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Sunday, February 19, 2012

"क्यों होता है सब ?" (चर्चा मंच-794)

मित्रों!
कल से सोच रहा था कि सबके ब्लॉग पर जाकर कमेंट करूँगा मगर नेट जवाब दे गया और कहीं भी नहीं जा पाया। कल रविवार है और चर्चा भी लगानी है इसलिए साइबर कैफे से कुछ अपनी पसंद के लिंकों की चर्चा लगा रहा हूँ! उस रोज जब तुमने, मुझे "बेटा" पुकारा था कितना वात्सल्य कितना अपनत्व था, तुम्हारे इस स्नेहिल सम्बोधन में, शिव-आशीषों की सौगात,लेकर "आयी है शिवरात"! 
क्यों होता है सब ? *मन उदास * *ह्रदय व्यथित इतना करा,इतना सहा फिर भी * *क्यों होता नहीं कोई खुश? सारी इच्छाएं सारे सपने ,सारे लक्ष्य क्यों होते हैं सब ध्वस्त...! टूटी अलगनी घर की अलगनी के दो छोर जोड़े रहे दो दीवारों की दूरी, दूर हो कर भी बने रहे एक ही सूत्र के दो छोर. जिसने जो चाहा टांग दिया, ढ़ोते रहे सारे घर का बोझ...! स्मृतियाँ *स्मृतियाँ * यूं तो सभी के लिए स्मृतियों के अपने अलग ही मायने होते हैं। स्मृतियाँ जीवन का वो फूल होती है जो सदा ही अपनी सुगंध से आपके जीवन को महकाया करती है...! आ कुछ पल आसमान में सितारे टांकें...! कबतक गढ़ती रहेगी ये सांचे आ, री! किस्मत दो घड़ी बैठ आ कुछ हवाओं में घुली कथाएँ बांचें यूँ कब तक दुविधाओं में डालती रहेगी कुछ ठहर तो ले... सांस ले ले...! ऋतुमाला: अनचाहे गर्भ से बचने का प्राकृतिक उपाय। साइकिलबड्स या मालाचक्र या ऋतुमाला एक बेहद सस्‍ती तकनीक है, जो भारत की बढ़ती जनसंख्‍या पर काबू पाने में काफी सहायक हो सकती है। यह उपाय उन लोगों के लिए है,... मौत कहते हैं जिसे वो ज़िन्दगी का होश है Death is life उनके तो दिल से नक़्शे-कुदूरत[1] भी मिट गया। हम शाद[2] हैं कि दिल में कुदूरत नहीं रही....! हमारा जमाना , तुम्हारा जमाना .. वार्तालाप के दौरान कई बार मुंह से फिसल ही जाता है , हमारे ज़माने में ऐसा होता था ,वैसा होता था , अमर हो गए तुम गुज़रे तुझे इन गलियों से यूँ तो इक ज़माना गुज़र गया पर यकीं है इतना गर आये तो आज भी इन्हें पहचान लोगे चका चौंध तो कुछ बढ़ी है नज़रें तुम्हारी पर इनपे ..! उसने देखा इस नज़र से उसने देखा इस नज़र से | मैं गिरा अपनी नज़र से || अधर में बड़ी देर डोला | टूटा पत्ता जब शज़र से || रात कितनी बाकी है अभी | पूछे सन्नाटा गज़र से || साथ रखना दुआए...! गुजरे बरस ये तेरह , जैसे कटे बनवास गुजरे बरस ये तेरह , जैसे कटे बनवास , फिर उठी मन में कामना मधुमास की. आज मेरे विवाह को तेरह वर्ष पूरे हो गए, ! लेखन की दुकान कहा एक भाईसे मै व्यंगकार हूँ मेरा व्यंग सुनोगे ?? बोला, सुन तो मै लूँगा , बदले में क्या दोगे ? मैंने कहा, मेरे तो बस मेरा व्यंग रूपी ज्ञान है ,....! रास बहुत रच गया था कान्हा -अब वक्त हिदायत देता है, और जाग उठी तरुणाई है, ओ देश धर्म के ठेकेदारों, हमने अब अलख जगाई है....! कटु लहजा.. मेरी भाषा थोड़ी कड़क और घायल करने वाली होती है। मैं ऐसी नहीं थी, ऐसा लिखना नहीं चाहती थी, लेकिन हमारे समाज में हो रहे सत्ता के ढोंग ने मुझे ऐसा बना दिया। एक ...! फ़ुरसत में … प्रेम-प्रदर्शन - एक वो ज़माना था जब वसंत के आगमन पर कवि कहते थे, .....! जरूरतें बड़ी ....... *सपने मत देखिये * *जिंदगी एक हकीकत है * *स्वप्न नहीं !