दक्षिणेश्वर की विद्या, चर्चा - मंच अनूप |
चर्चा - मंच अनूप, दिखें चन्द्रा गाफिल सा |
लेकिन चर्चा - मंच, लगे पाठक बिन तुम्बा,
रविकर दे आशीष, बढ़ें पाठक माँ मुम्बा !!
लाल फूलों की माला से सजा माँ का दरबार,
पुलकित हुआ मन, उतावला हुआ संसार,
माँ अपने क़दमों से आयी है आपके द्वार,
मुबारक हो आपको नवरात्रि का ये पावन त्यौहार !
पुलकित हुआ मन, उतावला हुआ संसार,
माँ अपने क़दमों से आयी है आपके द्वार,
मुबारक हो आपको नवरात्रि का ये पावन त्यौहार !
(2)
मैय्या की भेंट, मैय्या को भेंट
लीला तिवानी
शिक्षा हिंदी में स्नातकोत्तर, बी.एड., एम.एड., कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड । दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत । हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित । अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।
मैSय्या वरदाSतीSS मुझे अपना बना लेना
जन्मों से तरस रही मुझे गले से लगा लेना-
1.छाए चारों ओर अन्धेरे
भटकाते चौरासी के फेरे
मैSय्या वरदाSतीSS मुझे इनसे बचा लेना-
2.ध्यानू जैसी भक्ति दे दो
तारा जैसी मस्ती दे दो
मैSय्या वरदाSतीSS मुझे सबल बना लेना-
3.तूने सबकी बिगड़ी बनाई
सोई हुई किस्मत भी जगाई
मैSय्या वरदाSतीSS मेरे भाग जगा लेना-
4.कैसे तेरा ध्यान लगाऊं
कैसे तुझको अपना बनाऊं
मैSय्या वरदाSतीSS ज़रा इतना बता देना-
(3)रंगमंच पर उतरे 'मुखौटे'
मुखौटों की दुनिया मे रहता है आदमी,
मुखौटों पर मुखौटे लगता है आदमी;बार बार बदलकर देखता है मुखौटा, फिर नया मुखौटा लगाता है आदमी..... - (डा. ए. कीर्तिवर्द्धन अग्रवाल) |
कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.
जब मंद पवन के झोंके से
तरु की डाली हिलती है
पंछी के कलरव से
कानों में मिश्री घुलती है
तब लगता है कि तुम
यहीं - कहीं हो
(4)
कुछ दूर हमारे साथ चलो --इब्राहीम अश्क
कुछ दूर हमारे साथ चलो हम दिल की कहानी कह देंगे
समझे न जिसे तुम आँखों से वो बात ज़ुबानी कह देंगेडा. मेराज अहमद |
(6)
मनमोहन बनाम अफजल गुरु.....
( कौन कहता है कि पीते समय गंभीर बातें नहीं होतीं )
झटका लगा ना आपको, हैरत में पड़ गए होंगे, ये क्या बात है। अरे इन दोनों में भला क्या तुलना हो सकती है। मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री हैं और अफजल गुरु देश की संसद पर हमले का मास्टर माइंड।
उसका जीवन..
रोज़ पीठ पर बोझा लादे
वो दिख जाता है
किसी दुकान पर
पसीने से तर बतर
उसके चौदह बरस के शरीर पर
बदलते वक़्त की खरोचें
अक्सर दिख जाती हैं
कभी बालू ,सीमेंट ,गिट्टी
और कभी अनाज के बोरों
से निकलने वाली धूल
उसके जिस्म से चिपकती है
|
पत्नी पग-पग पर परे, पल-पल पति पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||(8)कनुप्रिया - तुम मेरे कौन होमेरे सपनेतुम मेरे कौन हो कनुमैं तो आज तक नहीं जान पाई बार-बार मुझ से मेरे मन ने आग्रह से, विस्मय से, तन्मयता से पूछा है- ‘यह कनु तेरा है कौन? बूझ तो !’ | (9)खेती का आविष्कार और सामंती समाज व्यवस्था का उदय : बेहतर जीवन की तलाश-3 |
हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
हारहूर=मद्य
आहार-विरह=रोटी के लाले
(10)दुपट्टा आसमानी शाल नीली ...------दिगम्बर नासवागिरे है आसमां से धूप पीली पसीने से हुयी हर चीज़ गीली खबर सहरा को दे दो फिर मिली है हवा के हाथ में माचिस की तीली |
(11)
ख़जाना
मैं देखती रह गयी उन्हें
असीम फलक पर उड़ते हुए...
सपनों में रंग भरने लगे
मैं देखती रह गयी उन्हें
स्याह सिक्त होते हुए.......
आशाओं की कोख उजड़ गयी
मैं देखती रह गयी उन्हें
बेबस बाँझ होते हुए......
