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गुरुवार, नवंबर 17, 2022

'वो ही कुर्सी,वो ही घर...' (चर्चा अंक 4614)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया शुभा मेहता जी की रचना से। 

 सादर अभिवादन।

गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-

गीत "जहरीली बह रही गन्ध है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जहाँ कमाई हो हराम की

लूट वहाँ है राम नाम की,

महफिल सजती सिर्फ जाम की

बोली लगती जहाँ चाम की,

तन्त्र ये खटक रहा है।

सुदामा भटक रहा है।।

*****

साथ तुम्हारे दौड़ रहा हैबुड्ढा अढसठ साल का-सतीश सक्सेना

इसी हौसले से जीता हैसिंधु और आकाश भी
सारी धरती लोहा माने इंसानी इकबाल का!

गिरते क़दमों की हर आहट,साफ़ संदेशा देती है!
हिम्मत,मेहनत,धैर्य,ज़खीरा इंसानों की चाल का!

*****

कभी कोई राज न छिप पाया

ना तो  हम जान पाए

नही सर पैर मिला किसी बात का

अपनी  बातों पर अड़े रहे

अपनी बात ही सही लगी

दूर हुए आपसी  बहस बाजी से

जब अन्य लोगों ने भी दखलंदाजी की

उन ने भी बहस में भाग लिया। 

*****

किताब

राजकुमारी के साथ खेली

मछलियों के साथ  समुद्र की यात्रा की

कुछ दोस्त  भी बने

जिनका दुख -सुख मैंने बांटा

जैसे ही किताब  खत्म करके बाहर  आई

वो ही कुर्सी,वो ही घर...

पर मन के अंदर रह गई

सुनहरी यादें......

 *****

कसाइयों के गिरफ़्त में- -

अल्फ़ाज़ की चाशनी में छुपे रहते हैंक़तरा ए ज़हर,
अपनों का उपदेश कुछ तो सुनेंबर्बाद होने से पहले,

ज़रूरत से ज़ियादा यक़ींले जाता है अंधेरे की ओर,
नाज़ुक परों को लोग कतर देंगे आज़ाद होने से पहले,

*****

झरोखा काम का

वो तोकैद कर गयाबस परिदृश्य सारे,

बे-आस से वोदोनों किनारे,

उनरिक्तियों में पुकारे,

क्षणभंगुर क्षण येजिधर थी ढ़ली,

बिखरावो सागर जाम का!

वही इक झरोखा...

मेरे काम का!

*****

शून्यता

हमारा अंत है।

नदी

सभी की है

और

हमेशा रहेगी या नहीं

यह पहेली अब सच है।

*****

कुंठित पाकिस्तान के जख्मों पर क्रिकेट की सफलता ने मरहम लगाया

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति और मेरा सौभाग्य।।।

    जवाब देंहटाएं
  3. नदी
    पहले विचारों में
    प्रयासों में
    चैतन्य कीजिए
    उसकी
    आचार संहिता है
    समझिए
    वरना शून्य तो बढ़ ही रहा है
    क्रूर अट्टहास के साथ।।।
    - बेहतरीन रचना। जितनी भी तारीफ करूं कम होगी। संदीप जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।।।।

    जवाब देंहटाएं
  4. नदी
    पहले विचारों में
    प्रयासों में
    चैतन्य कीजिए
    उसकी
    आचार संहिता है
    समझिए
    वरना शून्य तो बढ़ ही रहा है
    क्रूर अट्टहास के साथ।।।
    - बेहतरीन रचना। जितनी भी तारीफ करूं कम होगी। संदीप जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।।।।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह वाह! सुंदर संकलन चर्चा मंच के लिए

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार आपका रवीन्द्र जी...। रचना को स्थान देने के लिए साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन चर्चा अंक अनुज रविन्द्र जी मेरी रचना को शीर्षक पंक्ति बनाने के लिए हृदय से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत चर्चा संकलन

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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