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बुधवार, अगस्त 24, 2022

"उमड़-घुमड़ कर बादल छाये" (चर्चा अंक 4531)

मित्रों!

बुधवार की चर्चा में देखिए

कुछ अद्यतन लिंक!

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बालगीत "उमड़-घुमड़ कर बादल छाये" 

नभ में सूरज लुप्त हुआ है,

नद-नाले भी हैं उफनाये।।

आसमान में बिजली चमकी,

उमड़-घुमड़ कर बादल छाये। 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') उच्चारण 

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मात्रिक छंद "शारदा वंदना" 

कलुष हृदय में वास बना माँ,
श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।
शुभ्र ज्योत्स्ना छिटका उसमें,
अपने जैसा उज्ज्वल कर दो ।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Nayekavi 

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ख़ामोश सिसकियाँ 

”देख रघुवीर ! 

इन लकड़ियों के पाँच सौ से  

एक रुपया  ज़्यादा नहीं देने वाला।  

तुमने कहा- चार खेजड़ी की हैं,  

यह दो की नहीं लगती!” 

अवदत् अनीता अनीता सैनी दीप्ति

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मुक्ति का गीत 

मुक्त हूँ ! इस पल ! यहाँ पर !

मुक्त हूँ हर बात से उस 

हर घड़ी जो टोकती थी,

याद कोई जो बसी थी 

भय बताकर टोकती थी !

मन पाए विश्राम जहाँ 

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मौन मन में धर लिया है। 

अधखिली कोमल कली का

रूप सारा हर लिया है

पैर पायल बाँध बेड़ी

बोझ सिर पर मढ़ दिया है। 

मन के मोती 

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देश की आतंरिक सुरक्षा का खतरा बढ़ता जा रहा है, देर न हो जाए 

बतंगड़ BATANGAD 

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किसी से क्या अपेक्षा रखें 

 कब से बैठे राह देखते 

सोच में डूबे छोटी बातो पर हो दुखी  

मन के  विरुद्ध   बातें सभी 

देखकर सामंजस्य  बनाए रखें  |

 फिर  न टूटे  यह कैसा है न्याय प्रभू 

खुद का खुद से या  समाज का  हम से 

हमने कुछ अधिक की चाह  नहीं की थी | 

Akanksha -asha.blog spot.com आशा लता सक्सेना

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ज़िंदगी भर ख़ुशी ढूंढते हैं लोग ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

मिलती नहीं जीवन भर क्यों 
मिलती है ख़्वाबों में शायद वो 
और हम ने ख़्वाब सजाना ही 
हक़ीक़त से घबरा छोड़ दिया । 

वही मांगते हैं खुशियां उन्हीं से 
देते हैं जिनको दर्द की सौगातें 
इंसान इंसान हैं कोई पेड़ नहीं 
पत्थर खा देते हैं फल सबको । 

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बुढ़ापे की कढ़ाई  मेरी दादी तो कमाल हैं माशा अल्ला ! आज भी इतनी दुरुस्त हैंकि क्या कहने ? हुनरमंदी तो उनसे सीखनी चाहिए । 

गागर में सागर जिज्ञासा सिंह

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कुंडलिया के बहाने कुंडलिया  कृष्ण कन्हैया ने लिया,जब पावन अवतार, स्वत: खुल गया कंस के, बंदीगृह का द्वार। बंदीगृह  का  द्वार, ईश  की  महिमा न्यारी, सोए   पहरेदार, नींद   की  चढ़ी   ख़ुमारी। शांत  हुईं  तत्काल, उफनती  यमुना  मैया, पहुँचे  गोकुल  धाम,दुलारे कृष्ण  कन्हैया। 

---ओंकार सिंह विवेक

मेरा सृजन 

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किनारों पर 

खड़ा, सागर की, किनारों पर,
इक टक देखता, उस मुसाफ़िर की मानिंद था मैं,
और वो, उस लहर की तरह!

हर बार, छू जाती है, जो, आकर किनारों पर,
और लौट जाती है, न जाने किधर,
फिर उठती है, बनकर इक ढे़ह सी उधर,
देखता हूं, मैं वो लहर,
अनवरत, खड़ा सागर की किनारों पर! 

कविता "जीवन कलश" 

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राष्ट्र की निरंतरता? चलिए, भूगोल के इतिहास की बात करते हैं मंजीत ठाकुर
राष्ट्र की निरंतरता वाली पोस्ट ने और उस पर आ रही टिप्पणियों ने मुझे इस संदर्भ में और अधिक पढ़ने के लिए प्रेरित किया. तो मैंने सोचा क्यों न 'शुरू से शुरू किया जाए?'
तो जो मैं लिख रहा हूं, यह तकरीबन 'भूगोल का इतिहास' है. आप को इससे अधिक जानकारी है तो बेशक कमेंट में साझा करें. कमेंट बॉक्स में अतिरिक्त ज्ञान सिर्फ 'हिंदी' में स्वीकार किए जाएंगे.
बहरहाल, बात तब की है, जब धरती का सारा भूखंड (लैंड मास) एक साथ था. इस एकीकृत भूखंड का नाम रखा गया 'रोडिनिया'. महान भूगोलज्ञ अल्फ्रेड वैगनर के 'महाद्वीपीय विस्थापन के सिद्धांत' के मुताबिक—जो उन्होंने 1915 में प्रकाशित अपनी किताब द ओरिजिन ऑफ कॉन्टिनेंट्स ऐंड ओशन में दिया था—यह विचार दिया गया है कि यह रोडिनिया विषुवत रेखा के दक्षिण में था. 
गुस्ताख़ 

