नमस्कार , मैं संगीता स्वरुप आज फिर चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ले कर आई हूँ कविताओं से भरा पिटारा …और पिटारे से निकलती एक एक कड़ी …बस पसंद आपको करनी है…आज सबसे पहली कड़ी समीर लाल जी की है क्योंकि यह कविताओं का मंच है और समीर जी कह रहे हैं कि कविताओं का मौसम आ गया है..तो प्रारंभ हम इस मौसम का आनन्द लेते हुए ही करना चाहेंगे…तो खोलती हूँ काव्य – पिटारा …. |
उड़नतश्तरी ..जून के तपते दिनों के बाद उम्मीद है कि बरखा आने ही वाली है और मंद फुहारों के साथ साथ कवि को लग रहा है कि कविता का मौसम आ गया है…बारिशों के मौसम में, मेघ बन के छा जाओरात के अँधेरे में, चाँद बन के आ जाओ भीड़ तो बहुत है पर, मन में इक उदासी है याद बन के यादों में, याद ही बुलाती है प्रिय! तुम चले आओ, प्रेयसी बुलाती है |
वर्माजी जज़्बात पर श्वासों की गति पर ध्यान न देने के लिए आग्रह कर रहे हैं .. बहुत संवेदनशील रचना है .. तुम श्वासों की गति पर ध्यान न देनातुम तलाशना मतअपने खोये 'खोयेपन' को उसे तो मैनें सहेज लिया है | मिनाक्षी जी "प्रेम ही सत्य है" » पर अपने घर – आँगन की बात बताते हुए कह रही हैं कि मेरे आँगन में प्रेम और विश्वास का पेड़ और दूब है…मन को शांति देती इस रचना का आप भी आनंद उठाइये .. मेरे घर के आँग़न मेंमेरे घर के आँगन में... छोटी छोटी बातों की नर्म मुलायम दूब सजी कभी कभी दिख जाती बहसों की जंगली घास खड़ी सब मिल बैठ सफ़ाई करते औ’ रंग जाते प्रेम के रंग... |
शिखा वार्ष्णेय काफी चर्चित चिट्ठाकार हैं . इस बार वो SPANDAN » पर लायी हैं समाज की विसंगति को उकेरती एक रचना .. उसका / मेरा चाँद …. एक नौनिहाल माँ का एक खिड़की से झाँक रहा था साथ थाल में पड़ी थी रोटी चाँद अस्मां का मांग रहा था |
किराये का मकान ..नारी के मन में ना जाने क्या क्या पलता है..ना जाने उसे कौन कौन सा दुःख सालता है …एक दुःख की चर्चा यहाँ भी है.यह कैसी व्यथाऔरत दुखी होती जबकहते लोग उसे बेऔलाद नहीं आंगन में खेलती कोई कली देखूं जब सांझ बेचैनी, तड़प दिल में आंख में अश्रुधारा गर बेटी ही होती तो होता घर में उजियारा। | जेन्नी शबनम जी का Lamhon Ka Safar पर जेन्नी जी पूछ रही हैं कि तुमसे दूरी क्यों बढ़ी ? मालूम है ? आप भी पढ़ें बँटे हुए तुम... में कि उनके मन में क्या द्वन्द छिड़ा हुआ है……… क्यों दूर हो गई, ख़ुद हीं मैं तुमसे, एक एक लम्हा, जो साथ जिए थे न पूछो, बड़ा दर्द देते थे, आस हो, तो फिर भी, काँटों को सह लूँ हर चुभन को, फूलों की चुभन सोचूँ, |
एक नीड़ ख्वाबों,ख्यालों और ख्वाहिशों का » पर प्रिया की भावनाओं को पढ़ें ….. आई ऑब्जेक्ट ऑनर किल्लिंग /तू मेरी धरती का पौधा नहींमै तेरी बस्ती की बेटी नहीं तेरा देवता अलग मेरा पूजन जुदा जब खुदा है अलग तो दिल कैसे मिला ? |
प्रतिभा शर्मा जी के ब्लॉग का नाम भी PRATIBHA है .. इन्होने अपनी कविता में दिल की किताब खोली है….अब इस किताब को आप भी पढ़ें … मेरे दिल की वो किताबआज फिर खोली है मैने ,अपने दिल की वह पुरानी किताब , जिसके पीले पड़े पन्नो पर सहेजे हुए रखे है मेरे कुछ अधूरे , कुछ टूटे से तुम्हारे साथ देखे वो सब ख्वाब | पवन मिश्र PACHHUA PAWAN पर कैसे वतन बदल रहा है बता रहे हैं हिन्दुस्तान बदल रहा है.....महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है,ताजीरात-ए-हिंद की दफा बदल रही है. अस्मत लुटी अवाम की कहकहो के साथ, और अफज़लो की सजा बदल रही है. | वीर की कलम से ..कौन किसको कातिल बना रहा है …आप खुद ही पढ़ लीजिएकातिल बना गयीमेरी कमज़ोरी मेरा दामन जला गयी,मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी| मेरी मोहब्बत शायद काफी ना थी, मेरी फितरत मुझे नाकाबिल बना गयी| मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी |
Akanksha » पर आशा जी बता रहीं हैं कि मन के भाव आँखों से पता चल जाते हैं कैसे यह जानना है तो पढ़िए आँखें तेरे मन का दर्पण…… आँखें तेरे मन का दर्पण , चहरा खुली किताब का पन्ना , जो चाहे पढ़ सकता है , तुझको पहचान सकता है | आँखें है या मधु के प्याले , पग पग पर छलके जाते , |
सफर के सजदे में संवेदनशील मन से शारदा अरोरा जी कहती हैं कि …संवेदनाएँ छलती हैंसंवेदनाएँ चलती हैंऊँचा हो जाता है जब क़द सर से संवेदनाएँ छलती हैं । मुश्किल है मन चलता है पकड़ के मुट्ठी में रखना खलता है । | पारुल जी का ब्लॉग है…और न डूबे!में बस चिंतित हैं कि कुछ न डूबे देख! तेरे आंसूओं से कहीं किनारा न डूबे नम से ख़्वाबों में रात का कोई तारा न डूबे!! मुझे खबर है कई रोज से तुम सोये नहीं हो थक भी गए हो इतना कि और रोये नहीं हो भर गया है किसी हद तक तेरे मन का समन्दर याद रखना!कहीं इसमें तेरा कोई प्यारा न डूबे!! |
रीवा की सुनीता शर्मा के चित्र और वंशी माहेश्वरी की कविताओं का आनंद एक साथ उठाना है तो चलिए SAMAY SANKALP पर ..अनल कुमार के ब्लॉग पर वंशी माहेश्वरी की पाँच कविताएँ |
मनोरमा » श्यामल सुमन जी का कविता संसार है…… ज़िंदगी चलने का नाम ..चलते रहो सुबह शाम …. जानिये ज़िंदगी के बारे में .. मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।। आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान। उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।। मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में। लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।। | योगेश शर्मा जी अपने ब्लॉग "अभिनन्दनहर इंसान के मन में एक शैतान होता है..अब वो क्या कह रहा है…ये जानिये आप खुद पढ़ कर …कैसे मुमकिन है कि हम तुम, साथ में जिंदा रहें, साथ खेले मुस्कुराएं, हम कदम हम दम रहें, जिंदा है रहना मुझको जो, फिर तुझे मरना ही है, लाशों पे रख के कदम, आगे मुझे बढ़ना ही है, |
गिरीश पंकज » पर गिरीश जी एक बहुत खूबसूरत दो कविताएँ लाये हैं .. हिंसा की देवी,तुम सुन रही हो न.. और कविता की माँ है करुणा… दोनों अलग अलग रंग की कविताएँ मन पर अलग अलग असर डालती हैं… हिंसा की देवी, तुम सुन रही हो न..? जब तुम अपने कोमल होंठों से गाती हो हिंसा के गीत तब लगता है, एक सुन्दर फूल काँटों के साथ मिल कर अपने ही फूलो के जिस्मो को छलनी कर रहा है. |
' हया ' » पर लता हया जी एक ऐसा द्वीप खोज रही हैं जहाँ वो तनहा रह सकें.. मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है .. मेरी जबीं पे वो ज़ख्म देगा तो खून से तर ग़ज़ल कहूँगी अगर लगाएगा सुर्ख़ बिंदी मैं सज संवर कर ग़ज़ल कहूँगी खमोशियों के समन्दरों का ज़रा कनारा तो ढूँढने दो मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं वहीँ पहुंचकर ग़ज़ल कहूँगी | सान्निध्य » यह ब्लॉग है वर्तिका जी का ..ना जाने क्यों बहुत उलझी उलझी सी हैं…ज़रा आप भी देखिये .. अधूरा सा कुछ ............पुराना सा कुछ .............उम्र सा कुछ.... अम्ल सा कुछ ..….. कहीं पढ़ा था "लफ्जों के दांत नहीं होते, पर काटते हैं, और काट लें तो फिर उनके ज़ख्म उम्र भर नहीं भरते!" |
