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शालिनी कौशिक
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किसे चुने हत्यारो और लुटेरों में ?
tarun_kt
टेरे माया को सदा, करें बैंक संपुष्ट | करें बैंक संपुष्ट, बना देते भिखमंगा | मर मर जीना व्यर्थ, नाचता डाकू नंगा | हत्यारा है यार, ख़याल रख रहा हमारा | वह मारे इक बार, रोज मत मरना यारा || |
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
नाती-पोता नेहरू, कर्ता धर्ता *शेख |
अब्दुल्ला के ब्याह में, दीवाना ले देख |
दीवाना ले देख, मरे कश्मीरी पंडित |
निर्बल बिन हथियार, जवानो के सिर खंडित |
डंडे से गर मोह, संघ को भेजो पाती |
वह *मोहन तैयार, करो रविकर तैनाती ||
*भागवत
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Rajendra Kumar
लाई-गुड़ देती बटा, मुँह में लगी हराम |
रेवड़ियाँ कुछ पा गए, भूल गए हरिनाम | भूल गए हरिनाम, इसी में सारा कौसल | बिन बोये लें काट, चला मत खेतों में हल | बने निकम्मे लोग, चले हैं कोस अढ़ाई | गए कई युग बीत, हुई पर कहाँ भलाई ?? |
जरा सी कहीं सेकुलर बे -बसी है -डॉ वागीश मेहता
Virendra Kumar Sharma
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Devdutta Prasoon
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madhu singh
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नाहक चिंता कर रहे, मातु-पिता कर्तव्य |
हक़ है हर औलाद का, मातु पिता हैं *हव्य |
मातु पिता हैं *हव्य, सहेंगे हरदम झटका |
वह तो सह-उत्पाद, मिलन के पांच मिनट का |
खोदो खुद से कूप, बरसते नहीं बलाहक |
होय छांह या धूप, करो मत चिंता नाहक || हवन-सामग्री- |
सुशील बाकलीवाल
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बेचारा सूरज
Priti Surana
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होली न सुहाय
Asha Saxena
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बस तेरी चुप्पी मुझे खलने लगी
नादिर खान
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तेरा प्यार ही ....
Dr (Miss) Sharad Singh
Dr Varsha Singh
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"मयंक का कोना"
(१) आग में इस क़दर धुंआ क्या है? कोई बतला दे के हुआ क्या है? (२) क दांत शरीर का अनमोल अंगस्वस्थ और मजबूत दांत सिर्फ चेहरे की सुंदरता ही नहीं बढ़ाते अपितु पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखते हैं । पहले जमाने मे लोग दाँतो व मसूड़ों की सुरक्षा व मजबूती के प्रति काफी सतर्क रहते थे परंतु ऐसा नहीं है कि आज नहीं है , लेकिन आज केवल नए नये दँत मंजनों के विज्ञापन ही लुभा पाते हैं। आज का खान पान दांतों पर बहुत बुरा असर डालता है। .... (२) ख होली पर विशेषरंगों का त्योहार होली बसंत पंचमी के आते ही प्रकृति मे नए परिवर्तन आने लगते है , पतझड़ आने लगता है , आम की मंजरियों पर भंवरे मंडराने लगते है , कहीं कहीं वृक्षों पर नए पत्ते भी दिखाई देने लगते है । प्रकृति मे नवीन मादकता का अनुभव होने लगता है । इसी प्रकार होली का पर्व आते ही नई रौनक , नए उत्साह और नई उमंग की लहर दिखाई देने लगती है... (३) श्रद्धेया-उन्नयन (UNNAYANA) कभी कुंआरी थी अब पेट से है कलम ठहराव आ गया है ,रफ़्तार कम है - प्रवाह था रोशनाई में अब जम गयी है... |
रविकर भाई, मस्त चर्चा सजाई।
जवाब देंहटाएं............
बीमारियों से लडने की चमत्कारिक तकनीक...
Thanks 4 nice links.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में सभी लिंक पठनीय हैं!
आभार रविकर जी!
उम्दा लिंक्स से सजा आज का चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंहोली पर पढ़ लीजिये सुन्दर से प्रसंग |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
बहुत ही सार्थक पठनीय लिंकों से सजी आज की चर्चा,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा..
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स..
आभार रविकर जी.
अनु
रविकर जी, होली की अग्रिम शुभकामनायें..सुंदर चर्चा, आभार!
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स
सुन्दर चर्चा लिंक !!
जवाब देंहटाएंरविकर जी चर्चा मंच में होली का रंग दिखने लगा है। बहुत सारी उपयोगी एवं उम्दा लिंक्स पढ़ने को मिले। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया, उम्दा चर्चा के लिए आभार रविकर जी !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ख़ूब! आभार महोदय!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
सुन्दर लिनक्स संजोये हैं आपने . मेरी पोस्ट को ये सम्मान देने के लिए आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा ...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
झीनी रेल बिठाइ के, कालीकट पहुँचाए ।
जवाब देंहटाएंसिहासन लिपटाई के, मोटी माया भाए ॥
भावार्थ : --
मन की आसक्ति स्वरूप सूक्ष्म माया से नाता तोड़ लिया ।
और धन-संपत्ति, पुत्र, घर-द्वार आदि स्वरूपी मोटी माया
को सिंहासन के लोभ में ह्रदय में रखा ॥
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहोली की शुभ कामना, भरें प्रीति के रंग !
जवाब देंहटाएंनशा प्यार का खूब है, फिर क्या पीना भंग ||
चर्चा मंच पर रंग विरंगी चर्चाएं होलई की वाधाई के समान है !!
रविकर जी ऐसे ही साहित्य की सेवा करते रहें !!
सार्थक और
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
बधाई
बहुत मेहनत से तैयार किये हैं रविकर भाई सेतु संयोजन भी कुंडली नुमा ला -ज़वाब .
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जवाब देंहटाएंजब कोई दूर दूर रहता है आहटें ही नसीब होतीं हैं ,
रास्तों के करीब होती हैं .आकर्षक प्रस्तुति .
रविकर भाई सेकुलर बे -बसी को आपने शरीक किया शुक्रिया नजरे इनायत का चर्चा मंच पे वागीश जी को निरंतर लाने का .फाग मुबारक .
जवाब देंहटाएंपहले तो रविकर भाई जी बहुत-बहुत आभार अदा करती हूँ आपका जो आज के लिए मेरी जिम्मेदारी उठाई ,दूसरे आपको इतनी सुंदर चर्चा हेतु हार्दिक बधाई देती हूँ सभी बेहतरीन लिंक्स चुने हैं सब धीरे धीरे पढ़ूँगी आज स्वास्थ्य ठीक नही है
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