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आगरा महारानी विक्टोरिया और मुंशी अब्दुल करीम की कहानी 

ईंटों पत्थरों की, गुमनाम भूली बिसरी इमारतों की और इतिहास के पन्नों में दफन अनजान अपरिचित लोगों की कहानियाँ सुन सुन कर आप निश्चित तौर पर बोर हो गए होंगे ! चलिए आज ज़रा हट कर आपको एक ऐसी कहानी सुनाती हूँ जो सच भी है और एक बहुत ही मशहूर विश्व प्रसिद्ध राजघराने से जुडी होने के कारण बहुत ही संवेदनशील और रोमांचक भी है ! यह कहानी है अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आगरा के जेल में काम करने वाले एक मामूली से मुलाजिम अब्दुल करीम की और उन दिनों ब्रिटेन के राजघराने की सबसे महत्वपूर्ण और विश्व की सबसे चर्चित और सम्माननीय हस्ती रानी विक्टोरिया की !

Sudhinama 

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कुदरत का खेल 

नीर निधि को नहीं पता,

अंदर ज्वाला जलती है।

बेखबर, अंतस आतप,

जलधि लहर उछलती है।

उच्छल-लहरी, ललना अल्हड़,

श्रृंग उछाह पर चढ़ती है।

लीलने ग्रास यौवन में अपने,

तट सैकत को बढ़ती है। 

विश्वमोहन उवाच विश्वमोहन 

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संवाद बरास्ता सोशल मीडिया! 

तू!
तड़ाक!
फूँ!
फटाक!
ब्लॉक!
डबल ब्लॉक! !

जिज्ञासा 

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राजनैतिक लाभ के लिए अपराधियों का महिमामंडन 

यह स्थिति निश्चित ही अस्वीकार्य होनी चाहिए. न्यायालय से घोषित सजायाफ्ता आरोपियों का रिहा होना भले ही एकबारगी नियमों-कानूनों के अंतर्गत आता हो मगर दोषियों का इस तरह से महिमामंडित किया जाना किसी भी रूप में उचित कदम नहीं है. इस घटना को उन आरोपियों के परिजनों के सन्दर्भ में देखते हुए भले ही प्रथम दृष्टया स्वीकार कर लिया जाये मगर जिस तरह से रिहा आरोपियों के स्वागत में कुछ संगठनों का, गैर-परिजनों का, राजनैतिक लोगों का शामिल होना सामने आया है, वह कदापि स्वीकार्य नहीं. देखा जाये तो यह स्थिति किसी एक बिलकिस बानो के आरोपियों के सन्दर्भ में ही सामने नहीं आई है. ऐसी स्थितियाँ आये दिन किसी न किसी रूप में हम सबको देखने को मिलती हैं.

रायटोक्रेट कुमारेन्द्र 

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रात में सोने से पहले पैर क्यों धोना चाहिए? (why wash your feet before bed in night?) 

सदियों से हमारे यहाँ घर में प्रवेश करते समय, भोजन करने से पहले और रात को सोने से पहले पैर धोने की प्रथा है। क्योंकि हिंदू धर्म में घर को मंदिर के समान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कहीं बाहर से आने के बाद जूते चप्पल घर के बाहर ही उतारने चाहिए जिससे किसी तरह के बैक्टीरिया घर के भीतर प्रवेश न कर सकें। दिन भर काम करने के बाद, थकान महसूस करने के बाद भी कुछ लोगों को बराबर नींद नहीं आती है। लेकिन यदि व्यक्ति रात को सोने से पहले पैरों को धो ले तो नींद अच्छी आने के साथ साथ इससे सेहत को कई अन्य फायदे भी होते है। आइए जानते है रात को सोने से पहले पैरों को धोना क्यों जरूरी है और इससे सेहत को क्या-क्या फायदे हो सकते हैं। 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात सर।
    सराहनीय संकलन।
    'ख़ामोश सिसकियाँ 'को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    दिन भर पढ़ने हेतु गज़ब की प्रस्तुति।
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रणाम शास्‍त्री जी, सभी लिंक एक से बढ़कर एक हैं...अतिसुंदर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर रचनाओं का लिंक। आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. अरे वाह ! अपने आलेख को यहाँ देख कर सुखद आश्चर्य हुआ शास्त्री जी क्योंकि ब्लॉग पर कोई सूचना नहीं थी ! लेकिन आपने उसे आज की चर्चा में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमस्कार दी।
      आमंत्रण स्पेम में होगा आज कल ऐसे हो रहा है।

      हटाएं
  7. बहुत सुंदर सराहनीय अंक। मेरी लघुकथा को शामिल करने के लिए आपका आभार आदरणीय शास्त्री जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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