मीडिया स्कूल पर वर्तिका नंदा बाँट रहीं हैं दर्द के एहसास हादसे एक ही बात कहते हैंमंगलौर में हो या मुंबई में इंसान के रचे हों या कुदरत से भुगते |
व्यंगकार अरुणेश मिश्र से मिलिए इनके ब्लॉग चरैवेति चरैवेति » पर ..भीड़ देख हैरान परेशान हैं…पढ़िए ओह ! फिर भी इतनी भीड़ लोकतन्त्र की दुकान पर क्या कह रहे हैं… मन्त्री अधिकारी माफिया अपराधी भ्रष्टाचारी मँहगाई आसमान पर । | नीरज » पर पढ़िए नीरज जी का मुश्किलों का गणित ये कैसा हैहाल बेताब हों रुलाने को तू मचल कहकहे लगाने को मुश्किलों का गणित ये कैसा है बढ़ गयीं जब चला घटाने को |
अनामिका की सदाये..पर पढ़िए प्रेमरस से सराबोर रचना तुम्हारी खुशबू .. जी जान से चाहती हूँ तुम्हे मैं भुला नहीं सकती. मन में बसी तुम्हारी बातों की खुशबू मैं मिटा नहीं सकती. सुख दुख में संबल देते हैं तुम संग बीते क्षण वो सारे विरह वेदना में तड़प कर ये मुहोब्बत छुड़ा नहीं सकती. |
कोना एक रुबाई का पर खाली नौकरी में ही रेशेशन नहीं है ….ज़रा पढ़िए खुशिओं का रेसेशनसमझाती हो जब तुम , दादी लगती होलोक कथाओं सी तुम सादी लगती हो खुशिओं के इस रेसेशन में तुम जानाँ हीरा मोती सोना चांदी लगती हो | स्वप्न मेरे..पर दिगंबर नासवा जी लाये हैं एक बहुत बड़ा सच…… झूठनिम्न पंक्तियाँ रचना के बीच से ली गयीं हैं…..आप पूरी रचना पढ़िए पता है …? सच की दहलीज़ पर झूठ का शोर सच को बहरा कर देता है वीभत्स सच को कोई देखना नही चाहता सच आँखें फेर लेता है |
डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी उच्चारण » पर प्रस्तुत कर रहे हैं स्वरावाली और व्यंजनावाली….यदि आपने नहीं पढ़ीं हैं तो एक बार ज़रूर पढ़िए…..यहाँ उनकी ट वर्ग की व्यंजनावाली प्रस्तुत कर रही हूँ…. “व्यञ्जनावली-टवर्ग”सारी रचनाएँ ऐसी हैं कि अगर ये बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल की जाएँ तो बच्चों को बहुत लाभ हो सकता है .."ट" "ट" से टहनी और टमाटर! अंग्रेजी भाषा है टर-टर! हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है, सम्बोधन में होता आदर! “व्यञ्जनावली-तवर्ग” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) |
बाल-संसार में श्याम सुन्दर अग्रवाल की कविताछुट्टियां हुईं स्कूल मेंछुट्टियां हुईं स्कूल में, लग गई अपनी मौज । शर्बत पीते, कुलफी खाते, मिलते नए-नए भोज । | सरस पायस पर रावेंद्र जी का बालगीतपेड़ लगाकर भूल न जानाआओ, हम सब पेड़ लगाएँ, अपनी धरती ख़ूब सजाएँ! पेड़ लगाकर भूल न जाना, इनको पानी रोज़ पिलाना! | नन्हे सुमन पर शास्त्री जी का एक बाल गीत… "कल मुझको तुम भूल न जाना!"आमों के बागों में जाकर,आम टोकरी भरकर लाया!घर के लोगों ने जी भरकर, चूस-चूस कर इनको खाया!! |
कविता की फुहारों के साथ खत्म करती हूँ आज की चर्चा…आशा है आपको मेरा प्रयास पसंद आएगा ….लेकिन इसकी सार्थकता आपके हाथों में है….उम्मीद करती हूँ कि आप इन रचनाओं तक अवश्य पहुंचेंगे… अगले सप्ताह फिर मिलेंगे इसी दिन इसी मंच पर एक नयी साप्ताहिक काव्य चर्चा के साथ….तब तक दीजिए विदा….नमस्कार |
चहकती-महकती सुन्दर और रंगीन काव्यमयी चर्चा के लिए संगीता स्वरूप जी को बधाई!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा चर्चा..आनन्द आ गया. बधाई.
जवाब देंहटाएंये पिटारा तो बडा करामाती निकला...
जवाब देंहटाएंसभी कवि जनो और कविय्त्रीओ को हार्दिक बधाई ....
