मारामारी मचा के, खले खलीफा खूब ।
लगे लाश पर ठहाके, अहंकार में डूब ।
अहंकार में डूब, देश इक नया बनाया।
बनी मौत महबूब, तेल में खून मिलाया।
पर भारत बेचैन, चला चाबुक सरकारी ।
मँहगा होता तेल, कार ना चले हमारी।
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अच्छे दिन की जल्दी मची है…
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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ओ मासूम ज़िन्दगी। ....!!
Anupama Tripathi
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कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े-भारतीय नारी
पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग । मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग । देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी । कामुकता का रोग, हमेशा गलत बयानी । कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े । कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े ॥ |
श्यामल सुमन
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हंगामा क्यों है बरपा...shikha varshney
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"ग़ज़ल-आज बरखा-बहार आयी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
हृदय से आभार रविकर जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर लिया ........अन्य सभी लिंक्स भी उत्कृष्ट ...!!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा और कार्टून |
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स |
बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुतिकरण,आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स , आ० रविकर सर , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिन्दी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुंदर चर्चा रविकर जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ................आभार!
जवाब देंहटाएंdhanywad......bahut achche links........
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