काँय-काँय कौवे करें, झाँय-झाँय मक्कार ।
ठाँय ठाँय कर नकसली, हिला रहे सरकार ।
हिला रहे सरकार, मचाते लूट-मार वे ।
विगड़ रहे आसार, व्यवस्था दे नकार वे ।
मँहगाई भरपूर, बिगाड़े इधर जायका ।
अच्छे दिन हैं दूर, कीजिये काँय काँय-काँ ॥
किताबों की दुनिया - 96
नीरज गोस्वामी
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अब |
SM
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"गीत-खिलने लगा सूखा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
घिर गये बादल गगन में, चल पड़ी पुरवा पवन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
देखकर काली घटा,
सूरज गया छुट्टी मनाने,
बया ने भी बुन लिए थे,
कुछ निरापद आशियाने,
इन जुलाहों की कला को, सभी करते हैं नमन।
पा सुधा की बून्द को, खिलने लगा सूखा चमन।।
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आता रहे कोईअगर बस प्रश्न पूछने के लिये आता है
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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बहुत सुंदर चर्चा. मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों के साथ बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय।
जवाब देंहटाएंमत खुश हो मन देखके, यह सेंसेक्स उछाल
मरते हैं इस देश के, भूख से अब भी लाल।
bahut badhiya shuruaat ki hai aaj ki charcha ki !! sundar sankalan !! gyanvardhak bhi hai ! meri post ko shamil karne par aapka dhanywaad !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंआभार!
मस्त चर्चा ... नए सूत्र ..
जवाब देंहटाएंआभार मुझे भी शामिल करने का ...
रंगीन चर्चा के लिए बधाई स्वीकार करें रविकर जी, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन ! लगभग हर विधा को आपने चर्चा मंच में स्थान दिया है ! श्री दिगंबर जी की ग़ज़ल , मनु त्यागी का अंडमान संस्मरण , ग़ाफ़िल साब , राजीव जी , बहुत सटीक संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा आदरणीय रविकर जी।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपका।