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मंगलवार, जुलाई 15, 2014

साधे रविकर स्वार्थ, बंद ना करे सताना ; चर्चा मंच 1675

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 


पर्वत से चलकर आते हैं,
कलकल नाद सुनाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
लक्ष्य सदा आगे को बढ़ना,
निर्मल नीर बहाना है।
सूखी धरती सिंचित करके,
फिर उर्वरा बनाना है।
नद-नालों को पावन जल से,
आप्लावित कर जाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
Jai Sudhir 


 
राजीव कुमार झा 


 
yashoda agrawa
noreply@blogger.com (विष्णु बैरागी)
kavita verma
रविकर 

ताना-बाना बिगड़ता, ताना मारे तन्त्र । 
भाग्य नहीं पर सँवरता,  फूंकें लाखों मन्त्र । 
फूंकें लाखों मन्त्र, नीयत में खोट हमारे । 
खुद को मान स्वतंत्र, निरंकुश होते सारे । 
साधे रविकर स्वार्थ, बंद ना करे सताना । 
कुल उपाय बेकार, नए कुछ और बताना ॥ 


11 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    कार्टून अच्छा है
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रविकर जी।
    मंगलवार की चर्चा में आपने बहुत सुन्दर लिंकों का समावेश किया है।
    --
    आपका बहुत-बहुत आभार मित्र।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर चर्चा ! आ. रविकर जी.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर मंगलवारीय चर्चा रविकर जी । 'उलूक' का आभार सूत्र 'बात बनाने की रैसेपी या कहिये नुस्खा' को जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  6. स्थूल से सूक्ष्म तक की यात्रा का पूरा बन्दोबस्त किया आपने।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. खूबसूरत चर्चा ....
    आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने का ...

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर व रोचक लिंक्स के साभर धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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