"जय माता दी" अरुन की ओर से आप सबको सादर प्रणाम. | ||||
राजेंद्र कुमार
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उच्चारण
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दिनेश चन्द्र गुप्ता 'रविकर'
सर्ग-3
भाग-1 अ
शान्ता के चरण
चले घुटुरवन शान्ता, सारा महल उजेर |
राज कुमारी को रहे, दास दासियाँ घेर ||
सबसे प्रिय लगती उसे, अपनी माँ की गोद |
माँ बोले जब तोतली, होवे परम-विनोद ||
कौला दालिम जोहते, बैठे अपनी बाट |
कौला पैरों को मले, हलके-फुल्के डांट ||
दालिम टहलाता रहे, करवाए अभ्यास |
बारह महिने में चली, करके सतत प्रयास ||
हर्षित सारा महल था, भेज अवध सन्देश |
शान्ता के पहले कदम, सबको लगे विशेष ||
दशरथ कौशल्या सहित, लाये रथ को तेज |
पग धरते देखी सुता, पहुँची ठण्ड करेज ||
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Alka Sarwat
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Manoj Nautiyal
सुबह की ख्वाहिसों में रात की
तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ
क्यूँ हैं ||
नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की
तमन्ना में
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर
अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?
मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के
तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी
रुबाइयां क्यूँ हैं ||
बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम
ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां
क्यूँ हैं ||
सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर
से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की
सच्चाईयां क्यूँ है ||
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अजित वडनेरकर
स मूचे भारतीय उपमहाद्वीप में ‘दारा’ नाम शक्ति का
प्रतीक माना जाता है। पश्चिम में पेशावर से लेकर पूर्व में पूर्णिया
तक ‘दारा’ नामधारी लोग मिल जाएँगे जैसे हिन्दुओं में दारा के साथ
‘सिंह’ का प्रत्यय जोड़ कर दारासिंह जैसा प्रभावी नाम बना लिया जाता
है वहीं मुस्लिमों में ‘खान’ या ‘अली’ जैसे प्रत्ययों के साथ
दाराख़ान या दाराअली जैसे नाम बन जाते हैं। कहते हैं यह ख्यात
पहलवान, अभिनेता दारासिंह के नाम का प्रभाव है कि ‘दारा’ नाम के साथ
ताक़त जुड़ गई। चलिए मान लिया।
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Swati
पानी का छपका लगाती
कुछ पीती ,कुछ आँखों को धोती
याद आता है
कि कितने सालों से सपनों का किराया नहीं भरा
मैंने
और कितनी रातों का है कर्ज़ मुझ पर
उनींदी सुबहों की कतार
मेरी रूह खड़खड़ाती है
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Omprakash Pandey 'naman'
भले इस एक दीपक से अँधेरा कम नहीं होगा
मगर ये दीप तम का कभी भी हमदम नहीं होगा। 'नमन'
मैं इन तनहाईयों में भी कभी तनहा नहीं होता
तुम्हारी याद न हो, ऐसा एक लम्हा नहीं होता। 'नमन
जिक्र तेरा जब भी आया हादसे याद आ गए
बेबसी और सब्र के प्याले जो तुम छलका गए।
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Sadhana Vaid
![]()
ग़म के सहराओं से ये आह सी क्यों आती है ,
दिल की दीवारों पे नश्तर से चुभो जाती है !
ये किसका साया मुझे छू के बुला जाता है ,
ये किसकी याद यूँ चुपके से चली आती है !
ये मुद्दतों के बाद कौन चला आया था ,
ये किसके कदमों की आहट कहाँ मुड़ जाती है !
ये किसने प्यार से आवाज़ दे पुकारा था ,
ये किस अनाम अँधेरे से सदा आती है !
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इसी के साथ आप सबको शुभविदा मिलते हैं अगले रविवार को . आप सब चर्चामंच पर गुरुजनों एवं मित्रों के साथ बने रहें. आपका दिन मंगलमय हो | ||||
जारी है ..... मयंक का कोना
(१) अज़ीज़ यूँ हीं नहीं दीवाना हुआ तंज नहीं ये रंज है, ग़ज़ल हो गई आज। दीवानो की बात को, सुनता नहीं समाज।। (२) मेहंदी प्रीतम तेरे लिए मैं, लायी हूँ उपहार। मेहँदी इस गन्ध में, बसा हमारा प्यार।। |
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Sunday, March 03, 2013
माँ,तुम्हारी यादें : चर्चा मंच 1172
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खामोशी की जुबान बड़ी होती है यदि अकेलापन महसूस हो तब |अच्छी लिंक्स से सजा आज का चर्चामंच |
ReplyDeleteआशा
बढ़िया लिनक्स मिले.....धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत आकर्षक और परिश्रम से मन लगा कर की गयी चर्चा!
ReplyDeleteआभार अरुन शर्मा 'अनन्त' जी आपका!
बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार अरुण जी चर्चामंच पर मेरी 'खामोशी की जुबान' को आवाज़ देने के लिए ! सभी लिंक्स सुन्दर लग रहे हैं ! इंडिया के लिए सुबह की फ्लाईट पकड़नी है ! घर पहुँच कर पढ़ती हूँ इन्हें !
ReplyDeleteपठनीय लिंक्स सुंदर चर्चा ,,,,,आभार अरुन जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST: पिता.
अरुण शर्मा 'अनन्त' जी बहुत खूबसूरत और ज्ञानवर्धक लिंकों से सजी चर्चा प्रस्तुत की है आपने !!
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा मंच-
ReplyDeleteशुभकामनाएं प्रिय अरुण -
बेहतरीन सुन्दर और सार्थक लिंकों से सजी खुबसूरत चर्चा,सादर आभार.
ReplyDeleteNice links.
ReplyDeleteबहुत ही साफ सुथरी चर्चा
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंक्स
बेहतरीन लिंक्स से सजी है आज की चर्चा ... हमें चर्चा में शामिल करने के लिए आभार ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिंकों का संकलन किया है , बधाई भी और आभार भी.
ReplyDeleteनीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा):
सुन्दर लिंक संयोजन
ReplyDeleteखूबसूरत लिंकों से सजी चर्चा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा अरुण जी.... विशेष रूप से चर्चा का आरम्भ बहुत सुन्दर विषय के साथ किया है.... बधाई!
ReplyDeleteसुन्दर लिंक संयोजन अरुण जी!
ReplyDeletelatest post होली
हमेशा की तरह बढ़िया चर्चा .
ReplyDeleteसुंदर संग्रह
ReplyDeleteबढ़िया संयोजन----बधाई
अरुण जी, देरी के लिए खेद है, आभार इस सुंदर चर्चा में मुझे स्थान देने के लिए..
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