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मंगलवार, जून 22, 2010

साप्ताहिक काव्य मंच – ५ ( संगीता स्वरुप ) चर्चा मंच - 192

नमस्कार , आज के इस काव्य मंच के खजाने को भरने के लिए बहुत मुश्किल से हीरे . मोती , माणिक   खोज पायी हूँ…और इस खोज में बहुत बड़ी मदद की है शिखा वार्ष्णेय ने  .. यहाँ यदि उसका आभार व्यक्त ना करूँ तो मेरी गुस्ताखी होगी…तीन चार दिन व्यस्त होने के कारण मैं लिंक्स नहीं देख पा रही थी ,उन दिनों के लिंक्स शिखा ने ही देख कर मुझे भेजे थे..यदि यह मदद नहीं मिलती तो ब्लोगवाणी बंद होने की वजह से मुझे बहुत परेशानी होती….तो  शिखा, मेरा आभार स्वीकार करें …लीजिए अब सारा खजाना आपके सन्मुख है….तो लीजिए प्रारंभ करती हूँ आज की चर्चा ज़िंदगी के फलसफे से …….
डा०  रूपचन्द्र शास्त्री जी की रचना  उच्चारण »  पर पढ़िए   
“काँटो की पहरेदारी में, ही गुलाब खिलते हैं”


आशा और निराशा के क्षण,
पग-पग पर मिलते हैं।
काँटों की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं

साहित्य सुगंध

माधव नागदा जी राजस्थान के मेरा फोटोप्रतिष्ठित  रचनाकार  हैं…उनकी एक प्रस्तुति यहाँ पढ़ें

चिड़िया
चिड़िया
पहचानती है अपना दुश्मन
चाहे वह
बिल्ली हो या काला भुजंग .
My Photoप्रेम रस   पर शाह नवाज़ एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं कि  उनके कहने पे हम  ना जाने क्या क्या कर लेते…
उनके कहने पे हम, शोलों में भी रह लेते हैं।
फूलों की बात क्या, काँटों को भी सह लेते हैं।


उसने देखी कहाँ अभी तिश्नगी मेरी,
उसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।
My Photoराजकुमार  सोनी जी अपने बिगुल पर लाये हैं एक बहुत संवेदनशील रचना…. माँ के आँचल में बंधे नोट की कहानी  मुडा-तुडा नोट  के रूप में ..

एक मुडा-तुडा
पांच का नोट
शायद आपके किसी
काम न आए
लेकिन मेरे लिए
इसकी अहमियत
थोड़ी ज्यादा है
Kuchh tazatareen-2दीपक मशाल ..जितनी अच्छी लघुकथा लिखते हैं उतनी ही बढ़िया काव्य रचना भी करते हैं..

मसि-कागद पर    कह रहे हैं कि

मेरी किस्मत कहाँ ऐसी ?
कोई इक खूबसूरत, गुनगुनाता गीत बन जाऊँ,
मेरी किस्मत कहाँ ऐसी, कि तेरा मीत बन जाऊँ.

तेरे न मुस्कुराने से, यहाँ खामोश है महफ़िल,
मेरी वीरान है फितरत, मैं कैसे प्रीत बन जाऊँ.
 
उम्मेद गोठवाल  की My Photo
अभिव्यक्ति » पर  पढ़िए एक सशक्त रचना    इन्तजार

तुम!
अहं से भरे-
अनन्त आकांक्षा से युक्त,
समेट लेना चाहते हो सब,
परिधि में।
वो-
अनुरोध, आवश्यकता, अधिकार,
से तुम्हें देखती है-
My Photoफिरदौस खान से कौन परिचित नहीं है…..उम्दा पत्रकार हैं …इनके लेख जागरूकता पैदा करने वाले होते हैं …आज इनको आपके सामने एक बेहतरीन शायरा के रूप में प्रस्तुत करने जा रही हूँ…बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है…    फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में. इस ग़ज़ल के बिना शायद आज का काव्य मंच अधूरा रहता ..

चांदनी रात में कुछ भीगे ख्यालों की तरह
मैंने चाहा है तुम्हें दिन के उजालों की तरह
साथ तेरे जो गुज़ारे थे कभी कुछ लम्हें
मेरी यादों में चमकते हैं मशालों की तरह
आज  मैं आपको ले चल रही हूँ एक  वृद्धग्राम  में …. जहाँ वृद्धों के लिए और उनको समझने के लिए भी बहुत कुछ है…  हरमिंदर सिंह जी की रचना पढ़िए
कभी मोम पिघला था यहां
लौ जल रही हौले-हौले,
बाती धधक रही हौले-हौले,
पिघला मोम जैसे बहता पानी,
दर्शा रहा एक लय,

शब्द और अर्थ पर   अतुल प्रकाश  त्रिवेदी बता रहे हैं  

एक पूरा शहर   की  दास्ताँ….भोपाल गैस त्रासदी पर लिखी एक सशक्त रचना ..
हवा में रिसी गैस  
रातों रात एक शहर को  शमशान कर गई .

वर्षा   और मैं की समरूपता बताती हुई   घुघूतीबासूती 
एक बहुत खूबसूरत रचना लायी हैं..

बन्दिनी वर्षा, बन्दिनी मैं..

वर्षा तू भी तो मजबूर है
इस शहर में,
मुझ सी
तू भी कैदी है!
जैसे मैं इतनी खिड़कियों
बाल्कनियों के होने पर भी,
हूँ सलाखों के पीछे
My Photoजी० के० अवधिया जी अपने धान के देश में लिख रहे हैं कि   पर ऐसे पोस्ट को पढ़ता ही कौन है   पर देखिये ना हमने तो पढ़ी और सबको भी पढाने ले आये हैं …
राष्ट्रभाषा के उद्‍गार
(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
मैं राष्ट्रभाषा हूँ -
इसी देश की राष्ट्रभाषा, भारत की राष्ट्रभाषा
संविधान-जनित, सीमित संविधान में,
अड़तिस वर्षों से रौंदी एक निराशा
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।
तुलसी, सूर, कबीर, जायसी,
मीरा के भजनों की भाषा,
भारत की संस्कृति का स्पन्दन,
मैं इसी देश की राष्ट्रभाषा।
मेरा फोटोएम०  वर्मा जी शब्दों के बहुत बड़े चित्रकार हैं .
शब्दों में कैसा चमत्कार करते हैं ..आइये आप भी देखिये
   TRUTH .... (भावनाओं का प्रवाह) » पर  उनकी दो क्षणिकाओं में ..मुद्दतों से न आँख लगी
आँसू न हो
किसी किसान की आँख में
अबकी बरस,
मेरा फोटोएक प्रयास »   पर  वंदना गुप्ता जी प्रेम की दिव्यता  के बारे में बता रही हैं…बहुत खूबसूरती से उन्होंने लिखा है     दिव्य प्रेम   …….

प्रेम प्रतिकार 
नहीं मांगता 
तुझसे तेरे
होने का हिसाब 
नहीं मांगता
My Photoकवि योगेन्द्र मौदगिल »  को  पढ़िए     जिन्दगी की ज़ंग का अभ्यास तो जाता रहा  ……मानवीय रिश्तों पर गहरी चोट  की  है …

उन्मुक्तता बढ़ती गयी, उल्लास तो जाता रहा.
बेचारगी के दौर में विश्वास तो जाता रहा.
खोखलापन हो गया हावी बदन पर दोस्तों,
जिन्दगी की ज़ंग का अभ्यास तो जाता रहा.
सरोकार »  पर अरुण सी० रॉय अपनी उन भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं जब उनकी पत्नि ने उनके घर में पहला कदम रखा था .

तुम्हारे कदम

पड़े जो
तुम्हारे कदम
मेरे आँगन में
फुदुकने लगी
सैकड़ो गौरैया और
कागा करने लगा
शोर
PRAKAMYA »  पर आप भी ज़रा भीगिये 

चाँद की बारिश   में….जिसे बरसा रही हैं आकांक्षा गर्ग


            कल फिर रात देर तलक मद्धिम बरसात होती रही ,
मानो तन्हा उदास चाँद टिप टिप पिघल रहा हो.. !
धीमे धीमे टपक रहे हो चाँद के आंसू फलक से ,
रिमझिम रिमझिम बरसती रही चाँदनी टूट-टूट कर..!
अभिव्यक्ति » पर  हिमानी अभिव्यक्त कर रही हैं

दोस्ती

मेरी तकलीफ की तफसीर में
न जा ए दोस्त
तू नही समझेगा
मेरी तक़दीर की तासीर
जिसने हर तबस्सुम के एवज  में
मुझे ताजिर दी है
ये दोष महज लकीरों का नही
गुनेहगार हूँ बराबरी की मैं भी
मेरा फोटोरश्मि प्रभा जी की  मेरी भावनायें...   पर जानिए कि हमारी किस्मत कैसे बन गयी है ..शह और मात 
समय पहले भी भागता था
पर अब विज्ञान के करिश्मे ने
उसके पैरों में
स्केट्स पहना दिए हैं
सधी चाल ना हो
तो गिरने की पूरी संभावना
दुर्घटना आम बात हो चली है ..
मेरा फोटोरचना दीक्षित  जी  रचना रवीन्द्र »  पर एक अनोखा आशीर्वाद दे रही हैं… अपनी आशीष  कविता में…

मैं एक माँ हूँ ...
पर मैं तुम्हे हर माँ की तरह
ये आशीष नहीं दूंगी,
कि सूरज बनो, सूरज की तरह चमको,
My Photoराणा प्रताप सिंह    ब्रह्माण्ड   पर दिखा रहे हैं उसके मुखड़े पे जो   एक बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ..

            उसके मुखड़े पे जो तमआनियत का सेहरा है
हम ना समझे कि वही रंजो ग़म का पहरा है
मेरा फोटो
 रावेंद्र  कुमार रवि जी की रचना    फूला फूल कमल का  पढ़िए http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/kamal/ravendrakumar_ravi.htm
फूला फूल कमल का
मधुर फुहारों ने कुछ
गाकर हमें सुनाया!
फूला फूल कमल का
मन में ख़ुशियाँ लाया!
My Photoसुशीला पुरी  छंदविहीन हो कर आरोहों अवरोहों से परे  कैसे थिरक रही हैं…पढ़िए
थिरकती हूँ मै अहर्निश

एक धुन है 
जो लिपिहीन होकर 
गूँजती रहती है निरंतर 
अपनी व्याप्ति मे विलक्षण
उसकी लय पर 
थिरकती हूँ मै अहर्निश
 My PhotoKUCHH KAHE  यह ब्लॉग है वंदना जी का ….और इन्होने कृष्ण को ही बता दिया कि तुम बस कान्हा ही होते….   कान्हा तुम कान्हा ही होते
मात यशोदा पिता नन्द से
यदि तुमने पाए न होते
गिरधर वंशीधर नट नागर
बोलो तुम क्या कान्हा होते
विश्व प्रेम की धारा राधा
यमुना रूप न होती
पीपल छैयां मनहर गैया
ब्रजराज वो पावन न होती
My Photoकुछ कहानियाँ,कुछ नज्में  के माध्यम से सोनल रस्तोगी जी कह रही हैं कि
साँसों को सिसकने नहीं देते
अपने दर्द को
आँखों में उभरने नहीं देते
उभर भी आये तो
गालों पे बिखरने नहीं देते
 My Photoदेवेन्द्र जी की    बेचैन आत्मा   किस   बोझ   को
उठाये हुए है…ज़रा आप भी देखिये -

