सादर अभिवादन
रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
गीत "साथ नहीं है कुछ भी जाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मृत्यू को भी गले लगाया,
कैसे धुर दीवाने थे वे
शुभ देश प्रेम को अपनाया !
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इतने बुजुर्ग को मिल जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य की बात है इनके साथ आये सभी युवा इनके गाँव के हैं। इनमें से कोई बुजुर्ग के घर का अपना नहीं है।" परिचारिका ने कहा।
थोड़ी देर में बुजुर्ग के घर से लोग आ गए।
"यह दस हजार रुपया रख लीजिए, पुलिस को सूचना नहीं दीजिएगा..," बुजुर्ग के घर से आये युवक ने कहा।
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ज्ञान के भी नेत्र फूटे
पाप सिर चढ़ बोलता
नीतियां सब ताक ऊपर
कौन किसको तोलता
स्वार्थ जिससे पूर्ण हो बस
ये करें उसको नमन
घुल गया..............।।
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पगड़ीघर में मेहमानों की आवाजाही बढ़ गई है। कार्यक्रम की रूपरेखा बन रही है कौन जाएगा कैसे जाएगा क्या करना है कैसे करना है जैसी चर्चाएं जोरों पर हैं । चाचा ससुर उनके बेटे देवर दोनों बेटे दामाद सभी समूह में बैठकर जोरदार तरीके से शानदार कार्यक्रम की योजना बनाते और फिर एक एक से अकेले अलग-अलग खर्च पानी की चिंता में दूसरे के दिये सुझाव की खिल्ली उड़ा कर उसे खारिज करते। समूह में दमदारी से सब करेंगे अच्छे से करेंगे के दावे खुद की जेब में हाथ डालने के नाम पर फुस्स हो जाते*******
जैस अच्छी सेहत का राज अच्छे खान-पान और नियमित व्यायाम में छुपा है वैसे ही नेताजी की सफलता का राज पाखंड सुबह-शाम में छुपा है। उनका आदर्श वाक्य ही यह है कि काम कम करो लेकिन पाखंड ज्यादा करो क्योंकि पाखंड ही वो 'देव' है जिसकी शरण में जाए बगैर न कोई नोटिस करता है और न ही कोई आमंत्रित करता है!
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चलते-चलते आईए आपको मुम्बई लोकल ट्रेन के सफर पर ले चलते हैं
एक संस्मरण मेरी कलम से
तो हम कहना ये चाहते हैं कि -मुंबई महानगर की जीवन रेखा "मुंबई की लोकल ट्रेन" ये सिर्फ एक सवारी गाड़ी नहीं है जो यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक किफायती सफर कराती है बल्कि ये पटरियों पर दौड़ता हुआ एक शहर है। जिसमे सफर करना और सहयात्रियों के साथ निभाना भी एक कला है। यदि आप इस कला से वाकिफ नहीं है तो आपके लिए सफर दुस्कर ही नहीं होगा बल्कि एक दुःस्वप्न साबित होगा।
एक दिन मैंने भी किया था इस "मुंबई लोकल ट्रेन" में ऐसा सफर जो भुलाये नहीं भूलती।
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*******आज का सफर यहीं तक, अब आज्ञा देआप का दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा
सार्थक और सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
साथ नहीं है कुछ भी जाना
जवाब देंहटाएं–अगर साथ कुछ जाने वाला होता तो दुनिया की क्या रंगत होती
हार्दिक आभार आपका
श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए सहृदय धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक और सामयिक चर्चा प्रस्तुति। मुझे भी इस चर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंधन संचय की होड़ लगी है,
जवाब देंहटाएंसाथ नहीं है कुछ भी जाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
यथार्थ पर चोट करती आदरणीय शास्त्री जी की रचना से सजी सुंदर भूमिका और सार्थक रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक प्रिय कामिनी जी । आभार आपका ।
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! सराहनीय रचनाओं के लिंक्स सुझाती बेहतरीन चर्चा!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं पढ़ी। बहुत ही सुन्दर सार्थक विविध भावों से सज्जित रचनाएं,सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
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