फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, मार्च 08, 2013

झटपट करले व्याह, छोड़ मोदी आमोदी : चर्चा मंच 1177



5 मार्च जनकवि कोदूराम दलित जयंती पर विशेष .....
काली थी लैला, काला था कमलीवाला
-ज्ञानसिंहठाकुर
(नई दुनिया 4 मार्च1968 में प्रकाशित लेख, नई दुनिया से साभार)
जिसका कमलीवाला था वह स्वयं भी अपने कमलीवाले की तरह ही काला था तन से, मन से नहीं.....| काव्य-साधना के श्याम रंग थे छत्तीसगढ़ी के वयोवृद्धकवि कोदूराम जीदलित” | उनके काले की महिमा ने तो छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में धूम मचा दी थी | ...गोरे गालों पर काला तिल खूब दमकता....उनका यह कटाक्ष जाने कितनी लावण्यमयियों के मुखड़े पर लाज की लाली बिखेर देता था..... नव-जवान झूम उठते थे.....एक समां बँध जाता था उनकी इस कविता से | आज बरबस ही उनकी स्मृति आती है तो स्मृत हो आते हैं उनके पीड़ा भरे वे शब्द, एक स्वप्न की तरह उनका वह झुर्रीदार चेहरा उभर उठता है स्मृति के आकाश पर.....| वे हाथ में थैली लिए बुझे-बुझे से चले रहे थे मेहता निवास (दुर्ग) के निकट ही वे मुझे मिल गये | मैंने कुशल-क्षेम पूछी तो बरबस ही उनकी आँखें द्रवित हो आई....कहने लगे ज्ञान सिंह बहुत कमजोर हो गया हूँ | चंद्रजी वोरा जी ने मिलकर सिविल सर्जन को दिखाया है...अब अच्छा हो जाऊंगा....| अस्पताल में दवा नहीं है | डॉक्टर लिख देते हैं , प्रायवेट मेडिकल स्टोर्स से दवा खरीदना पड़ता है.... इंजेक्शन लग रहे हैं ताकत बिल्कुल नहीं है शरीर में और यह कहते-कहते उनका कंठ अवरुद्ध हो आया मौत की काली परछाई वे देख रहे थे | एकदम निराश , एकदम शिथिल शून्य मैंने कहा दलित जी आप आराम अधिक करें |ईश्वर सब ठीक कर देगा | आप शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएंगे |इंजेक्शन लग रहे हैं .....तो, ताकत भी जायेगी....उनकी निराश आँखें क्षण भर मुझे देखती रहीं | फिर उन्होंने कहा जिसमें एक साहित्यकार की मर्मांतक पीड़ा कराह रही थी | कहने लगे  ज्ञानसिंह आधा तो कवि सम्मेलन करा - करा कर लोगों ने मार डाला मुझको रात भर चाय पिला-पिलाकर कविता सुनते हैं.....| खाने को दिया तो ठीक है नहीं तो सुनाओ कविता जाग-जाग कर आधी रात तक और 21) लो और घर जाओ कहने लगे ये पी. आर. . संतोष शुकुल कराते हैं सरकारी कवि सम्मेलन उसमें तो कोई चाय तक को नहीं पूछता....||
सोचता हूँ तो ये सब चेहरे एक-एक कर स्मृत हो आते हैं.....महाकवि निराला....मैथली शरण गुप्त....माखनलाल चतुर्वेदी....मुक्तिबोध  इन्होंने हमें क्या नहीं दिया  और क्या दिया हमने उन्हें बदले उसके....| वह इलाहाबाद की माटी हो या दिल्ली की या छत्तीसगढ़ की ...माटी सबकी प्यारी है.... है तो भारत की ही माटी... और इस संदर्भ में याद हो आयी हैं वे पंक्तियाँ जाने क्यों....तन का दिया,प्राण की बाती ...दीपक जलता रहा रात भर | हाँ हमारे दलित जी भी जलते रहे दीपक की तरह....और भूखी और जलती सदी का छत्तीसगढ़ी का कवि दलित भी खो गया पीड़ा के बियाबानों में....| दलित जी सचमुच दलित ही थे शायद जिनका शोषण किया गया | तब वे काफी अस्वस्थ थे एक कवि गोष्ठी में उनकी अस्वस्थता का समाचार मुझे मिला तब मैंने कहा भाई सब मिलकर कुछ करो.....कुछ और नहीं तो उनका सार्वजनिक अभिनंदन ही कर दो....मेरी आवाज को शून्य आकाश निगल गया...और बात आई गई हो गई | नियति को कुछ और ही मंजूर था....| उनकी हार्दिक इच्छा थी कि उनका एक संग्रह छप जाता परन्तु उनकी यह इच्छा उस समय बड़ी ही कठिनाई से पूरी हो पाई जब व्यक्ति की कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती है एक ओर मौत के लम्बे और ठंडे हाथ आगे बढ़ रहे थे उनकी ओर और दूसरी ओर छप रहा था उनका काव्य-संग्रह | कैसी विडम्बना थी वह | अपना जीवन जिसने माँ भारती के चरणों में समर्पित कर दिया उसे अंतिम समय में क्या मिला.....गहन नैराश्य....पीड़ा और मुद्रा राक्षस का आर्तनाद... | सोचता हूँ मेरे छत्तीसगढ़ की धरती सरस्वती पुत्रों को जन्म देती आई है ....क्या उसे उसके पुत्रों की कराह भी सुनाई नहीं देती | जिस धरती की खुशी उसकी खुशी थी ... जिस धरती का दु: उसका दु: था ....उस धरती के लोगों ने क्या दिया उसे.... और एक पश्चाताप की अग्नि में मैं जलने लगता हूँ.... चाहता हूँ इस प्रसंग से हट जाऊँ.....चाहता मोड़ दूँ एक पुष्ट कविता की तरह ......लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाता हूँ .... और एक कवि का... नहीं-नहीं .....एक व्यक्ति का एक सर्वहारे का झुर्रीदार चेहरा आँखों में झूल उठता है |…नहीं-नहीं कवि तो युग-दृष्टा होता है....वह सर्वहारा कैसे हो सकता है वह अजर-अमर है .....छत्तीसगढ़ की माटी में जब तक सोंधी-सोंधी महक उठेगी ,जब तक चाँद और चकोर है, अमराइयों में जब तक काली कोयल गायेगी....चातक जब तक स्वाती की एक बूँद को तरसेगा , तब तक वह अजर-अमर है ....उसके झुर्रीदार चेहरे पर जाने कितने प्रश्न-चिन्ह अंकित थे....और वे छत्तीसगढ़ की माटी में आज भी प्रश्न-चिन्ह बन कर अंकित हैं ....शायद सदा अंकित रहेंगे |

आज भी जब दुर्ग के उन गलीकूचों से गुजरता हूँ तो आते-जाते यह ख्याल आता है कि शायद दलित जी इस ओर से आते होंगे पाँच-कंडील चौराहे पर पहुँचकर ठिठक जाता हूँ....तस्वीरों की यही दुकान है जहाँ उनकी खास बैठक होती थी ....यही वह स्थान है जहाँ वे घंटों बैठे खोये-खोये से जाने क्या सोचा करते थे | मेरे कानों पर फिर उनके शब्द गूँज उठे हैं....आप बहुत अच्छा लिख रहे हो......शिक्षक वाली कविता बहुत सुंदर है.....बिना कफन मत निकले लाशें सरस्वती के बेटों की...हँसी खुशी मत लुटे किसी भी लक्ष्मी के अब ओठों की....आपका आशीर्वाद है दलित जी ....मैं कहता हूँ | ...आज फिर बरबस ही हृदय भर आया है जीवन संघर्षों से जूझते हुये भी एक शिक्षक ने छत्तीसगढ़ी बोली में जो कवितायें लिखी हैं उनमें केवल लोकपरक अनुभूतियों का जीता-जागता चित्रण है बल्कि उनमें छत्तीसगढ़ की धरती का प्यार है.... सोंधी-सोंधी महक है  |यहाँ की लोक-संस्कृति   अलबेले लोक चित्र हैं जिनके माध्यम से वे सदा अजर-अमर रहेंगे | आज उनकी प्रथम जयंती की पावन बेला में सरस्वती के इस वरद् पुत्र को अपने श्रद्धा के सुमन अर्पित करते हैं |

-ज्ञानसिंहठाकुर

(नई दुनिया 4 मार्च1968 में प्रकाशित लेख, नई दुनिया से साभार)


क्यूँ नेहरू की रेस, मिटाए बबलू देता-


आमोदी दादी दुखी, जा दोजख में देश |
पोते को लेता फँसा, पी एम् पद की रेस |

पी एम् पद की रेस, मरे क्या सारे नेता  |
क्यूँ नेहरू की रेस, मिटाए बबलू देता  |

रे पोते नादान, खिलाया तुझको गोदी |
झटपट करले व्याह, छोड़ मोदी आमोदी |  

1

नारी शक्ति...

