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गुरुवार, जनवरी 28, 2010

“मैं टिप्पणी क्यों करता हूँ?” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-43


चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"


आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं-


कुछ पोस्टों के शीर्षकों के साथ।

आप इन पर आयीं टिप्पणियों का भी आनन्द लीजिए-

वास्तव में पोस्ट में निखार तो आपकी टिप्पणियों से ही आता है।
सबसे पहले आपको ले चलते हैं-

धान के देश में!

मैं टिप्पणी क्यों करता हूँ

3 टिप्पणियाँ:

Sanjeet Tripathi, January 27, 2010 12:51 PM

बात सही, तार्किक है।
सहमत।

पी.सी.गोदियाल, January 27, 2010 1:03 PM

एकदम सही, ब्लोग्गर यदि सार्वजनिक मंच पर आया है तो पाठक का फर्ज बनता है की यदि उसे उसके लेखन में रूचि अथवा कोई बार बुरी लगी तो इससे उसे अवगत कराये !

खुशदीप सहगल, January 27, 2010 1:34 PM

अवधिया जी,
टिप्पणी के बारे में जो भी कहा जाए लेकिन ये तो तय है कि हर ब्लॉगर को अपने लिखे पर प्रतिक्रिया मिलने में असीम संतोष मिलता है...ज़रूरी नहीं कि आप हर पोस्ट पर टिप्पणी करे...लेकिन जहां भी करें वो टिप्पणी उस पोस्ट की पूरक या उसे विस्तार देने वाली हो...कुछ तथ्य अगर पोस्ट में छूट रहे हों तो आप उसे टिप्पणी के ज़रिए देकर पोस्ट का रूप और निखार सकते हैं...और सेंस ऑफ ह्यूमर का सटीक उपयोग किया जाए तो
पोस्ट लिखने वाले और दूसरे पढ़ने वालों के चेहरे पर मुस्कान भी लायी जा सकती है...यानि सोने पे सुहागा...
जय हिंद...

ताऊ डॉट इन


नदी में उगा एक शहर- वेनिस!! : उडनतश्तरी
आज की यह अतिथि पोस्ट श्री समीर लाल "समीर" की है. बहुत आभार!श्री समीर लाल "समीर"प्रकृति की अनुपम खूबसूरत कलाकृति-इटली का सांस्कृतिक एवं व्यापारिक केंद्र-वेनिस.पूरा शहर सड़को की बजाय जल मार्गों से जुड़ा है और परिवहन का मुख्य साधन नाव है जिसे गंडोला कहा……

हिन्दी साहित्य मंच
अवतरण ---- (डा श्याम गुप्त )

5 comments:
SACCHAI २६ जनवरी २०१० ११:०३ PM

" bahut hi acchi rachana ..acche bhavoan ke saath ."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com

हिन्दी साहित्य मंच २६ जनवरी २०१० ११:४१ PM

यह कंचन सा रूप तुम्हारा,
निखर उठा सुरसरि धारा में,
जैसे सोनपरी सी कोई ,
हुई अवतरित सहसा जल में,
अथवा पद वंदन को उतरा ;
स्वयं इंदु ही गंगा- जल में ||
बहुत खूब....

Mithilesh dubey २६ जनवरी २०१० ११:४३ PM

यह कंचन सा रूप तुम्हारा,
लाजवाब कल्पना लगी, बेहद उम्दा भाव ।

neeshoo २६ जनवरी २०१० ११:४५ PM

चन्द शब्दो में आपने सब कुछ पिरो दिया है ।

जय हिन्दू जय भारत २६ जनवरी २०१० ११:४६ PM

बेहद लाजवाब अभिव्यक्ति लगी, बहुत-बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिए ।

वीर बहुटी

- पुस्तक समीक्षा द्वारा- श्रीमती निर्मला कपिला


Blogger Udan Tashtari said...

