रामायण के रचते-रचते जहाँ
समापन पर्व आ रहा
वहां तुम्हारी याद यज्ञ की
पूर्णाहुति-जैसी लगती है
मंत्र-बीज के दीक्षा-घर की
पदयात्रा में कितना खोया
पुरुष-सूक्त के मंदिर में
भी दीप जलाकर कितना रोया
महा भागवत की पूजा में वृन्दावन
का अर्घ्य-तिलक दे
नाम तुम्हारा लेकर कितना
जमुना की देहरी पर रोया
कृष्णायण को रचते-रचते जहाँ
समापन-पर्व आ रहा
वहां तुम्हारी याद बांसुरी
के अनहद जैसी लगती है
तीर्थराज का ताप अधरों पर
जब भी महाकाव्य-सा आता
नीलकंठ के आँगन-सा ही लगता
कल्पवृक्ष मुस्काता
अपने इस नैमिषारण्य में
कितनी दूं आरती प्राण की
नाम तुम्हारा जब अक्षर-सा
अपनी ही समाधि को गाता
गीतायन को रचते-रचते जहाँ
समापन-पर्व आ रहा
वहां तुम्हारी याद ऋचा के
रेखांकन-जैसी लगती है
(साभार : धर्मेन्द्र मुन्धा)
|
नमस्कार !
एक महीने के लम्बे प्रवास के बाद मैं, राजीव
कुमार झा,चर्चामंच की नई प्रस्तुति के साथ,
--एक नए समय पर,फिर से हाजिर हूँ.
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
|
शिरीष कुमार मौर्य
जरा जब चाँद को तोड़ी तलब सिगरेट की उठ्ठी
सितारे ऊँघते उठ्ठे ,तमक कर चांदनी उठ्ठी
|
अनु सिंह चौधरी
इंदिरा नूयी का इंटरव्यू पढ़कर मैं बहुत देर तक ज़ोर-ज़ोर से हंसती रही थी। हंसी उस विडंबना पर आ रही थी जो सर्वव्यापी है, यूनिवर्सल। लेकिन है अकाट्य सत्य ही - आप चाहे दुनिया की सबसे बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ हों, या फिर दिन भर पत्थर तोड़कर शाम को घर लौट जाने वाली मजदूर, दुनिया के हर कोने में आपकी ज़िन्दगी की कहानी एक-सी ही सुनाई देगी बिल्कुल।
|
सुमन
लोग कहाँ पचा पाते है …
अभिव्यक्ति की आजादी
|
"सफलता का रहस्य" (The secret of success)
राजेंद्र कुमार
जीवन में सफल होना कौन नही चाहता, हम अपने अपने तरीके अपना कर जीवन में सफल होने का प्रयत्न करते रहते हैं।
|
धनक की आस बरसाओ ,
मेघा बरसो सरसो
धिनक धिन
|
प्रीति 'अज्ञात'
प्रेम होता नहीं
मिलता जाता है
|
विनय प्रजापति
|
विष्णु बैरागी
सोलह महीनों से अधिक हो गए मुझे तेजाब की नदी में तैरते-तैरते। अज्ञात अपराध-बोध से आकण्ठ ग्रस्त रहा इस दौरान। अपनी आस्थाओं, अपने मूल्यों, अपने विश्वास से विश्वास ही उठ गया था मेरा।
|
जोहरा जी का असली नाम साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान है। उनका जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रोहिल्ला पठान परिवार में हुआ। |
लिखने की भी क्लास होती है लिखते लिखते पता हो ही जाता है
सुशील कुमार जोशी कहीं भी कोई जमीनी हकीकत नहीं दिखती है |
चलो !