* *ख्वाब मत बुनिये* *बुनियादी जरूरतें इतनी हैं कि* *ख्वाबों के लिए जगह नहीं..... ! तमाचा तमाशा-हाइगा में -''SLAP DAY'' 15 फरवरी को यही दिन था| यह बात मुझे उसी दिन पता चली जब बच्चों ने प्यारी सी चपत लगाकर ''हैप्पी स्लैप डे ''कहा| बस सोचा हाइगा बना दूँ....! धूम्रपान हमारे शरीर के लिए एक खलनायक के रूप में सामने आता है साइनस संक्रमण में एंटीबायोटिक्स की भूमिका कितनी प्रासंगिक ? साइनस संक्रमण में एंटीबायोटिक्स की भूमिका कितनी प्रासंगिक ?...! संभलने का रियाज अगर होता सियासत में -संभलने का रियाज अगर होता सियासत में, तो तुम तुम नही होते और हम हम नही होते| न मजाक हम बनते, न मजा तुम उड़ा पाते...! मटर की फलियाँ सारी सब्जी सामने, आप चुन लीजिये सप्ताहन्त का एक दिन नियत रहता है, सब्जी, फल और राशन की खरीददारी के लिये, यदि संभव हो सके तो शनिवार की सुबह....! अग़ज़ल - 34 हाले-दिल उन्हें बता न पाए ,बस यही खता रही । इसी सबब के चलते उम्र भर तड़पने की सजा रही । हम अभी राह में थे , वो पार कर गए कई मंजिलें वो बादलों के हमख्याल थे,...! तुम पास नहीं होती.. मेरे, प्रकृति सताने आती है आस लिये नयनों में अपने, प्यार जताने आती है..............! तरह-तरह के लोग दर्शन मितवा मैं एक भयंकर स्थिति में फंसकर एक लाइन में खड़ा हूँ और काँप रहा हूँ। मेरे साथ घटने वाली यह घटना मेरी सूरत के कारण है या मौजूदा माहौल के कारण, ..! क्या मैं अकेली थी सुनसान सी राह और छाया अँधेरा गिरे हुए पत्ते उड़ती हुयी धूल उस लम्बी राह में मैं अकेली थी । चली जा रही सब कुछ भूले ना कोई निशां ना कोई मंजिल ....! तेरी आँखों की भाषा ... तेरी आँखों की भाषा पढ़ते पढ़ते पढ़ नहीं पाए तुझसे बिछड़ के फिर किसी से मिल नहीं पाए ! बदला कुछ भी नहीं है सिर्फ वक्त की घड़ियाँ ही बदली हैं ! अभी भी तुम ...! ऊँचे ओहदे दुनियां पीछे.....  ऑंखें मीचे आँखे मीचे || पैसे में है सारी ताकत || कौन है ऊपर कौन है नीचे || फर्क अमीरी और गरीबी | एक चांदनी एक गलीचे ....!मुझको छूके पिघल रहे हो तुम  मेरे हमराह जल रहे हो तुम चाँदनी छन रही है बादल से जैसे कपडे बदल रहे हो तुम पायलें बज रही है रह-रह के ये हवा है के चल रहे हो तुम ...! चुनावी महासमर में भटकती आत्माएंचुनावी महासमर अपने पूरे शबाब पर है। राष्ट्रीय स्तर के और प्रादेशिक स्तर के राजनैतिक दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर के दल भी अपनी हनक दिखाने में लगे हुए ...! गुजरे बरस ये तेरह , जैसे कटे बनवास  फिर उठी मन में कामना मधुमास की. आज मेरे विवाह को तेरह वर्ष पूरे हो गए, अपने मन के विचारों को शब्दों में पिरो... ! तुम्हारी याद की खुशबू को लेकर जब हवा आयी--- मैं तेरे दिल में बसता हूँ कुछ ऐसी ही सदा आयी तेरे क़दमों को चूमें क़ामयाबी हर घड़ी हर पल मेरे होटों पर जब भी ...! सार्थक ब्लॉगिंग की ओर -ब्लॉगिंग का अपना एक *स्वभाव* है , उसकी अपनी एक* प्रकृति* है ( यह विषय फिर कभी ) इन सभी के बाबजूद ब्लॉगिंग करने के लिए कुछ बाते निर्धारित की जा सकती हैं ....! मुर्रा भैंसों का कैटवाक:स्पर्धा में बेशर्म चयनित ,शर्मीली बाहर! यह अभिनव आयोजन हरियाणा के जींद शहर में होना तय है .इसके पहले सोनपुर के प्रसिद्ध पशु मेले में भी ऐसे आयोजन को जनता का भरपूर समर्थन मिला था ...माडल्स का कैटव...!

