सांस्कृतिक फ़ुटबाल.फ़ुटबाल वर्ल्ड कप चल रहा है. चल क्या उछल रहा है. मजे लिए जा रहे हैं.पिछले कई दिनों से जानबूझ कर मैं ऐसी जगह नहीं जाता जहाँ दो-चार लोग बैठे हों.डर लगा रहता है कि कहीं कोई फ़ुटबाल के बारे में न पूछ ले.कारण यह है कि हम रविन्द्र जडेजा की बैटिंग ज्यादा इंज्वाय करते हैं. वही जडेजा जिन्होंने पिछली कई पारियों में शून्य पर आउट होकर शून्य को अमर कर दिया है.वैसे भी उस वर्ल्ड कप में कैसे मन लगेगा जहाँ अपने देश की टीम गई ही नहीं.ऐसे में अगर हम अपने शहर वालों की तरह फ़ुटबाल के मजे लेना चाहें तो हमें अर्जेंटीना को समर्थन देना पड़ेगा क्योंकि चे का जन्म उस धरती पर हुआ था और मैराडोना भी वही के हैं,या फिर ब्राजील को,क्योंकि वहाँ के सबसे महान खिलाड़ी पेले कोलकाता में खेल चुके हैं |
सजना है मुझे, सजना के लिए!!आप बहुत अच्छा लिख रहे हों मगर न पैराग्राफ का ध्यान है, न लाईन ब्रेक का, तो पाठक आयेंगे कैसे? और बिना पाठक आये कोई जानेगा कैसे कि आपने अच्छा लिखा है.इसीलिए तो हम कहीं जाते हैं तो बहुत सज धज कर, अच्छे कपड़े पहन कर जाते हैं. भले ही आपका व्यवहार बहुत अच्छा हो मगर जब तक आपसे कोई बात नहीं करे, आप किसी को आकर्षित न करे,कोई आपका व्यवहार कैसे जानेगा. वैसे भी आजकल शो/सजावट का जमाना है. कल ही पड़ोसी किसी बात का थैक्यू गिफ्ट दे गये-एडीबल डेकोरेशन.बात भी ऐसी कि जिसका हम शायद भारतीय होने के कारण थैक्यू भी न बोलते.अरे,वो कहीं बाहर गये थे तो कह गये थे कि तीन दिन उनके अखबार उठाकर रख लेना.हम तो यही सोच लेते कि इसी बहाने उसको हमारा अखबार पढ़ने मिल गया. इसमें थैंक्यू कैसा?? |
“मृत्यु एक मछुआरा-बेंजामिन फ्रैंकलिन” (अनुवाद-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) दुनिया एक सरोवर है, | अब तो राहत दे दो राम॥तप के देहिया कलुयी पडिगे॥टुटही बखरी माँ लगे घाम॥ अब तो राहत दे दो राम॥ पूरा जयेष्ट बीत गइल बा॥ अब तो लाग आषाढ़ तन से हमारे आगहै निकरत॥ चटके लाग कपार॥ अब तो राहत दे दो राम॥ पशु पक्षी सब ब्याकुल भागे॥ खड़े पेड़ सब पानी मांगे॥ नदिया तरसे अब आपनी का॥ सूखा पडा तालाब ॥ अब तो राहत दे दो राम॥ |
हवाओं से हवा देती हैजिन्दगी रोज दवा देती है दुखती रगों को हौले से हिला देती है तन जाते हैं जब तार मन के कैसी कैसी तानों को बजा देती है जिन्दगी हो रूठी सजनी जैसे तिरछी निगाहों से इम्तिहान लेती कडवे घूँटों सी दवाई उसकी माँ की घुट्टी ,घुड़की सा असर देती है | भारतीये नारी पथ भटक गयी हैंभारतीये नारी पथ भटक गयी हैं देवी हम उसको मानते थे इंसान वो बनगई हैं पहले हमारी बेटी बनकर वो नाम पाती थी पहले हमारी पत्नी बनकर वो नाम पाती थी पहले हमारी माँ बन कर वो नाम पाती थी |
जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं.......!"जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। या तुम कह सकते हो कि जीवन खुला रहस्य है। सब कुछ उपलब्ध है, कुछ भी छिपा नहीं है। तुम्हारे पास देखने की आँख भर होनी चाहिए। पर यह ऐसा ही है जैसी कि अंधा आदमी पूछे कि 'मैं प्रकाश के रहस्य जानना चाहता हूँ।' |
नारी मुक्ति का प्रतीकस्त्री पुरुष को प्रकृति ने अपनी अपनी जगह सम्पूर्ण बनाया है.इनमें बड़े छोटे की बात निकालना मुर्खता पूर्ण कृत्य है .पुरुष को हमेशा पुरुष ही रहना चाहिये और नारी को अपने सम्पूर्ण रूप में नारी ही.लेकिन पुरुष के कपडे पहनने से,उनके जैसे दुर्गुणों को अपनाने शराब-सिगरेट पी लेने मात्र से ही तो समानता का दावा पूरा नहीं किया जा सकता है.(आज स्त्री पुस्र्ष समानता का प्रतीक इन्ही चीजों को माना जाने लगा है) |