अब कहीं... और चलते हैं ! |
हे
कलाधारी
चलो मान लेते है तुम्हें
भगवान.....
|
एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
|
मनीष कुमार
|
|
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
बुद्धू भैया संसद में सो रहे थे जीन्यूज़ ने उन्हें सोते दिखा दिया तो क्या यह कहा जाए की जी न्यूज़ उन्हें तंग कर रहा है। चोर चोरी करते पकड़ा जाए तब क्या यह कहा जाए की पुलिस उसे तंग कर रही है। न्यायालय किसी को सम्मन भेजे तब क्या यह कहा जाए सरकार (बीजेपी )नेहरू -गांधी परिवार को तंग कर रही है?
|
यशवंत 'यश'
अच्छा ही है
मन का थम जाना
|
मां अतुल्य है जीवन की साक्षी है
लेकिन पिता बिना मां की परिभाषा कहां बन पाती
मां छांव तो पिता वो बरगद का पेड़ हैं
जिसकी छत्रछाया में मां हमें पालती है
|
"शीतल फल हुए रसीले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गया आम का मौसम,
प्लम बाजारों में अब छाया।
इनको देख-देख कर देखो,
सबका मन ललचाया।।
धन्यवाद !
|
सात रंगों से सजी बढ़िया चर्चा उत्तम लिंक।
जवाब देंहटाएंशुभागमन आदरणीय राजीव कुमार झा जी।
आभार आपका।
--
नव प्रभात की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और बधायी हो।
शुभ प्रभात भाई राजीव जी
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं पढ़वाई आपने
शुक्रिया
नमस्कार राजीव जी ...!!उत्कृष्ट लिंक्स संकलन है चर्चा मंच पर !!इन्हीं में अपनी रचना देख कर प्रफुल्लित हूँ !!हृदय से आभार इस सुप्रभात के लिए ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रविवारीय मनोहारी चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'लिखने की भी क्लास होती है लिखते लिखते पता हो ही जाता है' को जगह देने के लिये आभार राजीव ।
जवाब देंहटाएंआभार राजीव भाई ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र संकलन मुझे जगह देने के लिए आभार आपका !
बहुत सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व बेहतरीन सूत्र संकलन , आ. राजीव भाई शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आशीष जी ये शीर्षक के साथ लिंक कैसे कमेन्ट करते है ? जैसा आप अपने कमेंट्स में करते है ! यदि इस पर आपकी कोई पोस्ट हो तो लिंक देने की कृपा करे !
हटाएंउदाहरण : आपने ऊपर जो कमेन्ट में अपने लिंक का प्रयोग किया है ''Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ ) ''
कृपया ईमेल से बेफिक्र होकर कुछ भी पूछें, विधाता की कृपा से उत्तर ज़रूर मिलेगा , चर्चामंच पे पधारने का व मुझको याद करने के लिए धन्यवाद !
हटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
आदरणीय श्री राजीवकुमार जी,
जवाब देंहटाएंअत्यंत अर्थपूर्ण लिंक्स के लिए आप को हृदय से धन्यवाद और मेरी रचना `मन (गीत)` को चर्चा में शामिल करने के लिए आप का बहुत-बहुत शुक्रिया जी।
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंविनय प्रजापति जी के लिंक को क्लिक करने पर रवीश जी का ब्लॉग 'नयी सड़क' खुल रहा है। कृपया चेक कर लें।
सादर
धन्यवाद ! यशवंत जी. लिंक सही तरीके से पेस्ट नहीं हुआ था.संपादित कर लिया गया है.
हटाएंबहुत बढियाँ चर्चा राजीवजी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद
प्रिय राजीव भाई बहुत सुन्दर और प्रभावी लिंक्स ,,,अच्छा संकलन .. मेरी रचना पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए को भी आप ने मान दिया ख़ुशी हुयी ..
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम
भ्रमर ५
सुन्दर चर्चा -
जवाब देंहटाएंआभार -
सुंदर लिंक्स
जवाब देंहटाएंउपयोगी एवं सुंदर लिंक्स के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्रभावी लिंक्स ! मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार !
जवाब देंहटाएं