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मंगलवार, जनवरी 19, 2010

“बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई!” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-35
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आइए आज का
"चर्चा मंच" सजाते हैं-

आज बसन्त पञ्चमी है!
माँ सरस्वती जयन्ती, महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला”
और नज़ीर “अकबराबादी” की भी जयन्ती आज ही है -
वर दे वीणा वादिनी, वर दे ...

लो क सं घ र्ष !: गरीबो, किसानो के मसीहा व धर्मनिरपेक्षता के सिपाही को लाल सलाम

image source: people's democracyकामरेड ज्योति बसु एक गंभीर प्रवृत्ति सदा जीवन और बयानबाजी या नारों के स्थान पर सदा कार्य को प्रधानता देने वाले राज़नीतज्ञ थे। उन्होंने बंगाल को नक्सल समस्या से निदान देने के लिए पंचायत राज व्यवस्था कानून का क्रियान्वित.......

सिर्फ एक सवाल का जवाब आज मांगता हूँ...: महफूज़

कहाँ खो गयीं थीं तुम?जवाब दो....मत पूछो हाल मेरा,पर मेरे हर आंसू का हिसाब दो.बुना था जो ख़्वाब तुम्हारे साथ,उसे धड़कन बना कर पास रखा था,तस्वीर जो बनाई थी तुम्हारी,उसे आँखों में बसा कर रखा था.सिर्फ एक सवाल का जवाब आज मांगता


देशनामा

देश का कोई धर्म नहीं, कोई जात नहीं, कोई नस्ल नहीं तो फिर यहां रहने वाले किसी पहचान के दायरे में क्यों बांधे जाएं।

छिछोरेपन का 'न्यूटन' लॉ...खुशदीप

आप अगर साइंस या फिजिक्स के छात्र रहे हैं तो न्यूटन द ग्रेट के बारे में ज़रूर जानते होंगे...वहीं जनाब जिन्होंने गति (मोशन) के नियम बनाए थे...लेकिन ये बात फिजिक्स पढ़ने वाले छात्रों की है...कुछ हमारे जैसे छात्र भी होते थे जो क्लास में बैठना शान के खिलाफ समझते थे...गलती से कभी-कभार खुद ही पढ़ लेते थे तो पता चलता था कि प्रोटॉन हो या न्यूट्रान या फिर इलैक्ट्रॉन सब का एटम (परमाणु) में स्थान निर्धारित होता है...प्रोटॉन और न्यूट्रान तो न्यूक्लियस में ही विराजते हैं...इलैक्ट्रॉन बाहर कक्षाओं में स्पाईडरमैन की तरह टंगे रहते हैं...लेकिन कुछ हमारे जैसे फ्री इलैक्ट्रॉन भी होते हैं जो न तो न्यूक्लियस में बंधे रहना पसंद करते थे और न ही किसी कक्षा में लटकना...सौंदर्यबोध को प्राप्त करने के लिए कॉलेज के बाहर ही सदैव चलायमान रहते थे...

न्यूटन द ग्रेट


नवगीत की पाठशाला
सर्दी में

सर्दी में

सूरज की गुम हुई गरमाई

कोहरे की चादर ली

धुंध की रजाई

जाला है पाला है

हल्की-सी दुशाला है

छुट्टी का नाम नहीं खुली पाठशाला है

सुबह-सुबह उठने में कष्ट बहुत भारी

और सजा की जैसी

लगती है पढ़ाई……..

—सिद्धेश्वर सिंह


"हमारा हिन्दुस्तान"...

धर्म, जात - पात को एक तरफ़ रख कर हिन्दुस्तान को एक सूत्र के पिरोने की कोशिश....