देसिल बयना - 35 : गरीब की जोरू सब की भौजाईगरीब अर्थात लाचार,बेवश लोगों की जिन्दगी ही सामर्थ्यवान लोगों की सुख,शौक,जरुरत और विलासिता की पूर्ति के लिए है। समर्थों के अत्याचारों को सहना असहायों का धर्म है,उनके शोषण का शिकार होना ही उनकी नियति है। बड़े लोगों के लिए छोटे लोगों की कीमत उनके मनोरंजन तक ही सीमित है। | शिक्षा में निवेश और धन के महत्व को शामिल होना ही चाहिये ?लगभग सभी लोग अपने जीवन के महत्वपूर्ण १६-२० वर्ष शिक्षा ग्रहण करते हैं, परंतु उस शिक्षा में कहीं भी यह नहीं सिखाया जाता है कि धन कैसे कमाया जाता है, धन कितना महत्वपूर्ण है, धन को सही तरीके से कैसे निवेश किया जाये इत्यादि। |
स्वर्गनहीं, यह यात्रा वृत्तान्त नहीं है और अभी स्वर्ग के वीज़ा के लिये आवेदन भी नहीं देना है । यह घर को ही स्वर्ग बनाने का एक प्रयास है जो भारत की संस्कृति में कूट कूट कर भरा है । इस स्वर्गतुल्य अनुभव को व्यक्त करने में आपको थोड़ी झिझक हो सकती है, मैं आपकी वेदना को हल्का किये देता हूँ ।
ओ भानुमति...मेरे ख्याल...ये जिस्म नीला पड़ने लगा है अब ...कहते हैं कि भानुमति बेहद खूबसूरत और ज़हीन स्त्री थी लेकिन पुरुष प्रबल राजनीति ने उसके सौंदर्य और ज़हानत पर ग्रहण लगा दिया !उसे एक बेमेल कुनबा जोड़ने वाली खातून के मुहावरे की तर्ज़ पर स्थापित कर दिया गया...शायद नियति यही है ,जो सुजनो को भी अप्रतिष्ठा के पंक में गारत कर देती है ,मसलन बेचारा विभीषण ,जिसे सत्य...धर्म और न्याय का साथ देने के बावजूद घर के भेदी बतौर याद किया जाता है...गरियाया जाता है यहां तक कि जयचंद और मीर जाफर के समतुल्य उद्धृत किया जाता है ! |
ब्लॉगर्स में डिप्रेशन मापने वाले इस सॉफ्टवेयर को तो आना ही थाआप ब्लॉगिंग खुशी-खुशी करते हैं या आप पोस्ट लिखते समय डिप्रेशन या अवसाद में रहते हैं? इजराइल के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर ईजाद कर लिया है, जो आपकी पोस्ट को देखते ही बता देगा कि इसे लिखने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति कैसी है? |
ग्रहराज सूर्य और चमत्कारी फलप्रदायक सूर्योपासनासमस्त जगत के जीवनदाता,ज्योति एवं उष्णता के परम पुंज तथा समस्त ज्ञान के स्वरूप सर्वोपकारी देव श्री सूर्य नारायण की महता से भला कौन परिचित नहीं है.जो सूर्य ग्रह रूप में आकाश में दृ्ष्ट है, वह तो मात्र एक स्थूल रूप है. वास्तविकता में सूर्य का विस्तार तो अनन्त है.इस ब्राह्मंड में अनगिनत आकाश गंगाएं हैं तथा प्रत्येक में असँख्य सूर्य प्रकाशमान हैं.अत:यह जानना ही लगभग असंभव है कि सम्पूर्ण ब्राह्मंड कितने सूर्यों से जगमगा रहा है! |
ब्लाग जगत पर शुरू होने वाली है संस्कृत सम्भाषण की कक्षा, आप भी लाभ उठाइयेहाँ तो दोस्तों अपने वायदे के अनुसार हमने आपकी संस्कृत कक्ष्या का पाठ्यक्रम तैयार कर लिया है मगर संस्कृत की कक्ष्या शुरू करने से पहले कुछ ध्यान देने वाली बातों पर गौर कर लें तो अच्छा होगा .यहाँ मैं कुछ तथ्य दे रहा हूँ जिनको आपको अपने आचरण में शामिल करना होगा ,अगर आपने इन नियमों पर ध्यान दे दिया तो मेरा दावा है बहुत ही शीघ्र और आश्चर्यजनक परिवर्तन देखेंगे अपनी भाषा में ।। |
कार्टून : सरकारी मज़ाक !! | मूंछ' अब ऐसी हो गयी है!! |
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जवाब देंहटाएंदेर आयद!
जवाब देंहटाएंदुरुस्त आयद!
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बहुत ही बढ़िया चर्चा!
bahut sundar charcha...achhe link mile..dhanywaaad
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा चर्चा, पंडितजी आभार !
जवाब देंहटाएंचर्चा मन को लुभा गई !!
जवाब देंहटाएंsadgi se ot-prot sunder rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा कई लिंक मिले
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में ५ वर्ष पूरे अब आगे… कुछ यादें…कुछ बातें... विवेक रस्तोगी