नमस्कार मित्रों! आपको पता है, आज विश्व पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है, इसके बिना हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं। हम निरोगी रहें, स्वस्थ रहें, अच्छी वायु मिले॥ इन सबके लिए पर्यावरण का शुद्ध होना बहुत जरुरी है। यदि पर्यावरण को हम स्वच्छ नहीं रखेंगे और उसे नुकसान पहुंचाएंगे तो वह भी हमसे नाराज हो जायेगा। यह सब बातें नन्हीं अक्षिता (पाखी) को समझ में आता है और वो हमें समझा रही हैं कि “आइये आज हम लोग संकल्प उठाते हैं की प्रकृति को कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगे. अपने अस-पास के पेड़-पौधों और फूलों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. पानी बर्बाद नहीं करेंगे और जीव-जंतुओं को भी परेशान नहीं करेंगे. समुद्र व नदी में कूड़ा व पालीथीन भी नहीं डालेंगे. यदि हर कोई ऐसे सोचेगा तो फिर प्रकृति और पर्यावरण भी खुश होंगे.” | नुक्कड़ पर प्रस्तुत कर रहे हैं डा.सुभाष राय। एक सवाल है आखिर आजादी के मायने क्या हैं? चूंकि हम एक आजाद मुल्क में रहते हैं, इसलिए आम तौर पर लोग समझते हैं कि उनकी आजादी असीमित है। वे कुछ भी बोल सकते हैं, कुछ भी लिख सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं। जो लोग कुछ भी कर सकने की आजादी को अपना अधिकार मानते हैं, वे अक्सर अपराधी हो जाते हैं। क्या कोई किसी को गाली देने के लिए आजाद है, किसी की पिटाई करने के लिए आजाद है? बलात्कार, हत्या करने के लिए आजाद है? नहीं, आजादी की सार्थकता उसकी सीमा से ही तय होती है। असीमित आजादी अत्याचार, दमन और जुल्म की जमीन तैयार करती है। | सीनियर - जूनियर एसोसिएशन ... या छीछा-लेदर !!! कडुवा सच पर 'उदय' के विचार हैं कि लेखन क्षेत्र में कोई उम्र नहीं होती ... कोई छोटा-बडा नहीं होता ... लेखन के भाव महत्वपूर्ण व छोटे-बडे होते हैं .... ये और बात है कि हम भारतीय संस्कृति के अंग हैं इसलिये उम्र को महत्व देते रहे हैं और शायद आगे भी देते रहें ..... जब एक पाठक आपके लेखन को पढता है तो वह भाव व विषय को तबज्जो देता है उस समय उसके मन में यह भाव संभवत: नहीं रहते होंगे कि लेखक की उम्र क्या होगी ....
साथ ही यह अपील भी कर रहे हैं “ ... मेरा सभी ब्लागर साथियों से आग्रह है कि अमर्यादित, उट-पुटांग, बे-फ़िजूल तथा बिना सिर-पैर का लेखन यदि लिख रहे हैं तो लिखो ... पर किसी की भावनाएं व मान-मर्यदा आहत न हो .... रही बात एसोसिएशन की तो आधार जितना मजबूत होगा ... उस पर इमारत भी उतनी ही बुलंद खडी होगी .... एसोसिएशन के मुद्दे पे जो हो रहा है ... खींच-तान, आरोप-प्रत्यारोप, छीछा-लेदर .... क्यों, किसलिये .... भाई लोग क्यों छीछा-लेदर कराने पे तुले हो !!!” | छींटें और बौछारें पर Raviratlami जी बता रहे हैं कि खबर वैसे है तो अविश्वसनीय-सी, मगर बेहद मज़ेदार है और सत्य है. गूगल वैसे भी किसी भी खाते को संदेहास्पद मानकर, उपयोगकर्ता को बिना किसी पूर्व सूचना टिकाए, कभी भी बन्द कर सकता है. हाल ही में अमित अग्रवाल (डिजिटल इंस्परेशन) के गूगल खाते को बिना किसी पूर्व सूचना के, संदेहास्पद मानकर बन्द कर दिया था। | उमड़त घुमड़त विचार पर सूर्यकान्त गुप्ता फ़र्माते हैं सुबह सुबह उठकर दौडाता हूँ नजर, अपने घर की चार दीवारी के भीतर सजाये हुए हरे भरे बगीचे की ओर अरे! यहाँ तो मुरझा गये हैं पेड़, हरी हरी दूब सूखी घास हो गई है. पानी नहीं डाला है,दो दिनों से बगीचे में. भूख की तो ज्वाला शांत होनी ही चाहिए किन्तु प्रकृति से खिलवाड़ कर नहीं. कल कारखाने तीव्र गति से खुल रहे हैं. शासन से आदेश होता है, प्रदूषण नियंत्रक यंत्र अवश्य लगाए जाएँ. |