बेहतरीन समीक्षा...अब तो रुका नहीं जा रहा पुस्तक पाने के लिए...कहाँ गया दीपक!!!

January 26, 2010 7:32 PM

Blogger दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...

अच्छा प्रयास है। हर समीक्षा पुस्तक परिचय से आरंभ होती है। यह उस से कुछ आगे की चीज बन गई है। आप दो चार पुस्तकों की समीक्षा करेंगी तो हाथ मंज जाएगा। इस काम की ब्लागीरी में कमी है। समीक्षा के बिना लेखन आगे नहीं बढ़ता। समीक्षा आरंभ होनी चाहिए। यहाँ समीक्षा करने वाला या तो केवल तारीफ ही करता है आलोचना का अभाव है। इसे ऐसे आरंभ किया जा सकता है कि लेखक खुद समीक्षा का प्रस्ताव समीक्षक से करे और समीक्षक से सभी तरह की समीक्षा झेलने को तैयार रहे। जब कुछ समीक्षाएँ हो लेंगी और उन का प्रभाव देखने को मिलेगा तो यह सिलसिला भी चल निकलेगा। इस की बहुत जरूरत है। इस के बिना ब्लागीरी में लोग बिना मँजे रह जाएंगे। लोग तो जूता भी बिना पालिश के नहीं पहनते। ब्लागीरों को पालिश की जरूरत है।

January 26, 2010 7:37 PM

Blogger Kulwant Happy said...

मशाल भाई को...सलाम
और माँ को सजदा।
'माँ तेरी बेबसी आज भी
मेरी आँखों मे घूमती है
तुमने तोड़े थे सारे चक्रव्यूह
कौन्तेयपुत्र से भी अधिक
जबकि नहीं जानती थीं तुम
निकलना बाहर....
या शायद जानती थीं
पर नहीं निकलीं
हमारी खातिर,
अपनी नहीं
अपनों की खातिर'

January 26, 2010 7:41 PM

Blogger पी.सी.गोदियाल said...

सुन्दर समीक्षा निर्मला जी और दीपक जी को ढेरो शुभकामनाये ! निशंदेह इस युवा साहित्यकार के पास साहित्य का बहुत बड़ा खजाना है !

January 26, 2010 8:45 PM

Blogger seema gupta said...

बहुत सुन्दर समीक्षा , रोचक लगा पढना....
regards

January 26, 2010 9:01 PM

Blogger sada said...

आपने बहुत ही सुन्‍दर पुस्‍तक समीक्षा की, बारीकी से हर कविता की गहराई को महसूस किया, दीपक जी को बहुत-बहुत बधाई इस उपलब्धि पर, शुभकामनायें ।

January 26, 2010 9:04 PM

Blogger Creative Manch-क्रिएटिव मंच said...

आपने बेहतरीन समीक्षा की
भाई दीपक मशाल जी को ढेरो शुभकामनाये !

January 26, 2010 9:46 PM

Blogger अजय कुमार said...

अच्छी समीक्षा , दीपक जी को बधाई

January 26, 2010 10:14 PM

Blogger भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मैं इसे दोबारा पढ़ूंगा. समीक्षा को.

January 26, 2010 10:21 PM

Blogger दिगम्बर नासवा said...

पुस्तक की समीक्षा बहुत लाजवाब तरीके से की है .......... ख़ास ख़ास रचनाओं को बहुत असरदार तरीके से प्रस्तुत किया है आपने .......... दीपक जी की संवेदना झलकती है उनकी रचनाओं में .........

January 26, 2010 11:28 PM

Blogger वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत शानदार और विस्तृत समीक्षा. बधाई.

January 26, 2010 11:30 PM

Blogger arvind said...

बहुत अच्छी पुस्तक और उतनी ही अच्छी समीक्षा,........जब मां के हाथों मां पर लिखी गयी पुस्तक की समीक्षा हो,तो उत्कृष्ट होना स्वाभाविक ही है.

