Followers



Search This Blog

Tuesday, March 19, 2013

यारा हत्यारा चुनो, बड़े लुटेरे दुष्ट : चर्चा मंच 1188

आया रंगों का त्यौहार,
होली भरती है हुंकार, 
प्यार का मौसम आया।

शालिनी कौशिक  

किसे चुने हत्यारो और लुटेरों में ?

tarun_kt 


यारा हत्यारा चुनो, बड़े लुटेरे दुष्ट |
टेरे माया को सदा, करें बैंक संपुष्ट |

करें बैंक संपुष्ट, बना देते भिखमंगा |
मर मर जीना व्यर्थ,  नाचता डाकू नंगा |

हत्यारा है यार, ख़याल रख रहा हमारा |
वह मारे इक बार, रोज मत मरना यारा || 

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 




नाती-पोता नेहरू, कर्ता धर्ता *शेख |

अब्दुल्ला के ब्याह में, दीवाना ले देख |

दीवाना ले देख, मरे कश्मीरी पंडित |

निर्बल बिन हथियार, जवानो के सिर खंडित |

डंडे से गर मोह, संघ को भेजो पाती |
वह *मोहन तैयार, करो रविकर तैनाती ||
*भागवत
लाई-गुड़ देती बटा, मुँह में लगी हराम |
रेवड़ियाँ कुछ पा गए, भूल गए हरिनाम |

भूल गए हरिनाम, इसी में सारा कौसल |
बिन बोये लें काट, चला मत खेतों में हल |

बने निकम्मे लोग, चले हैं कोस अढ़ाई |
गए कई युग बीत, हुई पर कहाँ भलाई  ??

जरा सी कहीं सेकुलर बे -बसी है -डॉ वागीश मेहता

Virendra Kumar Sharma 
झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य (ग) चूर एकता (रूपक-गीत)

Devdutta Prasoon 

madhu singh 
 Benakab  

Ashok Saluja 

नाहक चिंता कर रहे, मातु-पिता कर्तव्य |
हक़ है हर औलाद का, मातु पिता हैं *हव्य |

मातु पिता हैं *हव्य, सहेंगे हरदम झटका |
वह तो सह-उत्पाद, मिलन के पांच मिनट का |

खोदो खुद से कूप, बरसते नहीं बलाहक |
होय छांह या धूप, करो मत चिंता नाहक ||

हवन-सामग्री-

सुशील बाकलीवाल

बेचारा सूरज
Priti Surana 
होली न सुहाय

Asha Saxena 
 Akanksha  

बस तेरी चुप्पी मुझे खलने लगी

नादिर खान 
तेरा प्यार ही ....
Dr (Miss) Sharad Singh 

Dr Varsha Singh 
कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता
दुर्मिल सवैया
इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।
पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।
कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।
इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥

साहित्यकार इब्राहीम जी कुम्भ में
"मयंक का कोना"
(१)
ग़ाफ़िल की अमानत
आग में इस क़दर धुंआ क्या है?
कोई बतला दे के हुआ क्या है?
(२) क
दांत शरीर का अनमोल अंगस्वस्थ और मजबूत दांत सिर्फ चेहरे की सुंदरता ही नहीं बढ़ाते अपितु पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखते हैं । पहले जमाने मे लोग दाँतो व मसूड़ों की सुरक्षा व मजबूती के प्रति  काफी सतर्क रहते थे परंतु ऐसा नहीं है कि आज नहीं है , लेकिन आज केवल नए नये दँत मंजनों के विज्ञापन ही लुभा पाते हैं। आज का खान पान दांतों पर बहुत बुरा असर डालता है। ....
(२) ख
होली पर विशेषरंगों का त्योहार होली 
बसंत पंचमी के आते ही प्रकृति मे नए परिवर्तन आने लगते है , पतझड़ आने लगता है , आम की मंजरियों पर भंवरे मंडराने लगते है ,  कहीं कहीं वृक्षों पर नए पत्ते भी दिखाई देने लगते है । प्रकृति मे नवीन मादकता का अनुभव होने लगता है । इसी प्रकार होली का पर्व आते ही  नई  रौनक , नए उत्साह और नई उमंग की लहर दिखाई देने लगती है...
(३)
श्रद्धेया-उन्नयन (UNNAYANA)

कभी कुंआरी थी अब पेट से है कलम 

ठहराव आ गया है ,रफ़्तार कम है -
प्रवाह था रोशनाई में अब जम गयी है...

25 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आज की चर्चा में सभी लिंक पठनीय हैं!
    आभार रविकर जी!

    ReplyDelete
  2. उम्दा लिंक्स से सजा आज का चर्चा मंच
    होली पर पढ़ लीजिये सुन्दर से प्रसंग |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सार्थक पठनीय लिंकों से सजी आज की चर्चा,सादर आभार.

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छी चर्चा..
    सुन्दर लिंक्स..
    आभार रविकर जी.

    अनु

    ReplyDelete
  5. रविकर जी, होली की अग्रिम शुभकामनायें..सुंदर चर्चा, आभार!

    ReplyDelete
  6. बढिया चर्चा
    अच्छे लिंक्स

    ReplyDelete
  7. रविकर जी चर्चा मंच में होली का रंग दिखने लगा है। बहुत सारी उपयोगी एवं उम्दा लिंक्स पढ़ने को मिले। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार ।

    ReplyDelete
  8. बढ़िया, उम्दा चर्चा के लिए आभार रविकर जी !

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छी चर्चा

    ReplyDelete
  10. सुन्दर लिनक्स संजोये हैं आपने . मेरी पोस्ट को ये सम्मान देने के लिए आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर चर्चा ...
    मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

    ReplyDelete
  12. झीनी रेल बिठाइ के, कालीकट पहुँचाए ।
    सिहासन लिपटाई के, मोटी माया भाए ॥

    भावार्थ : --
    मन की आसक्ति स्वरूप सूक्ष्म माया से नाता तोड़ लिया ।
    और धन-संपत्ति, पुत्र, घर-द्वार आदि स्वरूपी मोटी माया
    को सिंहासन के लोभ में ह्रदय में रखा ॥

    ReplyDelete
  13. होली की शुभ कामना, भरें प्रीति के रंग !
    नशा प्यार का खूब है, फिर क्या पीना भंग ||
    चर्चा मंच पर रंग विरंगी चर्चाएं होलई की वाधाई के समान है !!
    रविकर जी ऐसे ही साहित्य की सेवा करते रहें !!

    ReplyDelete
  14. सार्थक और
    सुंदर प्रस्तुति
    बधाई

    ReplyDelete
  15. बहुत मेहनत से तैयार किये हैं रविकर भाई सेतु संयोजन भी कुंडली नुमा ला -ज़वाब .

    ReplyDelete

  16. जब कोई दूर दूर रहता है आहटें ही नसीब होतीं हैं ,

    रास्तों के करीब होती हैं .आकर्षक प्रस्तुति .

    ReplyDelete
  17. रविकर भाई सेकुलर बे -बसी को आपने शरीक किया शुक्रिया नजरे इनायत का चर्चा मंच पे वागीश जी को निरंतर लाने का .फाग मुबारक .

    ReplyDelete
  18. पहले तो रविकर भाई जी बहुत-बहुत आभार अदा करती हूँ आपका जो आज के लिए मेरी जिम्मेदारी उठाई ,दूसरे आपको इतनी सुंदर चर्चा हेतु हार्दिक बधाई देती हूँ सभी बेहतरीन लिंक्स चुने हैं सब धीरे धीरे पढ़ूँगी आज स्वास्थ्य ठीक नही है

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।