मित्रों।
जुलाई के पहले रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
सबसे पहले सोमवार के नये चर्चाैकार के रूप में
आदरणीय आशीष भाई का स्वागत करता हूँ।
इनका मुख्य ब्लॉग है
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अब देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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झरीं नीम की पत्तियाँ
(दोहा-गीतों पर एक काव्य)
(२)
सरस्वती-वन्दना
(घ)
‘सत्यम’-‘शिवम’-‘सुन्दरम’
(ii)
कर विनती स्वीकार !
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झरीं नीम की पत्तियाँ
(दोहा-गीतों पर एक काव्य)
(२)
सरस्वती-वन्दना
(घ)
‘सत्यम’-‘शिवम’-‘सुन्दरम’
(ii)
कर विनती स्वीकार !
दे सबको ऐसी ‘कला’, कर विनती स्वीकार !!
जो मन की ‘पीड़ा’ हरे, दे ‘अन्तर-उल्लास’ |
‘जीवित’ कर ‘गतिशीलता’, भरे ‘आत्मविश्वास’ ||
‘कलाकार’ अब ‘कला’ के, मत पालें वे ‘रोग’ |
‘ठग-विद्या’ से भरें जो, सबके मन में ‘क्षोभ’ ||
‘धन-अर्जन’ हित जो बने, मत ‘कोरा व्यापार’ |
दें सबको ऐसी ‘कला’, कर विनती स्वीकार !!१!!...
साहित्य प्रसून--
"मैं भी जागा, तुम भी जागो"
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ग़ज़ल
यों रास्ते में हाथों...
यों रास्ते में हाथों के दान छिन गए रे...
देने चले थे उल्टा लेकर के रिन गए रे...
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आँखों के आँसू
विधि के हाथ रचे जीवन का, भार उठाये हाथों में,
आहों का उच्छ्वास रोककर, फूली, उखड़ी साँसों में ।
कष्ट हृदय-बल तोड़ रहा, रह शान्त वेदना सहते हैं,
आँखों से पर बह आँसू दो, कई और कहानी कहते हैं...
प्रवीण पाण्डेय
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तुम्हें दुनिया में जन्नत नज़र आएगी -
जुल्फों को यू न सवारा करो
अपनी ही नज़र न लगाया करो...
मधुलेश पाण्डेय ‘निल्को’
VMW Team पर
VMWTeam Bharat
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आज के दोहे.
नई सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात
बेटा कहता बाप से , तेरी क्या औकात !!
बेटा कहता बाप से , तेरी क्या औकात !!
अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल
बोझ समझ माँ बाप को, घर से रहा निकाल...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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कभी फुर्सत में आना
मंदिर के चौबारे में बैठ
अपनी- अपनी ज़िन्दगी बतियाएंगे
छोटी - छोटी खुशियाँ बाँटेंगे
अपने वर्तमान की खूबियाँ
बार - बार जतलाएँगे...
मंदिर के चौबारे में बैठ
अपनी- अपनी ज़िन्दगी बतियाएंगे
छोटी - छोटी खुशियाँ बाँटेंगे
अपने वर्तमान की खूबियाँ
बार - बार जतलाएँगे...
दिल से पर Kavita Vikas
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हे कांत!
हे कांत,
आज जब तुम चले गए,
चले गए बहुत दूर ज्ञान की खोज में चूर,
त्याज्य मुझ और तनुज ....
एकदम अकेला, निसहाय, बेबस …
सचमुच, कितने निष्ठुर …
क्या एक बार भी
तुम्हारे पैर नहीं डगमगाए,...
Nivedita Dinkar
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दो कदम तुम चलो
कुछ कदम मैं भी चलूँ
राह मिल ही जाएगी
जब दौनों साथ होंगे ...
Akanksha पर Asha Saxena
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मुहब्बत की तक़दीर ...
इक अनलिखी तक़दीर
जिसे दर्द ने बार -बार लिखना चाहा
अपने अनसुलझे सवालों को
लेकर आज भी ज़िंदा खड़ी है ....
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गज़ल-कुञ्ज
(1)
प्रणाम
(ख)
प्रियतमा प्रणाम
(iii)
तू 'प्रियतम' की अनुकृति प्रिया |
(1)
प्रणाम
(ख)
प्रियतमा प्रणाम
(iii)
तू 'प्रियतम' की अनुकृति प्रिया |
प्राणों में भर ‘चेतना’ तुही -
मन को देती है ‘सु-मति’ प्रिया ||
संचालिका तुही जीवन की है-
आभारी तव 'संसृति', प्रिया ||...
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फिदरत
रंग बदलने को यहां ,कितने लोग है सारे
वादा कर नहीं ला पाते ,वे चाँद- सितारे...
" 21वीं सदी का इंद्रधनुष "
रंग बदलने को यहां ,कितने लोग है सारे
वादा कर नहीं ला पाते ,वे चाँद- सितारे...
" 21वीं सदी का इंद्रधनुष "
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जाने का उत्सव भी मनायें …
यदि,
जन्मदिन एक उत्सव है तो
मृत्यु दिन का मातम क्यों ?
उत्सव क्यों नहीं हम मनाते...
" भ्रष्टाचार का वायरस "
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NGO की राखी खरीदोगे!
कई बार मैं गंभीरता से सोचता हूं कि पत्रकारिता से मुक्ति लेकर समाज का काम किया जाए। जाहिर सामाजिक काम ठीक से करने के लिए गैर सरकारी संगठन चलाना एक बेहतर रास्ता है। लेकिन, ज्यादातर जिस तरह से एनजीओ चलता रहा है। उससे शंका ज्यादा होती है। फिर लगता है कि इससे बेहतर तो यही किया जाए।...
बतंगड़-हर्षवर्धन त्रिपाठी
कई बार मैं गंभीरता से सोचता हूं कि पत्रकारिता से मुक्ति लेकर समाज का काम किया जाए। जाहिर सामाजिक काम ठीक से करने के लिए गैर सरकारी संगठन चलाना एक बेहतर रास्ता है। लेकिन, ज्यादातर जिस तरह से एनजीओ चलता रहा है। उससे शंका ज्यादा होती है। फिर लगता है कि इससे बेहतर तो यही किया जाए।...
बतंगड़-हर्षवर्धन त्रिपाठी
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my hindi font is not working well,so i m writing in English. links of my post in charcha manch gives a inner feeling of happiness and catalyses to write more. i m very greatful to the family of charchamanch for the honour done for me.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स चुने आज चर्चामंच पर |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंदोस्तो पिछली रचना (तुम्हें दुनिया में जन्नत नज़र आएगी) को सम्माननीय डॉ. रूप चंद मयंक जी के द्वारा चर्चा मंच पर चर्चा की गई । उम्मीद से ज्यादा लोगो द्वारा द्वारा पढ़ी गई इस के लिए सभी पाठको का दिल से शुक्रिया.... आप की प्रतिक्रियाओं से मुझे हमेशा ही उर्जा और चिंतन की दिशा मिलती है , यूं ही आपका स्नेह मिलता रहे, आप लोगो के इस हौसला अफजाई से एक नई रचना आप के सामने प्रस्तुत है , शब्दो को समेटने की कोशिश की है ज़रा आप ही बताए की कितनी सिमटी है या नहीं ?
नीद तो बिस्तर पे भी आ सकती है
मगर सिर उनकी गोद मे हो ये जरूरी तो नहीं
‘निल्को’ की नज़र मे सभी अच्छे है
पर उनकी नज़र मे मैं अच्छा हूँ ये जरूरी तो नहीं
मेरी कलम मे स्याही चाहे हो जितना
हमेशा चलेगी यह जरूरी तो नहीं
-मधुलेश पाण्डेय ‘निल्को’
Full Read Click the link
http://vmwteam.blogspot.in/2014/07/blog-post_5.html
युवा और उर्जावान आशीष का चर्चामंच में चर्चाकार के रूप में स्वागत है । आज की सुंदर चर्चा के सुंदर सूत्रों में 'उलूक' के सूत्र 'रस्म है एक लिखना लिखाना जो लिखना होता है वो कभी नहीं लिखना होता है' को स्थान देने के लिये चर्चामंच का आभार ।
जवाब देंहटाएंआप सबके प्रेम व स्नेह के लिए धन्यवाद , बढ़िया सूत्र संकलन , आ. शास्त्री जी व मंच को सदा ही धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत बढ़िया सूत्र संकलन जरूर पढूंगी
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को जगह देने के लिए बहुत बहुत आभार !
धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरे ग़ज़ल ''यों रास्ते में हाथों के दान छिन गए रे... '' शामिल करने के लिए
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