लीजिए हाज़िर हूँ एक बार फिर चर्चा मंच पर साप्ताहिक काव्य मंच ले कर….आज इस काव्य मंजूषा में चर्चित और कम चर्चित ब्लोगर्स को एक साथ लायी हूँ….साप्ताहिक चर्चा होने के कारण थोड़ी लंबी होती है चर्चा…लिंक्स भी ज्यादा होते हैं…बस एक गुज़ारिश है कि जो आपने न पढ़ीं हों वहाँ आप जाइयेगा ज़रूर…..आशा है मेरी पसंद आपको भी पसंद आएगी ….संगीता |
नीरज......इस पर आज नीरजजी अपने गुरुदेव प्राण शर्मा जी की एक बेहतरीन कविता लाये हैं.... मैंने तेरा नाम लिखा है...जीवन में एक बार कभी जो वक्त मिले तो देखने जाना ताजमहल के एक पत्थर पर मैंने तेरा नाम लिखा है |
मौन के खाली घर में... ओम आर्य »स्पर्श लौट आते हैं हथेली मेंजहाँ प्रेम नहीं है वहाँ से स्पर्श लौट आते हैं....पढ़िए ओम जी के जज़्बात इस कविता के माध्यम से | एक नीड़ ख्वाबों,ख्यालों और ख्वाहिशों का … पर पढ़िए प्रिया की रचना ..विरोधाभास में कैसे दिल की बात लिखी है..याद बिल्कुल नहीं आते मुझे तुमसोचते होगे के याद आते हो मुझे तुम गलत हो तुम हमेशा की तरह | शलभ जी बता रहे हैं कि जीवन को विस्तार देने के लिए क्या करना चाहिए ….पढ़िए उनकी यह रचना "खुले मन से सबसे मिलना चाहिये... |
RAJ RANJANएक नए ब्लोगर हैं...इनकी ये रचना कहीं ना कहीं दिल को छूती है...PAPA……इस रचना में ये अपने पिता का तर्पण नहीं करना चाहते…पर क्यों? ये जानने के लिए ज़रूर पढियेगा ..हांलांकि थोड़ी अनगढ़ रचना है …फिर भी .. | YOGESH KUMAR KAPILमौत ,तू नयी ज़िन्दगी हैयोगेश जी मौत में नयी जिंदगी की बात कर रहे हैं…कैसे रख रहे हैं अपनी बात ये तो आप पढ़ कर ही जान पायेंगे…. |
फ़लसफा : ज़िंदगी पर धर्मेन्द्र जी लाये हैं पांच कविताएँ .यह बताने के लिए कि आखिर कविता होती क्या है…आप भी जानिए ……. पाँच कविताएँ ..एक यहाँ पढ़ा रही हूँ..बाकी इनके ब्लॉग पर पढ़िए …१:कविताएँ हैं विस्मयकारी दवाएं , जो हमें जिंदा रखती हैं जब हम जीने के ख्वाहिशमंद हैं ; और जब हम मरना चाहते हैं तब भी जिंदा रखेगी , सुनाकर मृत्यु के कुतूहलपूर्ण विवरण | | गीत कलश में राकेश खंडेलवाल जीदेखिये कि कल्पना में क्या क्या बुन रहे हैं..कल्पनातीतेवह अधर के कोर पर अटकी हुई सी मुस्कुराहट वह नयन में एक चंचल भाव पलकें खोलता सा भाल का वह बिन्दु जिसमे सैकड़ों तारे समाहित कंठ का स्वर शब्द में ला राग मधुरिम घोलता सा |
कुछ मेरी कलम से रंजू भाटिया जी याद कर रही हैं कुछ ..यादों के पलजीवन की रेल पेल मेंहर संघर्ष को झेलते हर सुख दुःख को सहते कभी मैंने चाही नही इनसे मुक्ति पर कभी बैठे बैठे यूं ही अचानक जब भी याद आई तुम्हारी तब यह मन आज भी भीगने सा लगता है …… |