बहुत सुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंकाव्यचर्चा का यह अंक अनुपम है ...काई नायब लिंक मिले ...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...!!
काव्यचर्चा का यह अंक अनुपम है ...काई नायब लिंक मिले ...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...!!
bahut sundar charcha..
जवाब देंहटाएंaabhaar...
संगीता जी आभार , मेरी पोस्ट के उल्लेख का तथा एक बहुत अच्छी चर्चा का | बहुत कुछ अच्छा पढ़ने को मिला जिससे मैं चूक गया था |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन! जोरदार प्रस्तुति! लाजवाब मंच!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा अपका यह प्रयास .. बधाई स्वीकारें !!
जवाब देंहटाएंsach me pitara hi hai pure sargam ka.
जवाब देंहटाएंbahut sashakt charcha.badhayi.
sangeeta ji aapka bahur aabhar meri rachna post karne ke liye saath hi saath meri hausla afzaaye karne ka bhi.meri rachnaaye mere man ki vyaakulta se upajati hai. ek baar phir aapka shukriya....
जवाब देंहटाएंयह चर्चा भी बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएं--
"सरस पायस" पर प्रकाशित मेरी रचना को प्रचारित करने के लिए आभारी हूँ!
बहुत अच्छे अच्छे लिंक्स हैं..
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा सब पढ़ कर :)
कुछ तो हम पहले ही पढ़ चुके थे :)
Sadar Namaskaar,
जवाब देंहटाएंBahut sundar charcha...bahut acche acche links mile
Bahut bahut Dhanywaad.
kuch padhe kuch anodhe har tarah ki rachnayen mili ... kuch links tak bhi gaya ... aur padh kar achha bhi laga..bahut achhi charcha,,,
जवाब देंहटाएंजबरदस्त और उम्दा चर्चा संगीता जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंबढिया है।
जवाब देंहटाएं--------
करे कोई, भरे कोई?
हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
आपकी चर्चा विषय पर आधारित रहती है इसलिए बेहतर बन पड़ती है। आज भी आपने अच्छे लिक्स दिए।
जवाब देंहटाएंअरे वाह क्या पिटारा खोला है ..एक से एक ख़ूबसूरत नगीने मिले ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा है.
संगीता जी , विभिन्न फूलों की खुशबू से चर्चामंच महकता नजर आया । मैं ये मानती हूँ कि जैसा हम महसूस करते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व बन जाता है , और हमारे अहसास कितनी ही बार हमें छल जाते हैं , यही बात कही है संवेदनाएं छलती हैं में ।
जवाब देंहटाएंये चर्चा मंच कम से कम जिन्हें हम नहीं पढ़ पाते हैं , उन्हें आप पढ़ा देती हैं, बहुत ही कुशलता से संजोया है ये गुलदस्ता जिसमें बेला , चमेली, मोगरा गुलाब सभी तो महक रहे हैं. खुशबू तो खुशबू है उसको अलग कैसे किया जा सकता है. बहुत बढ़िया चर्चा कि प्रस्तुति. हम जैसे के लिए तो एक वरदान ही है.
जवाब देंहटाएंआपका पिटारा तो अनगिनत कविताओं से भरा है...यहाँ एक कड़ी दिखती है जो और कई कड़ियों से
जवाब देंहटाएंजोड़ती जाती है... कई नए लिंक पढ़ने को मिले...हमें भी उन कड़ियों से जोड़ने का आभार....
बहुत सुन्दर काव्यमयी चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा ... बहुत से नये लिंक दिए हैं आपने ... शुक्रिया मेरी रचना को शामिल करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंwww.samaysankalp.blogspot.com को आपने उल्लेखनीय समझा, इसके लिए आपका आभार; और इस उपक्रम में कविता की एक बड़ी दुनिया से आपने परिचय कराया, उसके लिए शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर इतनी अच्छी चर्चा के लिए बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंबधाई |आपनें मुझे इस में शामिल किया इसके लिए साधुवाद |
आशा
संगीता जी को श्रेष्ठ चर्चा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पर आपने बताया कि चर्चा मंच में मेरी रचना शामिल हुई, पढ़कर हीं बहुत प्रसन्नता हुई| चर्चा मंच पर बहुत अच्छी अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिली| आपका तहेदिल से आभार और शुक्रिया| आपका स्नेह मिलता रहे, कामना रहेगी|
shukria sangeeta ji , mere blog par
जवाब देंहटाएंtippani karne ke alava charcha manch mein bhi meri gazal shamil karne ke liye ,yahan aakar aur bhi acchi rachnayein padhne ko milin ,iske liye bahut bahut dhanayvad.