हों रोड़े

तुमने समझाया

मुश्किल के दिन थोड़े।

*****

मौन से मौन तक

ज़िद करती थी ख़ुद से 

रुठे सपनों को मनाने की 

अब भी पढ़ती है निस्वार्थ भाव से 

स्वतः पढ़ा जाता है

आँखें बंद करने पर भी पढ़ा जाता है

परंतु अब वह बोलती नहीं है।

*****

वाणी तेरे कितने रूप

भेद कौन समझा मयूर का 

आज तलक वन में ?

भोर भए जब टेर पुकारे

बस जाए मन में 

उदर गरल से भरा हुआ

भोजन विषधर अनुरूप 

*****

पांथ पखेरू - -

*****दूब उदासियों की .. बस यूँ ही ...

उगने ही कब देती हैं भला

दूब उदासियों की ..

गढ़ती रहती हैं वो तो अनवरत

सुकूनों की अनगिनत पगडंडियाँ .. बस यूँ ही ...

*****

तुम्हारी आँखों में

पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया

खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।

रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल

करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।

*****

फिर मिलेंगे। 

 रवीन्द्र सिंह यादव 

12 comments:

  1. सुन्दर और सन्तिलित चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    ReplyDelete
  2. सुन्दर और सन्तुलित चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    ReplyDelete
  3. जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. अपने मंच पर अपनी इंद्रधनुषी प्रस्तुति के साथ मेरी बतकही को मौका देने के लिए .. बस यूँ ही ...
    आपकी आज की भूमिका के धधकते प्रश्न का हल तब तक नहीं मिलना है, जब तक हमारे तथाकथित समाज से "लैंगिक भेद" (किन्नरों तक के भी) के तेज़ाब का क्षारीय उपचार नहीं होगा और समाज के लिंगानुपात संतुलित नहीं होंगे .. साथ ही साक्षरता दर दोनों के समान नहीं होंगे .. बल्कि शत्-प्रतिशत नहीं होंगे .. शायद ...
    आइये मिल कर गाते हैं वो बचपन वाले गीत .. "हम होंगे कामयाब , एक दिन ~~~" या फिर " वो सुबह कभी तो आएगी ~~~~~"

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  4. बहुत अच्छी भूमिका
    सुंदर रचनाओं का संकलन

    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    आपको साधुवाद

    ReplyDelete
  5. सुप्रभात ! एक से बढ़कर पठनीय रचनाओं के सूत्र देती सुंदर चर्चा, बहुत बहुत आभार 'मन पाए आभार जहाँ' को स्थान देने हेतु !

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  6. बहुत सुंदर रचना- संकलन।

    मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    सादर

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  8. सुन्दर चर्चा।मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार.

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  9. महिला समानता पर बहुत सटीक पंक्तियों के साथ सुंदर शुरुआत।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका भाई रविन्द्र जी।
    सादर सस्नेह।

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  10. बहुत सुंदर भूमिका सही कहा मजदूरों का बड़ा शोषण होता है मैंने छबड़ा में किसी पुरुष से पूछा आपका काम के बदले मेहनताना कितना मिलता है बड़े उतावले शब्दों में कहा हम पाँच सौ रूपये में दोनों पति-पत्नी चले जाएंगे। सुन कर मन पसीज गया। खैर बहुत ही सराहनीय अंक।
    'मौन से मौन तक' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार सर।
    सादर

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  11. बहुत ही सार्थक और विचारणीय भूमिका के साथ विविध रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन। सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  12. बहुत सुंदर चर्चा संकलन

    ReplyDelete

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