शीर्षक पंक्ति:आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ-
श्रीकृष्ण जी द्वारा कुरुक्षेत्र में दिया गया गीता का उपदेश अर्जुन के आलावा सुन रहे थे-
1. अर्जुन के रथ पर विराजमान हनुमान जी
2. बर्बरीक (खाटू श्याम जी)
3. संजय (जो धृतराष्ट्र को सुना रहे थे )
आइए पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-
"श्रीकृष्ण जन्माष्टमी-आठ दोहे" (डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
धर्म पराजित हो रहा, बढ़ता जाता पाप।
जनता सारी है दुखी, बढ़ा जगत में ताप।।
--
आहत वृक्ष कदम्ब का, तकता है आकाश।
अपनी शीतल छाँव में, बंशी रहा तलाश।।
*****
प्रेम और करुणा के पर्याय
है "कृष्णा"
#श्रीकृष्ण जब पहुंचे रणक्षेत्र ,
अर्जुन को दिया गीता उपदेश ,
सत्य और धर्म के रक्षार्थ ,
अपना पराया कुछ न देख ।
******
रोटी बनाते हुए उँगलियों का जलना,
अम्मा के आंचल में पोछ लेना मुँह,
भुट्टे के हर दाने के साथ महसूसता है जो
आधा-आधा बांटने का सुख ,
वही बचाए रख पाता है पाषाण होते समय में
अंजुरी भर पानी,
जैसे बची रहती है भुने हुए दाने में असली
मिठास। ।
*****
सावन-भादों
इनके आँगन में भी उतरते हैं
ये भी धरती
के जैसे सजती-सँवरती हैं
चाँद-तारों
की उपमाएँ इन्हें भी दी जाती हैं
प्रेमी होते
हैं इनके भी,ये भी प्रेम
में होती हैं।
*****
द्वारकाधीश की प्रेमपगी आँखे
अनवरत बह रही है, वे एक साधारण से मित्र बनकर असाधारण मित्रता के पैमाने बना रहे है....वही
सुदामा बेचारे समझ नहीं पा रहे और आश्चर्य से द्वारकाधीश को अपने चरणों में बैठा
देखकर संकोच में भी आ रहे है। एक दीन है और एक दीनानाथ लेकिन प्रस्तुत चित्र में
दो मित्रों का मिलन है.....ऐसा मिलन, जो न कभी हुआ और न होगा।
युगयुगों तक इस मित्रता की कहानियां कही जायेगी।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
"श्रीकृष्ण जन्माष्टमी-आठ दोहे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
धर्म पराजित हो रहा, बढ़ता जाता पाप।
जनता सारी है दुखी, बढ़ा जगत में ताप।।
--
आहत वृक्ष कदम्ब का, तकता है आकाश।
अपनी शीतल छाँव में, बंशी रहा तलाश।।
प्रेम और करुणा के पर्याय है "कृष्णा"
#श्रीकृष्ण जब पहुंचे रणक्षेत्र ,
अर्जुन को दिया गीता उपदेश ,
सत्य और धर्म के रक्षार्थ ,
अपना पराया कुछ न देख ।
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रोटी बनाते हुए उँगलियों का जलना,
अम्मा के आंचल में पोछ लेना मुँह,
भुट्टे के हर दाने के साथ महसूसता है जो
आधा-आधा बांटने का सुख ,
वही बचाए रख पाता है पाषाण होते समय में
अंजुरी भर पानी,
जैसे बची रहती है भुने हुए दाने में असली
मिठास। ।
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सावन-भादों
इनके आँगन में भी उतरते हैं
ये भी धरती
के जैसे सजती-सँवरती हैं
चाँद-तारों
की उपमाएँ इन्हें भी दी जाती हैं
प्रेमी होते
हैं इनके भी,ये भी प्रेम
में होती हैं।
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द्वारकाधीश की प्रेमपगी आँखे
अनवरत बह रही है, वे एक साधारण से मित्र बनकर असाधारण मित्रता के पैमाने बना रहे है....वही
सुदामा बेचारे समझ नहीं पा रहे और आश्चर्य से द्वारकाधीश को अपने चरणों में बैठा
देखकर संकोच में भी आ रहे है। एक दीन है और एक दीनानाथ लेकिन प्रस्तुत चित्र में
दो मित्रों का मिलन है.....ऐसा मिलन, जो न कभी हुआ और न होगा।
युगयुगों तक इस मित्रता की कहानियां कही जायेगी।
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बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सभी पाठकों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएं'ग्रामीण औरतें 'को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आदरणीय रविन्द्र सर,
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
मेरी इस अभिव्यक्ति की चर्चा '#कान्हा ने जन्म लियो' की चर्चा इस अंक में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है । सभी को बहुत शुभकामनाएं ।
सादर ।
बहुत अच्छी सामयिक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अंक, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर 🙏
जवाब देंहटाएंआप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं