नमस्कार मित्रों! मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हाज़िर हू रविवार की चर्चा के साथ।
शह और मातमेरी भावनायें... पर रश्मि प्रभा जी की शह और मात एक कटु यथार्थ का चित्रण है। अब तो बुद्धिजीवी की परिभाषा भी बिल्कुल बदल गई संस्कारों की परिधि से बाहर बड़ों को नगण्य बना देना अंग्रेजी शान बन गई .... अंग्रेजों की शह और मात हमारी किस्मत बन गई ! रश्मि जी आपकी कविताएं गहरे विचारों से परिपूर्ण होती हैं। यह कविता भी अपवाद नहीं है। |
दिन वह जल्दी आने वाला है
मेरा पक्ष पर नीरज कुमार झा की प्रस्तुति आधुनिकता के साथ साथ सांस्कृतिक परंपरा की झलक है। दिन वह जल्दी आने वाला है जब न होंगी सीमाएँ और न होंगी सेनाएँ टूटेंगी दीवारें मानवता के बीच दरकिनार होंगे लोग वे सधते हैं हित जिनके मानवता के बटे होने से नहीं होगा उद्योग सबसे बड़ा हत्या और नरसंहार के औजारों का |
जो दिख रहा है वह सब कला है
street light पर RAVINDRA SWAPNIL PRAJAPATI कहते हैं बीमार शेर जिस तरह से शिकार नहीं कर पाता उसी तरह से बीमार कलाकार कलाकृति की रचना नहीं कर पाता। कला के लिए जीवन को बीमारी से बचाना जरूरी है। जीवन की बीमारियां हैं चापलूसी, रिश्वत, बेईमान होना एक कलाकार तभी बनता है जब वह तप्त हो। उसके पास एक आग हो। वरना वह साधारण होकर बुझ जाता है। साथ ही प्रस्तुत कर रहे हैं प्रख्यात चित्रकार अखिलेश से रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति की बातचीत । |
“कौन राक्षस चाट रहा?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक प्रस्तुत कर रहे हैं राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति जो पुरानी रूढ़ियों से मुक्ति चाहता है। आज देश में उथल-पुथल क्यों, क्यों हैं भारतवासी आरत? कहाँ खो गया रामराज्य, और गाँधी के सपनों का भारत? आओ मिलकर आज विचारें, कैसी यह मजबूरी है? शान्ति वाटिका के सुमनों के, उर में कैसी दूरी है? |
बिछिलाहटें..अज़दक पर Pramod Singh कहते हैं कि खाली तीन दिन की बारिश हुई है, एतने में कंप्लीट रामलीला का शो देख लीजिए! मतलब सोमारु का मंझलका छौंड़ा था, बछिया को जाने कौन उंगली कर रहा था कि डंडी, बछिया का मम्मी देखत रही, देखत रही, फिर छिनकके अइसा दौड़ी है छौंड़वा का पीछे, कि अंगना का बिछिलाहट में फिसिल के पिछलका गोड़ तोड़वा ली है! केस नम्मर टू: सगीना महतो के खपरे पर तैयार, बतिया जेतनो लवकी था, सब मालूम नहीं केकरा घर का चोर-पाल्टी रहा, बरसाती का अंधारा में जाने कब लुकाके कवन जतन कब खपरा पे चढ़ा, खपरे का टोटल लवकी खजाना खलास. नंगा दिन-दहाड़े का डकैती! अब केस नम्मर थीरी पूछिये? डेढ़ हफ्ता से जोत्सना दीदी जीवन-लीला खतम कै लेंगी का बात सोच-सोच के अपना एक जगह अस्थिर बैठना-ठाड़ा होना तक मोहाल किये थीं, फिर आखिरकार जब तै कर लिया कि शनिच्चर की रात फैसले की रात होगी तो बियफे से जो बिजली कड़कना चालू हुआ और मुसलाधारी का खपड़ा और टीना और दुआरी और अंगना में भहरना, जोत्सना दीदी सुसैडी का आइडिया पिछवाड़ा का दीवार का पीछे- प्राइबेट कपड़ा का माफिक- फिलहाल के लिए फेंक आई हैं. अइसा कीचर-कादो का बीच अंगना का जमीन पर अपने को जीवन-सून्य देखने का खयाल जोत्सना दीदी को बेहद अश्लील लगता है! |