निर्झर'नीर!ये ना जाने खेल खेल में क्या ढूँढ रहे हैं??? आप भी जानिये…खोयी थी खेल-खेल में.......ख़ुद को ढूँढ़ता हूँ या खुदी को ढूँढ़ता हूँकैसी ये बेखुदी है मै किस को ढूँढ़ता हूँ ! कस्तूरी हिरन जैसे मैं भी दौड़ रहा हूँ खुद से बाहर जाके ख़ुदा को ढूँढ़ता हूँ ! | अनुभूतियाँपर प्रताप नारायण सिंह लाये हैं..जंगल की हवा अब तो ….पुर-दर्द निदा और बू-ए-ग़ोश्त उभरती है जंगल की हवा अब तो शहरों में भी चलती है आतिश से मुफ़लिसी की, जल जाए लकीरे-बख़्त भूनी हुई मछली भी, हाथों से फिसलती है | नीरव » पर डा० राजेश नीरव लाये हैं बरखा गीत…गर्मी में बरखा की बात हो तो कितनी सुखद अनुभूति देती है…..ये कविता भी ठंडी फुहार जैसी ही है..दूत बनाकर बादलों को मैं लिखूँ पाती कोई मेघमय आकाश सारा आच्छन्न है हरीतिमा पर हौले से आकर गालों पर टकराती है बूँद कोई |
भीगी ग़ज़ल …पर श्रद्धा जी परेशान हैं कि उनके चाहने वाले नहीं मिल रहे…अरे …अरे कुछ और मत सोचिये ..शायद इनका इशारा पाठकों से है….एक खूबसूरत ग़ज़ल आप तक लायी हूँ……आखिर हमारे चाहने वाले कहाँ गए…रोशन थे आँखों में, वो उजाले कहाँ गएआखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए रिश्तों पे देख, पड़ गया अफवाहों का असर वाबस्तगी के सारे हवाले कहाँ गए | शरद कोकास …बात कर रहे हैं पसीने की…जी ये गर्मी से निकला पसीना नहीं है…..खुद ही स्पष्ट कर दिया है कि यह कविता उस पसीने के बारे में नहीं है …उन्माद के दौरानहथेलियों से उपजा पसीना यह नहीं उन बादलों का पसीना है जो भरसक कोशिश करते हैं हमारे खेतों में बरसने की |
श्याम सखा श्याम जी अपने - कथा-कविता-पर कुछ इस ढंग से आपबीती कह रहे हैं…औरत अबला रही होगी कभीअपने अपने हस्तिनापुर बंधे थे राजा दशरथ अपने वचन से इसलिए दु:ख पाए या फिर शापगzस्त थे श्रवण के अंधे माता-पिता के श्राप से | गीत मेरे ..... पर वाणी जी अपने दोस्त की बेफाई से थोडा क्षुब्ध हैं…अपने जज्बातों को कैसे बयां कर रही हैं…आप खुद पढ़िए…दोस्त बनकर गले लगाता है वही…..दोस्त बनकर गले लगाता है वहीपीठ पर खंजर भी लगाता है वही.... | मनोज………परमनोज जी की चिन्ता बहुत जायज़ है….पर्यावरण का हाल यह है कि पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ भी सूख रही हैं….इसी का सजीव चित्रण किया है इस रचना में…ग्रीष्म और पर्वताँचल की नदियाँगर्मी की ऋतु आते ही पर्वताँचल की अधिकांश नदियाँ छोड़ देती हैं, कल-कल, छल-छल……. |
जज़्बात परवर्माजी की क्षणिकाएं पढ़िए.. बहुत संवेदनशील रचनाएँ मिलीं पढने को ……पत्नी रोज़ सामानों की लिस्ट पकड़ा देती है | अंधड़ …पर गोदियाल जी लोगों की फितरत को शब्द देते हुए कह रहे हैं …यूं भी बावफा होते है लोगनिसार राहे वफ़ा करके जाना कि राहे जफा होते है लोग, सच में, हमें मालूम न था कि यूं भी खफा होते है लोग ! |