एक पोस्ट लिखिये, वोट दिजिये, और भारत के चालीस हज़ार बच्चों को पढाने में योगदान दिजिये..!! Charity, Give India,

क्या आप चाहते है कि इस देश के गरीब को बच्चों को पढाने में आपका योगदान हो? अगर हां, तो आपके ब्लोग का एक लेख, आपका एक वोट, हमारे देश के चालीस हज़ार बच्चों को एक साल तक पढाने में मदद कर सकता है।……


मसि-कागद
कुछ तस्वीरें जो नोकिया ५८०० से निकाली हैं आपके सामने रख रहा हूँ............. दीपक मशाल

विमान से ली गयीं डूबते सूरज की कुछ तस्वीरें.. शायद आपको पसंद आयें..


दीक्षा

प्रचंड के चेहरे से उतर गया नकाब

भारत और नेपाल मित्र राष्ट्र है. मेरे एक परिचित अवसर मिलने पर भी नेपाल नहीं जाना चाहते. कहते हैं कि उनकी कुंडली में विदेश योग है. नेपाल जाकर अपने योग को सस्ते में गंवाना नहीं चाहते. यह प्रसंग सिर्फ इसलिए कि नेपाल यहाँ के लोगों को विदेश नहीं लगता. ढाई दशक में सरहद के कस्बों से लेकर काठमांडू तक अनगिनत यात्रा की. रहन सहन और परिवेश भले अलग लगा लेकिन कभी यह महसूस नहीं हुआ कि गैर मुल्क में आये हैं. तब भी जब माओवादी आन्दोलन चरम पर था, तब भी जब राज परिवार की ह्त्या हुई और लोग उबल रहे थे, वहां कोई भय जैसी बात नहीं थी. पर अब भय का वातावरण बनाया जा रहा है.


झा जी कहिन

अपने अंदाज में हम अईसे बतियाते हैं..

यदि ऐसा ही है तो लीजीये अब चर्चा ही चर्चा

कहते हैं न कि जो होता है उसमें कोई न कोई अच्छाई छुपी होती है , पिछले दिनों चिट्ठों की चर्चा और चर्चाकारों के संदर्भ को लेकर जो बातें हुई उन्हें अब मैं दोहराना नहीं चाहता , मगर शायद अधिक भावुक होने के कारण और शायद इस वजह से कि प्रश्न विवेक भाईजो अनजाने नहीं हैं हमसे , द्वारा उठाए जाने के कारण मन दुख तो गया था । जबकि मैं जानता था कि उन्होंने न तो किसी चर्चाकार विशेष के लिए कोई शिकायत की था न ही किसी भी चिट्ठीचर्चा से । मगर जाने क्यूं ..........


बङगङां बङगङां बङगङां

Ratan Singh Shekhawat,

साम्राज्य और स्वतंत्रता के बीच निर्णायक संग्राम चल रहा है और खानवा के युद्ध क्षेत्र में घोड़े दौड़ रहे है |
बङगङां बङगङां बङगङां |
' परन्तु मै कैसे सो रहा हूँ , कहाँ हूँ मै ? '
' महाराणा आप कालपी ग्राम के शिविर में है |'
'नहीं , गलत है | यह कैसे हो सकता है ? मेरे बिना खानवा के युद्ध क्षेत्र में फिर किसके घोड़े दौड़ रहे है |'
विष का प्रभाव अपनी सीमाएं लांघ चूका था | महाराणा सांगा के अधूरे अरमान पश्चातापों की बेबसी पीकर बावले हो उठे थे | खानवा का युद्ध उनके भाग्य की अभागी भूल के रूप में उनकी अंतिम स्मृति पर छा रहा था |……

