सभी को ईद मुबारक के साथ हीहरियाली तीज की शुभकामनायें
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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हो मुबारक ईद की शाम
मीठी सेवइयां ढेरों मिठाइयां
भर जाये जीवन में खुशियां
मिट जाये सब मैल तमाम
हो मुबारक ईद की शाम .....
Chaitanyaa Sharma
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PAWAN VIJAY
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भारतीय परम्पराएँ और मार्क्स, मैकॉलेतथा इब्न रुश्द के छद्म भक्त !
अंधड़ ! पर
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
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मेरी सरकार की हिंदी की खुल गई पोल : क्या ऐसे अच्छे दिन आएंगे?
Ravishankar Shrivastava
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Anita
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-- भारतीय मुसलमान का एक सपना :
आज जब नींद खुली अचानक सब कुछ बदला बदला सा था, कानो में आँ आँ आँ अलाह आअ हु अकबर की मधुर ध्वनी कानो में टकराई, पर किसी मंदिर या गुरुद्वारा की बेसुरी आवाज गायब थी. ये देख कर मैंने नारा लगाया, तारा ये तकबीर अल्लाह हु अकबर...
नारद पर कमल कुमार सिंह (नारद )
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"मौन निमन्त्रण"आँखों के मौन निमन्त्रण से,
बिन डोर खिचें सब आते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं...
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')--प्राकृतिक चूने पत्थर की गुफाऐं , बारातांग , अंडमान
Manu Tyagi
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चन्द माहिया : क़िस्त 05
:1: जब बात निकल जाती
लाख करो कोशिश
फिर लौट के कब आती
:2: यारब ! ये अदा कैसी ?
ख़ुद से छुपते हैं
देखी न सुनी ऐसी...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
--इन्तहा इंतज़ार की
Prerna Argal
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आधा हिस्सा पीहर में
हाँ,आज भी टूट जाता है घर आँगन अंदर तक जब बेटी विदा होती है. अपनी ससुराल जाकर भी अपना आधा हिस्सा छोड़ जाती है पीहर में...
आपका ब्लॉग पर subodh
--युद्ध
Prabodh Kumar Govil
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कड़वी दवा न दें, साहब !
नफ़स-नफ़स में हमें बद्दुआ न दें साहब
क़दम-क़दम पे नया मुद्द'आ न दें साहब
हमारे रिज़्क़ पे सरमाएदार क़ाबिज़ हैं
कि मर्ज़े-भूख में कड़वी दवा न दें साहब...
साझा आसमान पर
Suresh Swapni
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"चाय हमारे मन को भाई"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
परदेशों से चलकर आई।
चाय हमारे मन को भाई।।
कैसे जुड़ा चाय से नाता,
मैं इसका इतिहास बताता,
शुरू-शुरू में इसकी प्याली,
गोरों ने थी मुफ्त पिलाई।
चाय हमारे मन को भाई।।
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंईद पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
उम्दा सूत्र |
सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंआभार.
आपका बहुत- बहत आभार शास्त्री जी एवं आप सभी को तीज-त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी …….आभार आपका .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, आभार आपका
जवाब देंहटाएंसुन्दर...ईद मुबारक़...
जवाब देंहटाएंबहुत बढियाँ सर ,सुन्दर
जवाब देंहटाएंभव्य अंक। सभी रचनाएं एक से बढ़ कर एक। भाई दिगंबर नासवा की ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी। श्री पी सी गोदियाल के आलेख पर केवल दो बातें: एक, मार्क्स और मैकाले दो पूर्णतः भिन्न प्रवृत्तियों के व्यक्ति थे और इनकी तुलना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। मार्क्स ने कभी अंग्रेज़ी का समर्थन नहीं किया और उनके सभी आलेख/व्याख्यान या तो रूसी में हैं या जर्मन में । दो, मार्क्स 'भक्ति' और 'भगवान' जैसी धारणाओं में विश्वास नहीं करते थे। उनके 'अनुयायी' तो हो सकते हैं, भक्त नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति। आभार!
जवाब देंहटाएंसबको ईद मुबारक़!
बढ़िया लिनक्स.... चैतन्य को शामिल करने का आभार
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