गिरीश पंकज पर गिरीश जी बता रहे हैं कि…..कैसे..नून तेल याद रहा..इस कविता के माध्यम से यही कहने का प्रयास है कि आज इंसान केवल अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचता है…बहुत खूबसूरत शब्दों में इस व्यथा को उकेरा है… गीत./नून, तेल, लकड़ी के पीछे...नून, तेल, लकड़ी के पीछे एक उम्र बेकार हो गयी. कैसे करता पार इसे मैं, स्वारथ की दीवार हो गयी. …….. |
धर्मेन्द्र केशरी का ब्लॉग है धर्मछाया….आज हर इंसान डरा हुआ है….आइये देखें कि इनको क्यों डर लग रहा है…डर लगता है.कभी तुम्हें खोने से डरता थाआज पाने से डर लगता है.. तन्हा होने से डरता था अब महफिल से डर लगता है.. कभी सब कुछ कह जाता था तुम्हें | pragyan-vigyan यह ब्लॉग डा० जे० पी० तिवारी जी का है….इनका वहाँ कोई प्रोफाइल नहीं है…लेकिन यदि हिंदी भाषा का आप सौंदर्य पढ़ना चाहते हैं तो एक बार ज़रूर जाइयेगा . समय क्या है?वर्तमान , भूत और भविष्य काल के सन्दर्भ में ये रचना विचारणीय हैसमय क्या है? काल का प्रवाह या जिन्दगी का प्रश्नपत्र? जिसमे करना पड़ता है समाधान द्वंद्वों का. | ज़िन्दगी » पर वंदनाजी एक बड़ी रूमानी सी नज़्म ले कर आई हैं…. यूँ आवाज़ ना दिया करोसुनोयूँ आवाज़ ना दिया करो दिल की बढती धड़कन आँखों की शोखियाँ कपोलों पर उभरती हया की लाली कंपकंपाते अधर तेरे प्यार की चुगली कर जाते हैं |
पाखी की दुनियापाखी के सपनों में परी आई है उसने परी पर कविता बनायीं हैसपने में आई परीपाखी ने सपने में देखा इक प्यारी सी परी आसमां से उतरी वो हाथों में लिए छड़ी | सरस पायस पर डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की बालकविता का आनंद लीजिएमन ख़ुशियों से फूलाउमस-भरा गरमी का मौसम, तन से बहे पसीना! कड़ी धूप में कैसे खेलूँ, इसने सुख है छीना!! | नाइस » पर पढ़िए “सूरज-चन्दा:सूरज चाचा , सूरज चाचाजैसे ही तुम आते हो नयी सुबह की नयी किरण को अपने संग में लाते हो | |
और चर्चा के अंत में उच्चारण » पर पढ़िए माँ सरस्वती की स्तुति…जिनके आशीर्वाद से काव्य का सृजन होता है …. “रचनाएँ रचवाती हो!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” रोज-रोज सपनों में आकर, छवि अपनी दिखलाती हो! शब्दों का भण्डार दिखाकर, रचनाएँ रचवाती हो!! |
अब लेती हूँ आप सबसे विदा …फिर हाज़िर होऊँगी अगले सप्ताह नए लिंक्स और नयी कविताओं के साथ……ये सफर कैसा रहा ? बताइयेगा ज़रूर.. |
दोस्त, बहुत खूबसूरत रंगों से और विविध कविताओ से सजी आपकी ये चर्चा पाठक को खुद-ब-खुद ही पढने के लिए आकर्षित कर रही है. हर लिंक को पढने की उत्सुकता अपने आप ही जाग जाती है. लगता है बहुत मेहनत की है आपने. इतनी अच्छी चर्चा का रूप मैंने आज तक नहीं देखा.
जवाब देंहटाएंबधाई.
अच्छे लिंक और अच्छी वर्चा के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह..संगीता जी!
जवाब देंहटाएंरंग-बिरंगी मनभावन और सुन्दर चर्चा के लिए
आपको बहुत-बहुत बधाई!
Ish Behtareen kaavy charchaa ke liye sadhuwad, sangeetaa ji.
जवाब देंहटाएंbahut hi ramneey charcha...
