मित्रों!
कल दिनभर हमारे नगर में बिजली नहीं थी।
किसी तरह से माँ सरस्वती का नाम लेकर
कुछ लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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प्रतीक चिन्ह कितने पवित्र
विभिन्न समाजों में हिंसा के कई अस्त्र-शस्त्र आज पवित्र प्रतीक माने जाते हैं.त्रिशूल,तलवार,धनुष-वाण,चक्र आदि की पूजा वैदिक काल से ही भारत में होती आ रही है.शायद इसका संबंध शक्ति प्रदर्शन,रक्षा आदि से भी रहा हो.सलीब भी ईसाई धर्म का एक पवित्र प्रतीक है.....
देहात पर राजीव कुमार झा
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'एकलखोड़ों' की ज़मात'.......
एकल = अकेला
खोड़ = जिस ज़मीन पर कभी फ़सल नहीं लगाई गई हो
कहीं एक शब्द पढ़ा 'एकलखोड़'.......
इस बहुत ही हलके शब्द का प्रयोग,
उनके लिए किया गया है,
जो विवाह के बँधन में नहीं बँधे हैं,
अर्थात जिनका अपना 'व्यक्तिगत परिवार' नहीं है....
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
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मौसमी इश्क
मौसमी इश्क़ है,
मौसम के बाद क्या होगा,
हर चेहरे पर नया चेहरा चढ़ा होगा...
प्रेमरस.कॉम पर Shah Nawaz
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धरती और आकाश
ए आकाश !!
बुझाओ न मेरी प्यास
सूखी धूल उड़ाती, तपती गर्मी से
जान तो छुड़ाओ...
Mukesh Kumar Sinha
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मुश्किल होता है
दिल की बातों को अल्फाज दे पाना मुश्किल होता है
किसी-किसी राज को दुनिया को बताना मुश्किल होता है
यूं तो जी लेंगे हम तुम्हारे बिना भी जिंदगी
पर दिए के बिना बाती का
अस्तित्व बचाना मुश्किल होता है...
उड़ान पर Anusha
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मेरी हथेलियों में नहीं हैं प्रेम की कविताएं -
प्रतिभा कटियार
कविता की तरह ही जीवन में सहज और मस्त
प्रतिभा का आज जन्मदिन है.
मैसेज बाक्स में बधाई की औपचारिकता की जगह
उनकी यह कविता जो उन्होंने काफ़ी दिनों पहले भेजी थी.
हज़ार साल जियो प्रतिभा और ऐसे ही जियो.
मुझे माफ करना प्रिय इस बार
बसंत के मौसम में मेरी हथेलियों में नहीं हैं
प्रेम की कविताएं...
Ashok Kumar Pandey
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अलबेलों का मस्तानों का ...
ये देश है वीर-खुलासों का ,
रेपों का , आतंकों का !
इस देश का यारों क्या कहना,
ये देश है दुनियादारों का !
यहाँ चौड़ी छाती नेता की
यहाँ भोली शक्लें मीडिया की...
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विकास के लिए
वी.आई.पी. के कन्धों के सहारे की
उम्मीद आखिर क्यूँ ?
Stephanie Strom | |
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Born | c. 1963 Dickinson, Texas |
Occupation | journalist |
Notable credit(s) | The New York Times |
! कौशल !परShalini Kaushik
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कर्मफल !
जानता हूँ मैं ,पाप-पुण्य नाम से ,जग में कुछ नहीं है |
कर्म तो कर्म है ,कर्म-फल नर, इसी जग में भोगता है |
कर्मक्षेत्र यही है, ज़मीं भी यही है, कोई नहीं अंतर ,
उद्यमी अपने उद्यम से ,बनाते हैं बंजर ज़मीं को उर्बर
कर्म तो कर्म है ,कर्म-फल नर, इसी जग में भोगता है |
कर्मक्षेत्र यही है, ज़मीं भी यही है, कोई नहीं अंतर ,
उद्यमी अपने उद्यम से ,बनाते हैं बंजर ज़मीं को उर्बर
कालीपद प्रसाद
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हमारे मित्र श्री संतोष गंगेले जी का आलेख आपके लिए प्रस्तुत है !!-" फिफ्थ पिल्लर करप्शन किल्लर "! ब्लॉग वो जिसे आपको रोज़ पढ़ना और अपने मित्रों संग बांटना भी चाहिए !!
5TH Pillar Corruption KillerपरPITAMBER DUTT SHARMA
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एक नवगीत
*पिस रही चाहत एैसे *
*रोलर से गिट्टी जैसे *
*पास टका नहीं किञ्चित *
*सभी दगा देते परिचित * ...
jai prakash chaturvedi
सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
मैं यह चर्चा हर दिन पढता हूँ।
जवाब देंहटाएंअच्छा स्थान है अपनी जगह इसका।
बधाई।
सुंदर मंगलवारीय अंक । 'उलूक' के सूत्र 'प्रतियोगिता के लिये नहीं बस दौड़ने के लिये दौड़ रहा होता है' को स्थान देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
वाह ! बहुत सुंदर सूत्र शास्त्री जी ! मेरे प्रस्तुति को आज के मंच पर स्थान देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर सूत्र शास्त्री जी ! मेरे प्रस्तुति को आज के मंच पर स्थान देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व अच्छे लिंक्स , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंविनम्र आभारी हूं
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबिना बिजली के भी चकाचक है।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को अपने इस बेहतरीन प्रयास का हिस्सा बनाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आभारी हूं !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्र
जवाब देंहटाएं