दोस्तों!
मैं वन्दना गुप्ता आज चर्चा मंच की
184वीं पोस्ट लेकर आपकी सेवा में हाजिर हूँ!
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“तम”
भी कभी हम अंधकार के दौर से गुजरते हैं, तम के दौर से गुजरते हैं. कुछ समझ नहीं आता, कुछ दिखाई नहीं पड़ता – आगे, पीछे, ऊपर, नीचे हर तरफ अंधकार ही अंधकार..हमारी आँखें प्रकाश की एक कण को तलाशती रहती हैं, रेगिस्तान के मृग की तरह...काली अँधेरी रात है.सर्वत्र तम |
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चिट्ठी चर्चा : भुखमरी से लड़ते शहरोज़ की मदद करें
आज मै महेंद्र मिश्र आपके लिए काफी अरसे के बाद आपके समक्ष एक छोटी सी चिट्ठी चर्चा लेकर उपस्थित हूँ . सबसे पहले मैं आप सभी से क्षमा लेना चाहता हूँ क्योंकि घरेलू और अत्यंत जरुरी आवश्यक कार्य होने के कारण चिटठी चर्चा समय पर आपके समक्ष लेकर उपस्थित नहीं हो |
किस्सागो चाँद
एक अकेला चाँद बिचारा, इतने टूटे हारे दिल...सबकी तन्हाई का बोझ थोड़ा भारी नहीं हो जाता है उसके लिए. सदियों सदियों इश्क की बातें सुनता, लोग उसे सब कुछ बताते, दिल के गहरे सारे राज. चंद एक बहुत बड़ा किस्सागो है, देर रात तारों के नन्हे नौनिहाल उसे कहानियां |
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लघु कथा: राघव बाबा
सगुना की बेटी बीमार थी...तेज बुखार और बड़बड़ाहट...तीन दफे इलाज के लिए नजदीक के डॉक्टर साहब के पास लेकर जा चुका था...सुई दवाई का जरा भी असर नहीं हुआ...मर्ज कायम रहा....शहर में बड़े डॉक्टर के पास इलाज के लिए पैसे की जरूरत पड़ती....उतने पैसे उसके पास नहीं |
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आज इच्छाएं मेरी उड़ रही है तितली बनकर
आज इच्छाएं मेरी उड़ रही है जैसे उडती तितलियाँ हो,वो ठहरती ही नहींकिसी पलकिसी एक फूल पर और ये मेरा नादाँ मनकर रहा है कोशिश पकड़ने की उन तितली बनी इच्छाओं कोएक अबोध बालक की तरह और फिर चाहता की कैद कर ले उन्हेंजिससे वो न उड़ सके दुबारा,पर हर बार की तरह... |
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न्याय बिकता है [मुक्तक] - कुलवंत सिंह
न्याय बिकता है तराजू तोल ले, हृदय की संवेदना का मोल ले, हर तरफ है रुपया आज बोलता, बेचने अपनी पिटारी खोल ले| बचे हुए भी चार गांधी चुक गये, सत्य अहिंसा पुस्तकों में छप गये, हिंदुस्तां की अस्मिता को बेचने सौदागर ही हर तरफ बस रह गये| अतिरिक्त... |
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'मेरी आवारगी'
(पुनः )--------------------कोई फितरत से आवारा,कोई तबीयत से आवारा,किसी को आवारगी का शौक,मैं मजबूरी में आवारा,यूं थे, रास्ते बहुत,न समझा मैं, किधर जाऊं, था बस, मंजिलों का खौफ, जहाँ जाऊं, जिधर जाऊं, बचा जब कोइ न चारा,तो घूमा बन के बंजारा,किसी को आवारगी का |
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कार प्रेमियों के अब होश उड़ने आई ये फेरारी 612 GTO :)
फेरारी 612 GTO की डिजाईन लॉन्च हुई.शाशा शेलिप्नोव ने एक बार फिर से अपना कमाल दिखाया है और फेरारी को दी 612 GTO की नयी डिजाईन. बेहद आकर्षक और आधुनिक.फ़िलहाल तो ये कह पाना मुश्किल है की क्या क्या नयी खूबियों के |
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साहित्य सर्जक
मित्रों यह गजल नही है जैसा मैंने पहली पोस्ट में कहा है यह "नव गीतिका "है पावस ऋतू प्रारम्भ हो रही है इस लिए बदल बूँदें बरसात व फुहार से ही इस का साधारणीकरण होता है ये तत्व ही सहृदयी को पावस का अहसास कराते हैं इसी पर यह नव गीतिका है ध्यान से निकला कर |
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भीख मांगता बचपन: दिल्ली से योगेश गुलाटी