January 27, 2010 1:01 AM

Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

पुस्तक तो देखी नही है लेकिन समीक्षा से आभास होता है कि बहुत कुछ खास होगा इसमें।

January 27, 2010 1:22 AM

Delete


Dr. Smt. ajit gupta

डॉ श्रीमती अजित गुप्‍ता प्रकाशित पुस्‍तकें - शब्‍द जो मकरंद बने, सांझ्‍ा की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्‍ध संग्रह) सैलाबी तटबन्‍ध (उपन्‍यास), अरण्‍य में सूरज (उपन्‍यास) हम गुलेलची (व्‍यंग्‍य संग्रह), बौर तो आए (निबन्‍ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्‍समरणात्‍मक यात्रा वृतान्‍त) आदि।


गाँव में गणतन्‍त्र दिवस
2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

आपकी पोस्ट में आशा की किरण नज़र आती है ....... काश देश के हर गाँव में कोई पमली पैदा हो सके ........ गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ........

January 27, 2010 12:46 PM

खुशदीप सहगल said...

अजित जी,
हर गांव में ऐसे ही पूजाओं की गिनती बढ़ने लगे तो देश का आज तो सुधरेगा ही, आने
वाला कल भी इस बदलाव के लिए हमेशा ऋणी रहेगा...
जय हिंद...

January 27, 2010 1:10 PM

गीत...............

जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊँ


जीवन फूल और नारी का



TSALIIM

विज्ञान केन्द्रित विचारों और वैज्ञानिक पद्धतियों से परिचित कराने का एक विनम्र प्रयास।


रेखा प्रहलाद ने जीत ली इस बार की तस्लीम पहेली! पर महफूज़ भाई और अन्तर सोहिल को भी बधाई। (चित्र पहेली-61)

मिसफिट

नन्हा दिन जाड़े का रोक सका कौन गुरसी में आग लोग मुद्दों पे मौन ?


पाबला जी के नाम खुला ख़त
1 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला said...

ये माजरा क्या है अपनी समझ मे तो आया नहीं मगर इस बात से सहमत हूँ
"एकला चलो लेकिन बहु जान हिताय जात्रा करो'' धन्यवाद्


राजतन्त्र
अब और नहीं लिखेंगे हम...
साँसों की डोरी-(मेरी पचासवीं रचना)


Dimps ने कहा…

Hello,
Twaanu lakh-lakh vadhaiyan ho ji :)
Bahut sundar likha hai... harr rachna mein aap aur motiii piro dein, aapko meri taraf se bahut shubhkaamnaaiyan :)
Prem Sahit,
Dimple

२७ जनवरी २०१० २:०३ AM

वन्दना ने कहा…

50 vi post ki hardik badhayi.
bahut sundar bhav.
pls read --------http://ekprayas-vandana.blogspot.com

२७ जनवरी २०१० २:२६ AM

एक प्रयास

बेलगाम घोडा


ब्लॉगर सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

aafareen aafareen Vandana ji..
follower bann gaya hoon aata rahunga!

२७ जनवरी २०१० २:३६ AM

ब्लॉगर रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) ने कहा…

bahut khoob ,
badhaii sweekariye.

२७ जनवरी २०१० २:४५ AM

ब्लॉगर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…

बिल्कुल सटीक!
जो इस घोड़े को लगाम लगा लेता है,
वो सँवर जाता है!
जो आवारा छोड़ देता है
वो...........!

२७ जनवरी २०१० २:४७ AM

हटाएँ

ब्लॉगर rashmi ravija ने कहा…

ओह्ह कटु सत्य बयाँ कर दिया आपने तो...यथार्थपरक पंक्तियाँ

२७ जनवरी २०१० २:४७ AM

२७ जनवरी २०१० २:४७ AM

अजय कुमार ने कहा…

सपने और यथार्थ का अच्छा चित्रण ,यही जिंदगी है

२७ जनवरी २०१० २:४९ AM


ब्लॉगर संगीता पुरी ने कहा…

जीवन की सच्‍चाई बयान की है आपने .. बहुत सटीक लिखा है!!