तोताराम के तर्क - सार-सार को गहि करे

जैसे ही हमने महाराष्ट्र में ज्वार, बाजरे और मक्का से बीयर बनाने का समाचार पढ़ा, सोचा, क्यों न इन अनाजों के दुर्लभ और अनुपलब्ध होने से पहले ही खा करके मन की निकाल ली जाये । सो पत्नी से सब की दस-दस रोटियाँ बनाने के लिए कह दिया । मोटे अनाज की रोटियाँ हैं, कोई मजाक नहीं है । बड़ी तपस्या का काम है । यह भी नहीं कि एक साथ ही बेल कर रखदी और फिर धीरे-धीरे सेंक ली । इसमें तो आटा गूँधने और रोटी बनाने के काम साथ-साथ चलते हैं । फिर बार-बार आँच को कम ज्यादा करते रहना पड़ता है । धीमी-धीमी आँच में सिकने के बाद इन रोटियों को भले ही दस दिन तक रखे रखो, खराब नहीं होतीं क्योंकि धीमी-धीमी आँच में सिकने से सारी नमी ख़त्म हो जाती है । कल की सारी शाम बेचारी को इसी काम में लग गई

…..


">

हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर

दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ७९) -

*मन अशांत, छूटें स्वजन,* *

अंखियन बीते रैन* *

दौलत वह किस काम की,* *

जो न दे सुख चैन * * -


विजय तिवारी "किसलय"*

simte lamhen

जल उठी शमा....! -

शामिले ज़िन्दगीके

चरागों ने पेशे खिदमत

अँधेरा किया, मैंने खुदको

जला लिया! रौशने राहों के ख़ातिर , शाम ढलते बनके शमा! मुझे तो उजाला न मिला, सुना, चंद राह्गीरोंको..



रचनाधर्मिता

एक सवैया (मत्तगयन्द) - संगम क्षेत्र को देख कर एक सवैया फूट पड़ा। मत्तगयन्द सवैया में सात भगण (ऽ। ।) और और अन्त में दो गुरु होते हैं। भानुसुता इस ओर बहे, उस ओर रमापति की पगदासी। सा..


simte lamhen

जल उठी शमा....! -

शामिले ज़िन्दगीके

चरागों ने पेशे खिदमत

अँधेरा किया, मैंने खुदको

जला लिया! रौशने राहों के ख़ातिर , शाम ढलते बनके शमा! मुझे तो उजाला न मिला, सुना, चंद राह्गीरोंको..

शब्दों का सफर

मरहम से पहले हुए मरहूम… - **

मरहूम, मरहम और रहम एक ही स्रोत से निकले शब्द हैं और कई भाषाओं में प्रचलित हैं…

मरहूम का इस्तेमाल करनेवाले कभी-कभी इसे इसके असली मायने ..


ओझा-उवाच

अंदर जाओ वरना अंदर कर दूंगा ! - पिछले दिनो जब कानपुर-लखनऊ गया तो बड़े मजेदार अनुभव हुए. कानपुर सुबह-सुबह पंहुच गया तो ट्रैफिक का मजा नहीं ले पाया. हाँ लखनऊ में जरूर कुछ आशीर्वचन सुनते-स..

मेरी छोटी सी दुनिया

ख्यालातों के अजीब से कतरन - रात बहुत हो चुकी है, अब सो जाना चाहिये.. कहकर हम दोनों ने ही चादर को सर तक ढ़क लिया.. वैसे भी चेन्नई से बैंगलोर जाने वाले को ही समझ में आता है कि सर्दी क्य...


क्वचिदन्यतोअपि..........!

अपनी जड़ों को जानने की छटपटाहट आखिर किसे नहीं होती ? -

अपनी जड़ों को जानने की छटपटाहट की एक बानगी यहाँ देखी जा सकती है. हमारा उदगम कहाँ हुआ ?

हम कौन हैं और कहाँ से आये?

किसी भी जिज्ञासु मन को ये सवाल मथते है.

अंधड़ !

आज का सद-विचार ! - *कोई अगर यह कहता है कि "इस बात का फैसला देश की महान जनता करेगी" अथवा यह कहे कि "मेरे साथ देश की महान जनता का प्यार और आशीर्वाद है " तो ऐसे व्यक्ति से बचिए,..