सोच को मार गया लकवा
मैं देखती रह गयी उन्हें
आज से लगभग एक वर्ष पहले इसी ब्लाग पर एक बालगीत प्रकाशित हुआ था शैशव। यह एकमात्र बालगीत है जो अभी तक इस ब्लाग पर प्रकाशित हुआ है। पाँच पदों में रचे गए इस गीत में बालवृत्तियों का और उसके मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण हुआ है। आचार्य़ परशुराम राय द्वारा रचित यह बालगीत बहुत ही सरस, सहज और मनमोहक है। इसकी शब्द योजना आकर्षक है। आँच के इस स्थायी स्तम्भ पर अभी तक किसी भी बाल गीत पर चर्चा नहीं हुई है। अतः सोचा कि इस रचना के माध्यम से इस रिक्ति को भरने का कुछ प्रयास किया जाए।
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चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
तेज तड़ित तन तोड़ती, तददिन तमक तड़ाक |
(13)हार-जीत : निज़ार कब्बानी |
मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव
(14)माँ! अबकी सन्मार्ग दिखा देनाpragyan-vigyanविकास विकास की करते बात हम पहुच गए हैं भ्रष्टाचार तक. आचार विचार सब भूल गए छूट गया है शिष्टाचार तक. |
(15)
"होठों को फिर भी, सिये जा रहें हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
घुटन और सड़न में जिए जा रहे हैं,
जहर वेदना के पिये जा रहे हैं।
(16)कलकत्ता यात्रा- दिल्ली से हावडा
पिछले महीने कुछ ऐसा योग बना कि अपन को बिना छुट्टी लगाये ही चार दिन की छुट्टी मिल गई। इतनी छुट्टी और बरसात का महीना- घूमना तय था। हां, बरसात में अपना लक्ष्य गैर-हिमालयी इलाके होते हैं। दो साल पहले मध्य प्रदेश गया था जबकि पिछले साल उदयपुर। फिर दूसरी बात ये कि इन चार दिनों में कम से कम दो दिन रेल एडवेंचर में लगाने थे और बाकी दो दिन उसी ‘एडवेंचर’ वाले इलाके में कहीं घूमने में।
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(विशेष-२)
कबीरा खडा़ बाज़ार में
HAPPY BIRTHDAY DEAR HEART
Your heart has an age ,and this World Heart Day I decided to wish it a Happy Birthday।
दिल की सलामती के लिए कुछ छोटी छोटी बातें बड़े काम की सिद्ध हो सकतीं हैं :-
(१)शोपिंग से पहले घर से ही कुछ हलका फुलका स्वास्थ्यकर भोजन खाके निकलिए आम प्रवृत्ति है हम भारतीयों की शोपिंग के बाद बाज़ार में कुछ चाट पकौड़ी ,पानी पूरी गोलगप्पे खाने की ।
(२)पसंदीदा संगीत एक सक्षम तनाव -रोधी है .अच्छे संगीत के साथ आपका दिल भी मस्ती में झूमता गाता इतराता है .रोज़ सुनिए अपने दिल की थिरकन ।
(३)खाना पकाते वक्त खाना टेस्ट मत करिए .खाने के मेज पर अच्छी भूख लेकर जाइए .दिल से खाइए ।
(४)एक अंडे में २१० मिलीग्राम कोलेस्ट्रोल होता है .३०० मिलीग्राम से ज्यादा खुराकी कोलेस्ट्रोल दिल के लिए अच्छा नहीं है .(वैसे एग यलो यानी सन साइड ऑफ़ दी एग को लेकर विवाद है कुछ लोग इसे निकाल देते हैं ,खाते नहीं हैं ,कुछ खुराक के माहिर इसे सेहत के लिए अच्छा बताते हैं आप अपने माहिर की बात मानिए .हमारा ओर्थोपीडिशियाँ अस्थि रोग माहिर एक अंडा रोज़ खाने की सलाह देता है हृद विज्ञानी मनाही करता है
(17)मंत्र कर्मों कामिट रहा है वह तो केवल रूप है
लेख कर्मों का कभी मिटता नहीं.
निज सुखों को वार, जग से प्यार कर
यश कमा, यह धन कभी लुटता नहीं.
मत समझ अपना-पराया, बाँट दे
सुख लुटाने से कभी घटता नहीं.
स्वार्थ-मद में मत कभी हुंकार भर
गर्जना से आसमां फटता नहीं.
तंत्र तन का एक दिन खो जायेगा
मंत्र कर्मों का कभी कटता नहीं.