सफ़ेद घर पर सतीश पंचम की पर्स्तुति। क्या कभी आपका कोई चोरी हुआ सामान वापस चोर ने लाकर रख दिया है ? कुछ भी….चोरी हुआ सामान जैसे…. मोबाईल, घडी, उस्तरा, छेनी, हथौडी……कुछ भी ? क्या कहा ? संभावना ही नहीं इस बात की……हां बात आपकी भी सही है। भला कोई चोर……. चोरी का समान लौटा दे तो वह चोर कैसे कहलाए। चोरी करना ही उसकी यूएसपी है। इस यूएसपी के साथ हर पेशे में कुछ न कुछ इंडिकेटिव तत्व जुडा रहता है। इंडिकेटिव तत्व से तात्पर्य है जैसे कि, नाई के पेशे में शेविंग करते हुए बातें करते रहना, हलवाई की दुकान में किसी मोटे आदमी का गल्ले पर बैठना , किसी योगी के कक्ष में पद्मासन मुद्रा चित्र लगे होना, डॉक्टर के कमरे में शरीर विज्ञान को दर्शाती मांस पेशियों का चित्र लगे होना वगैरह वगैरह। | राहुल पंडित कहते हैं हम अपनी जिन्दगी में जाने-अनजाने कुछ ऐसी गलतियाँ कर देते हैं जो हमारे पूरे जीवन क्रम को प्रभावित करती हैं. मै भी अपनी जिन्दगी की ३ बड़ी गलतियाँ आज सबके सामने शेयर करने जा रहा हूँ शायद वो गलतियाँ नहीं हुई होती तो मै आज कुछ और ही होता। | कृष्ण कुमार यादव की प्रस्तुति साहित्य शिल्पी पर। मानव सभ्यता के आरंभ से ही प्रकृति के आगोश में पला और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सचेत रहा। पर जैसे-जैसे विकास के सोपानों को मानव पार करता गया, प्रकृति का दोहन व पर्यावरण से खिलवाड़ रोजमर्रा की चीज हो गई। ऐसे में आज समग्र विश्व में पर्यावरण चर्चा व चिंता का विषय बना हुआ है। इसके प्रति चेतना जागृत करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में हर वर्ष 5 जून को ''विश्व पर्यावरण दिवस'' का आयोजन वर्ष 1972 से आरम्भ किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण के प्रति राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक जागरूकता लाते हुए सभी को इसके प्रति सचेत व शिक्षित करना एवं पर्यावरण-संरक्षण के प्रति प्रेरित करना है। | हिन्दी साहित्य मंच पर संतोष कुमार "प्यासा" कहते हैं कि हर क्षण हर पल इस स्रष्टि में कुछ न कुछ होता रहता है ! "समय" इक पल भी नहीं ठहरता ! समय का चक्र निरंतर घूमता रहता है ! जब मै इस लेख को लिख रहा हूँ, मुझे मै और मेरे विचार ही दिख रहे है ! ऐसा प्रतीत होता है, जैसे की कुछ हो ही नहीं रहा ! हवा शांत है ! सरसों के पीले खेत इस भांति सीधे खड़े है, जैसे किसी ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया हो ! चिड़ियों की चहचहाहट, प्रात: कालीन समय और ओस की बूंदे, बहुत भली लग रहीं हैं ! सूर्य खुद को बादलों के बीच इस भांति छुपा रहा है, जैसे कोई लज्जावान स्त्री पर पुरुष को देख कर अपना मुंह आँचल में छुपा लेती है ! कोहरे को देख कर, बादलों के प्रथ्वी पर उतर आने का भ्रम हो रहा है ! दिग दिगंत तक शांति और सन्नाटा फैला हुआ है ! एक ऐसा दुर्लभ अनुभव हो रहा है, की अब मेरे विचार और मेरी कलम के सिवा कुछ है ही नहीं ! | पा.