32 comments:

  1. नेट के कारण कई बार बहुत असुबिधा
    होती है पर आपकी दृढ़ इच्छा शक्ति को मानना
    पड़ेगा |आज भी लिंक्स काफी और अच्छी हैं |अच्छी चर्चा |
    आशा

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  2. चर्चा का यह अंदाज अच्‍छा लगा।

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  3. एक कार्टून के शब्द तो बहुत ही छोटे हैं मैं पढ़ ही नहीं पाया ☺ चर्चा के लिए धन्यवाद

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  4. अच्छी चर्चा ...
    आभार !

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  5. रोचक ढंग से प्रस्तुत, कहानी की तरह...

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  6. असुविधा में भी इतने सारे लिंक्स का संयोजन और प्रस्तुति शानदार है...
    आभार!

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  7. काजलकुमार जी!
    आप सम्बन्धित लिंक को खोलिए और कार्टून की भाषा को पढ़ लीजिए!
    आभार!

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  8. बढ़िया चर्चा..बढ़िया लिंक्स...

    सादर..

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  9. शास्त्री साहब, यह कार्य बड़ा ही श्रमसाध्य है, मानना पड़ेगा आपकी लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति को...

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  10. शास्त्री जी,..मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत२ आभार.....
    चर्चा अच्छी लगी ,....

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  11. बढ़िया लिंक्स...

    बढ़िया चर्चा...

    सादर..

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  12. बहुत बहुत आभार!
    बहुत ही सारी प्रेरणादायी रचनाओं से परिचय करवाने के लिए |
    हमारे रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार!

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  13. व्यकतिगत व्यस्ततता के कारन मंच से दूर था , अब सब ठीक है ,

    अच्छी चर्चा , मेरी रचना लेखन की दुकान शामिल करने के लिए धन्यवाद .

    सादर

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  14. .क्या कहने हैं सभी लिंक्स के एक से बढ़के एक .चयन और प्रस्तुति के लिए बधाई .

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  15. kya baat hai ! A bunch of unmatched flowers thanks sir !

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  16. सुंदर लिंक्स...चर्चा प्रस्तुतीकरण बहुत रोचक, एक कहानी की तरह...आभार

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  17. सुन्दर लिंक संयोजन

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  18. charcha sajaane ka rtika bahut bdhiya tha,ase lga koi kahani likhi hai,bdhaai aap ko

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  19. सुंदर लिंक्स...सुंदर चर्चा प्रस्तुतीकरण

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  20. अच्छे लिंक्स के साथ बहुत ही बढ़िया चर्चा मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार...

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  21. अच्छी प्रस्तुति.... सुन्दर लिंक्स...
    सादर आभार...

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  22. आपका जुनून काबिले तारीफ है। ऐसे ही हौसले ब्लागिंग में प्राण फूंकते रहते हैं।

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  23. bahut achchi prastuti tartamyta bdi achchi lgi.

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  24. कम्प्यूटर जवाब दे गया फिर भी ढेर सारे लिंक दे गए आप तो शास्त्री जी॥

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  25. bahut sundar charcha...aaj aayi hun is charcha par... aapko mahashivraatri par hardik shubhkaamnayen

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  26. हमारी पोस्ट की चर्चा आप जैसे योग्य लोग करें तो लगता है कि लिखा हुआ सार्थक हो रहा है..आपका आभार

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