ऋता शेखर मधु


2

Women Quotes in Hindi

पंछी 
  • यदि नारी वर्तमान के साथ भविष्य को भी अपने हाथ में ले ले तो वह अपनी शक्ति से बिजली की तड़क को भी लज्जित कर सकती है ~ डॉ. रामकुमार वर्मा 
  • किसी भी राष्ट्र की स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर ही उस राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर करती है ~ अरस्तु 
  • यह बहुत महत्वपूर्ण है कि महिलाएं अपने अन्दर का आत्मविश्वास पुरुषों में ढूंढे। मुझे नहीं लगता है कि  एक पुरुष किसी महिला को परिभाषित कर सकता है। महिला को यह काम खुद ही करना होगा ~ जेसिका सिम्पसन 
  • नारी की करुणा अंतर्जगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं ~ जयशंकर प्रसाद 
  • जिस घर में सद्गुण सम्पन्ना नारी सुखपूर्वक निवास करती है। उस घर में लक्ष्मी निवास करती है, सैकड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते हैं ~ महर्षि गर्ग

सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |


सकते में हैं जिंदगी, माँ - बहनों की आज |
प्रश्न चिन्ह सम्बन्ध पर, आय नारि को लाज |

आय नारि को लाज, लाज लुट रही सड़क पर |
दब जाए आवाज, वहीँ पर जाती है मर |

कहीं नहीं महफूज, दुष्ट मिल जाँय बहकते |
बने सुर्खियाँ न्यूज, नहीं कुछ भी कर सकते ||
3

विश्व महिला दिवस पर ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ

Anita 
4

आज की नारी

त्रिवेणी 


Dr.J.P.Tiwari 

6

‘‘अच्छा लगता है’’ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 


7

यही वादा था तुम्हारा ..


उपासना सियाग 


8

मनोज पटेल  


9

सलाह पार्लर

तुषार राज रस्तोगी 

10

अज़ीज़ जौनपुरी :नव वामा मृगनयनी सी

Aziz Jaunpuri 


11

देखते हैं कि प्रवीन जी की तरफ़ से क्या जवाब आता है ?


Dr. Ayaz Ahmad 

12

यादों के साथ इनकी बनती बड़ी है :)


सदा 
 SADA


13

प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६ यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं -अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

शालिनी कौशिक 


14

कोई नहीं आने वाला...


रश्मि शर्मा 


15

लघुकथा -२

अल्पना वर्मा 

16

"बूढ़ी ग़ज़ल-हास्य" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बुड्ढों के हैं ढंग निराले
बूढ़े हैं ज़वान दिल वाले
आये जवानी हाय कहाँ से
अंग हो गये ढीले-ढाले
घुटने थके-जोड़ दुखते हैं
फिर भी इनके मन मतवाले
नकली दाँत-आँख भी नकली
चेहरे हुए झुर्रियों वाले




मयंक का कोना
(1)
नारी तुम अबला नहीं सबला हो
मेरा फोटो
सरिता भाटिया
नारी तुम सबला बनो, तुम हो नर की खान।
जागो नारी आज तो, बल को लो पहचान।।
(2)

**~ ओ स्त्री! क्या यही तेरी मर्ज़ी है...??? ~*
My Photo
अनिता
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।

(3)

मां से
मेरा फोटो
आशा सक्सेना
जो अपनी सन्तान को, करती लाड़-दुलार।

माँ ममता का रूप है, करलो माँ से प्यार।।

(4)
फिर पड़ेंगे ओले जरा सर तो मुड़ायिये
मेरा फोटो
रजनी मल्होत्रा नैय्यर
ओले पड़ते हैं तभी जब बादल छा जाय।
गंजा अपने शीश को, कैसे यहाँ बचाय।।

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और अपने में बहुत कुछ समेटे हुए स्तरीय चर्चा!
    आभार रविकर जी आपका!

    जवाब देंहटाएं
  2. सूत्र बहुल चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. कई रंग हैं आज की चर्चा में...मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरा जवाब... जाने दो दोस्त, हमें मालूम है वहाँ की हकीकत और अंजाम भी...