दिल्ली में मेट्रो ने जिधर का रुख किया उधर वैभव और विलासिता के नित नये नज़ारे उभर आये! या यों कहें कि उन्नति की प्रतीक अट्टालिकाओं की शोभा बढाने मेट्रो ट्रेन भी वहां जा पहुंची! पन्द्रह साल पहले तक नोएडा एक सुनसान गांव हुआ करता था! लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह |
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पुरानी दीवारें और नया कवि
हर माह यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से हिंद-युग्म से कई नये कवि भी जुड़ते हैं। प्रतियोगिता की पाँचवी कविता भी एक नये कवि की है। रचनाकार प्रदीप शुक्ला की यह हिंद-युग्म पर प्रथम कविता ही है। 10 अगस्त 1978 को जन्मे प्रदीप जी मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। गणित |
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*चिन्ताएं-एक लंबी यात्रा हैं-अन्तहीन, चिन्ताएं-एक फ़ैला आकाश है असीम, चिन्ताएं-हमारे होने का एक बोध हैं, साथ ही हमारे अहंकार का एक प्रश्न भी !! चिन्ताएं-कभी दूर ही नहीं होती हमसे, अन्त-हीन हैं हमारी अबूझ चिन...
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बिखरे हैं मसले हुए इंसानियत के फूल, जो पास ही तहज़ीब के बिस्तर पर पड़े हैं .......
posted by 'अदा' at काव्य मंजूषा -
मत पूछो हम कौन हैं किस ओर चले हैं, समझो कि मुसाफिर हैं और सराय में पड़े हैं, राह रोक लेते हैं कुछ पहचाने से लोग, काम जिनके हैं छोटे पर नाम बड़े हैं, हर लम्हा हम मौत की सरहद पर खड़े हैं, तूफ़ान से खेल लेते...
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भोपाल त्रासदी का ये चित्र देखा और मन विचलित हो गया...इससे ही प्रेरित होकर ये रचना लिखी... थी कभी छत पर मेरे कुछ धूप आकर तैरती... और नीचे छाँव भी थी सुस्त थोड़ी सी थकी... छाँव के कालीन पर नन्हा खिलौना रे...
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आज की रंग-बिरंगी चर्चा तो
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लग रही है!
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बधाई!
waah bada hi rangeen mahaul hai aaj...
जवाब देंहटाएंsundar ati sundar...
बहुत अच्छी लगी चर्चा
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच का सयोंजन बहुत सुंदर तरीके से किया है |
जवाब देंहटाएंनई रचनाओं कीऔर लिंक मिली ,धन्यवाद |बधाई
आशा
बेहतरीन चर्चा वन्दना जी ,
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ,आभार
जवाब देंहटाएंबेह्तर चर्चा ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया ...
vndna ji aap ka hardik aabhar
जवाब देंहटाएंkripya swikar kr len
dr.vedvyathit@gmail.com
vndna ji aap ka hardik aabhar
जवाब देंहटाएंkripya swikar kr len
dr.vedvyathit@gmail.com
वंदना जी बेहद सुंदर सुंदर पोस्टों से सजी..एक सुंदर चिट्ठा चर्चा..बधाई
जवाब देंहटाएंsundar aur spasht charcha behtareen ban padi he.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सजाई है चर्चा..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रंगीन चर्चा...अच्छे लिंक्स के साथ...बधाई
जवाब देंहटाएंkuch naye links mile jin par ab tak nahi ja paya tha.,..bahut bahut shuqriya aap ka.. :)
जवाब देंहटाएंgood worthy links
जवाब देंहटाएंrang birangi sundar charcha.
जवाब देंहटाएंfir se rangeen charcha.. :)
जवाब देंहटाएंshukriya
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगी ब्लाग्स की चर्चा----इसी बहाने कुछ महत्वपूर्ण पोस्टों को पढ़ने का अवसर भी मिलता है।
जवाब देंहटाएंबढिया लगी ये रंगबिरंगी चर्चा...सुन्दर!
जवाब देंहटाएंआभार्!
वन्दना जी ! खुबसुरत चर्चा .घणी बधाई
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