सादर अभिवादन मंगलवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है (शीर्षक और भूमिका आदरणीया अनीता सैनी जी की रचना से )
खंडहर बनी बावड़ियों
और ग्रामीणों में
सभ्य हो,
सभ्यता तलाशी जाती है।
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चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर..
दोहे "बिगड़ गये सम्बन्ध" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नहीं रहे घर आजकल, वो हैं सिर्फ मकान।
अपने ऐसे रह रहे, जैसे हों अनजान।।
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सन्तानों से अब नहीं, होती कोई बात।
बदले में माँ-बाप को, मिलती गाली-लात।।
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राजस्थान घूमने आए सैलानी
कवि-लेखक भी मुग्ध हो
कविता-कहानियाँ लिखते हैं
पानी के मटके लातीं औरतों की
फोटो निकाली जाती है
बरखान, धोरों में प्रेम ढूँढ़ा जाता है
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न राजा अनजान था।
न मुद्दालह परेशान था।
न मुद्दई हलकान था।
न मुख्तार नादान था।
न मुंसिफ बेईमान था।
बस मीनार बेजुबान था।
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ग्रीष्म-शीत आते औ' जाते,
बसे वसन्त सदा अंतर में,
रात्रि-दिवस का मिलन प्रहर हो
सदा गूँजते स्वर संध्या के !
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जब पेड़ चलते थे अंडमान निकोबार की लोक-कथाउन दिनों आदमी जंगलों में भटकता फिरता था। आदमी की तरह ही पेड़ भी घूमते-फिरते थे। आदमी उनसे जो कुछ भी कहता, वे उसे सुनते-समझते थे। जो कुछ भी करने को कहता, वे उसे करते थे। कोई आदमी जब कहीं जाना चाहता था तो वह पेड़ से उसे वहाँ तक ले चलने को कहता था। पेड उसकी बात मानता और उसे गंतव्य तक ले जाता था। जब भी कोई आदमी पेड़ को पुकारता, पेड़ आता और उसके साथ जाता।--------------तेरह साल के भ्रष्टाचार को तेरह सेकेंड में खत्म किया जा सकता है, दृढ इच्छाशक्ति होनी चाहिए
ऐसा कहा जा रहा है कि इन स्तूपों को गिराना भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा संदेश है ! अच्छी बात है ! इसके साथ ही यह भी आभास मिल रहा है कि दृढ इच्छाशक्ति हो तो तेरह साल के भ्रष्टाचार को तेरह सेकेंड में खत्म किया जा सकता है ! पर क्या सिर्फ विष-वृक्ष का तना काट देने से समस्या का निदान हो जाएगा ? जितना ऊँचा यह टॉवर था उससे कहीं गहरी हैं, दुराचरण की जड़ें हमारे देश में ! आज इतने छापे पड़ रहे हैं ! इतनी धर-पकड़ हो रही है ! आरोपियों के घरों से रद्दी कागजों के ढेर की तरह नोटों के टीले बरामद हो रहे हैं ! पर ना लालच खत्म होता दिखता है, नाहीं कहीं कानून का डर काबिज होता नजर आ रहा है ! *********************
उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते - विभारानी श्रीवास्तव :)
विभारानी श्रीवास्तव ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है ( विभारानी श्रीवास्तव -- सोच का सृजन यानी जीने का जरिया ) विभारानी जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है एक से बढ़कर एक हाइकू लिखने की कला में माहिर कुछ भी लिखे पर हर शब्द दिल को छूता है हमेशा ही उनकी कलम जब जब चलती है शब्द बनते चले जाते है ...शब्द ऐसे जो और पाठक को अपनी और खीचते है और मैं क्या सभी विभा जी के लेखन की तारीफ करते है...........!!
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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे
आप सभी को हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएं
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
बहुत सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए @ कामिनी सिन्हा जी आपकाआभार
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! सराहनीय रचनाओं की सुंदर प्रस्तुति ! आभार कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार कामिनी जी अत्यंत हर्ष हुआ शिर्षक पर स्वयं की रचना की पंक्तियाँ देखकर।
जवाब देंहटाएंसम्मान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर स्नेह
मंच पर स्थान देने के लिए आपका शुक्रिया
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