जवाब देंहटाएंsundar ati sundar...
badhai..
मैं अपने कुछ रचनाकारों से क्षमा चाहूंगी ...जिनकी कविताएँ मैंने इस लिंक में ली थीं लेकिन कुछ तकनिकी खराबी के कारण या मेरे अज्ञानता के कारण यहाँ प्रदर्शित नहीं हो पाई हैं....
जवाब देंहटाएंमैं उन सभी से खम चाहती हूँ....
राज्रंजन जी ,
योगेश कुमार कपिल ,
ओम आर्य जी ,
प्रिया
और रूप चन्द्र शास्री जी ,
बहुत ढूँढ कर ये लिंक लायी थी पर .....
आशा है आप सब क्षमा करेंगे
सुंदर साप्ताहिक चर्चा...बढ़िया चिट्ठा चर्चा के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंमैंने किसी तरह से उन लिंक्स को जोडने का प्रयास किया है...असुविधा के लिए माफ़ी चाहती हूँ
जवाब देंहटाएंआईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
अच्छा प्रयास
जवाब देंहटाएंआदरनिये संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय से आभार ..... आपने मेरी कविता को एक मंच प्रदान किया है....
आपका ही,
शलभ गुप्ता
vaah...? ek sath itani pyari-pyari kavitaon ke link...? aakhir charchakaar kaun hai, bahut-bahut badhai...aur aabhar bhi...
जवाब देंहटाएंकित्ती प्यारी चर्चा. एक साथ ढेर सारे लिंक्स...वाह, बच्चों की भी बातें..और हाँ, पाखी की दुनिया भी..आभार !!
जवाब देंहटाएं_____________
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'पाखी की दुनिया' में ' अंडमान में आया भूकंप'
badhiya charcha
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है... सुन्दर सी रंग बिरंगी ,एकदम साफ़ सुधरी सी चर्चा है बेहतरीन लिंक्स के साथ
जवाब देंहटाएंsangeeta ji
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat harcha ki hai..........bahut mehnat ki hai...........har link padhne ko majboor karta hai.
अच्छे लिंक और अच्छी वर्चा के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह संगीता जी ..... बहुत लाजवाब चर्चा की है ... अच्छे लिंक दिए हैं आपने ...
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय अभियान ।
जवाब देंहटाएंSangeeta ji se pata chala ki hamari post charchamanch pe aayi h to charchamanch k bare m pata chala ......baut khoobsurat manch hai .
जवाब देंहटाएंsangeeta ji or charcha manch dono ko aabhar .
बहुत सुन्दर चर्चा किया है आपने! काफी सारे लिंक मिले और आपने बहुत मेहनत किए है इस चर्चा को शानदार रूप से प्रस्तुत करने के लिए!
जवाब देंहटाएंहम भी चर्चा पर कभी कभी पहुँच जाते हैं, अच्छा चुनाव करके रखा है. इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंachha prayas hai mere liye faaydemand, kyunki meri dilchaspi khas taur pe kavita men hai....
जवाब देंहटाएंaur shukriya mujhe bhi is list men shamil karne ke liye
waah, bahut saare badhiyaa links mile...bahut bahut shukriya :)
जवाब देंहटाएंjaise tinka tinka jod kar ke ek ghosala banta hai waise hi apne in behtreen posts ko ikattha karke gagar me sagar bharne ka kam kiya hai......
जवाब देंहटाएंdhanywad
आपकी पैनी नज़रें ऐसे ऐसे अनमोल मोती ढूंढ़ कर लाती हैं की क्या कहें, अभी तक दो मोतियों की रचनाएँ ही पढ़ पाया हूँ धर्मेन्द्र और राज रंजन की, कमाल का चयन है!
जवाब देंहटाएंआप इसी तरह नए लेखकों को प्रोत्साहन देती रहें, शुभकामना!
जवाब देंहटाएं.बढ़िया चिट्ठा चर्चा के लिए .. बधाई
जवाब देंहटाएंआभार अच्छी और चुनी हुई रचनाएँ पढ़वाने का।
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