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मंगलवार, अक्तूबर 12, 2010

साप्ताहिक काव्य – मंच ---- 20 (चर्चा-मंच --- 304 )……….संगीता स्वरुप

नमस्कार , फिर हाज़िर हूँ आपके समक्ष मंगलवार को चर्चा-मंच पर काव्य-धारा बहाने के लिए ..इस काव्य धारा में डूबिये - उतरिये और सराबोर हो जाइये ..आज कल हर जगह नवरात्रि -पर्व मनाया जा रहा है …और कोलकता में तो यह इतनी धूम धाम से मनाया जाता है कि वहाँ के विभिन्न पंडाल देख कर दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है …हमारे ब्लॉग जगत में भी यह पर्व कुछ अनूठे तरीके से मनाया जा रहा है ….सबसे पहले आपको ले चलती हूँ उस ब्लॉग पर जहाँ इस त्योहार को एक नयी दिशा दी जा रही है …नौ दिन तक विभिन्न क्षेत्र की कवयित्रियों की कविताओं का अनुवाद आपके समक्ष रखा जा रहा है …..तो चलते हैं इस पर्व में शामिल होने शरद कोकास जी के ब्लॉग पर …
मेरा फोटोशरद कोकास जी नवरात्र का त्योहार एक अनूठे ढंग से  मना रहे हैं … नौ दिन तक चलने वाले इस त्योहार पर आप लाये हैं उन कवयित्रियों की रचनाएँ जो अलग अलग भाषाओँ में सृजन करती हैं …उनके हिंदी में अनुवाद कर रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है …इन रचनाओं को पढ़ आप भी नवरात्रि पर्व का आनंद लीजिए …चतुर्थ दिन की रचना की बानगी यहाँ देखिये …
मराठी कवयित्री - ज्योति लांजेवार की कविता
वेदना का प्रेम

मेरे असीम प्रेम का परिचय देने वाला
          यह निर्बन्ध नटखट पवन
          मुझसे कुछ कहे बगैर
          यदि तुम्हारी खिड़की तक आया
          उसे भेज देना सीधे
          उफनते सागर की ओर
My Photo अविनाश चन्द्र मेरी कलम से.....पर लाये हैं माँ को समर्पित एक ऐसी रचना जिसे आप सभी पढ़ना चाहेंगे

गतिमान द्रव्य.  

तपती दोपहरी की,
जलती रेत में.
सूखते कंठ और,
टूटते घुटने.
जब किसी,
रट्टू तोते की मानिंद.
होते हैं,
देने वाले जवाब.

.******************
हर शिरा रोम में,
परमपूज्य तुम,
आदि से अंत तक,
गतिमान हो जननी


इस रचना पर प्रतुल जी की टिप्पणी के बाद कुछ नहीं रह जाता कहने को ….

@ जननी के विविध रूप आपने हर कहीं देखे और हमें दिखाये :
पसीने की ममतामयी बूँद में शिव-गंगा [मंदाकिनी]; दर्द से उमठी भृकुटियों में संतोष के दर्शन; आँसू में स्वाति नक्षत्र का वर्षण-सन्देश; और जननी-पुत्रों का पारस्परिक सहयोग.
आदि से अंत तक उस परम शक्ति के दर्शन करना ......... अदभुत नेत्र हैं कवि तुम्हारे. इन नेत्रों को तो पूरा जीवन पूजा-अर्चन करके भी नहीं पाया जा सकता.
मुझे तो अचंभित कर दिया ऐसे काव्य ने.(  प्रतुल वशिष्ठ )
मेरा फोटो
वंदना जी हर बात मान रही हैं पर फिर भी न जाने क्यों एक जिद सी भी है …नहीं मानते न आप? खुद ही पढ़िए -

माना......

माना चाहत की डोर
बाँधी है तूने मुझसे 
मगर मैंने नहीं
माना तेरी चाहत
पूजती है मुझे
माना मेरे जिक्र से 
बढ़ जाती हैं धडकनें 
माना पवित्र है 
तेरी चाहत

सप्तरंगी प्रेम  पर पढ़िए  अनामिका जी की एक प्रेम पगी रचना -
करीब आने तो दो.

अपनी बाहों के घेरे में,
थोडा करीब आने तो दो.
सीने से लगा लो मुझे,
थोडा करार पाने तो दो.
छुपा लो दामन में,
छांव आंचल की तो दो .
सुलगते मेरे एह्सासो को,
हमदर्दी की ठंडक तो दो.

स्वप्न मंजूषा जी  भारत में निरंतर बढने वाली ऐसी बीमारी की बात कह रही हैं जो देश को खोखला करती जा रही है …ज़रूरी है कि इसे रोकने के सार्थक उपाय किये जाएँ …




तपेदिक..


भारत में प्रति मिनट,
एक व्यक्ति की आत्मा
मर जाती है,
कई करोड़
इस बीमारी से पीड़ित हैं,
हज़ारों मरीजों की
जीवन शैली में ही,
इस रोग के लक्षण हैं
My Photoराजीव सिंह अपनी रचना में बता रहे हैं कि आज के ज़माने में कौन इंसान जी सकता है …
पढ़िए उनका

पागलपन
शहर में अचानक सामने से आता आदमी
कह उठता
मुझे देखकर
पागल है क्या……
*********************
जो जितना पहले मर जाता है
वह उतना पहले दुनिया में जीने लायक बन जाता है
मैं भी धीरे धीरे दुनिया में जीने लायक
बनता जा रहा हूँ
मेरा फोटो
उत्तमराव क्षीर सागर जिजीविषा को बनाए हुए प्रस्तुत कर रहे हैं …
तीन टुकड़े
एक पंछी
बार-बार बनाता है घोंसला
लेकि‍न
बार-बार आता है तूफ़ान
बि‍खर जाता है ति‍नका-ति‍नका
तहस-नहस हो जाता है अरमान
फि‍र भी
बचा रहता है हौसला
बार-बार बनाता है घोंसला
वह पंछी मैं हूँ
IMG_0130मनोज जी अपनी भावनाओं के सैलाब में डूबते उतराते आज से छ: वर्ष पूर्व सुनामी की लहरों से अपनी भावनाओं का तारतम्य जोडते से प्रतीत हो रहे हैं …आज की उनकी कविता ने वो सारे दृश्य एक बार फिर आँखों के सामने ला खड़े किये हैं जिसकी  त्रासदी सुनामी की लहरों ने दी थी …

दुर्नामी लहरें

हुई पुलिन1 पर मौन,                                 1. पुलिन :: जल के हट जाने से निकली जमीन
उदधि की प्रबल तरंगे
           सिर धुनकर।
हतप्रभ है जग,
अब वसुधा की
विकल वेदना सुन-सुनकर।
dry  tree (1)
डोरोथी  जी का ब्लॉग है अग्निपाखी
यूँ ही बेवजह सुना रही हैं …

पतझड़ राग

मन
किसी बिगड़ैल घोड़े सा
बारंबार निषिद्ध मार्गों पर
भाग जाना चाहता है सरपट
बदहवास लगाम थामे
सुनती हूं मैं
दूर कहीं ---
सूखे पत्ते का झड़ना
जमी हुई बर्फ़ का चटकना
और कर्कश कौओं का चिल्लाना !!

संपादक नाम से लिखते हैं दुनिया के रंग  ब्लॉग पर …बहुत सकारात्मकता भरी सोच लाये हैं अपनी रचना में …..
रूकूँ किसलिए !
जब चलने को मंजिल बाकी, रूकूं किसलिए
पथ पर शूल बिछे हैं कोई बात नहीं,
पतझर के पहरे में फूटे पात नहीं,
आशा के चेहरे पर घूंघट डाल दिया,
पर विश्वासी मन नें मानी मात नहीं !
जब उठने को गगन पडा है, झुकूँ किसलिए
बी० एल० गौर जी की एक खूबसूरत छंदबद्ध रचना पढ़िए
मेरा फोटो
गिरते निर्झर का गीत लिखूं
या लिखूं नगर की चहलपहल
या सूर्योदय के स्वागत में
मैं लिखूं भोर की कुछ हलचल
जब बिखरा ईंगुर धरती पर
आया मंदिर से शंखनाद
कानों से आकर टकराया
वह परम सत्य वह चिर निनाद
इस मन की दशा न रहती थिर
यह तो पारद सा है चंचल
My Photo
रेहाना चाँद के बारे में जानना है तो पढ़िए उनके

ख़याल

हक़ीक़त ख़याल की जुब जान लो
ज़हमत ख़याल को ना दिया करो
ख़याल तो फिर ख़याल हैं
कोइ मलाल इनका ना किया करो
ये उमर का इब्त्दाई लिबास हैं
इन्हें उमर-भर ना सिया करो
My Photo अरुण खादिलकर जी मन की लहरें पर  आज मन और समंदर की लहरों की तुलना कर रहे हैं ..

लहरें समन्दर की, लहरें मन की
धीमी-धीमी मृदुल हवा से
गतिमान
समन्दर की लहरें हों
या
बवंडर से आघातित
ऊँची ऊँची उछलती लहरें
 मेरा फोटो
नीरज कुमार झा मेरा पक्ष पर समाज को सन्देश दे रहे हैं कि आने वाली पीढ़ी के लिए ज़मीन जायदाद छोडने से बेहतर है कि हम उनके लिए बेहतर समाज छोड़ें ….पढ़िए -

क्यों नहीं ...

कर्ज है हमारे  ऊपर
पुरानी पीढ़ियों का
अधिकतर पीढ़ियों ने
दी है बेहतर दुनियाँ
आने वाली पीढ़ियों को
गौर करें हम भी
अपनी विरासतों पर
My Photo
रावेंद्र जी प्रेम भरी पाती लिख रहे हैं …गाँव से दूर रह रहे लोगों के भावों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है ..
लिखना, कैसी हो तुम?
आशा है यह पत्र पहुँच जाएगा
तुम तक और तुम्हारे मन भाएगा,
पढ़कर इसको ख़ुश होगी ना?
लिखना -
कैसी हो तुम?
अच्छी तो हो ना?
My Photo
गिरिजा कुलश्रेष्ठ एक गरीब के घर को शब्दों में साकार कर रही हैंशिवम है कि मानता नहीं

शिवsss म्.....।
माँ पुकारती है ।
दिनभर बैठे--बैठे ,बीडी बनाते
झाडू-पौंछा या चौका--बर्तन करते,
थकी हुई माँ ..।
हाथ से बहुत पीछे छूट गए सपनों की याद में ,
कहीं रुकी ह्ई माँ
मेरा फोटो इस्मत जैदी जी का ब्लॉग  एक वर्ष का हो गया ….और इसके जन्मदिन पर इस्मत जी लायी हैं एक खूबसूरत गज़ल और शुक्रिया के कुछ लफ्ज़ …

आज इस ब्लॉग की सालगिरह के मौक़े पर एक ग़ज़ल हाज़िर ए ख़िदमत है
इस एक साल के सफ़र में आप सब ने जो सहयोग  और  मान दिया
है,उस के लिये मैं बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूं
......वो इक ज़िया ही नहीं
दरीचे ज़हनों के खुलने की इब्तिदा ही नहीं
जो उट्ठे हक़ की हिमायत में वो सदा ही नहीं


ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
My Photo
सुमन सिन्हा जी की तलाश है कि  कहाँ हूँ मैं ...कभी कभी इंसान खुद को ही भीड़ में तलाशता है …

कहाँ हूँ मैं !
सब कहते हैं
आप बहुत अच्छे है
मैंने पूछा - क्यूँ -
क्योंकि आप हमेशा हमारे लिए सोचते हैं
किसी ने कहा
आप कितने प्यारे हैं --
कैसे भला
आप हमे इतना प्यार जो करते हैं
.................
और मैं टुकड़े टुकड़े होता गया !
My Photo

दीपशिखा जी भ्रष्टाचार के विरुद्ध करवा रही हैं

सब जगह
शोर है , 
संदेह है .
मन के अन्दर
ही अन्दर
कई तूफ़ान हैं ,
एक इस्तीफे के 
मांग है  .
 My Photoकुंवर कुसुमेश जी समाज को सन्देश दे रहे हैं ….दूरदर्शन पर जो कुछ परोसा जा रहा है उससे क्षुब्ध हैं …आप भी जानिये उनके विचार 
विरासत को बचाना चाहते हो में

विरासत को बचाना चाहते हो ,
कि अस्मत को लुटाना चाहते हो.
तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है,
कि आख़िर क्या कराना चाहते हो.
मेरा फोटो
रश्मि सविता बहुत सशक्त कविता लायी हैं …
एक गव्हर है कि  भरता नहीं

एक गह्वर है ,जो भरता नहीं ;
सिमटकर लम्हे
मेरी मुट्ठी में है 
और रेत के माफिक 
फिसल रहे हैं 
सच है ,
वक़्त कभी ठहरता नहीं ;
एक गह्वर है ,जो भरता नहीं ;
1-sceneries-germany
एकला  संघ  पर जसवीर  जी कि रचना ज़िंदगी के रास्तों पर चलने के सही तरीके को बता रही है ..