ना. सुब्रमणियन की प्रस्तुति। आलेख: लता वेंकटेश आकाशवाणी, चेन्नई केंद्र में कार्यरत चेन्नई में ही जन्मी, पली और पढ़ी विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष “चेन्नई का मौसम कैसा होता है ?” अगर ऐसा कोई प्रश्न किसी चेन्नई वासी से पूछा जाए तो वह माजाक में यही कहेगा – “गर्मी, बहुत गर्मी, बहुत ही ज्यादा गर्मी” लगभग कई वर्षों से यहाँ वर्षा ऋतु केवल नाम मात्र के लिए रह गयी है. जून के महीने में दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण केरल और मुंबई में बारिश के शुरू होने की खबर पाते ही चेन्नई में लोग आतुर होने लगते हैं. रेलवे स्टेशन या बस के अड्डे पर अक्सर कुछ ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी - “भैय्या केरल में सही समय पर मानसून ब्रेक हो गयी है. इस महीने के अंत तक यहाँ भी बारिश हो ही जायेगी” | संस्कृति सेतु / Samskriti Setu by समवेत स्वर/Samvet Swar पर कहानी श्रृंखला – 3 के तहत पढिए पंजाबी कहानी जिसके रचयिता हैं दुविधा ० दलीप कौर अनुवाद – किया है नीलम शर्मा ‘अंशु’ ने। वह सोच रही थी आज मैं पिता जी को सब कुछ बता ही दूंगी फिर उनसे माफी मांग लूंगी परंतु जब उसके पिता सामने होते तो उसके मुंह से एक शब्द भी न निकलता। कई बार उसने सब कुछ बता देने का पक्का निश्चय किया परंतु बताने का उसमें हौंसला न था क्योंकि उसे डर था कि कहीं पिताजी नाराज़ हो जाएं, शायद..... वह मन ही मन बहुत पछताती। बहुत दुखी होती परंतु अब क्या हो सकता था। दादी कब की गुज़र चुकी थी। उसके अंतिम शब्द, ‘जीती! अपने पिता को एक खत लिख दे बेटा ! अब मैं नहीं बचूंगी।’ रह-रह कर याद आते। उसे अपनी माँ पर बहुत ही गुस्सा आता, जो हमेशा उसकी दादी को डाँटती, ‘यह कहाँ मरेगी। सब को मार कर मरेगी, पता नहीं कौन से काले कौए खाकर पैदा हुई होगी। पहले भी कई बार काम छुड़वा कर बुलवा चुकी है। न मरती है न, चारपाई छोड़ती है।’ | M VERMA की प्रस्तुति TRUTH पर विश्व पर्यावरण दिवस पर बता रहे हैं कि पर्यावरण के प्रति न चेते तो यह स्थिति दूर नहीं है. … लतर ने अपना लंच और पानी का कैप्सूल पाकेट में डाला, होमवर्क का माईक्रोचिप कलाई पर चिपकाया और स्कूल जाने के लिये तैयार हो गयी. उसने माँ से कहा कि वह स्कूल जा रही है. माँ ने उसे उसका नया नवेला 20 किलो की क्षमता वाला आक्सीजन सीलिंडर उसके पीठ पर बाँधा. | सोचो-सोचो !! पी.सी.गोदियाल कहते हैं कि सिर्फ मुद्दा उठाने व चिंता व्यक्त कर देने भर से, क्या सोचते हो देश-तंत्र सुधर जाएगा ? जाने-अनजाने ये विनाश का बीज जो बो रहे है, क्या पौधा बनके हमारे ही समक्ष आयेगा? सोचो-सोचो ! लिख देने या फिर किसी एक के कहने भर से,क्या यह देश कभी सुधरने वाला है ? गोदियाल जी आपने बहुत अच्छे ढंग से समस्या के समाधान का सही रास्ता सुझाया। हम तो बस इतना कहेंगे कि बहुत से भगतसिंह व चंदरशेखर आज निकल चुके हैं घर से देश से गद्दारों का नमो निशान मिटाने को पर बस जरूरत है उनको पहचानकर उनका हौसला बढ़ाने की। | ताकि बच सके पर्यावरण फाइलों में दबी हुई है वृक्षारोपण की योजना और नदी की सफाई पर दिया जा रहा है मीडिया के समक्ष प्रेजेनटेशन वर्षा जल के संग्रहण पर बन रहे हैं नियम एवं अधिनियम बोर्ड रूम होटलों की लोबी मंत्रालयों और सचिवालयों के साथ साथ स्वयं सेवी संस्थाओं के कक्षों का तापमान बहुत बढ़ गया है और वातानुकूलित किया जा रहा है उन्हें ताकि बच सके पर्यावरण कम कटे वृक्ष जल संरक्षित हो नदियाँ दूषित ना हो बंद कमरों में बचाया जा रहा है पर्यावरण
