सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी "सुकृति " जी की कविता 'अनुरिमा .....!!' से-
वसुधा के कपाल पर
कुमकुमी अभिषेक करती
भोर की आभा में अभिनव
रागिनी मुस्का रही है !!
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: “जन्मदिन योगिराज श्रीकृष्णचन्द्र महाराज”
क्रूर कंस का नाश कर, कहलाए भगवान।।
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ऐश्वर्य का अधिभार लेकर ,
अंजुरी धन धान्य पूरित
आ रही राजेश्वरी
शत उत्स सुख बरसा रही है !!
अंजुरी धन धान्य पूरित
आ रही राजेश्वरी
शत उत्स सुख बरसा रही है !!
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राधे- राधे गाए बंसी
कान्हा हिय हरषाय
मेरे मन की बूझी तूने
पुनि पुनि गीत सुनाय
कान्हा हिय हरषाय
मेरे मन की बूझी तूने
पुनि पुनि गीत सुनाय
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सकल जगत अपना हुआ, जीत न कोई हार कान्हा जी से जुड़ गए, अंतर्मन के तार
कान्हा जी ऐसा करो, भीगे मन इस बार शरण तुम्हारी पा सकूँ, भव-सागर हो पार --
एक दिया अमृत का प्यासा
बूँद-बूँद को तरसे ।
बहे पवन संग उड़-उड़ देखे
धरती भी अम्बर से ॥
पात-पात कण-कण के वासी
रहते चारों याम ।
उतर गए मन में गहरे श्याम ॥
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मन के मोती: मोहन माधव नाम जपें
चकोर सवैयामाधव मोहन की मुरली सुन,भूल गई सखियाँ सब काज।केशव की छवि मोहक सी मन, डोल रही तन छूटत लाज।भूल गई घर द्वार सभी बस,मोहन का मन मंदिर राज।प्रीत करी जबसे उनसे बस,पीर बढ़ी बिखरे सब साज।--साजि चललि सब सुन्दरि रे मटुकी शिर भारी धय मटुकी हरि रोकल रे जनि करिय वटमारी अलप वयस तन कोमल रे --
पता न केवना देश से कब ई बगीया में आ गईलीवोही चदरिया कया के उन मनही मन मुस्कइलीजा से खेलली ओल्हा पाती आ जिनगी के दाव रेजब जब करेलें सोन पिजरवा लागे हिया में घांव रे-२--
सारी सामग्रियों को अच्छे से मिलाकर हाथ पर तेल लगाकर इसे मसलकर नरम (चित्र 1) गूंथ लीजिए। लौकी के जूस में ही बेसन गुंथ जाता है। इसमें पानी मिलाने की ज़रूरत नही होती। यदि पानी की जरूरत महसूस हो तो हमने जो लौकी का पानी अलग निकाल कर रखा था उसी में से थोड़ा सा पानी डाल लीजिए। और अगर आपको गुंथा हुआ बेसन पतला लगे, तो इसमें थोड़ा सा बेसन और मिला लीजिए। इसे 10 मिनिट के लिए ढककर रख दीजिए।-- आज का सफ़र यहीं तक @अनीता सैनी 'दीप्ति'
एक दिया अमृत का प्यासा
बूँद-बूँद को तरसे ।
बहे पवन संग उड़-उड़ देखे
धरती भी अम्बर से ॥
पात-पात कण-कण के वासी
रहते चारों याम ।
उतर गए मन में गहरे श्याम ॥
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मन के मोती: मोहन माधव नाम जपें
चकोर सवैया
माधव मोहन की मुरली सुन,भूल गई सखियाँ सब काज।
केशव की छवि मोहक सी मन, डोल रही तन छूटत लाज।
भूल गई घर द्वार सभी बस,मोहन का मन मंदिर राज।
प्रीत करी जबसे उनसे बस,पीर बढ़ी बिखरे सब साज।
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साजि चललि सब सुन्दरि रे
मटुकी शिर भारी
धय मटुकी हरि रोकल रे
जनि करिय वटमारी
अलप वयस तन कोमल रे
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पता न केवना देश से कब ई बगीया में आ गईली
वोही चदरिया कया के उन मनही मन मुस्कइली
जा से खेलली ओल्हा पाती आ जिनगी के दाव रे
जब जब करेलें सोन पिजरवा लागे हिया में घांव रे-२
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सारी सामग्रियों को अच्छे से मिलाकर हाथ पर तेल लगाकर इसे मसलकर नरम (चित्र 1) गूंथ लीजिए। लौकी के जूस में ही बेसन गुंथ जाता है। इसमें पानी मिलाने की ज़रूरत नही होती। यदि पानी की जरूरत महसूस हो तो हमने जो लौकी का पानी अलग निकाल कर रखा था उसी में से थोड़ा सा पानी डाल लीजिए। और अगर आपको गुंथा हुआ बेसन पतला लगे, तो इसमें थोड़ा सा बेसन और मिला लीजिए। इसे 10 मिनिट के लिए ढककर रख दीजिए।
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आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिंकों से सजी सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
सादर धन्यवाद अनीता सैनी जी मेरी प्रविष्टि को सम्मान देने हेतु!!❤
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय अनीता जी ।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार , भगवान श्री कृष्ण की भक्ति पर आधारित पोस्टों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनीता जी
जवाब देंहटाएं