रक्त-स्वेद दोनों रिसे, धत गरीब की जात |
धत गरीब की जात, नहीं औकात हमारी |
कबहूँ नहीं अघात, घात हम पर सरकारी |
कह रविकर कविराय, चाटते नेता हलुआ |
चमचे भी दो चार, चटाते चाटे तलुआ ||
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रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह।
बेटियाँ पल रहीं कैदियों की तरह।।
लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं,
लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं,
भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
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श्रीमद भागवतम ७: यज्ञ, दक्षिणा, दत्तात्रेय, श्री, बृहस्पति, मार्कण्डेय, रावण, शुक्राचार्य
Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
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सुप्रभात!
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स-सह-सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
बहुत सुंदर बुधवारीय रविकर चर्चा सुंदर सूत्रों के साथ ।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा के लिए आभार।
ReplyDeleteअच्छी चर्चा, बेहतर लिंक
ReplyDeleteरेल बजट में नहीं दिखा 56 इँच का सीना !
http://aadhasachonline.blogspot.in/
अच्छा संयोजन !
ReplyDeleteबढ़िया सुंदर चर्चा व लिंक्स , आ. रविकर सर , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
"कुछ कहना है"
ReplyDeleteतलुआ चप्पल के घिसे, पिसे सदा दिन-रात |
रक्त-स्वेद दोनों रिसे, धत गरीब की जात |
धत गरीब की जात, नहीं औकात हमारी |
कबहूँ नहीं अघात, घात हम पर सरकारी |
कह रविकर कविराय, चाटते नेता हलुआ |
चमचे भी दो चार, चटाते चाटे तलुआ ||
बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब -चमचे भी दो चार चटाते तलुवा
नेता मेरा भडुवा
बेहतरीन चर्चा मंच हर मायने में।
ReplyDeleteमार्मिक रचना बेटियों पर -
ReplyDelete"पल रहीं कैदियों की तरह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
उच्चारण
जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह।
बेटियाँ पल रहीं कैदियों की तरह।।
लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं,
लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं,
भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह।
बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।।
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार रविकर जी।