सादर अभिवादन।
मंगलवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीया प्रतिभा कटियार जी की रचना से-
प्रेम क्या है. कब पता चलता है कि यह प्रेम है और कब नहीं. फ्रेंड ज़ोन में न रह जाने का डर, दोस्ती प्यार है या दोस्ती में प्यार है, कैजुअल रिलेशनशिप या गहरा वाला प्यार, कहाँ नहीं है प्यार और जहाँ नहीं है प्यार वहीं तो सारे मसायल हैं. जहाँ प्यार है वहां न कोई सीमाएं, न कोई भेदभाव न कोई समस्या. कि प्यार में डूबे इन्सान को सिवाय प्रेम के कुछ सूझता ही कहाँ।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: दोहे भारत देश महान (स्वतन्तन्त्रा दिवस)"
प्रेम की ख़ुशबू यहाँ, बलिदान का लोबान है
इस भरत भू की तो कान्हा राम से पहचान हैइक तरफ़ उत्तर दिशा में ध्यान मय हिमवान हैऔर दक्षिण छोर पे सागर बड़ा बलवान है--खुला मैदान
बारिश की बूँदों में
वृक्षों का स्नान ।
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--बचपन के दो गजब नजारे
दिखते अक्सर आते जाते
एक - स्कूल में पढ़ते लिखते
दूसरे- कूड़ा बीन सकुचाएँ
आजादी का जश्न मनाएँ ?--पंद्रह अगस्त , पंद्रह अगस्तपंद्रह अगस्त, पंद्रह अगस्तवो राजगुरु, वो भगत सिंहबिस्मिल हों या अशफ़ाक उल्लाआज़ाद, बोस गांधी जी कीकुर्बानी नहीँ गई व्यर्थ।--नयनों में समा रहे .तेरे प्रभात संध्या ,
हर ओर तुझे देखे मन सावन का अंधा ,
तेरे आँचल में आ युग उड़ता जैसे क्षण !--धुएँ ने कियेचाँद सूरज तारेअवगुंठित--खादी के धागे-धागे में, अपनेपन का अभिमान भरा,माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा।
खादी के रेशे-रेशे में, अपने भाई का प्यार भरा,
मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा।
खादी की रजत चंद्रिका जब, आ कर तन पर मुसकाती है,
जब नव-जीवन की नई ज्योति, अंतस्थल में जग जाती है।--नयेपन में एक आकर्षण होता है. वह लगातार अपनी तरफ खींचता रहता है. ऐसा ही एक नया सा कुछ करने का प्रस्ताव जब युवा दोस्त अक्षय ने रखा तो सबसे पहले तो संकोच हुआ फिर लगा करके देखते हैं. तो इस तरह यह मेरा पहला पोडकास्ट तैयार हुआ. हम दोनों दो अलग-अलग शहरों में बैठकर चाय का प्याला हाथ में लिए कुछ बतियाने बैठे जिसे अक्षय ने रिकॉर्ड किया. हमारी बातें यूँ भी मजेदार होती हैं. उन्हीं बातों को सहेज लिया है बस.--एक समय था जब हर किसी को झंडा फहराने का अधिकार नही था । ये साल का दो सरकारी कार्यक्रम और क्रिकेट मैच के समय मैदान ती सीमित था । झंडे के प्रति इतनी संवेदनशीलता होती और साथ मे इतने नियम कानून , मान अपमान की पूछिये मत । तब अमेरिकन को देख कर लगता ये तो अपने झंडे का पजामा बिकनी तक पहन लेते इनके झंडे का अपमान ना होता ,ये संवेदनशील नही होते उसके प्रति। ये और इनका झंडा तो सबसे ताकतवर है फिर ऐसा क्यो है । लेकिन अच्छा लगता कि झंडे पर सबका अधिकार है ।--आदि काल से स्त्री अपने घर-परिवार और पति की मौन अनुगामिनी बनकर रहती आ रही है। उनके उचित-अनुचित दबावों तले दबी स्त्री का मानसिक ह्रास हो या शारीरिक, लगातार होता रहता है। जब स्त्री शिक्षा विहीन हो तब तो उसके कष्टों में चार चाँद लग जाते हैं। संग्रह की पहली कहानी ‘नटिन भौजी’ इसी तरह की पीड़ा भोगी नट जाति की स्त्री की मर्मान्तक कहानी है। जिस तरह से कहानी में कथन-प्रकथन आते हैं, उनको यदि कोई स्त्री रचनाकार लिखती तो शायद अचंभा नहीं होता। लेकिन गौर साहब ने पुरुष होते हुए जैसे इस कहानी को लिखने के लिए किसी स्त्री से उसकी करुण दृष्टि उधार माँगी हो या उनका लेखक ही इतना सहज और सजल है कि छोटी-छोटी भंगिमाएँ पढ़ते हुए मन ठिठक जाता है।-- आज का सफ़र यहीं तक @अनीता सैनी 'दीप्ति'
खुला मैदान
बारिश की बूँदों में
वृक्षों का स्नान ।
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दिखते अक्सर आते जाते
एक - स्कूल में पढ़ते लिखते
दूसरे- कूड़ा बीन सकुचाएँ
आजादी का जश्न मनाएँ ?
हर ओर तुझे देखे मन सावन का अंधा ,
तेरे आँचल में आ युग उड़ता जैसे क्षण !
खादी के रेशे-रेशे में, अपने भाई का प्यार भरा,
मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा।
खादी की रजत चंद्रिका जब, आ कर तन पर मुसकाती है,
जब नव-जीवन की नई ज्योति, अंतस्थल में जग जाती है।
इस उद्देश्यपूर्ण चयन के लिये मेरी बधाई .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्रों से सजी प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
बहुत सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को इसमें स्थान दिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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