अपना अपना आनंदमनोज पर मनोज कुमार का एक यात्रा वृतांत पढिए। कोलकाता की उमस भरी तपती-जलती दोपहरी को बड़े साहब का संदेश मिला कि इस बार का राजभाषा सम्मेलन हम देहरादून में करेंगे। कोलकाता के 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान और लगभग 100 प्रतिशत की आर्द्रता वाले माहौल में भी लगा कि कोई शीतल बयार आकर छूकर चली गई हो। तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार हम पिछले सप्ताहांत (11-12 जून) देहरादून में सम्मेलन कर आए। गर्मियों में देहरादून जाना एक सुखद अनुभव रहा। देहरादून उत्तराखण्ड की राजधानी है। हम मैदानी इलाकों में रहने वालों के लिए पहाड़ी स्थल तक की यात्रा एवं स्थान परिवर्तन से बहुत राहत मिलती है। कईयों के मुंह से देहरादून की जलवायु की प्रशंसा सुन रखी थी। गर्मियों में भी वहां हल्की सी ठंड रहती है। लू तो कभी चलती ही नहीं। हरे भरे जंगल चारों ओर फैले हैं। फिर, मसूरी की सैर का आनंद ही अलग है। |
पिता का योगदानज़िन्दगी पर वन्दना जी कहती हैं एक बच्चे के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में एक पिता का योगदान माँ से किसी भी तरह कम नहीं होता.माँ तो वात्सल्य की मूर्ति होती है जहाँ अपने बच्चे के लिए प्रेम ही प्रेम होता है मगर पिता उसकी भूमिका यदि माँ से बढ़कर नहीं तो माँ से कम भी नहीं होती. ज़िन्दगी की कठिन से कठिन परिस्थिति में भी पिता अपना धैर्य नहीं खोता और उसकी यही शक्ति बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है. बच्चों के जीवन के छोटे -बड़े उतार -चढ़ावों में पिता चट्टान की तरह खड़ा हो जाता है और अपने बच्चों पर आँच भी नहीं आने देता. बेशक ऊपर से कितना भी कठोर क्यूँ ना दिखे पिता का व्यक्तित्व मगर ह्रदय में उसके जो प्यार होता है अपने बच्चों के लिए वो शायद दूसरा समझ ही नहीं सकता. |
बेमिसाल दास्ताँ!:2(antim)पढिए simte lamhen पर जिसे प्रस्तुत कर रही हैं kshama यह भित्ती चित्र केवल कढाई से बनाया है... जब कभी इस चित्र को या डाल पे बैठे,या फिर आसमान में उड़ने वाले परिन्दोको देखती हूँ ,तो मुझे वो लोग याद आ जाते हैं,जिनके बारे में लिखने जा रही हूँ. |
ख़्वाबों की लच्छी !सजी हैमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति पर अनिल कान्त के सौजन्य से। कहते हैं उसकी आँखों में ढेर सारे ख्वाब थे । सुनहरे सपनीले ख्वाब । रंग बिरंगे खिखिलाते फूलों की तरह, आसमान में जगमगाते सितारों की तरह । हर ख्वाब अपने आप में बेशकीमती था । बिल्कुल सौ फ़ीसदी अनमोल । मैं उसके ख़्वाबों को देखकर-सुनकर मुस्कुरा कर रह जाता था । इतना मासूम भी भला कोई होता है । जानता हूँ वो इस दुनिया का हिस्सा होते हुए भी दुनिया से अलग थी । उसका भोलापन, उसकी मासूमियत और उसकी सादगी सौ प्रतिशत शुद्धता लिये हुए थे । मुझे उससे प्यार हो गया था । "आई एम इन लव" जब मैंने ये शब्द उससे कहे थे तो उसने पास आकर के मेरे गालों को चूमा था और हौले से कान में कहा था "मी टू" । मैंने उसे ऐसे देखा था जैसे खुली आँखों से कोई ख्वाब देखा हो । वो मुझे देखकर मुस्कुरा गयी थी और दूजे ही पल मैं । मैंने उसे गले लगा लिया था । उसका और मेरा प्यार के इजहार का तरीका भी कितना अलग था, नहीं हमारा । मेघा के साथ सब कुछ हमारा सा ही लगता था । |
हमारी साझा संस्कृति में दलित सम्मानज्ञान दर्पण पर Ratan Singh Shekhawat एक सारगर्भित आलेख के द्वारा बताते हैं कि दलित उत्पीडन की ख़बरें अक्सर अख़बारों में सुर्खियाँ बनती है फिल्मो में भी अक्सर दिखाया जाता रहा है कि एक गांव का ठाकुर कैसे गांव के दलितों का उत्पीडन कर शोषण करता है | राजनेता भी अपने चुनावी भाषणों में दलितों को उन पर होने वाला या पूर्व में हुआ कथित उत्पीड़न याद दिलाते रहते है पर सब जगह ऐसा नहीं है गांवों में उच्च जातियों के लोग पहले भी दलितों को सम्मान के साथ संबोधित करते थे और अब भी करते है साथ ही अपने बच्चों को भी संस्कारों में अपने से बड़ी उम्र के लोगों को सम्मान देना सिखाते है चाहे बड़ी उम्र का व्यक्ति दलित हो या उच्च जाति का | |
मुआवजे से ज्यादा जरूरी दंड.शकुनाखर पर hem pandey एक गंभीर मसले पर अपने विचार रखते हुए कहते हैं कि एक बार फिर भोपाल गैस त्रासदी राजनीति और |
लो क सं घ र्ष !: अपसंस्कृतिकबीरा खडा़ बाज़ार में पर Suman प्रस्तुत कर रहे हैं सुनील दत्ता की रचना। |
इन्डली .....ब्लॉग वाणी ....काव्य मंजूषा पर 'अदा' नए ब्लोग्गर्स से कुछ कहना चाहती हैं और कहती हैं कि....बिना मांगे तो माँ भी दूध नहीं देती बच्चों को...उन्हें भी ख़ुद को प्रस्तुत करना चाहिए...संकोच नहीं करना चाहिए....शालीनता से अपनी उपस्थिति को महसूस कराना चाहिए.....याद रखिये किसी को अपने ब्लॉग तक ले जाना और उसे की बोर्ड पर उंगलियाँ फिरवा कर कमेन्ट देने के लिए प्रेरित करना आसन नहीं है....लेकिन आप लोग कर सकते हैं....अगर आप को स्वयं पर विश्वास है तो..आप यह काम कर सकते हैं.... |
लो बबुआ देव बाबा बनारस पहूंच गयेमेरी दुनिया मेरा जहां.... पर देव कुमार झा बता रहे हैं कि लो बबुआ देव बाबा बनारस पहूंच गये। वईसे ट्रेन की यात्रा हमेशा से ही अलग अनुभव लेकर आती है और इस बार की यात्रा भी कोई अपवाद नहीं थी। ममता जी की असीम अनुकम्पा से देव बाबा पूरे चौबीस घंटे की देरी से मुम्बई में ही फ़ंसे थे और यात्रा इस बार स्लीपर की थी सो अपनें मनोभावों को अपनी पिछली पोस्ट से जाहिर भी कर चुका था। तो यह लीजिए दास्तानें रेल.... या कहिए की दास्तानें स्लीपर क्लास.... ट्रेन का नाम.... दादर बनारस एक्सप्रेस. |
इन्तहाShayari, ghazals, nazms पर पढ़िए PASHA की एक बेहतरीन ग़ज़ल यू ना मिल मुझ से दुश्मन हो जैसे, |
किताबें और करियरके ऊपर प्रकाश डाला गया हैभाषा,शिक्षा और रोज़गार पर शिक्षामित्र द्वारा। बताते हैं कि भारत में प्रकाशन उद्योग काफी फैला हुआ है। सदियों पुराने इस फील्ड में प्रकाशक अब आधुनिक तौर-तरीके अपना रहे हैं, फिर बात चाहे प्रिंटिंग की हो, मार्केटिंग की या डिलिवरी की। जाहिर है, प्रकाशन जगत करियर की भी अच्छी संभावनाएं सहेजे हुए है। |
रोज रोज कीबातों का एक आलसी का चिठ्ठा पढिए गिरिजेश राव के पोस्ट पर। कहते हैं हमारे क्युबिकल्स के बीच एक मौन खिंचा है। कीबोर्ड की किटकिटाहटें, ग्राहकों से की गई बातें और इंटरकॉम की सौम्य कुनमुनाहटें रूटीन हैं, 'मौन' में शामिल हैं। कितनी बार लगा कि मैं चुप तुमसे कुछ कह जाता हूँ। कितनी बार अनुभव हुआ कि तुमने मुझे सुना है। कितनी बार लगा कि मॉनिटर को बेध तुम्हारी दृष्टि मेरा एक्स रे बिम्ब सोख रही है !पर नज़र मिलते ही वही चिर परिचित औपचारिक मुद्रा और रुक्षता हमें धारण कर कह उठते हैं," यू सी ! बड़ा प्रेसर है। मुझे तो यही कहना है तुम्हारी वज़ह से टार्गेट पूरे नहीं हुए।" हममें होड़ है - कौन इसे पहले कह जाता है। क्या इससे कुछ अन्तर पड़ता है? |
पंडिताइन की पूड़ियाँखाइए मनोभूमि पर Manish के साथ। अगर आप ग्रामीण पृष्ठभूमि से ज़रा भी जुड़े हैं, तो आपको यह पता ही होगा कि पेट में ज़रा सी कुलबुलाहट होते ही कैसे बड़े काका या पड़ोस के चाचा, लोटे या फिर इंजन आयल के पुराने डिब्बे में पानी भर कर दूर खेतों की तरफ एक लम्बी दौड़ लगाते हैं…… इस दौड़ के दौरान, रास्ते में अगर कोई सलामी ठोक दे या फिर अभिवादन के लिए चरण छूने का प्रयास करे तो खीझ भरा एक विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है – “भाग यहाँ से……” |
सर्वोपरिछोटी कविताओं द्वारा बहुत ही सारगर्भित बात पढना हो तो आप Apanatva पर Apanatva जी की कविताएं पढा कीजिए। आज भी वो ऐसा ही प्रस्तुत कर रही हैं। जिनके लिये |