२७ जनवरी २०१० २:५७ AM

ब्लॉगर मनोज द्विवेदी ने कहा…

nice

२७ जनवरी २०१० ३:०३ AM

महफूज़ अली ने कहा…

सच में सच्चाई बयाँ करती सुंदर कविता.....

२७ जनवरी २०१० ३:०५ AM

ब्लॉगर महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति वंदना जी ...बधाई.

२७ जनवरी २०१० ३:४२ AM

ब्लॉगर ह्रदय पुष्प ने कहा…

बेहद सटीक, सार्थक और शिक्षाप्रद - "बेलगाम घोडा". "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" ना कहना पड़े इसलिए समय रहते इस पर "लगाम" लगाना अतिआवश्यक है.

२७ जनवरी २०१० ३:४३ AM

ब्लॉगर दिगम्बर नासवा ने कहा…

शायद इसलिए ग्यानि कहते हैं ....... मन को बांधो ........नियम में रहना सीखो नही तो ये बेलगाम घोड़े ही उड़ान का अंत ऐसे ही होगा ............. बहुत अच्छा संदेश छिपा है इस रचना में ..........

२७ जनवरी २०१० ३:५६ AM

ब्लॉगर नीरज गोस्वामी ने कहा…

वंदना जी लाजवाब रचना...बधाई...
नीरज

२७ जनवरी २०१० ४:१२ AM

ब्लॉगर अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

yes jeevan isi ka naam he, belagaam ghoda kah le yaa kuchh..is par lagaam to mruty bhi nahi lagaa saki he...
vese
utkrasht rachnaa he.

२७ जनवरी २०१० ४:३० AM

ब्लॉगर मनोज कुमार ने कहा…

जीवन की अभिव्यक्ति का सच।

२७ जनवरी २०१० ७:५३ AM



ज़िंदगी के मेले

ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफ़सोस हम न होंगे


चिट्ठाचर्चा डॉट कॉम से शुरू हो कर, वृहद ब्लॉगर सम्मेलन पर खत्म होती बैठक की बातें

सीधी खरी बात..

कुछ ऐसा कहने का प्रयास जो कम ही कहा जाता है


कश्मीर में तिरंगा…

Proud to be a कुमाउँनी चेली!

शुक्रगुज़ार हूँ मैं

तेताला


सिंगल चिट्ठा चर्चा सुरेश यादव सृजन की (अविनाश वाचस्‍पति)

Kavymanjusha


जिंदगी से अब मिले

ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल


मैम भक्त मेमने और मैं

काव्य मंजूषा

प्रगति...
एक पुरानी कविता....
ब्लाग चर्चा "मुन्ना भाई" की
खाली पिली फिर से आ गया

देशनामा

मैं चला विदेश...खुशदीप

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

कार्टून :- आस्ट्रेलिया के खींच के ट्विट्टर मारूंगा..



Blogger अनूप शुक्ल said...

जय हो! क्या खींचा है, क्या मारा है।

January 27, 2010 7:54 AM

Blogger ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक दिया.:)
रामराम.

January 27, 2010 8:49 AM

Blogger Udan Tashtari said...

सही!!!!!!!!!!!!

January 27, 2010 9:14 AM

Blogger निर्मला कपिला said...

वाह बहुत बडिया

January 27, 2010 9:32 AM

Blogger seema gupta said...

ha ha ha ha
regards

January 27, 2010 9:53 AM

Blogger पी.सी.गोदियाल said...

हा-हा , इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते !

January 27, 2010 9:59 AM

Blogger संजय बेंगाणी said...

अब ऑस्ट्रेलिया की ऐसी-तेसी हुई समझो.

January 27, 2010 11:00 AM

Blogger भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

very nice. kam se kam ye to kar sakte hain.

