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शुक्रवार, जुलाई 25, 2014

"भाई-भाई का भाईचारा"(चर्चा मंच-1685)

नमस्कार मित्रों, आज की चर्चा में आपका स्वागत है। 
अभी कुछ ही दिनों पहले सम्पति के बटवारे को लेकर भाई भाई में झगड़े को देखा, मन बहुत आहत हुआ। राम-लक्ष्मण के ज़माने में भाई, भाई को सब कुछ देने को तैयार रहता था, आजकल एक भाई दूसरे को कुछ भी नहीं देना चाहता। बाप की जायदाद में से भी नहीं, जैसे कि बाप उसके अकेले का था। सवाल है कि झगड़ा भाई-भाई के बीच ही क्यों होता है? भाई और बहन के बीच क्यों नहीं? कारण शायद यह है कि बहनें केवल रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने और भाई दूज के दिन टीका करने के लिए होती हैं। यानी साल में सिर्फ दो दिन के लिए, जबकि भाई तीन सौ पैंसठ दिनों के लिए होते हैं। बहन के दो दिन प्यार का रिश्ता जोड़ने के लिए होते हैं, भाइयों के तीन सौ पैंसठ दिन लड़ने के लिए। ज्यादातर बहनें मानती हैं कि परिवार के साथ उनका रिश्ता स्नेह और प्रेम का है। ज्यादातर भाई मानते हैं कि परिवार के साथ उनका रिश्ता माल का है। जहां तक पिता की संपत्ति का सवाल है, ज्यादातर बहनें तो उसके बारे में सोचती भी नहीं। बहनें यह मान कर चलती हैं कि पिता की संपत्ति में उन्हें कोई हिस्सा नहीं मिलने वाला है। अगर मिलना होता तो भगवान ने उन्हें भी भाई बनाया होता। इसलिए पिता की संपत्ति के बारे में बेटियां प्राय: कुछ नहीं सोचतीं। हां, बेटे जरूर सोचते हैं। बेटा अगर बड़ा भाई है तो सोचता है कि जब मैं मौजूद था तो बाप ने यह दूसरा क्यों पैदा किया। और, अगर बेटा छोटा है तो सोचता है - ये बड़ा वाला अगर बहन होता तो कितना अच्छा होता .......
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यशोदा अग्रवाल जी 
जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है
वो शख़्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है

मैं पूजता हूं जिसे, उससे बेनियाज भी हूं
मेरी नज़र में वो पत्थर भी है, ख़ुदा भी है
उदय वीर जी 
आशाओं को पंख लगे 
नित अरमानों के मेले हों -
नेह सरित की धार बहे 
शुचिता संकल्प सुहेले हों -
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प्रतिभा वर्मा जी 
उफ़ ये रात
काली सी डरावनी सी...
रोज़ आ जाती है
कुछ नए सपने लिए
कुछ पुराने दर्द लिए।
वीरेन्द्र कुमार शर्मा जी 
पिछली किश्त में हमने खंदक में गिरी कांग्रेस के बारे में कुछ तथ्यगत सूचनाएं दी थीं। कांग्रेस के इस गर्त पतन के लिए स्वयं कांग्रेस का अहंकार उत्तरदाई है। पर कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं लिया। अब भी वह ओछी राजनीति से बाज नहीं आ रही। अहंकार इतना कि 'घी खाया मेरे बाप ने ,सूँघो मेरा हाथ ',बार -बार १२५ साल पुरानी कांग्रेस की दुहाई दी जाती है।
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अपर्णा त्रिपाठी
चूल्हे में रोटी बनाने की वो बिल्कुल भी अभ्यस्त नही थी, तकलीफ उसे चूल्हे से उठ्नेवाले धुंये से नही थी, बल्कि दिल इस बात से दुखी हो रहा था कि बहुत कोशिश करने केबाद भी रोटियां जल जा रहीं थी । आज पहली बार वो बसंत को अपने हाथ से बना खानाबना कर खिलायेगी, वो भी ऐसा ! बसन्त शायद तभी बार बार उसे मना कर रहा था कि वोबना लेगा। जब पहली रोटी जली तो उसने ये सोच लिया कि ये हम खा लेगें दूसरी औरतीसरी जलने पर भी उसने यही सोच कर मन को समझा लिया, जब चौथी जली तो सोचाकि बाकी की सावधानी से बनायेगी। मगर एक एक करके सभी लगभग एक जैसी ही बनी।अब वो क्या करे?
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रमा जी 
साथ हो उम्र भर का
हाथों में हाथ हो 
ये एक दिन की की नही
सदा की बात हो
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सतीश सक्सेना
जितनी बार मिलोगे तो शरमाओगे !
सब देखीं तस्वीरें , फीकी पाओगे ! 

जब जब तुमको याद हमारी आएगी
बिना बात ही घर बैठे , मुस्काओगे !

गीत हमारे खुद मुंह पर आ जाएंगे
जब भी नाम सुनोगे,गाना गाओगे !
अर्चना जी 
तुम फिर आई
एक बुरी याद लेकर
जिसका कोना कहीं
फंसा हुआ है दिमाग में 
और इसी वजह से 
फेंकने में सफल नहीं हो पाई 
अब तक उसे बाहर 
वरना तो
वन्दना गुप्ता जी 
जाने कितनी बार तलाक लिया 
और फिर 
जाने कितनी बार समझौते की बैसाखी पकड़ी 
अपने अहम को खाद पानी न देकर 
बस निर्झर नीर सी बही 
युद्ध के सिपाही सी 
मुस्तैद हो बस
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अनीता जी 
भगवद कथा हमारे मन में जाकर हमें हमारे स्वभाव की ओर लौटा ले जाती है. यह तारक है, रोम-रोम को रसपूर्ण कर देती है. आनंद की ऐसी वर्षा करती है कि हृदय भीतर तक भीग जाता है. भीतर जो आनन्द का सृजन करे वह कथा ही तो है, शब्दों के रूप में उसी की प्रतिमा है.
पवन विजय जी 
मैं धर्म को जीने के तरीके के रूप में देखता हूँ। जो मेरा जीने का तरीका है उसे दुनिया हिंदुत्व के नाम से जानती है। हिंदुत्व को समझने से पहले आप को पोस्ट मॉडर्निटी का कांसेप्ट समझना होगा। आप जितने सरल तरीके से हिंदुत्व को समझना चाहते हैं उतने सरल रूप में समझ सकते हो..
पुष्पेन्द्र वीर साहिल
आज तुम साथ चले संग मेरे लहरों पे
हाथ में हाथ लिए साथ साथ बैठे हो
अभी शुरू है किया एक सफर दोनों ने
के जिस पे दूर तलक, दूर तलक जाना है
अभी उमंग भरे ख्वाब आँख में होंगे
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टमाटर के नाम खुला खत 

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जिज्ञासाओं को शांत करने के लिये 

कुछ भी कर लिया जाता है 

उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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Pratibha Katiyar
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हरियाली 

Akanksha पर Asha Saxena
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तुम कुर्सी हो या नशा हो... 

जिन अभावों से गुजरा मैं 
मेरा परिवार रूबरू न हो उनसे 
इसी कोशिश में जिम्मेदारियों से झुके कंधे लिए 
पचास पार का मर्द लौटता है जब घर 
स्वागत करते मिलते बीवी,बेटी,बेटा दरवाज़े पर 
अपनी-अपनी ख्वाइशों के साथ 
जो बताई थी सुबह जाते वक्त..
मन का मंथन। पर kuldeep thakur 
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पति और पत्नी एक-दुसरे पर 

सबसे ज्यादा अत्याचार तब करते हैं 

जब.. 

ति और पत्नी एक-दुसरे पर सबसे ज्यादा अत्याचार तब करते हैं जब वे अपने हँसते-खेलते रिश्ते में प्रेमी और प्रेमिका ढूंढने लगते हैं ! ------- मेरे कहने का तात्पर्य बस इतना है की हर रिश्ते की अपनी एक अहमियत होती है, उसका सम्मान होना चाहिए
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“हिन्दी व्यञ्जनावली-पवर्ग”

कल अन्तस्थ और परसों ऊष्म पर
मुक्तक लगाने है!
उसके बाद फिर से
अपने रंग में आ जाऊँगा!
“व्यञ्जनावली-पवर्ग” 
patti1_thumb[5] 
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"प"
makar sankranti kite shop wallpapers
"प" से पर्वत और पतंग!
पत्थर हैं पहाड़ के अंग!
मानो तो ये महादेव हैं,
बहुत निराले इनके ढंग!!
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आलू -प्याज--टमाटर 

[एक लघु व्यंग्य कथा] 

जब से प्याज़ ने एक बार दिल्ली की सरकार हिला दी तब से इन सब्ज़ियों को अपनी ताक़त का अन्दाज़ा लग गया और सरकार को अपनी औक़ात का।इसी प्याज़ के दाम ने दिल्ली की सत्ता पलट दी थी । वरना लोग सब्ज़ियों को घास ही नहीं डालते थे? तेल घी दाल तिलहन से लोग डरते थे कि मँहगाई न बढ़ जाये । डीजल पेट्रोल से लोग डरते थे कि कहीं ग़रीबी में आँटा न गीला कर दे। नेताओं की नींद हराम हो गई इन सब्ज़ियों के मारे...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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चित्र प्रदर्शित नहीं किया गया
इस कदर लोग मुझको सताने लगे हैं 
हकीकत   भी  उनको  फ़साने  लगे हैं 

रात-दिन बात करने से जो थकते न थे
वो हूँ-हाँ से काम अपना चलाने लगे हैं... 
बेनकाब 
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कैलाश शर्मा 
मन चाहा कब होत है, काहे होत उदास,
उस पर सब कुछ छोड़ दे, पूरी होगी आस.
***
मन की मन ने जब करी, पछतावे हर बार,
करता सोच विचार के, उसका है संसार
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कालीपद "प्रसाद "
अच्छे दिन आयेंगे, मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,मैंने अपने लिए कहा था |
कमल का फुल खिलेगा ,मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,मैंने पार्टी के लिए कहा था
अमित चन्द्र
इश्क में दूरियाँ एक पल को गवाँरा तो नही
इश्क है, एक बार होता है, दोबारा तो नही।

तेरी गलियाँ लिपटी है खून से ऐ मेरे कातिल
तड़प रहा है एक दिल तेरे दर पे, कहीं हमारा तो नही।
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13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा सूत्रौर संयोजन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

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  2. बहुत सुन्दर और सम्यक चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी।

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  3. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
    आभार!

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  4. बहुत सुंदर चर्चा सुंदर संयोजन राजेंद्र जी ।'उलूक' के सूत्र 'जिज्ञासाओं को शांत करने के लिये
    कुछ भी कर लिया जाता है' को जगह दी आभारी हूँ ।

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  5. सुन्दर लिंक्स...रोचक चर्चा..आभार..

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  6. बढ़िया प्रस्तुति व बेहद बढ़िया लिंक्स , आ. राजेन्द्र भाई , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

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  7. विविधरंगी अनुपम लिंक्स..आभार !

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  8. बहुत बहुत शुक्रिया राजेन्द्र जी मेरी रचना यहाँ तक पहुँचाने के लिए।

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