हँसी का कीमतजानना हो तो चलिए चला बिहारी ब्लॉगर बनने पर और चला बिहारी ब्लॉगर बनने से सुनिए क्या कहते हैं वो? कहते हैं हम त रेडियो के जमाना में पैदा हुए, इसलिए रेडियो पर नाटक करते थे, बचपने से. आकासबानी पटना के तरफ से हर साल होने वाला इस्टेज प्रोग्राम में, पहिला बार आठ साल का उमर में इस्टेज पर नाटक करने का मौका मिला. नाटक बच्चा लोग का था, इसलिए हमरा मुख्य रोल था. साथ में थे स्व. प्यारे मोहन सहाय (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सुरू के बैच के इस्नातक, सई परांजपे से सीनियर, 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' अऊर परकास झा के फिल्म 'दामुल' अऊर 'मृत्युदण्ड' में भी काम किए) अऊर सिराज दानापुरी. प्यारे चचा के बारे में फिर कभी, आज का बात सिराज चचा के बारे में है. |
भूली बिसरी ग़ज़लSamvedana Ke Swar में सम्वेदना के स्वर सुना रहे हैं ग़ज़ल। बताते हैं कि कुछ साल पहले, जनाब तुफ़ैल चतुर्वेदी ने उनकी त्रैमासिक पत्रिका ‘लफ्ज़’ में दो लाईनें दीं और उन्हें 'ऊला' या 'सानी' की तरह इस्तेमाल करते हुए, दो अलग-अलग ग़ज़ल लिखने का एक मुक़ाबला रखा. मैंने भी लिखी थी दो गज़लें और आदतन भेजी नहीं. भूल भी गया लिखकर. आज आप लोगों के सामने रख रहा हूँ. ग़ज़ल का मक़्ता नया लिखा है, जो ‘मेरी’ ग़ज़ल का ‘हमारा’ एडिशन है: नज़रे-आतिश मेरा मकान भी था, तब लगा सर पे आसमान भी था. सारी दुनिया ने ज़ख्म मुझको दिए, इनमें शामिल तुम्हारा नाम भी था. मुफलिसी में जो बेच डाले थे, उनमें यादों का कुछ सामान भी था. |
चर्चा चर्चा में मुझे क्रिकेट मैच देखने का समय ही नहीं मिला। कितना रोमांचक था यह मैच जब एक गेंद रहते हरभजन के छक्के से भारत पाकिस्तान को हरा कर मैच जीता। इसने मेरे चेहरे पर खुशी के रंग बिखेर दिए। आपने तो पूरा मैच देखा ही होगा। तो इस हंसी-खुशी और प्रसन्नता के साथ आज की चर्चा को यहीं विराम देता हूं, राजभाषा हिंदी पर प्रस्तुत विचार से आज का विचारराजभाषा हिंदी पर मनोज कुमार द्वारा प्रस्तुत मुस्कानहोठों पर मुस्कान हर मुश्किल कार्य को आसान कर देती है। |
बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा चर्चा !
जवाब देंहटाएंकुछ नए ब्लोग्स की रचनाये पढ़ने को मिलीं |चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रही|बधाई
आशा
बहुत ही बढिया चर्चा………………काफ़ी अच्छे लिंक्स मिले……आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
"सरस पायस" पर हुई "सरस चर्चा" में
इन्हें देख मन गाने लगता!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंHamesh bahut achhe links mil jate hain!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंजिन्दा लोगों की तलाश!
जवाब देंहटाएंमर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=
सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
मनभावन चर्चा मनोज जी!
जवाब देंहटाएंआभार्!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति....!
जवाब देंहटाएंचर्चा करने में बहुत मेहनत करते हैं आप !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रही आज की चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
चर्चा का कलेवर बहुत बढ़िया रहा!
सुन्दर रही आज की चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
चर्चा का कलेवर बहुत बढ़िया रहा!
bahut achchhi lagi ye charcha
जवाब देंहटाएंचर्चामंच में भाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग को स्थान देने के लिए आभार। कृपया सहयोग बनाए रखा जाए ताकि और बढिया करने की प्रेरणा मिले।
जवाब देंहटाएंbahut mahnat se sajaya he is charcha munch ko.
जवाब देंहटाएंबहुत मनभाई आपकी चर्चा आभार
जवाब देंहटाएंpashaji ki gazal bahut umda thi, nayi link acchi lagi. kaafi badhiyaa gazle aur dard ki sarahanaa payii bahot khoob.
जवाब देंहटाएंcharcha ki vistaar ke badhai