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शनिवार, जुलाई 12, 2014

"चल सन्यासी....संसद में" (चर्चा मंच-1672)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आदरणीय राजीव कुमार झा जी अनुरोध पर 
उनका चर्चा का दिन बदल दिया है।
अब वो रविवार को अपनी चर्चा प्रस्तुत किया करेंगे।
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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सी लिये मुहँओढ़ ली चुप्पी सभी ने !
पहेली या प्रश्न किससे हम बुझायें ??
आँख पर पट्टी है बाँधे 'न्याय-देवी'-
माँगने हम न्याय किसके द्वार जायें... 
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(3) 
‘समाज’ का ‘गुरु’ प्रबल हो, हो न कभी ‘लाचार’ !
इस ‘समाज’ पर ‘गुरु’ ने, बहुत किये ‘उपकार’ 
साहित्य प्रसून
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मम तिमिर मधु यामिनी में प्रिय उषा की माँग भर दो
अंक   सूनी   सी   निशा   की  प्रात  मेरे  जग  भर  दो ।

है निशा अवशेष जितनी लथपथी  प्रिय  हो  खुशी  से 
सम्मिलन  हो  रात्रिचर  का  भाव  उर  में  हों खुशी के । 
चेतना   भरकर   अलौकिक  प्रेम  का  संचार  कर  दो ...
आपका ब्लॉग पर jai prakash chaturvedi
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नेत्रहीनता उनकी व्यथा थी 


धृतराष्ट्र जो जन्मांध हुए थे  
अत्यधिक ही मोहान्ध हुए थे  
वो सदा दुखित हुए थे  
पुत्र मोह से व्यथित हुए थे...
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क्यों ये चांद दिन में नजर आता है 

ख्वाबों खयालों में हर पल तेरा चेहरा नजर आता है 
ऐ मेरे मालिक बता, क्यों ये चांद दिन में नजर आता है...
उड़ानपरAnusha
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अपने लिए जी लें तो क्या,  

अपने लिए मर लें तो क्या 

लहरों से,रिश्ते ताक़ पर, 
उन पर ग़ज़ल पढ़ लें तो क्या | 
न थकन कोई न खलिश कोई, 
महफ़िल-ए-मोहब्बत सज़ गयी, 
दौर-ए-ग़ज़ल चलता रहा, 
ये शौक़ हम कर लें तो क्या...
Harash Mahajan
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होठों से सम्वाद न कर 

मौसम को बर्बाद न कर 
बाँहों से आजाद न कर 
खुशियों के पल होते कितने? 
जी ले पर अवसाद न कर...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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मुकम्मल है वही सम्बन्ध  

मुहब्बत नींव है जिसकी 

तमन्ना जिसमे होती है कभी अपनों से मिलने की
रूकावट लाख भी हों राहें उसको मिल ही जाती हैं ,
खिसक जाये भले धरती ,गिरे सर पे आसमाँ भी
खुदा की कुदरत मिल्लत के कभी आड़े न आती है...
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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माई के गांव में .... 

माई   के  गांव  में
पीपल  की छाँव में
गोरी  के   पांव  में
झांझर के गीत अब सुनाई न देते हैं ...
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"गीत-अपना साया भी, बेगाना लगता है"

वक्त सही हो तो सारासंसार सुहाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भीबेगाना लगता है...
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बुरा उद्यमी व्यक्ति, भला करता जो चोरी - 

कोरी लफ्फेबाजियां, फौरी करे निदान । 
यह ढफोरशंखी क्रिया, करे राह आसान । 
करे राह आसान, बैठ के गप्प मारिये । 
भली करें भगवान, पीढ़ियाँ सात तारिये । 
बुरा उद्यमी व्यक्ति, भला करता जो चोरी । 
कालिख से ही रंग, रखे क्यों चादर कोरी ।। 
"लिंक-लिक्खाड़"
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छपाक छैया ताल तलैया 
 छपाक छैया ताल तलैया
मेघा बरसे जोर से भैया
कागज नाव पे सपने तैरें
सारे बच्चे खेते नैया।
छपाक छैया----
Fulbagiya
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यह जरूरी तो नहीं......  

दोस्तो पिछली रचना (तुम्हें दुनिया में जन्नत नज़र आएगी) को 
सम्माननीय डॉ. रूप चंद मयंक जी के द्वारा 
चर्चामंच पर चर्चा की गई । 
उम्मीद से ज्यादा लोगों द्वारा पढ़ी गयी 
इसके लिए पाठकों का शुक्रिया। 
अब देखिए मेरी नयी रचना 
यहाँ...

मधुलेश पाण्डेय ‘निल्को’ 
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14 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सूत्रों से सरोबार शनिवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'अलबर्ट पिंटो को गुस्सा आज भी आता है' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर चर्चा ! आ. शास्त्री जी.
    समय परिवर्तन के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. sare link bahut khbsurat, mere blog kalam se ki rachna layak ko sthan dene ke liye bahut aabhar.

    जवाब देंहटाएं
  4. sare link bahut khbsurat, mere blog kalam se ki rachna layak ko sthan dene ke liye bahut aabhar.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति,सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया सुंदर प्रस्तुति व लिंक्स , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  7. आज के च्र्चामंच में विभिन्न रसों, गुणों एवं वृत्तियों समावेश है ! मेरी रचनाओं के इस में प्रकाशन हेतु
    साहित्य्प्रसून तथा ग़ज़ल कुञ्ज की और से धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  8. खूबसुरत सूत्र संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति।
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर चर्चा -
    आभार गुरुवर-

    जवाब देंहटाएं

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