अलसुबह
दरवाजे पर दस्तक हुई .
देखा..
सामने यमराज खड़ा है !
मारे डर के घिघ्घी बंध गई
बोला..
अभी तो मैं जवान हूँ
कवि सम्मेलनों का नया-नया पहलवान हूँ
 \सीमा गुप्ता जी  यहाँ की भीषण गर्मी में भी बात कर रही हैं   ""नर्म लिहाफ"  की ….लेकिन कहीं ना कहीं तो ठण्ड भी होगी ही….बहुत ही खूबसूरत शीर्षक है कविता का और कविता उससे भी ज्यादा खूबसूरत …

सियाह रात का एक कतरा जब
आँखों के बेचैन दरिया की
कशमश से उलझने लगा
बस वही एक शख्स अचानक
मेरे सिराहने पे मुझसे आ के मिला
मेरा फोटोआज वंदना जी की दो रचनाएँ इस मंच पर शोभायमान हैं….दोनों ही बहुत सुन्दर भावों से सजी हुई…अलग अलग दृष्टिकोण रखे हुए….   ज़ख्म…जो फूलों ने दिये »  पर पढ़ें  जीवन का यथार्थ

दीया और लौ

दीया 
आस का 
विश्वास का
प्रेरणा का
प्रतीक बन
आशाओं का
संचार करता 
अदा जी की     काव्य मंजूषा    से एक नायाब मोती ले कर आई हूँ…..  कविता छोटी सी है लेकिन काव्य सौंदर्य और शब्दों का सुन्दर समायोजन है ----   
प्रार्थना उर अंकुर हुआ. 
मन मयूर मुदित हुआ
हृदयंगम कोई सुर हुआ
My Photoचर्चा के अंत में अब  हमारा वक्त भी थम रहा है  और नीरज   जी भी कह
रहे हैं कि
     थम सा गया है वक्त   …. 
होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में
चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में
लीजिए आज की चर्चा हुई समाप्त….मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने इस काव्य मंच को सार्थकता  प्रदान की है….आशा है आपको यह प्रयास भी पसंद आएगा….आपके सुझावों का इंतज़ार है………..फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नए लोगों के साथ नयी रचनाओं को लेकर….
नमस्कार

29 टिप्‍पणियां:

  1. आज की चर्चा सुन्दर होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण लिंक भी अपने में संजोए है!

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  2. बहुत सार्थक रही आज की भी चर्चा...आपकी मेहनत नज़र आ रही हैं...चुनिन्दा प्रविष्टियों को आपने बड़े मनोयोग से शामिल किया है...
    आपका आभार...

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  3. बिना ब्लोगवाणी के तो वास्तव में काफी मेहनत करनी पड़ी होगी आपको और शिखा जी को. बहुत धन्यवाद.

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  4. अधिकाँश पोस्ट पढ़ी और टिप्पणी करने का प्रयास किया ..चर्चा सार्थक है. मेरी कविता को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार.

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  5. आपका हार्दिक आभार ,'चर्चा मंच' पर मुझे लाने के लिए ।

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  6. बेहद खुबसूरत चर्चा और इतनी सारी सुन्दर कविताओं का समावेश......
    आभार मेरे लेखन को यहाँ स्थान प्रदान करने का....
    regards

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  7. संगीता जी ने तो
    बहुत कम समय में ही
    बहुत बढ़िया चर्चा करना सीखकर
    हम सब चर्चाकारों को पीछे छोड़ दिया!
    --
    यह सब देखकर हार्दिक प्रसन्नता होती है!

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  8. आपकी पसंद बहुत अच्छी है |अब मैं चर्चा मंच नियमित रूप से पडती हूँ |
    आशा

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  9. ये चर्चा मंच का प्रयास अच्छा है और प्रस्तुति भी बहुत सुन्दर !

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  10. achhi achhi charcha hai .... kai sare links pe gaya... jo mujhse padhne chut gaye the apne favs me..unpe... ye charcha manch ka yahi fayda hai .. :)

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  11. इतना खूबसूरत चर्चामंच सजाने और
    मेरी कविता को इस चर्चामंच में स्थान देने के लिए
    आपका हार्दिक आभार संगीता जी ....!

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  12. हमेशा की तरह आज की चर्चा भी बहुत ही सुन्दर ……………काफ़ी नयी रचनायें जो रह गयीं थीं पढने को मिली……………आभार्।

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  13. आपकी चर्चा का अंदाज ही कुछ अलग है, कहाँ कहाँ तक डुबकी लगाती हैं और मोती चुन कर हमें पेश कर देती हैं. बहुत अच्छी अच्छी कविताएँ पढ़ने को मिलती हैं औरलिंक्स भी. इस काम के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

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  14. संगीता जी चर्चा मंच पर मुझ जैसे नए ब्लॉगर को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार ! ये दूसरा मौका है जब मुझे इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान मिला... आज यहाँ प्रस्तुत सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं ! सादर !

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  15. बहुत ही अच्छी चर्चा ...इतने सारे अच्छे लिंक मिल गए..शुक्रिया

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  16. संगीता जी अच्छी रही हीरे, मोती, माणिक की खोज और असली व बेशकीमती भी लगी. अब बेशकीमती चीज है तो मेहनत तो लगेगी ही. नए लिंक्स भी मिले.और हाँ मेरी पोस्ट को अपने चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार

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  17. आपने मेरी पोस्ट को शामिल किया उसके लिए तो धन्यवाद दे ही रहा हूं लेकिन इस बात के लिए तो आपको मानना ही पड़ेगा कि आपने बेहद संवेदनशीलता के साथ रचनाओं का चयन किया है। हर रचना को प्रस्तुत करने के लिए आपके द्वारा की गई मेहनत भी साफ दिखाई देती है।
    आपके द्वारा की गई चर्चा के बाद मेरे पोस्ट पर कुछ लोगों ने टिप्पणी भी छोड़ी है। एक चर्चा शायद तभी सार्थक है जब लोग किसी माध्यम से पहुंचे और अपनी राय जाहिर करें... भले ही वह राय कैसी भी क्यों न हो।
    सहमति-असहमति तो हर जगह कायम रहनी ही है।
    आपकी चर्चा यह साबित करती है कि आप जो काम भी करेंगी उसे पूरे मनोयोग से ही करेगी. यह एक अच्छा गुण है। इस गुण के साथ ही शायद वत्ता का जुड़ाव हो जाता है जो आगे चलकर गुणवत्ता में तब्दील हो जाता है।
    आपको बधाई...

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  18. सभी पाठकों का आभार...

    रावेंद्र जी ,

    प्रशंसा के लिए शुक्रिया....पर मैं अभी भी सीखने की प्रक्रिया से ही गुज़र रही हूँ..

    राजकुमार सोनी जी ,
    ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया...सच यही है की जब यहाँ देख कर बहुत से लोग उन ब्लोग्स तक पहुंचाते हैं जो लिंक्स यहाँ दिए जाते हैं तो यह प्रयास सार्थक लगता है....मैं उन सभी का आभार प्रकट करती हूँ जिन्होंने यहाँ दिए लिंक्स पढ़े और अपनी टिप्पणी भी दी....इसी तरह चर्चा करने वालों का मनोबल बढ़ाये रहें...शुक्रिया

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  19. दी आप भी न ..चने के झाड पर चढाने का कोई मौका नहीं छोड़तीं :)मैंने तो बस खोज कर रचनाएँ पढ़ीं :) और लिंक सहेज लिए बाकी तो सारी मेहनत आपकी ही है जो इतनी रोचकता से चर्चा बनाती हैं .
    बहुत सुन्दर.

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  20. हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर चर्चा!
    आभार्!

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  21. बहुत ही बेहतरीन चर्चा मंच. मेरी ग़ज़ल शामिल करने पर बहुत-बहुत धन्यवाद!

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  22. kya kahun, hamesha ki tarah jordaar links.

    der se aaya, maafi chahunga.

    Aaj din bahut vyast hai

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  23. आदरणीय संगीताजी,मेरी कविता 'चिड़िया' चर्चा मंच में सम्मिलित करने के लिए आभार.

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