मयंक

“ब्लॉग की दुनिया में एक वर्ष”

- *ब्लॉगर मित्रों!* * * *सादर प्रणाम!* * * *20जनवरी को ब्लॉगिंग का एक वर्ष पूरा हो जायेगा!* * * *जब मैंने 21 जनवरी 2009 को ब्लॉग जगत में कदम रखा था त..

यशस्वी

रानीबाग का उत्तरायणी मेला - इस बार 14 जनवरी मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी वाले दिन रानीबाग जाने का अवसर मिला जो मेरे लिये इस दुनिया का सबसे पवित्र स्थान है। रानीबाग नैनीताल से 28 किमी...


मेरी भावनायें...

मुश्किल है ! - टूटते तारे ने कहा 'मांगो मुझसे जो चाह लो, मिलेगा ' मैंने कहा - 'तुम फिर से अपनी जगह पर आ जाओ' धरती में समाहित तारा बोला- मुश्किल है ! ( कहने का तात्पर्य यह..

नुक्कड़

अर्थशास्त्र के स्थापित सिद्वांत बदल गये हैं बिहार में - अर्थशास्त्र के सिद्वांतों को मानें तो बिना उधोग-धंधों के विकास के, किसी भी प्रदेश की विकास की बात करना बेमानी है। आमतौर पर माना जाता है कि विकास की प्रथम स..


ललित शर्मा जी ने चिट्ठाकरों की चर्चा के लिए “चिट्ठाकार चर्चा” नाम से नया ब्लॉग बनाया है! ललित जी जाल-जगत पर आपका स्वागत है- चिट्ठाकार चर्चा

क्रांति दूत-अरविन्द झा "चिट्ठाकार चर्चा"( ललित शर्मा ) - *कल हमने चिट्ठाकार चर्चा प्रारंभ की है. इसका उद्देश्य हमने आपके सामने रखा और इसे पाठकों का भरपूर आशीष प्राप्त हुआ. नए चिट्ठाकारों के साथ जो चिट्ठाकार साथी ...


कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **

तलाश - बसंती ब्यार सा, खिले पुष्प सा, उस अनदेखे साए ने.. भरा दिल को.. प्रीत की गहराई से, खाली सा मेरा मन, गुम हुआ हर पल उस में और झूठे भ्रम को सच समझता रहा .. मृ...

मानसी

दो बातें - *दो अश्रु* एक अश्रु मेरा एक तुम्हारा ठहर कर कोरों पर कर रहे प्रतीक्षा बहने की एक साथ *रात* पिघलती जाती है क़तरा क़तरा सोना बन कर निखरने को, कसमसाती है ज़र्र...


ज्योतिष की सार्थकता

ज्योतिषी का अर्थ सर्वज्ञाता होना नहीं हैं.........किसी भी विषय के जानकार की भान्ती ही ज्योतिषी की भी अपनी एक सीमा होती है। - किसी भी विषय का सामान्य ज्ञान जनसाधारण को न हो पाने की दशा में उस विषय के प्रति समाज में अनेक भ्रान्तियाँ उत्पन हो जाती है। ज्योतिष जो कि अपने आप में एक सम...

स्वप्न मेरे................

गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा था -

ये ग़ज़ल पुनः आपके सामने है ..........

गुरुदेव पंकज जी का हाथ लगते ही ग़ज़ल में बला की रवानगी आ गयी है ......

यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था हिल गई ..

Hasyakavi Albela Khatri

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हास्यफुहार

परिभाषा-7-

*परिभाषा **-7*

*आशावादी *** ** *

*** *** * ऐसा

गंजा*** * * * जो बाल

उगाने वाला*** * *

*वो ही** तेल खरीदता

है*** * * *

जिसके साथ

कंघी फ्री हो **!


वीर बहुटी

- संजीवनी----- *अगली कडी* *पिछली कडियों मे आपने पढा कि मानवी एक महत्वाकाँक्षी महिला हैं। जो अपने करियर और फिगर को बनाये रखने के लिये बच्चे को जन्म देना नहीं .

गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

कहीं आपका जन्‍म जनवरी - फरवरी 1981 में तो नहीं हुआ था ?? - हमारे घर में 1890 से लेकर 1980 तक का 90 वर्षीय पंचांग मौजूद था , जिसके कारण अति वृद्ध व्‍यक्ति की भी जन्‍मकुंडली बनाने में हमें कोई दिक्‍कत नहीं आती थी, जिनक..

नन्हा मन

ऋतुओ की रानी - *ऋतुओ की रानी* धरा पे छाई है हरियाली खिल गई हर इक डाली डाली नव पल्लव नव कोपल फुटती मानो कुदरत भी है हँस दी छाई हरियाली उपवन मे और छाई मस्ती भी पवन मे उडते ..


मेरी समझ से इस देश में छूआछूत की भावना इस तरह फैली होगी ??

आज भारत के परंपरागत नियमों को संदेहास्‍पद दृष्टि से देखने वाले अक्‍सर जाति प्रथा के विरोध में या खासकर छूआछूत के विरोध में हल्‍ला किया करते हैं। पर लोगों ने कभी चिंतन मनन करने की कोशिश नहीं की कि छूआछूत की भावना अपने देश में क्‍यूं आयी होगी। मैं स्‍पष्‍टत: कहना चाहूंगी कि मेरे गांव में हर जाति , हर धर्म के लोग बडे प्रेम से रहते हैं । छोटी से छोटी जाति भी एकजुट होकर किसी बात के विरोध में अनशन कर सकती है कि वो किसी कर्मकांड में इस जाति के लोगों का काम नहीं करेगी , तो बडी बडी जाति के लोगों के पसीने छूट जाते हैं। यदि ये मान्‍यता कहीं पर मुझे नहीं मिलती है , तो इसका जबाबदेह मैं विदेशी ….

हम फिर चूक गए..............घुघूती बासूती

ज्योति बसु ने अपना शरीर ४ अप्रैल २००४ को चिकित्सीय अनुसंधान के लिए दान कर दिया था।

मरणोपरांत उनकी यह इच्छा पूरी की जा रही है। उनकी आँखों की कॉर्निया तो पहले ही निकाल ली गई हैं व नेत्रहीनों के काम आएँगी।

आज उनका पार्थिव शरीर भी चिकित्सीय अनुसंधान के लिए सौंप दिया जाएगा।

ज्योति बसु का यह निर्णय बहुत सराहनीय है। उनकी उम्र व बीमारी के कारण उनके शरीर के विभिन्न अंग जैसे गुर्दे, कलेजा आदि तो किसी रोगी के लिए उपयोगी नहीं रहे किन्तु उनका शरीर अनुसंधान के काम आएगा।……….

सिर्फ एक सवाल का जवाब आज मांगता हूँ...: महफूज़

कहाँ खो गयीं थीं तुम?

जवाब दो....

मत पूछो हाल मेरा,

पर मेरे हर आंसू का हिसाब दो…

बसंत पंचमी

भारत में बसंत ऋतु के आगमन की सूचना बसंत पंचमी से ही मिलनी शुरू हो जाती है|

माघ शुक्ल पक्ष (महाराष्ट्र,गुजरात, दक्षिण भारत इत्यादि जगहों पर माघ कृष्ण पक्ष)की पंचमी को मनाया जाने वाला

यह पर्व बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है|…

फुरसतिया…… फुरसत में ….-- मनोज कुमार

कानपुर के निर्माणी के हमारे एक सहकर्मी कुछ दिनों पूर्व कोलकातापधारे। वे आए तो थे विभागीय प्रशिक्षण के सिलसिले में पर उन्होंनेयहां आने की सूचना मेरे ब्लॉग पर एक टिप्पणी के माध्यम से की थी।उस आलेख में मैंने लिंक न लगा पाने की अपनी अज्ञानता का जिक्रकिया था। महोदय ने इतनी सहृदयता बरती की मुझे फोन से सूचनादी और कहा कि 16-01-2010 की शाम को उनके ठहरने की जगहकाशीपुर के मयूर भवन अतिथिगृह में …


व्यंग्य : ओ मंहगाई महारानी तेरा जबाब नहीं ....