January 27, 2010 11:47 AM

Blogger राज भाटिय़ा said...

:)जल्दी मारो अभी तक सोच रहे हो:)

January 27, 2010 3:29 PM


मेरा फोटो

संगीता पुरी
बोकारो, झारखंड, India

29 और 30 जनवरी को आसमान में चमकीले लाल मंगल और पूर्ण चंद्र के साथ साथ का नजारा लें !!


अन्तर सोहिल ने कहा…

कोशिश करेंगें जी 29-30 को 4 बजे से 6 बजे के बीच शायद दिल्ली में हम भी देख पायें यह नजारा (अगर नंगी आंखों से देखा जा सका तो)
इस जानकारी के लिये धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें

२७ जनवरी २०१० ३:२८ PM

वन्दना ने कहा…

bahut hi badhiya jankari di sath hi gyan bhi badha........shukriya.

२७ जनवरी २०१० ४:२२ PM

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे दो तीन दिन बाद होता तो हम भी देख लेते, हमारे यहां तो बर्फ़ गिर रही है ओर पिछले तीन महीनो मे सुर्य देवता के दर्शन भी एक दो बार ही हुये है तो इस नजारे को कहा देख पायेगे?लेकिन बहुत अच्छी जानकारी, बहुत से लोग जिन्हे नही पता था अब उन्हे भी पता चल गया.
धन्यवाद

२७ जनवरी २०१० ४:२९ PM

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

चित्र पहेली का उत्तर कुछ अन्य चित्रों के साथ

2 comments:

अमृत कुमार तिवारी said...

दोस्त बेहद प्रसन्नता हो रही है कि आप मेरे ब्लॉग का रुख किए। क्योंकि उसी के बदौलत आप के ब्लॉग पर आकर मेरी हौसला आफजाई हुई है। आप जैसे लोग ये प्रेरणा देते हैं कि अभी थकना नहीं है। जब तक जीवित रहना है प्रतिरोध करते रहना है। अराजकता और अव्यवस्था के खिलाफ।
धन्यवाद

January 27, 2010 3:44 PM

राज भाटिय़ा said...

सव्ही विजेतओ को बधाई, लेकिन इन ट्रक वालो के बिरुध कार्यवाही क्यो नही होती? जब कि सब इन्हे सरे आम देखते है

January 27, 2010 4:23 PM



आज के लिए

केवल इतना ही…


कल फिर किसी

नये अन्दाज से

चर्चा करूँगा!

15 टिप्‍पणियां:

  1. एक नया ही तरीका इजाद कर दिया आपने... अच्छा लगा.. बधाई..
    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  2. ये भी खूब अंदाज रहा चर्चा का मय टिप्पणी..वाह!! जारी रहिये!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढिया चर्चा-शास्त्री जी, शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया
    जायका बदलते रहने से रूचि बनी रहती है

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  5. ये नया अंदाज़ बहुत पसंद आया धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत के लिए आपकी मेहनत काबिले तारीफ है !!

    जवाब देंहटाएं
  7. टिप्‍पणियों के साथ चर्चा करना अच्‍छा लगा। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. शास्त्री जी, टिप्पणीमयी चर्चा का ये अन्दाज भी मन भाया!
    आभार्!

    जवाब देंहटाएं
  9. शास्त्री जी आपने इतने सुन्दर रूप से टिप्पणियों के साथ साथ चर्चा किया है कि आपकी इस मेहनत की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है! बहुत बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  10. Shastri ji,
    bahut hi bdhiya rahi aapki charcha..
    meri prsvishthi ko sthaan diy aapne..
    hriday se abbhar..

    जवाब देंहटाएं
  11. waah waah shastriji
    bahut hi mehnat ki hai aur ye naya andaz to bahut hi badhiya laga..........shukriya.

    जवाब देंहटाएं
  12. अरे वाह बहुत खूब लगा आपका ये नया अंदाज ।

    जवाब देंहटाएं

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