नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर से हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ।
आज महान साहित्यकार प्रेमचंद जी का जन्मदिन है। उन्हें नमन करते हुए आज की चर्चा शुरु करते हैं।
--बीस-
तसल्लीkavita verma |
अरे बेटा यहाँ आ भैया को चोट लग जायेगी. कहते हुए मांजी ने मिनी को अपनी गोद मे खींच लिया. मम्मी के पास भैया है ना ,थोडे दिनो मे वो मिनी के पास आ जायेगा,उसके साथ खेलेगा, मिनी उसे राखी बान्धेगी . मांजी के स्वर मे पोते के आने की आस छ्लक रही थी.नेहा को भी बस उसी दिन का इन्त्जार था. |
आपने भारतीय परिवेश व मानसिकता को बड़े ख़ूबसूरत और संतुलित रूप से पन्ने पर उतारा है। |
--उन्नीस—
एक गहरा वजूद - असीमा भट्टरश्मि प्रभा... |
जिंदगी से मुझे कोई शिकायत - नहीं . कुछ भी नहीं . I love it. My life is beautifull. बहुत कुछ खोया है .... बहुत कुछ पाया है . अब तो बात जिद्द पे आ गई है - अब तो जिंदगी से सूद समेत वापस लेना है और उसे भी देना पड़ेगा . |
ब्लॉगर से मिलवाने का यह एक अच्छा प्रयास है और उनके द्वारा व्यक्त विचार भी बहुत अच्छे हैं। |
--अट्ठारह—
स्वार्थी दुनियादीप्ति शर्मा |
पंक्षियो की कौतुहल आवाज़ से मेरी आँख खुली | मौसम सुहावना था | पवन की मंद महक दिवाना बना रही थी | बाहर लॉन मै कई पंक्षी चहक रहे थे मौसम का आनंद लेने के लिए मैने एक चाय बनायीं और पीने लगी | |
प्रेरक प्रसंग! |
--सत्तरह—
Safe Mode काम नहीं कर रहा? ठीक कीजिये आसानी सेनवीन प्रकाश |
Safe Mode एक जरुरी और उपयोगी विकल्प है विंडोज में, इसमें आपका कंप्यूटर सीमित सुविधाओं के साथ शुरू होता है पर आपको आपके कंप्यूटर की समस्याओं के समाधान के लिए एक सुरक्षित तरीके से शुरू करने देता है । |
नवीन जी हमेशा काम की जानकारी देते रहते हैं। |
--सोलह—
आत्मग्लानि.......Suresh Kumar |
समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया, तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया, मेरे जीवन में तेरा मुल्य, समझ ये आ गया मुझको, तू इश्वर है, विधाता है, मन में रख लिया तुझको, ये जीवन तुझपे अर्पण हो, अब मैने ठानी है, ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है... |
कवि --- सरल और सहज मुहावरे में इस कठिन समय को कविता में साधते हैं। |
--पन्द्रह—
अंग्रेजी के वर्चस्व पर लगेगी लगामशिक्षामित्र |
संघ लोक सेवा आयोग की यह पहल उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में चयन की उम्मीद रखने वाले प्रतिभागी अब अपनी मातृभाषा में मौखिक साक्षात्कार देने के लिए स्वतंत्र हैं। अब तक यूपीएससी की नियमावली की बाध्यता के चलते जरूरी था कि यदि परीक्षार्थी ने मुख्य परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी रखा है तो साक्षात्कार भी अंग्रेजी में देना होगा। जाहिर है, आयोग के इस फैसले से ऐसे प्रतिभागियों को राहत मिलेगी जो अंग्रेजी तो अच्छी जानते हैं लेकिन इसके संवाद संप्रेषण व उच्चारण में उतने परिपक्व नहीं होते, जितने महंगे और उच्च दज्रे के कॉन्वेंट स्कूलों से निकलकर आए बच्चे होते हैं। |
बहुत अच्छी खबर है। |
--चौदह—
बिजली फूँकते चलो, ज्ञान बाटते चलो प्रवीण पाण्डेय |
सूर्य पृथ्वी के ऊर्जा-चक्र का स्रोत है, हमारी गतिशीलता का मूल कहीं न कहीं सूर्य से प्राप्त ऊष्मा में ही छिपा है, इस तथ्य से परिचित पूर्वज अपने पोषण का श्रेय सूर्य को देते हुये उसे देवतातुल्य मानते थे, संस्कृतियों की श्रंखलायें इसका प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। |
ऊर्जा संरक्षण पर प्रेरक आलेख। |
--तेरह—
बाम-इस्लाम और समोसा कूटनीति !पी.सी.गोदियाल "परचेत" |
जब मानव समाज में नगण्य कर्मावलम्बी परजीवी प्राणी क्रूरता, धृष्टता, झूठ और छल-कपट के बल पर अपनी आजीविका चलाने हेतु अज्ञान और अचिंतन के अन्धकार से भ्रमित निर्धन, शोषित और बौद्धिक कंगाल वर्ग के समक्ष खुद को उसका हितैषी और ठेकेदार प्रदर्शित कर, भय एवं ईश्वर के नाम से दिग्भ्रमित करने हेतु नए- नए तरीके खोजता है |
एक विचारोत्तेजक आलेख। |
--बारह—
दिखा देता अँधेरे से कोई लड़ता दिया उसको कुँवर कुसुमेश |
भटकने लग गया जों आदमी राहे-मुहब्बत से. अदब की रोशनी शायद दिखा दे रास्ता उसको. 'कुँवर'ख़ुद पर भरोसा और मौला पर भरोसा रख, भरोसा जिसको मौला पर है मौला देखता उसको. |
जिंदगी की सूक्ष्म सच्चाइयां ग़ज़ल में खूबसूरती से बयां हो रही है। |
--ग्यारह—
महिला अपराधों की राजधानी दिल्ली और दबंग अपराधीअभिषेक मिश्र |
निःसंदेह हम 100% अपराध तो नहीं रोक सकते मगर कम से कम इस शौकिया कवायद को रोकने की 1% सार्थक कोशिश तो कर ही सकते हैं, अन्यथा 'वीकेंड स्पेशल' ये खबरें मीडिया की हेडलाइंस और 'ब्रेकिंग न्यूज' ही बनती रहेंगीं. |
सशक्त, विचारोत्तेजक आलेख। |
--दस—
अन्ना को मना है.Kirtish Bhatt, |
तीखा कटाक्ष! |
--नौ—
सुक्खू चाचा की अंतिम थालीNirmesh |
काठ मार गया गिरते गिरते उन्होंने दीवाल थाम लिया बोले सहूईन एहे त दू चार घर बचा रहा जेकर हमका असरा रहा जिनगी हत गयल ई पिसे वाली मशिनिया से कै |
इस कविता में जीवन के विरल दुख की तस्वीर है, इसमें समाई पीड़ा पारंपरिक कारीगरों की दुख-तकलीफ है। |
--आठ—
मनचाहे सपनों कोडा० व्योम |
मनचाहे सपनों को |
नवगीत अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है। |
--सात—
एक्सपॉयर दवाईयों को आप कैसे फैंकते हैं?डा प्रवीण चोपड़ा |
कुछ दिन पहले की बात है मेरे बेटे ने मेरे से अचानक पूछा कि पापा, आप इस्तेमाल किये हुये ब्लेडों का क्या करते हो, उस का कारण का मतलब था कि उन को आप फैंकते कहां हो? …मैं समझ गया... मैं उस को कोई सटीक सा जवाब दे नहीं पाया....लेकिन मुझे इतना पता है कि वह भी इन्हें घर के कचरेदान में कभी फैकना नहीं चाहेगा। |
एक उपयोगी पोस्ट – अवश्य पढ़ें। |
--छह—
कुमार राधारमण |
जंक फूड के चलन ने सभी युवाओं की सेहत प्रभावित की है लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स कुछ ज्यादा हैं। दूसरे शहरों से आए युवा इसका शिकार और ज्यादा होते हैं। |
एक काम की बात बताती उपयोगी पोस्ट। |
--पांच—
११ साल का मेहंदीवालाअरुण चन्द्र रॉय |
उत्सवो, तीज त्योहारों पर सावन के सोमवार को राखी से पहले धनतेरस के दिन करवा चौथ पर रहती है उसकी भारी पूछ |
इस कविता में जीवन के जटिल यथार्थ को बहुत सहजता के साथ प्रस्तुत किया गया है। इस कविता में न तो जनवादी तेवर है और न प्रबल कलावादी आग्रह। |
--चार—
सार्वजनिक स्थान पर हम भारतीय यूँ ही नहीं थूकतें हैं ...veerubhai |
भारतीय द्वारा थूकना गंदगी को बढ़ाना नहीं हैं ,थूकना सफाई का दर्शन हैं ,वह अन्दर की सुवास को बनाये रखने के लिए बाहर की ओर थूकता है ।थूक एक प्रतिकिर्या है बाहर फैली गंदगी के प्रति .भारत में चारों तरफ़ धूल मिटटी और गंदगी का डेरा है .बाहर के मुल्कों में (विकसितदेशों में) पर्यावरण और आपके आस पास का माहौल एक दम से साफ़ सुथरा रहता है इसलियें भारतीय वहाँ थूक नहीं पाते .यह कहना है |
व्यंग्यकार ने थूक के माध्यम से मन की उमंगे, जीवट, जोश के साथ-साथ सामाजिक विद्रूपदाओं, विसंगतियों एवं विवशताओं तथा मानव-मानव में भेद की भावनाओं पर खुलकर कलम चलाई है। |
--तीन—
सुना है आँखों से निःसृत शंखनाद कोरश्मि प्रभा... |
किरणों के पाजेब डाल जब सूरज निकलता है तब चिड़ियों के कलरव से मैं मौन आरती करती हूँ |
बिम्बों का अद्भुत प्रयोग! कवयित्री अपना ही पुराना प्रतिमान तोड़ते नजर आती हैं। यह कविता लोक जीवन के यथार्थ-चित्रण के कारण महत्वपूर्ण है। |
--दो—
'बहादुर कलारीन' - बिखरी हुई, भटकी हुई.समीक्षक- मुन्ना कुमार पांडे |
हबीब साहब के रंगकर्म को नजदीक से जाने वाले यह बखूबी जानते हैं कि बहादुर कलारिन भले ही चरणदास चोर जितना मशहूर न हुआ हो पर यह नाटक हबीब तनवीर के दिल के काफी करीब था | |
एक बेहतरीन समीक्षा! |
--एक--
दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता और स्त्री शक्तिडॉ. शरद सिंह |
आंधी-तूफान के बाद खिलने वाली सुनहरी धूप की भांति दक्षिणी सूडान कीस्वतंत्रता एक लंबे गृहयुद्ध के बाद हासिल हुई है। गृहयुद्ध के दौरान पुरुषों ने बढ़-चढ़ कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और बड़ी संख्या में हताहत हुए। इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम झेला स्त्रियों ने। अपनों के मारे जाने का दुख और शेष रह गए जीवितों के प्रति जिम्मेदारी का संघर्ष। इन सबके बीच अनेक स्त्रियों को बलात्कार जैसी मर्मांतक पीड़ा से भी गुजरना पड़ा। |
गहन विचारों से परिपूर्ण शोधपूर्ण आलेख। आलेख के बारिक विश्लेषण गहरे प्रभावित करते हैं। स्त्री-शक्ति के महत्व और ताकत का आपने बहुत सुंदर उदाहरण पेश किया है। |
आज बस इतना ही!
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग!!