    प्रवीण शाह

    सुनिये मेरी भी....
    आला आशिक आस्तिक, आत्मिक आद्योपांत ।
    आत्म-विस्मरित आत्म-रति, रहे हमेशा शांत ।

    रहे हमेशा शांत, ईष्ट से लौ लग जाए ।
    उधर नास्तिक देह, स्वयं को केवल भाये ।
    कहते मिथ्या मोक्ष, नकारे खुदा, शिवाला ।
    भटके बिन आलम्ब, जला के प्रेम-पुआला ॥
    आत्म-विस्मरित=अपना ध्यान ना रखने वाला

    आत्म-रति=ब्रह्मज्ञान

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय गुरुदेव श्री प्रणाम बेहद सुन्दर चर्चा बढ़िया लिंक्स

    जवाब देंहटाएं
  6. पिछले पंद्रह/सोलह दिनों से कुछ निजी समस्याओं की वजह से हम क़ायदे से किसी ब्लॉग पर नहीं जा पाए और कई रचनाकारों की कृतियाँ पढ़ नहीं पाए! इस बात का हमें बहुत खेद है!
    आज पूरी कोशिश रहेगी... देर-सवेर इस कमी को पूरा कर लें...!
    सभी लिंक्स देखने में बहुत अच्छे लग रहे हैं! अब पढ़ने चलती हूँ!
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने का हार्दिक आभार सर!
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर चर्चा links समेटे चर्चा मंच सजाने के लिए रविकर sir आपका आभार
    गुज़ारिश : ''महिला दिवस पर एक गुज़ारिश ''

    जवाब देंहटाएं
  8. गुरु जी को...... शिष्या का आभार बारम्बार है
    चर्चा मंच पर मयंक कोना हमें पूर्णतया स्वीकार है
    हमारी रचना को यहाँ मिलता पूरा सम्मान है
    'रूप मयंक' जी तो, 'चर्चा मंच' की शान हैं

    जवाब देंहटाएं
  9. गुरु जी को...... शिष्या का आभार बारम्बार है
    चर्चा मंच पर मयंक कोना हमें पूर्णतया स्वीकार है
    हमारी रचना को यहाँ मिलता पूरा सम्मान है
    'रूप मयंक' जी तो, 'चर्चा मंच' की शान हैं

    जवाब देंहटाएं

  10. महिला दिवस - शैलजा नरहरि की दो कवितायें
    NAVIN C. CHATURVEDI
    ठाले बैठे

    विष्णु-प्रिया पद चापती, है लक्ष्मी साक्षात |
    किन्तु कालिका दाबती, रख कर शिव पर लात |
    रख कर शिव पर लात, रूप दोनों ही भाये |
    नारीवादी किन्तु, विष्णु पर हैं भन्नाए |
    शिव के सिर पर गंग, उधर कैकेयी की हद |
    इत लक्ष्मी को मिला, प्यार से विष्णु-प्रिया पद ||

    जवाब देंहटाएं
  11. औरतों के ताल्लुक़ से आपकी चर्चा पुरलुत्फ़ है।

    औरत ने तरक्क़ी की है। औरत आज हरेक मैदान में सरगर्म है। फिर सेहत और सुरक्षा के मामले में उसकी हालत अच्छी नहीं है। पिछले 40 सालों के दौरान औरतों के खि़लाफ़ होने वाले जरायम में 875 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसने औरत की तरक्क़ी की ख़ुशी को मद्धम कर दिया है।
    सख्त क़ानून के बाद भी रेप और इसी क़िस्म के दूसरे जरायम कम होने के बजाय लगातार बढ़ रहे हैं। बहुत तरह के रहनुमा हैं और बहुत तरह की बातें हैं। कोई किस तरफ़ जाए ?
    यह तय नहीं हो पा रहा है। इसलिए फ़िलहाल तो समाज अंग्रेज़ों के तरीक़े पर जी रहा है। वहां शादी से पहले जिन्सी ताल्लुक़ात आम बात हैं तो यहां भी हो चुके हैं।
    औरत के शोषण का एक यह रूप जो नहीं था। यह भी तरक्क़ी के नाम पर चलन में आ चुका है।

    अफ़सोस ! इस मैदान में भी औरत की तरक्क़ी जारी है।

    जवाब देंहटाएं
  12. बढ़िया सार्थक चर्चा.
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  13. नारी शक्ति का लिंक द्वारा प्रस्तुति बहुत सुन्दर लगी ...आभार ..

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत बढ़िया...महिला दिवस के लिए सभी रचनाएँ सार्थक...आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  15. रविकर जी, अति सुंदर चर्चा..आभार !

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।