Prabodh Kumar Govil
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हवाएँ...डॉ. जेन्नी शबनम |
Virendra Kumar Sharma
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राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...
अरुन शर्मा 'अनन्त'किसी की आँखों की नमी लिख रहा हूं......निवेदिता श्रीवास्तव
संकलन -
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घोड़ों की धांधली, जनाना कॉरीडोर बजरिये शाही गल्प(सतीश पंचम) |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
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ठगे गए हैं आम, स्वाद जीवन का खोया
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मयंक का कोना
(१) पिता, चलते-चलते कभी न थकते, ऐसे होते पाँव! पिता देत संतान को, बरगद जैसी छाँव!! (२) माँ फिर से अपना आँचल कर दो जब दुनिया ने किया किनारा। तब माँ मैंने तुम्हें पुकारा।। |
रविकर भाई, बधाई।
ReplyDeleteचित्रों से भरपूर चर्चा मन भाई हुजूर।
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सिर चढ़कर बोला विज्ञान कथा का जादू...
बहुत सुन्दर और आकर्षक ढंग से की गयी स्तरीय चर्चा!
ReplyDeleteआभार रविकर जी!
बहुत बढिया लिनक्स की चर्चा......
ReplyDeleteअच्छा सजा चर्चा मंच |भाँति भाँति की लिंक्स |
ReplyDeleteआशा
सुन्दर चर्चा !!
ReplyDeleteआदरणीय गुरुदेव श्री चर्चा बेहद सुन्दर एवं प्रसंशनीय है, पठनीय लिंक्स मिले हैं सादर आभार आपका.
ReplyDeleteसाफ सुथरी बढिया चर्चा
ReplyDeletevery nice links 2 read today. thnx 4 sharing my post.
ReplyDeleteसुंदर सूत्रों से सजी आकर्षक चर्चा बधाई रविकर भाई जी
ReplyDeleteबेहद सुन्दर पठनीय लिंक्स ,,आभार आपका.
ReplyDeleteRECENT POST: पिता.
बेहतरीन लिंक्स संयोजन ... आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...आभार।।।
ReplyDeleteखूबसूरत लिंक्स के साथ सुंदर चर्चा....
ReplyDeleteखूबसूरत लिंक्स के साथ सुंदर चर्चा....
ReplyDeletevery nice.
ReplyDeleteKAVYA SUDHA (काव्य सुधा): शिकायत
very nice links
ReplyDeleteKAVYA SUDHA (काव्य सुधा): शिकायत
रविकर भाई बड़े जतन से सेतु सजाये हैं अर्थ पूर्ण विविध रंगी विविध अर्थी .शुक्रिया हमें शरीक करने के लिए .
ReplyDeleteगुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
ReplyDeleteउनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,.......सोंचा शब्द यहाँ अखरता है -सोचा था ,ज़िन्दगी थोड़ी सी प्यारकी .....बेहतरीन प्रयोग कर रहें हैं आप भाव अर्थ और रूपक तथा गजल के फॉर्म पर .
बहुत सुन्दर रचना पिता के निस्स्वार्थ प्रेम को रूपायित करती -
ReplyDeleteहमारे बीच में नही पिता,तब आया है ज्ञान!
हर पग पर आशीर्वाद मिले,चाहे हर संतान!!
इस पद को छोड़ सभी में "है" के स्थान पर" हैं "कर लें .रचना का सौंदर्य बढ़ जाएगा .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
सरसी छंद
(१६,११, कुल २७मात्राए,पदांत में दीर्घ लघु )
चलते-चलते कभी न थकते,ऐसे होते पाँव!
पिता ही सभी को देते है,बरगद जैसी छाँव!!
परिश्रम करते रहते दिनभर,कभी न थकता हाथ!
कोई नही दे सकता कभी, पापा जैसा साथ!!
बच्चो के सुख-दुःख की खातिर,दिन देखें न रात!
हरदम तैयार खड़ें रहते,देने को सौगात!!
पिता नही है जिनके पूछे,उनके दिल का हाल!
नयन भीग जाते है उनके,हो जाते बेहाल!!
हमारे बीच में नही पिता,तब आया है ज्ञान!
हर पग पर आशीर्वाद मिले,चाहे हर संतान!!
बहुत सुन्दर रचना है सर .लेकिन कुत्ते की पूंछ ........
ReplyDelete"हमीं पर वार करते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
Mushayera
हमारा ही नमक खाते, हमीं पर वार करते हैं।
जहर मॆं बुझाकर खंजर, जिगर के पार करते हैं।।
शराफत ये हमारी है, कि हम बर्दाश्त करते हैं,
नहीं वो समझते हैं ये, उन्हें हम प्यार करते हैं।
हमारी आग में तपकर, कभी पिघलेंगे पत्थर भी,
पहाड़ों के शहर में हम, चमन गुलज़ार करते हैं।
कहीं हैं बर्फ के जंगल, कहीं ज्वालामुखी भी हैं,
कभी रंज-ओ-अलम का हम, नहीं इज़हार करते हैं।
अकीदा है, छिपा होगा कोई भगवान पत्थर में,
इसी उम्मीद में हम, रोज ही बेगार करते हैं।
नहीं है “रूप” से मतलब, नहीं है रंग की चिन्ता,
तराशा है जिसे रब ने, उसे स्वीकार करते हैं।
बहुत ही सुन्दर सूत्र
ReplyDeleteसुंदर और आकर्षक चर्चा |
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा. मुझे यहाँ शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeletesunder charcha links diye ji shukriya sir
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