ओ मंहगाई की देवी महारानी तुम्हें क्या कहूँ तेरी महिमा अपरम्पार हैं . तू कहाँ से आई कब कहाँ दस्तक दे दे तेरा कोई ठिकाना नहीं है और जहाँ तेरे चरण पड़ जाए वहां त्राहि त्राहि मच जाती है . तुझे यदि सुरसा की बहिन कहूं तो कोई दिक्कत की बात नहीं है क्योकि तू ऐसे ही है .
सुरसा के सामान बढ़ती जाती हो पर कभी घटने का नाम ही नहीं लेती हो . तेरी मार से गरीब आदमी त्राहि त्राहि कर रहा है वो बेचारा कितनी ही मेहनत करे पर तेरे कारण वह दो जून की रोटी के लिए तरस रहा है . बस अब यह लगता है की मंहगाई की हे देवी महारानी तू सिर्फ भ्रष्टाचरियो , रिश्वतखोरों और जमाखोरों के ऊपर ही मेहरबान हैं जो दिन रात दुगुने के चौगुने कर रहे है .

कार्टून : लो जी ..प्रायोजक मिल गए

कार्टून : लो जी ..प्रायोजक मिल गए
बामुलाहिजा >> Cartoon by Kirtish Bhatt

कल मुझे एक वैवाहिक कार्यक्रम में बाहर जाना है!
अतः कल “चर्चा मंच” को ललित शर्मा जी सजायेंगे!

यदि मैं परसों भी नही लौट पाया तो

परसों की चर्चा भी आदरणीय शर्मा जी ही करेंगे!

18 टिप्‍पणियां:

  1. वसंत पंचमी जैसी रंगों की सौगात वाली है ये चर्चा...कई बेहतरीन लिंक मिले...वंसत पंचमी की बधाई...

    जय हिंद...

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  2. Aap sab prabuddh janon ko Maa Sharde ke pradurbhav divas(Vasant panchmi), Kavi shiromani Nirala ji aur Nazeer saab ki janmtithi par hardik shubhkamnayen...
    Jai Hind...

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  3. बहुत अच्छी चर्चा। अच्छे लिंक। बसंत पंचमी की बधाई व शुभकामनाएं।

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  4. वसंत का संत
    पंचमी का परचम
    फहरे ही फहरे
    काहे ठहरे।

    जवाब देंहटाएं
  5. बसंत पंचमी की बधाई व शुभकामनाएं।


    मुझे लगा था कि मैं टिप्पणी कर गया हूँ. :)

    जवाब देंहटाएं
  6. बसंत पंचमी की बधाई व शुभकामनाएं।
    बहुत ही मेहनत की गई शानदार चर्चा |

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  7. बसंत पंचमी की शुभकामनाएं
    सुंदर चर्चा के लिए आभार

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  8. सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
    वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
    खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!

    --
    क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
    लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
    --
    संपादक : सरस पायस

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  9. बेहतरीन चर्चा के लिए आभार्!!
    वसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!

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  10. ांअज तो बहुत कमाल की चर्चा है बसंत की तरह ।बसंत पंचमी की बधाई व शुभकामनाएं।

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  11. वसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ...अच्छी चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह !
    आनन्द आ गया........

    बहुत उम्दा चर्चा,,,,,,,,,

    सभी को वसंत पंचमी की हार्दिक बधाई ! !

    www.albelakhatri.com

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  13. बसंत पंचमी की बधाई व शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही सुंदर और बेहतरीन चर्चा शास्त्री जी , एक से एक पोस्टें और ढेर सारे लिंक्स
    अजय कुमार झा

    जवाब देंहटाएं

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