(मेरे छत्तीसगढ़ी ब्लॉग मितानी-गोठ में नव-रात्रि के अवसर पर दुर्गा जी के दोहों की श्रृंखला पोस्ट की जा रही है,मेरा विश्वास है कि हमारी आंचलिक भाषा छतीसगढ़ी को हिंदी के बहुत करीब पायेंगे. कृपया अवश्य ही पधारें
http://mitanigoth.blogspot.com)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़. |
(विशेष-३ )
कुँवर कुसुमेश
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो.
पलटकर ज़माने के तेवर तो देखो.
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
(18)न कहीं तुम्हे कभी भी चक्रेश ही मिलेगाये नमी ही क्या कुछ कम थीजो रुलाया मुझको ऐसे इक हंसी मेरे लबों की क्यूँ तुमको न रास आई . |
(19)तुम ना आएतुम ना आए इस उपवन में आते तभी जान पाते कितने जतन किये स्वागत की तैयारी में | अमराई में कुंजन में जमुना जल के स्पंदन में कहाँ नहीं खोजा तुमको इस छोटे से जीवन में | | आशामैंने साइंस विषयों के साथ बी.एस.सी.किया है ! उसके बाद अर्थशास्त्र तथा अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.तथा बी.एड.किया है !शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में लेक्चरर के पद पर मैंने कई वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया है ! साहित्य के प्रति अभिरुचि एवं रुझान मुझे विरासत में मिले हैं ! अपने जीवन के आस पास बिखरी छोटी-छोटी घटनाएं, सामान्य से चरित्र तथा इनसे मिले अनुभव मेरे लिये बड़ी प्रेरणा बन जाते हैं जिन्हें मैं अपनी रचना के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास करती हूँ ! | खोजा गलियों में कदम के पेड़ तले तुम दूर नज़र आए मगन मुरली की धुन में पलक पावडे बिछाए थे उस पल के इन्तजार में वह होता अनमोल अगर तुम आ जाते | आते यदि अच्छा होता सारा स्नेह वार देती प्यारी सी छबी तुम्हारी मन में उतार लेती | |
(20)दुनिया को हँसाया जाए
दर्द-ए -दिल, ले ले गम-ए-जिन्दगी जो गीत ग़ज़ल,
बस तरन्नुम में वही यार सुनाया जाए / |
मेरी टिप्पणियां और लिंक ||श्रम - सीकर अनमोल है, चुका सकें न मोल |नत - मस्तक गुरुदेव है, सारा यह भू-गोल ||
घोर निराशा से भरा, कुम्हलाया है रूप |
जिजिविषा प्रणम्य पर, मुखड़ा आज कुरूप|
मुखड़ा आज कुरूप , सुबह से बहुत कचोटे |
गुरुजन का अवसाद, बताता चेले खोटे |
रविकर हों आश्वस्त, लिखे क्यूँ ऐसी भाषा ?
देखा मुखड़ा-रूप, हुई है घोर निराशा || मन और झील कभी नहीं भरती----दीपक की बक-बक
मन-का मनमथ-मनचला, मनका पावै ढेर |
मनसायन वो झील ही, करती रती कुबेर |
करती रती कुबेर, झील लब-लबा उठी है |
हुई नहीं अंधेर, नायिका सुगढ़ सुठी है |
दीपक की बकवाद, सुना तो माथा ठनका |
कीचड़ सा उपमान, रोप कर तोडा मनका ||
कभी-कभी....डॉ. शरद सिंहध्वनन, ध्वन और ध्वन्य से -- प्रभावी अव्यक्ति | ध्वंसक के लिए असहनीय -----मौनित्व की शक्ति || ध्वनन=अव्यक्त शब्द ,,,,ध्वन= शब्द ,,,,,ध्वन्य=व्यंगार्थ कालू गरीब हाजिर हो-
अष्टावक्र
थर्ड-क्लास को ट्रेन से, हटा चुके थे लोग | |
बिगत चर्चा मंच की दो विशिष्ट टिप्पणियांDR. ANWER JAMAL said...रविकर चर्चा मंच की प्रस्तुति अति अनूप |ज्यों बरखा के संग में लुक-छुप खेले धूप ||बढ़िया चर्चा के लिए- शुक्रिया. बहुत ही श्रम से सजाई गयी पोस्ट। Vishaal Charchchit said.. .बहुतै अच्छा लिख गए हे रविकर कविराय अब कुछ ऐसा सूत्र बताओ भाग गरीबी जाय.... रविकर said... रेखा-फीगर शून्य हो, बने करीना कैट | गौण गरीबी गुमे गम, बोलो हाउज-दैट || Vishaal Charchchit said... पर ये अमीरी में लिपी पुती सारी की सारी अंकल यहाँ प्याज का नहीं ठिकाना, कहते हो पकोड़े तल| Ravikar said--- बड़ी हरेरी है चढ़ी, बत्तिस रूपया पाय | फोटो देखो प्याज का, सुन बचुआ चितलाय || |