रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
पर्वत से चलकर आते हैं,
कलकल नाद सुनाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
लक्ष्य सदा आगे को बढ़ना,
निर्मल नीर बहाना है।
सूखी धरती सिंचित करके,
फिर उर्वरा बनाना है।
नद-नालों को पावन जल से,
आप्लावित कर जाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
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Jai Sudhir
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राजीव कुमार झा
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yashoda agrawa
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noreply@blogger.com (विष्णु बैरागी)
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kavita verma
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रविकर
ताना-बाना बिगड़ता, ताना मारे तन्त्र । भाग्य नहीं पर सँवरता, फूंकें लाखों मन्त्र । फूंकें लाखों मन्त्र, नीयत में खोट हमारे । खुद को मान स्वतंत्र, निरंकुश होते सारे । साधे रविकर स्वार्थ, बंद ना करे सताना । कुल उपाय बेकार, नए कुछ और बताना ॥ |
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जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंकार्टून अच्छा है
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आदरणीय रविकर जी।
जवाब देंहटाएंमंगलवार की चर्चा में आपने बहुत सुन्दर लिंकों का समावेश किया है।
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आपका बहुत-बहुत आभार मित्र।
बहुत सुंदर चर्चा ! आ. रविकर जी.
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
सुंदर मंगलवारीय चर्चा रविकर जी । 'उलूक' का आभार सूत्र 'बात बनाने की रैसेपी या कहिये नुस्खा' को जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंस्थूल से सूक्ष्म तक की यात्रा का पूरा बन्दोबस्त किया आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंआभार!
खूबसूरत चर्चा ....
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने का ...
khubsurat charcha ..abhar ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर व रोचक लिंक्स के साभर धन्यवाद
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