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Sunday, August 07, 2022

"भारत"( चर्चा अंक 4514)

सादर अभिवादनआज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है(शीर्षक और भुमिका आदरणीया अनीता जी की रचना से)

ओ मेरे देश ! 

तेरे आँचल में जन्म लिया और 

तेरी हवाओं ने पाला हमको 

तेरी माटी में पले, खेले  

तेरी फ़िज़ाओं ने सम्भाला हमको !


मातृभूमि को सत सत नमन

है यही दुआ


तू बनेगा सिरमौर दुनिया का 

योग आयुष का बोलबाला होगा 


इसी शुभकामना के साथ चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...


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गीत "बेटी की महिमा अनन्त है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


किलकारी की गूँज सुनाती,

परिवारों को यही बसाती।

नारी नर की खान रही है,

परिवारों की शान यही है,

प्रथमपूज्या एकदन्त है।

बेटी से घर में बसन्त है।।

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भारत



अनेक ऋषियों की तप स्थली 

भोले बाबा का कैलाश बसता 

देवता भी तरसते हैं यहाँ आने को 

अन्नपूर्णा का जब भंडार खुलता !

कृष्ण की बाँसुरी दिन रात बजती  

प्रश्न गार्गी के गूंजते अब भी

बालिका देवी सी पूजी जाती 

दशानन  जलता है अब भी !


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 शिव जी का भजन



मैं मृग छाला ले आई 

और प्रभु का आसन बिछाई       

चरण गंगा के जल से पखारे,

मस्तक पर गंगा धारे 


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इतिहास के पन्नों से

25 जुलाई1997 भारतीय इतिहास की सबसे शर्मनाक तारीखों में से एक है. इसी तारीख को बिहार के बेताज बादशाह लालू प्रसाद यादव की लगभग काला अक्षर भैंस बराबर धर्मपत्नी श्रीमती राबड़ी देवी ने पहली बार बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी को सुशोभित किया था.

उन दिनों श्री इंद्रकुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री थे.

भाई लालू प्रसाद यादव ने इस घटना को भारतीय नारी के उत्थान की ज़िन्दा मिसाल के रूप में पेश किया था लेकिन मेरी दृष्टि में यह भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के मुंह पर एक ज़बर्दस्त तमाचा था.

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कुछ अनसुलझा सा


क्योंकि  कुछ पहेलियां अनसुलझी रहती हैं
कुछ चौखटें कभी नहीं लांघी जाती
कुछ दरवाजे कभी नहीं खुलते
कुछ तो भीतर हमेशा दरका सा रहता है-
जिसकी मरम्मत नहीं होती,
कुछ खिड़कियों से कभी 
कोई सूरज नहीं झांकता,

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जहाँ रह रही हूँ

जन्म दिया है तुमने,और पिता ने दिया है अंश,
पाला-पोसा मुझे भी,क्यों भाई सी नहीं हूँ वंश,
पराई है,कहा परिजनों ने,पर किसी ने न रोका?
पराया कह पाला मुझे,और किसी ने न टोका?

जहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
तो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?

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#उलझा उलझा सा हर आदमी है यहां !


गर कमजोर पड़े थोड़ा सा भी  जरा ,

पल में बदल जाता है खेल का कायदा ।

कब किसका पड़ जाये भारी पलड़ा ,

कब  निकल जाये कौन किससे है मिला ।

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शब्दों में बहुत ताकत होती है ... राजपुरोहित


अपने जीवन में शब्दों की ताकत को कम मत अंकीय क्योंकि दोस्तों एक छोटा सा "हां" और एक छोटा सा "ना" आपकी पूरी जिंदगी बदलने की ताकत रखता है। इसलिए जब कभी इन शब्दों का प्रयोग करने का समय आए तो बड़ा सोच विचार कर शब्दों का उपयोग करना चाहिए। जिससे किसी की भावनाओं को ठेस ना पहुंचे। लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि हम इसके लिए इतना विचार करें कि सामने वाला इंतजार करते-करते थक जाए और वह अपना मन परिवर्तन करने लगे। क्योंकि ज्यादा इंतजार भी ठीक नहीं होता ।
**********************योग की असली शक्ति

 हमारे भरतनाट्यम के गुरु हमें बताने लगे कि योग में बहुत शक्ति हैं | पुराने समय में संत लोग ध्यान करते अपने शरीर को इतना हल्का कर लेते कि हवा में उठ जाते थे |  दो योग टीचर ने हमें योग सिखाया कुछ समय के लेकिन किसी ने भी ऐसे चमत्कार वाले दावे नहीं किये योग को लेकर  | योग को लेकर भ्रामक  दावे और उसके फर्जी  चमत्कारी गुणों का महिमा मंडन दो लोग करते हैं , एक वो जिन्हे उसका ज्ञान ना हो जो उसे बस सुनी सुनाई बातों से जानते हैं | दूसरे वो जो योग को बस बेचना चाहतें हैं अपने फायदे के लिए | 


******आज का सफर यहीं तक, अब आज्ञा देआपका दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा 




12 comments:

  1. बहुत ही शानदार चर्चामंच की पोस्ट बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आदरणीय कामिनी जी

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  2. आदरणीय शास्त्री जी के स्वास्थ्य लाभ के लिए ईश्वर से प्रार्थना है ।
    आज का अंक बहुत सुंदर तथा संग्रहणीय है ।श्रमसाध्य प्रस्तुति में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन कामिनी जी ।

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  3. सुप्रभात! पठनीय व सराहनीय रचनाओं के सूत्रों का सुंदर संयोजन,
    'मन पाए विश्राम जहाँ' को सम्मान देने के लिए आभार कामिनी जी!

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  4. बहुत सुन्दर संकलन

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  5. ईश्वर से आदरणीय शास्त्रजी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना है। प्रार्थना है कि आदरणीय शास्त्री जी शीघ्र स्वस्थ होकर फिर से सक्रिय हो जाएँ। बहुत सुंदर चर्चा । आदरणीय कामिनी जी को बहुत-बहुत बधाईयाँ।

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  6. मेरी रचना "जहां रह रही हूँ" को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी !

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  7. आदरणीय कामिनी मेम नमस्कार ,

    मेरी रचना "#उलझा उलझा सा हर आदमी है यहां !" को इस चर्चा अंक 4514 पर शामिल करने के लिये सादर धन्यवाद एवं आभार ।

    सभी रचनायें बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनायें एवं बधाइयाँ ।
    सादर ।

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  8. वाह कामिनी जी, एक से बढ़कर एक हैं सभी लिंक, आपका बहुत धन्‍यवाद इतनी अच्‍छी रचनाओं को एक साथ पढ़वाने के लिए ...बहुत ही सुंदर कलेक्‍शन

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  9. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

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  10. उम्दा चर्चा। ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि आदरणीय शास्त्री जी को जल्द स्वास्थ्य लाभ हो।

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  11. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏

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  12. सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

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