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मंगलवार, अक्तूबर 19, 2010

“अग्नि परीक्षा:साप्ताहिक काव्य मञ्च” (चर्चा मंच-311)

आइए मित्रों!
संगीता जी मुम्बई गई हुई हैं। इसलिए साप्ताहिक काव्य मंच को कुछ अलग से अन्दाज में सजा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि यह काव्याञ्जलि आपको पसन्द आयेगी!


संशय उमड़ रहा है ,
मन में प्रश्नMy Photo घुमड़ रहा है,
क्या सचमुच लौट आये
वनवास से पुरुषोतम राम,
करके रावण का काम तमाम ?
क्या अब यह घोर कलयुग
कही समा जाएगा ?

…..
जियें कबतक भ्रम में ?
----
किरण नजर नही आती तम में…….
मेरा फोटो
हवाओं में
गाते परिंदों की ताने घुली है,
इंसानी फ़ितरतों में-
घुला..
इतना जहर क्यूँ है!…

इंसानी फ़ितरतों में घुला इतना जहर क्यूँ है!
-----

हसरतें बढ़ गई हैं हद ज्यादा, खुशियों से महरूम ये लहर क्यूँ हैं…
  
चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला 'नीरज' यहाँ
डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ
My Photo
दें सदा बचपन को हम,फिर से करें अठखेलियाँ
(इस गज़ल के फूल मेरे हैं लेकिन खुशबू गुरुदेव पंकज सुबीर जी की है)
इसीलिए तो महक के साथ चहक भी बरकरार है…
सप्तरंगी प्रेम पर है नीरजा द्विदेदी जी की यह कविता-
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी .
सुन प्रियतम पदचाप सिहरकर
कर्णपटों में सन-सन होती थी
स्वेद बिन्दु झलकते मुख पर
तीव्र हृदय की धडकन होती थी……..


प्रथम प्रणय की उष्मा
जब कुछ लिखने का
मन नहीं होता
तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना

gulab
गुलाब का महकना..
समीर जी हमने तो आज दिल की डायरी का कोई भी पन्ना खोली ही नही!
आप तो आज बाजी मार कर ले गये!

उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़

IMG_0130मत भाग जलधि का ज्वार देख
भर ले इसको निज आलिंगन में,

लहरों को लगा वक्ष से अपने,
भर ले शीतलता जीवन में।…
--
--
कमाल की अभिव्चक्ति को जन्म दिया है,
आपने!
--
बहुत-बहुत बधाई!

My Photo
आवश्यकता है : एक रावण की ~~
आवश्यकता है :
एक रावण की
योग्यता :
मायावी होना,
जो अगले साल -
दशहरा पर्व तक
फिर से खड़ा हो जाये…………

तभी तो भारत का महान नेता बनेगा प्यारे!
इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं,----
कब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं!-----

हम वहीं तर जाते हैं.....
------
भय के कारण पन्नों पर कुछ शब्द उभर आते हैं….
पहाड़ बदलना चाहते हैं

पहाड़ों को
सदा ही रहा है
भ्रम

मेरा फोटोपाँचों शब्द-चित्र देख लिए..
सभी बेहद खूबसूरत हैं।
मगर क्या पता कब कौन बदल जाये?
हुई सुबह सूरज निकला ,
हुआ रथ पर सवार ,
धीमी गति से आगे बढ़ा ,
दोपहर में कुछ स्फूर्ति आई ,
फिर अस्ताचल को चला ,
मेरा फोटो
हुई सुबह सूरज निकला
मन में इन्द्रधनुष
…………….
मेरा फोटो
बाहर हंसती हवा का एक झौंका
बगल में गुच्छा लिये फूलों का
मुस्कुराता खड़ा था

………..
----
----
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
---
---
आज इसी गुलदस्ते की जरूरत है!
जुगुप्सा की प्यास

-------------

My Photo
नमक के बिना
स्वाद नहीं आता
खाने में ,
   
और
जिंदगी में भी                         
नमक
होना ही चाहिए…….                    बिल्कुल सही बात!
        मीठा खाने से शुगर का रोग हो जाता है!                         
बिना तर्क के....
My Photoख्वाबों की दुनिया बिना 'शोर' के....
ज़िन्दगी का सफ़र बिना 'पड़ाव' के....
एक नया सवेरा बिना 'कोहरे' के..
मेरा अपना घर बिना 'दीवारों' के....
--
----
जी हाँ!
----
अधूरा सा ही तो लगता है
और अन्त में-
अग्नि परीक्षा
जब कहा
जलो, साबित करो
निर्दोष मन....
और निर्मल तन
तब बता जानकी,
तुझको कैसा लगा.....?
…….

18 टिप्‍पणियां:

  1. रात भर जाग जाग कर काम करने के बाद सुबह सुबह चर्चामंच पर नयी रचनाएँ पढकर खुशी होती है.

    दुनिया में ह्रदय की संवेदनशीलता को बचाए रखने के लिए चर्चामंच सार्थक प्रयास है.

    जवाब देंहटाएं
  2. नए और पुराने ब्लॉगों का अच्छा मिश्रण किया है |बधाई और आभार
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत से पोस्ट पर जाने में सहायता मिली , आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी रही चर्चा ..... सभी ब्लोग्स की अच्छी जानकारी ...

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय शास्त्री जी...
    बहुत अच्छी चर्चा ... बहुत से लिंक्स मिले .. आभार

    मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद ...

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की चर्चा बेहद सुन्दर रही……………अच्छे लिंक्स लगाये हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. shastri ji ,

    aaj ki charcha ke liye aabhaar ..bahut achchhe links diye hain..saaptaahik charcha manch par apani rachna ko dekhna sukhad laga..shukriya

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर और लाजबाब चर्चा के लिए आभार शास्त्री जी

    जवाब देंहटाएं
  9. सारे लिंक और चयन लाजवाब।
    हमारी रचना को इस मंच पर स्थान देकर सम्मानित करने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  10. आनन्द आ गया चर्चा देख कर...आभार!

    जवाब देंहटाएं

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