| Sonal Rastogi की कहानी प्रस्तुत है कुछ कहानियां कुछ नज़्में पर। शाम से अब तक तीन डिब्बी सिगरेट फूंक चुका हूँ ,मुह का स्वाद इतना कडुवा हो चुका है की सामान्य में मुह का स्वाद कैसा होता है याद ही नहीं ...शायद यही कडवाहट मेरी रगों में भी घुल गई है, बिना झुंझलाए बात नहीं कर पाता हूँ, विधि दो तीन बार खाने को पूछ चुकी है। | हरिओम तिवारी" | मसि-कागद पर दीपक 'मशाल' ' की लघु कथा पढिए। 'कल तो किसी तरह बच गया लेकिन आज? आज कैसे बच पाऊँगा पिटाई से, जब घर पर पता चलेगा तो....'' ये सोच-सोच कर सिहरा जा रहा था वो. थोड़ी-थोड़ी देर बाद क्लास के बाहर टंगी घंटी को देखता जाता और फिर चपरासी को.. ठीक ऐसे जैसे जेठ की दोपहर में प्यास से व्याकुल कोई मेमना हाथ में पानी की बाल्टी लिए खड़े अपने मालिक को तके जा रहा हो कि कब वो बाल्टी करीब रखे और बेचारा जानवर अपनी प्यास बुझाये. उसका मन आज पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था जबकि क्लास में वो हमेशा अब्बल रहने वालों में से था. कुछ देर बाद जैसे ही चपरासी मध्यावकाश(इंटरवल) की घंटी बजाने के लिए आता दिखा तो वो खुशी से लगभग चीख उठा, ''इंटरवल्ल्ल्ल ............'' ''गौरव!!!!!!!!!!'' अंगरेजी वाले मास्टर जी ने डांट कर उसे चुप कराया. हाँ यही नाम था उसका. ये कहानी...दो पक्षों पर प्रकाश डालती है एक तो बाल सुलभ मन नई चीज़ों को देखकर लालायित होता है.....पर कई बार मजबूरी या मार का डर भी उस से चोरी करवा लेता है...और बच्चे चीज़ों को एक आवरण में कहना नहीं जानते सीधे -सीधे कह डालते हैं,इसलिए चोर का लेबल लगा दिया उस पर... हमेशा की तरह बहुत ही संवेदनशील कथ्य.. | नुक्कड़ पर शिवम् मिश्रा कहते हैं कि वैज्ञानिकों का कहना है कि हर कोई अपने स्तर से प्रयास करे, तो ग्लोबल वार्रि्मग के बढ़ते दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है | यहाँ दिए गए कुछ छोटी छोटी पर बेहद जरूरी बातों का अगर हम सब ख्याल रखे तो हम भी इस मुहीम में अपना योगदान कर सकते है ! | मनोज पर मनोज कुमार द्वारा प्रस्तुत गंगावतरण भाग-२ पढिए। (गंगावतरण की कथा :: भाग-१) श्रीमद भगवत में गंगावतरण की कथा है। प्राचीन काल की बात है। अयोध्या में इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर राज करते थे। वे बड़े ही प्रतापी, दयालु, धर्मात्मा और प्रजा हितैषी थे। सगर का शाब्दिक अर्थ है विष के साथ जल। हैहय वंश के कालजंघ ने सगर के पिता वाहु को एक संग्राम में पराजित कर दिया था। राज्य से हाथ धो चुके वाहु अग्नि और्व ऋषि के आश्रम चले गए। इसी समय वाहु के किसी दुश्मन ने उनकी पत्नी को विष खिला दिया। जब उन्हें जहर दिया गया तो वो गर्भवती थी। ऋषि और्व को जब यह पता चला तो उन्होंने अपने प्रयास से वाहु की पत्नी को विषमुक्त कर जान बचा ली। इस प्रकार भ्रूण की रक्षा हुई और समय पर सगर का जन्म हुंआ। विष को गरल कहते हैं। चूकिं बालक का जन्म गरल के साथ हुआ था इस लिए वह स + गर = सगर कहलाया। | कुमार राधारमण की सम्सामयिक प्रस्तुति। आम जनता को इससे कोई मतलब नहीं कि मेडिकल कालेजों का नियमन मानव संसाधन विकास मंत्रालय करे अथवा स्वास्थ्य मंत्रालय? उसके लिए महत्वपूर्ण यह है कि मेडिकल कालेज मानकों के हिसाब से चलें। मेडिकल शिक्षा को नियंत्रित करने को लेकर इन दोनों मंत्रालयों में खींचतान जारी रहना शुभ संकेत नहीं। प्रधानमंत्री को न केवल इस खींचतान पर रोक लगानी चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में वैसे मामले सामने न आएं जैसे मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया के अस्तित्व में रहते समय आए। | स्मार्ट इंडियन प्रस्तुत करते हुए कह रहे हैं सुनो कहानी: दो हाथ !!! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। आज हम लेकर आये हैं इस्मत चुगताई की एक सुन्दर, मार्मिक कथा "दो हाथ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 42 सेकंड है। सुनें और बतायें कि अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। | पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत है हरीश नारंग की एक कविता - वृक्ष की पुकार - यह कविता पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रथम पुरुस्कार से सम्मानित है. मैं सदा ही / निःस्वार्थ अर्पण करता रहा / अपना सर्वस्व तुम्हें / और ---- पल पल बिखेरता रहा हरियाली / तुम्हारे जीवन की हर पग पर / और ---- सँवारता रह इस धरा को / किसी सुहागिन की / मांग की तरह / परन्तु---- क्या हो गया है तुम्हें / किस कारण तुले हो / मेरे मूल को ही नष्ट करने पर / मैं तुमसे अपने जीवन की / भीख नहीं मांग रहा / मैं तो दुहाई दे रहा हूं / तुम्हारी आने वाली पीढ़ी की / क्या छोड़ोगे उसके लिए / घुटने के बल चलने को / तपती लू से दहकता आँगन ? / अथवा / क्रीड़ास्थल के नाम पर / अथाह रेतीले मैदान ? / अथवा / ऐसी दूषित वायु / जिसमें जीवन का संचार नहीं / संघर्ष की चुनौती हो ? / जब वह पीढ़ी चीख चीख कर / मांगेगी / जीवन का अधिकार / क्या तब / सुन सकोगे / उसकी वह / दर्द भरी चीत्कार ? / यदि नहीं --- तो आज / मेरी यह विनय सुनो / रोक दो इस विनाश को / क्योंकि यह मेरा नहीं / स्वयं तुम्हारा ही विनाश है ।।। | शब्द-शिखर पर आकांक्षा कह रही हैं विश्व पर्यावरण दिवस पर कि आप क्या करें *फूलों को तोड़कर उपहार में बुके देने की बजाय गमले में लगे पौधे भेंट किये जाएँ. * स्कूल में बच्चों को पुरस्कार के रूप में पौधे देकर, उनके अन्दर बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण का बोध कराया जाय. * जीवन के यादगार दिनों मसलन- जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगाँठ या अन्य किसी शुभ कार्य की स्मृतियों को सहेजने के लिए पौधे लगाकर उनका पोषण करें. *री-सायकलिंग द्वारा पानी की बर्बादी रोकें और टॉयलेट इत्यादि में इनका उपयोग करें. *पानी और बिजली का अपव्यय रोकें. *फ्लश का इस्तेमाल कम से कम करें. शानो-शौकत में बिजली की खपत को स्वत: रोकें. *सूखे वृक्षों को भी तभी काटा जाय, जब उनकी जगह कम से कम दो नए पौधे लगाने का प्रण लिया जाय. *अपनी वंशावली को सुरक्षित रखने हेतु ऐसे बगीचे तैयार किये जाएँ, जहाँ हर पीढ़ी द्वारा लगाये गए पौधे मौजूद हों. यह मजेदार भी होगा और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में एक नेक कदम भी. | डंडा लखनवी द्वारा प्रस्तुत हौसला करने का हो, क्या कर गुज़र जाते हैं लोग। बात रखने के लिए हँस- हँस के मर जाते हैं लोग।। हर मुसीबत में खड़े रहते थे वे चट्टान से, इस ज़रा सी चोट से अब तो बिखर जाते हैं लोग।। इक जु़बाँ और उस जुबाँ की बात का कुछ था वज़न, किस तरह अब बात से अपनी मुकर जाते हैं लोग।। कह दिया अपना जिसे, उसके सदा के हो गए, काम निकला,चल दिए, ऐसे अखर जाते हैं लोग।। सामने सब कुछ हुआ देखा मगर सब चुप रहे, वह इधर मारा गया लेकिन उधर जाते हैं लोग।। टूटता जाता है जीने का भरम ’राजेश’ का, आजकल अपने ही साये तक से डर जाते हैं लोग। | पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत की गई है मनोज पर वृक्ष हमारे जीवन संगी
/ वृक्षों के बिन प्रकृति अधूरी, / बिन वृक्षों के धरती नंगी। वृक्ष हमारी जीवन साँसें,/ वृक्ष हमारे जीवन संगी।। वरद हस्त हैं शाखें इनकी, धारें मिट्टी पाँव तले। ज्ञान ने खोलीं अपनी पलकें, इनकी शीतल छाँव तले।। | “व्यञ्जनावली-कवर्ग” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक की उच्चारण पर प्रस्तुति - व्यञ्जनावली-कवर्ग *"क"* *"क" से कलम हाथ में लेकर! * *लिख सकते हैं कमल-कबूतर!! * *"क" पहला व्यञ्जन हिन्दी का, * *भूल न जाना इसे मित्रवर!! * * * *"ख" * *"ख" से खम्बा और खलिहान! * *खेत जोतता श्रमिक किसा.. | |
पर्यावरण के विविध पक्षों को बहुत बेहतरीन तरीके से संकलित एवं संयोजित किया गया है... सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा के लिए मनोज कुमार जी का आभार!
जवाब देंहटाएंआईये जानें .... मन क्या है!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
wahwa...badiya charcha rahi...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा और उम्दा लिंक!
जवाब देंहटाएंEk aur vistrit aur sundar charchaa
जवाब देंहटाएंke liye shukriya Manoj ji.
aaj ki paryayvaran par prastuti bahut acchi lagi..vishesh roop se kavita 'vriksh ki pookar' lekin aaj itne saare Hyper Links kyun dikhaii de rahe hain..yah mere laptop ki baat hai ya sachmuch aisa hai..kyonki iski vajag se post prishth ki khoobsoorati mein fark aa gaya hai..
जवाब देंहटाएंfir bhi charcha bahut saarthak lagi aapki..
dhnywaad...
अदा जी!
जवाब देंहटाएंआपकी शिकायत वाजिब है!
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एक बार फिर से आज की
मनोज जी की चर्चा देख लीजिए!
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अब उन्होंने फॉर्मेट ठीक कर दिया है!
आज के समय की विशेष चिन्ता ..पर्यावरण पर विस्तृत चर्चा..... बहुत अच्छे लिंक्स मिले...उम्दा चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा और उम्दा लिंक!
जवाब देंहटाएंमनोज भाई साहब, चर्चा में शामिल कर सम्मानित करने का बहुत बहुत आभार और धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा चर्चा संयोजित की है आपने !
सच ब्लोग को भी हरा भरा कर दिया………………बहुत ही सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा...कित्ती सारी बातें..इसके लिए आपको ढेर सारा प्यार व आभार.
जवाब देंहटाएं'पाखी की दुनिया' की चर्चा के लिए विशेष आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
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