खबरदार ! बरखुरदार

क्‍यूँ भटकते हो
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर ?
सीधी राह पर चलो,
ओवरब्रिज पर चढ़कर
प्‍लेटफार्म पार करो
रेल की पटरियों को
क्रॉस करते हुए
क्‍यूँ डालते हो
अपनी जान
जोखिम में ?
 मेरा फोटो
स्वप्निल कुमार  “ आतिश “ न जाने आज कल कहाँ आतिशबाजी कर रहे हैं ….पर इस बार लाये हैं बेहद खूबसूरत नज़्म -
वो छाँव बनकर छुप गयी
आओ बुनें कोई सहर
पहने जिसे सारा शहर
वो छाँव बनकर छुप गयी
जब धूप ने डाली नज़र
तेरे बाद मैं हूँ देखता
ये तितलियाँ या गुलमोहर
मेरा फोटो विवेक मिश्र अनंत अपार असीम आकाश पर
शब्दों की महिमा का वर्णन कर रहे हैं , शब्द भेदी बाण और शब्द बाण का अंतर आपको पता चलेगा उनकी रचना पढ़ कर ..
अब व्यर्थ है करना अफ़सोस ,
संधान हो चुके शब्द-बाणों का ।
लक्ष्य पर वो निकल पड़े ,
नहीं उन पर अधिकार कमानों का ।
शब्द भेदी बाणों से ,
होता है घायल केवल तन ।
जब शब्द ही बाण बन जाये ,
कैसे बच पाये  मन ..
My Photo
राणा प्रताप सिंह ब्रह्माण्ड पर एक तरही गज़ल लाये हैं ..
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मन्दिर क्यूँ है
सारी दुनिया में छिड़ी जंग ये आखिर क्यूँ है
अम्न के देश में छब्बीस नवम्बर क्यूँ है
आज धरती पे हर इन्सान जुदा लगता है
चेहरे मासूम मगर हाँथ में पत्थर क्यूँ है
 My Photo

सांझ को जानिये उनकी गज़ल से ….

जानां
वो रिश्ता कैसे खो गया जानां
हमारे दरमियाँ जो था जानां
आप तो यूँ ही खफा हो बैठे
हमने ऐसा भी क्या कहा जानां
किस्मतें आपने बदल डाली
अब लकीरों से क्या होगा जानां
My Photo मोहिंदर कुमार जी दिल का दर्पण  पर प्रेम को परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं ..
संग हैं मेरे आज सजन ...
प्रेम एक अनुभूति
प्रेम एक प्रतिति
प्रेम एक आहुति
शांत कभी
कभी प्रज्जवल्लित
क्षण में एकान्तक
क्षण में मिश्रित
My Photo हिमांशु डबराल जी  बेबाक बोल  पर  देश के हालातों को बताते हुए हिंदुस्तानियों को जागने का सन्देश दे रहे हैं ..
बदतर है...
क्या मंदिर है, क्या मज्जिद है,
दोनों एहसासों के घर है...
आखें बंद रखो तो शब्,
वरना हर वक्त सहर है.
 ओम् प्रकाश तिवारी जी एक गज़ल प्रस्तुत करते हुए यह बता रहे हैं  कि क्या कीजिये और क्या न कीजिये …फिर भी कह रहे हैं कि
अब आप अपनी कीजिए

पंच अपनी कर गए अब आप अपनी कीजिए,
लीजिए हिंदोस्तां और एक तिहाई दीजिए ।
पांच गांवों के लिए थे लड़ मरे इतिहास है,
कुछ नया रचते हैं अब दोहराव तो ना कीजिए

राजीव सिंह  जी की रचना    पीपल उर्फ प्रेमी
पेड़ों से मिलने वाली छाँव की बात करती है , ठांव की बात करती है ..

दूर बैठा है पीपल का पेड़
तुम्हारे लिए
कि तुम जब इस निर्जन सड़क पर
निर्दयी धूप में जलते हुए
उसके पास पहुंचो
तो वो तुम्हे पिला सके
छांव की दो घूँट सुख
मेरा फोटो
नरेश चन्द्र नाशाद    महफ़िल-ए-नाशाद पर एक बहुत रूमानी सी नज़्म लाये हैं
तुम बिन सब अधूरा होगा

फिर वो ही चाँद होगा
वो ही सितारों का कारवां होगा
फिर वो ही बहारें होगी
वो ही फूलों का नजारा होगा
सब कुछ होगा मगर फिर भी
तुम बिन सब अधूरा होगा


फिर वो ही गाँव और चौबारा होगा
वो ही पनघट का नजारा होगा
मेरा फोटो इस बार डा० रूपचन्द्र  शास्त्री जी लाये हैं नन्हे सुमन  पर एक बाल गीत … ऐसे प्राणी के बारे में जो सबके लिए कितना बोझ ढोता  है पर तब भी कोई उसे पसंद नहीं  करता ..

“भार उठाता, गधा कहाता”
कितना सारा भार उठाता।
लेकिन फिर भी गधा कहाता।।
रोज लाद कर अपने ऊपर,
कपड़ों के गट्ठर ले जाता।
वजन लादने वाले को भी,
तरस नही मुझ पर है आता।।
My Photoस्पंदन  पर शिखा वार्ष्णेय  लायी हैं कुछ सीली सीली सी ज़िंदगी ….धूप में सुखाने की ख्वाहिश पर पड़ जाता है धूप पर भी पर्दा …आप पढ़ें

 

पर्दा धूप पे

ना जाने कितने मौसम से होकर
गुजरती है जिन्दगी
झडती है पतझड़ सी
भीगती है बारिश में
हो जाती है गीली
फिर कुछ किरणे चमकती हैं सूरज की
तो हम सुखा लेते हैं जिन्दगी अपनी
My Photo
एम० वर्मा जी जज़्बात पर दिखा रहे हैं भीड़ का चेहरा …भीड़ में आदमी का
विवेक काम नहीं करता बस भीड़ होती है .

कदहीन मगर आदमकद भीड़
अपना कोई चेहरा
नही होता है भीड़ का,
भीड़ में मगर
अनगिन चेहरे होते हैं.
भीड़ में
जब लोग बोलते हैं,
तब समवेत स्वर
संवाद से परे हो जाता है
My Photo

क्षितिजा  का ब्लॉग है बातें …और सच ही बहुत प्यारी बातें करती हैं ..आप पढ़िए उनकी एक संवेदनशील रचना …

दायरे..

बचपन में कभी कभी
टूटे पंख घर ले आती थी
अब्बू को दिखाती थी..
अब्बू यूँ ही कह देते-......
   "इसे तकिये के नीचे रख दो
   और सो जाओ
   सुबह तक भूल जाओ
   वो दस रुपये में बदल जाएगा

मेरा फोटोसमीर लाल जी बस्ती बस्ती घूम रहे हैं प्यार कि तलाश में …जो वो प्रेम पाती लिखते हैं लोंग उसे गीत और गज़ल कह देते हैं ….आप भी पढ़िए उनकी गीत बनाम पाती ….

प्यार तुम्हारा इक दिन.
प्यार तुम्हारा इक दिन हासिल हो शायद
बस्ती बस्ती आस लिए फिरता हूँ मैं....

प्यार की पाती जितनी भी लिख डाली है
यूँ नाम गज़ल दे लोग उसे पढ़ जाते हैं...
अपने दिल के भाव जहाँ भी मैं कहता हूँ
गीतों की शक्लों में क्यूँ वो ढ़ल जाते हैं..
आज की चर्चा का समापन करती हूँ …आशा है आपने इस धारा में डुबकी तो लगायी ही होगी … और मन को शीतलता भी मिली होगी …चर्चा की सार्थकता हमारे पाठकों के हाथ में है …आपका सहयोग हमारा मनोबल बढाता है …आप सभी का सहयोग मिलता रहा है और हम हमेशा आप सबसे इसकी  अपेक्षा करते हैं …और हाँ लिंक पर जाने के लिए आप चित्रों पर क्लिक करके भी पहुँच सकते हैं …..नवरात्रि की शुभकामनायें ….फिर मिलते हैं …….इसी जोश के साथ …अगले मंगलवार को ….. नमस्कार

49 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया चर्चा ,... अच्छे लिंक मिले...आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. रंग बिरंगी मनभावन चर्चा .. आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके द्वारा सजाया गया चर्चा मंच विविधता लिए हुए है | मैं तो दोपहर में ही इसका आनंद ले पाउंगी |अभी सारी लिंक्स सतही तौर पर देखी हें |अच्छी लिंक्स के लिए बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे लिंक्स ...
    अच्छी चर्चा ...
    आभार ...!

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  5. जब ये कहते हैं कि बस एक है ऊपर वाला
    फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है

    5 अक्टूबर की पोस्ट का उपर्युक्त शेर लाजवाब है .रचनाकार को बधाई और आपको भी धन्यवाद जो इतनी अच्छी पोस्ट लगाई और दिखाई.
    मेरी पोस्ट 12 अक्टूबर को लगाने के लिए भी धन्यवाद.
    कुँवर कुसुमेश

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  6. आपकी चर्चा का रंग निराला है ..एकदम आकर्षक ..बहुत ही मनभावन ..शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया अच्छे लिंक्स मनभावन !!धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. बात अच्छी है, तो उसकी हर जगह चर्चा करो,
    है बुरी तो दिल में रक्खो, फिर उसे अच्छा करो।

    आप दोनों कर रहीं हैं। जो इज़्ज़त और हौसलाआफ़ज़ाई आपने की है इस नाचीज़ को इस महफ़िल में शामिल करके उसके लिए हम तहे दिल से आपका शुक्रगुज़ार हैं।
    अपने मन में ही अचानक यूं सफल हो जाएंगे
    क्या ख़बर थी कि आपसे मिलकर ग़ज़ल हो जाएंगे

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  10. ्स्भी लिन्क्स अच्छे है ……………।मज़ा आया

    जवाब देंहटाएं
  11. संगीता जी,आदाब,
    मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल कर के आप ने जो सम्मान दिया है उस का बहुत बहुत शुक्रिया

    इतने सारे लिंक्स एक दिन में मिल गए आराम से पढ़ती रहूंगी कई दिन तक
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढ़िया चर्चा ,...
    अच्छे लिंक मिले...
    आभार...!

    जवाब देंहटाएं
  13. बढ़िया लिंक!
    --
    सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा काव्य मंच!
    --
    यह चमत्कार तो सिर्फ संगीता स्वरूप ही कर सकती है!
    --
    बहुत-बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  14. काव्यमयी चर्चा का स्वागत है...सप्तरंगी प्रेम ब्लॉग की चर्चा हेतु आभार.

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  15. नमस्कार जी
    अच्छे लिंक मिले
    शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  16. संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका .... कविताओं का पवन तट आपने प्रदान कर दिया है और हमने सूर्य उदय के साथ उसमें डुबकियां लगाने शुरू कर दी हैं ... आभार आपका .... शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  17. साप्ताहिक काव्यमंच की चर्चा .. अत्यंत सार्थक और अनूठे अन्दाज की चर्चा से रूबरू करवाता है.

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  18. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति, संगीता स्वरूप जी को बहुत बहुत बधाई। आदरणीया इस्मत जैदी जी की ग़ज़ल मुझको इस चर्चा के कंटेन्ट में सबसे अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  19. अत्यन्त यत्न व प्रयत्न से संकलित इस पोस्ट के लिये निश्चय ही आप बधाई के पात्र हैं. पठनीय लिन्क एक जगह मिलना बहुत कठिन कार्य है... इस प्रयत्न को जारी रखें..... आभार

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत अच्छे लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा……………ज्यादातर लिंक्स पर हो आयी हूँ और कुछ फ़ोलो भी कर लिये हैं……………आभार्।

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  21. बहुत अच्छी चर्चा. काफी अच्छे लिँक मिले...

    जवाब देंहटाएं
  22. संगीता जी नमस्ते ।
    मेरी ग़ज़ल को साप्ताहिक काव्य चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । पहली बार इसमें शामिल होने का अवसर मिला है । आपके ई-संचालन की तारीफ करनी पड़ेगी । सभी रचनाओं का चयन काफी सटीक है । -- आभार

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  23. thanx sangeeta ji....
    charcha munch par vakai me aana sikhad hai...aur naye links milne ki khushi toh hoti hi hai...
    sachmuch " kuchh neh se pagta hua sa meetha lag raha hai"......
    :)

    जवाब देंहटाएं
  24. संगीता जी नमस्ते ।
    मेरी ग़ज़ल को साप्ताहिक काव्य चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । पहली बार इसमें शामिल होने का अवसर मिला है । आपके ई-संचालन की तारीफ करनी पड़ेगी । सभी रचनाओं का चयन काफी सटीक है । -- आभार

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत सुंदर काव्य मंच सजाया है. कोशिश करती हूँ प्रत्येक लिंक पर जाने की अगर आज नेट जी मेहरबान रहे तो, सुबह से तो आज ये नखरे दिखा रहे हैं.

    विविधता पूर्ण और नए नए लिंक से मिलवाती आपकी चर्चा की मेहनत सराहनीय है.

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत से अच्छे लिंक्स दिख रहे हैं विविधता लिए हुए सभी जगह जाना बाकि है .कहाँ कहाँ से ढूंढ लती हैं आप इन्हें :)
    बेहतरीन और विस्तृत चर्चा.
    आभार.

    जवाब देंहटाएं
  27. संगीता जी
    धन्यवाद !
    मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करके आपने जो सम्मान दिया है और उत्साहवर्द्धन किया है उस के लिए मैं आपकी और इस मंच पर उपस्थित सभी गुणीजनों की बेहद आभारी हूँ.
    इंद्र्धनुषी रंगों से सराबोर काव्य संसार के इतने सारे बढ़िया लिंक्स देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  28. thanx sangeeta mam asha krta hu apka ashirvad nirantar hme prapt hota rhega jo hmare liye prernaspad hoga

    जवाब देंहटाएं
  29. :)
    कुछ कहूँ?? इतना योग्य नहीं
    प्रणाम करता चलूँ... :)

    जवाब देंहटाएं
  30. ओह! शायद खुद के लिंक को छोड़ सभी पर जाना शेष है...भारत जाने के तैयारी में महिना भर पहले से ही व्यस्तता हो जाती है.

    आभार सारे लिंक्स यहाँ देने का. सहूलियत होगी.

    जवाब देंहटाएं
  31. आपके साभार सभी लिंक्स पर हो आये.

    जवाब देंहटाएं
  32. चर्चामंच पर मेरी कविता शामिल करने के लिये धन्यवाद. अच्छी रचानाएँ आपने सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाई है. बधाई. हम सभी एक बेहतर समाज के लिये ही काम कर रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  33. चर्चामंच पर मेरी कविता शामिल करने के लिये धन्यवाद. अच्छी रचानाएँ आपने सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाई है. बधाई. हम सभी एक बेहतर समाज के लिये ही काम कर रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  34. आप इकठ्ठा कर देते हो
    मंच लगाकर अपनेपन में
    अहंकार को छोड़ परस्पर
    मिल जाते सब कुछ ही क्षन में.

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  35. इस मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित कर आपने जो मेरा मान बढाया है, उसके लिए मैं आप सबका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ/

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  36. आभार.. संगीता स्वरुप जी
    आपके द्वारा सजाया गया चर्चा मंच विविधता लिए हुए है धन्यवाद.

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  37. मेरी कविता को साप्ताहिक काव्य चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
    बहुत अच्छा प्रयास है...अच्छे लिंक्स...
    बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये....

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  38. संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद । पता नहीं कैसे इस पोस्ट पर आने से चूक गया । क्षमा चाहता हूँ । बेहद खूबसूरत कविताओं के लिंक्स से ओतप्रोत यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी । इनका प्रस्तुतिकरण भी बहुत बढ़िया है । पार्श्व में रंगों का चयन भी बेहद आकर्षक है । मेरी पोस्ट की चर्चा के लिये धन्यवाद जैसा शब्द बेमानी होगा ना ।

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  39. संगीता जी ,यहाँ आकर कई अच्छी लिंक मिल गईँ ।धन्यवाद

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