सादर अभिवादन।
युद्द की आशंकाओं में फिर घिर गई है दुनिया,
चैन से सो नहीं पा रही है नन्ही मासूम मुनिया।
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शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
लीजिए पढ़िए चंद चुनिंदा रचनाएँ-
दोहे "शैतानी उन्माद" (डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री 'मयंक')
करवाते बेखौफ जो, दंगा और फसाद।
दहशतगर्दों में बढ़ा, शैतानी उन्माद।।
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख सब, रब की हैं सन्तान।
हत्याओं से पेशतर, सोच अरे नादान।।
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रास्ते में
प्रेम के
कराहने की
आवाज़ सुनी
रुका
दरवाजा
खटखटाया
प्रेम का गीत
बाँचा
जब तक बाँचा
जब तक
प्रेम उठकर
खड़ा नहीं हुआ
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ताउम्र गुहार
लगाती रही
पर समय
नाराज़ ही रहा
और अंतत: चला
गया
साथ मेरी
उम्र ले गया
अब मेरे पास
न समय बचा
न उसके
सुधरने की आस, न ज़िन्दगी।
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माँ, तुम्हें भी स्वयं का, कुछ ध्यान रखना चाहिए -सतीश सक्सेना
पुराने ख़त
परतों में
समेटे
यादों के
पुष्प।
काली घटाएं
गाँव गली में
गूँजे
राग मल्हार।
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जिन्हें आदत
होती हैं
जख्मों पर नए
जख्म रखने की
उन्हें
पुराने जख्मों की
गाथा सुनाना
व्यर्थ हैं
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विवाह और गर्भ के नाम पर ब्लैकमेलिंग
का नया धंधा
चलिए अब सुनाती हूं वे मामले जिन्होंने मुझे
ये सब लिखने को बाध्य किया।
जगह पड़े रहते हैं, अर्द्ध डूबे हुए जर्जर घाट,
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर सूत्रों से सजी बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति । मेरे सृजन को मंच पर साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं से परिपूर्ण सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंसराहनीय चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंखूबसूरत संकलन...👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!!
बहुत सुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर