मित्रों!
बुधवार की चर्चा में देखिए
कुछ अद्यतन लिंक!
--
बालगीत "उमड़-घुमड़ कर बादल छाये"
नभ में सूरज लुप्त हुआ है,
नद-नाले भी हैं उफनाये।।
आसमान में बिजली चमकी,
उमड़-घुमड़ कर बादल छाये।
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') उच्चारण
--
--
”देख रघुवीर !
इन लकड़ियों के पाँच सौ से
एक रुपया ज़्यादा नहीं देने वाला।
तुमने कहा- चार खेजड़ी की हैं,
यह दो की नहीं लगती!”
अवदत् अनीता अनीता सैनी दीप्ति
--
मुक्त हूँ ! इस पल ! यहाँ पर !
मुक्त हूँ हर बात से उस
हर घड़ी जो टोकती थी,
याद कोई जो बसी थी
भय बताकर टोकती थी !
--
अधखिली कोमल कली का
रूप सारा हर लिया है
पैर पायल बाँध बेड़ी
बोझ सिर पर मढ़ दिया है।
--
देश की आतंरिक सुरक्षा का खतरा बढ़ता जा रहा है, देर न हो जाए
बतंगड़ BATANGAD--
कब से बैठे राह देखते
सोच में डूबे छोटी बातो पर हो दुखी
मन के विरुद्ध बातें सभी
देखकर सामंजस्य बनाए रखें |
फिर न टूटे यह कैसा है न्याय प्रभू
खुद का खुद से या समाज का हम से
हमने कुछ अधिक की चाह नहीं की थी |
Akanksha -asha.blog spot.com आशा लता सक्सेना
--
ज़िंदगी भर ख़ुशी ढूंढते हैं लोग ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
--
बुढ़ापे की कढ़ाई “मेरी दादी तो कमाल हैं माशा अल्ला ! आज भी इतनी दुरुस्त हैं, कि क्या कहने ? हुनरमंदी तो उनसे सीखनी चाहिए ।
गागर में सागर जिज्ञासा सिंह
--
कुंडलिया के बहाने कुंडलिया कृष्ण कन्हैया ने लिया,जब पावन अवतार, स्वत: खुल गया कंस के, बंदीगृह का द्वार। बंदीगृह का द्वार, ईश की महिमा न्यारी, सोए पहरेदार, नींद की चढ़ी ख़ुमारी। शांत हुईं तत्काल, उफनती यमुना मैया, पहुँचे गोकुल धाम,दुलारे कृष्ण कन्हैया।
--
--
राष्ट्र की निरंतरता? चलिए, भूगोल के इतिहास की बात करते हैं मंजीत ठाकुर
राष्ट्र की निरंतरता वाली पोस्ट ने और उस पर आ रही टिप्पणियों ने मुझे इस संदर्भ में और अधिक पढ़ने के लिए प्रेरित किया. तो मैंने सोचा क्यों न 'शुरू से शुरू किया जाए?'
तो जो मैं लिख रहा हूं, यह तकरीबन 'भूगोल का इतिहास' है. आप को इससे अधिक जानकारी है तो बेशक कमेंट में साझा करें. कमेंट बॉक्स में अतिरिक्त ज्ञान सिर्फ 'हिंदी' में स्वीकार किए जाएंगे.
बहरहाल, बात तब की है, जब धरती का सारा भूखंड (लैंड मास) एक साथ था. इस एकीकृत भूखंड का नाम रखा गया 'रोडिनिया'. महान भूगोलज्ञ अल्फ्रेड वैगनर के 'महाद्वीपीय विस्थापन के सिद्धांत' के मुताबिक—जो उन्होंने 1915 में प्रकाशित अपनी किताब द ओरिजिन ऑफ कॉन्टिनेंट्स ऐंड ओशन में दिया था—यह विचार दिया गया है कि यह रोडिनिया विषुवत रेखा के दक्षिण में था. गुस्ताख़
--
आगरा महारानी विक्टोरिया और मुंशी अब्दुल करीम की कहानी
--
नीर निधि को नहीं पता,
अंदर ज्वाला जलती है।
बेखबर, अंतस आतप,
जलधि लहर उछलती है।
उच्छल-लहरी, ललना अल्हड़,
श्रृंग उछाह पर चढ़ती है।
लीलने ग्रास यौवन में अपने,
तट सैकत को बढ़ती है।
--
--
राजनैतिक लाभ के लिए अपराधियों का महिमामंडन
यह स्थिति निश्चित ही अस्वीकार्य होनी चाहिए. न्यायालय से घोषित सजायाफ्ता आरोपियों का रिहा होना भले ही एकबारगी नियमों-कानूनों के अंतर्गत आता हो मगर दोषियों का इस तरह से महिमामंडित किया जाना किसी भी रूप में उचित कदम नहीं है. इस घटना को उन आरोपियों के परिजनों के सन्दर्भ में देखते हुए भले ही प्रथम दृष्टया स्वीकार कर लिया जाये मगर जिस तरह से रिहा आरोपियों के स्वागत में कुछ संगठनों का, गैर-परिजनों का, राजनैतिक लोगों का शामिल होना सामने आया है, वह कदापि स्वीकार्य नहीं. देखा जाये तो यह स्थिति किसी एक बिलकिस बानो के आरोपियों के सन्दर्भ में ही सामने नहीं आई है. ऐसी स्थितियाँ आये दिन किसी न किसी रूप में हम सबको देखने को मिलती हैं.
--
रात में सोने से पहले पैर क्यों धोना चाहिए? (why wash your feet before bed in night?)
--
आज के लिए बस इतना ही...!
--
सुप्रभात सर।
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन।
'ख़ामोश सिसकियाँ 'को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
दिन भर पढ़ने हेतु गज़ब की प्रस्तुति।
सादर प्रणाम
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, सभी लिंक एक से बढ़कर एक हैं...अतिसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का लिंक। आभार!!!
जवाब देंहटाएंअरे वाह ! अपने आलेख को यहाँ देख कर सुखद आश्चर्य हुआ शास्त्री जी क्योंकि ब्लॉग पर कोई सूचना नहीं थी ! लेकिन आपने उसे आज की चर्चा में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार दी।
हटाएंआमंत्रण स्पेम में होगा आज कल ऐसे हो रहा है।
बहुत सुंदर सराहनीय अंक। मेरी लघुकथा को शामिल करने के लिए आपका आभार आदरणीय शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं