मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
--
--
अकविता (10) -
वक्तृता अथवा अंग्रेजी भाषा ?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMzLt6Roy5_hnEDHUmjzF1DAWx0QGUGvk2t4xI8XOcBBLjgTsCi6Xr2CMF7RyjyC-AY6Jfsny-WK2jgqDWKv6f7w-U9sqvq8NakUYOeXzoRbnxtby2ZJA6e_uuwbc3K09dX4xsD2EhG4VO/s320/FRT10a.jpg&container=blogger&gadget=a&rewriteMime=image)
क्या अंग्रेजों के ऊपर भी
एक अंग्रेजी की वक्तृता
मुझ जैसे अंग्रेजी न जानने वाले
हिन्दुस्तानी की तरह ही
कुछ भी न समझ आने के बावजूद भी
वशीभूत कर डालने वाला
प्रभाव डालती है ?....
--
--
आईना ...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6Yu2-NsOJVZGC0OrHosfiMlLBeplgDoTuzVMd4-oxJ0TDoh45w71F3mLti4SSE0L4bXHcksEalSDh5ukr9uMDW8eQ9psxHtFVSMPEVii9CQWI0TtuSBaFZDFcgAxMoLFhEWD94AOoS53C/s320/10931413_10204363786488308_6030143907375547042_n.jpg&container=blogger&gadget=a&rewriteMime=image)
" अरे बेटा ! तू झाड़ू हाथ में मत ले ,
झाड़ू लगाना कोई लड़कों का काम है ? "...
नयी दुनिया+ पर Upasna Siag
--
प्रकृति पुरुष का है जग अद्भुत खेल।
नित नाच नचावे बात बनावे कर मेल।।
नख शिख शील वदन मयंक मन मोहे।
नियति नियत नर नारी नव नवल नोहे।।...
--
अंधी सड़कों पर ...
![चित्र प्रदर्शित नहीं किया गया](https://lh5.googleusercontent.com/-6f6aIgEam0U/AAAAAAAAAAI/AAAAAAAADoU/JhK2XNq_oTs/s220-p-k-a/photo.jpg)
अंधी सड़को पर जिंदगी गुमनाम हुई
सुबह निकले तलाश में तो बस शाम हुई
अपनी आरज़ूओं को मारकर
कई हिस्सों में दफ़न किया
इस बेवफाई की साज़िश भी सरेआम हुई...
Lekhika 'Pari M Shlok'
--
मुक्तक और रूबाइयाँ-२
मुझे उठाने आया है वाइजे-नादां,
जो उठा सके तो मेरा सागरे-शराब उठा
किधर से बर्क* चमकती है, देखें ऐ वाइज*
मैं अपना जाम उठाता हूं, तो किताब उठा।
जो उठा सके तो मेरा सागरे-शराब उठा
किधर से बर्क* चमकती है, देखें ऐ वाइज*
मैं अपना जाम उठाता हूं, तो किताब उठा।
-जिगर मुरादाबादी
धरती की गोद पर
Sanjay Kumar Garg
--
धर्म
हम धर्म से मिले पूछा "कौन हो तुम"
वो बोला -"सनातन हूँ मैं "
मजहब से मिली, पूछा-"कौन हो तुम "
वो बोला- "इस्लाम हूँ मैं"
टाइम-पासियों से पूछा तो बोले
"मानवता" है धर्म मेरा
ठिठुरते मंगरू से पूछा
तो बोला- "बस एक कम्बल"...
--
सूर्य पर्व -मकर संक्रांति
मकर संक्रांति चला गया ! व्यस्तता के कारण ब्लॉग में कुछ न लिख पाया न शुभकामनाएं दे पाया ! मित्रों ,मेरा विश्वास है कि शुभकामनाएं तो कभी भी दिया जा सकता है ,इसीलिए आप सबको मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ !इसी अवसर लिखे कुछ पक्तियां पेश कर रहा हूँ ...
कालीपद "प्रसाद"
--
...दोष पीने वालों का है,
न शराब का न नकली का |
![सृजन मंच ऑनलाइन](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimi2WjFEd3agysu7ANGD6QwzJUfrZ9igq28FzAJjWQfaNA5bzIoCUS132_LbvIUMIwvIBUbsu5uaYbEA66SIa5aeIzcRt8szOqJqqhrm_PzyJmLjqORNGebgNFJJzF-qEjXOExR1gMJDQZ/s400/S_S+copy.jpg)
shyam Gupta
--
--
पापा!!!
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp_6LI9krHBLnafb52paNnkhg7v81l9mtSPt62zhiFjEo9sOnlu8hUlVONuD8moMHuN-gnq2Ia1suDn5f-OouwOdkBfBIWyPTCynNxzE-8MaexmBiOsibIZHnGHZm22I-JqYvORxWS2Du8/s320/IMG-20141203-WA0018.jpg&container=blogger&gadget=a&rewriteMime=image)
पिता...
तीखे शब्दों से छील देता है
... कि तुम जिंदगी की हर चोट से उभर पाओ
पिता है तो तुम हो
खेल है खिलौने हैं
सुरक्षा है सपने हैं
पिता मां जितने ही अपने हैं
तीखे शब्दों से छील देता है
... कि तुम जिंदगी की हर चोट से उभर पाओ
पिता है तो तुम हो
खेल है खिलौने हैं
सुरक्षा है सपने हैं
पिता मां जितने ही अपने हैं
--
कल जब इमरान खान को उनकी बेगम के साथ पेशावर के स्कूल में घुसने से रोका गया । उन पर मटरगश्ती करने राजनीति करने के आरोप लगाये गए तब मृत बच्चों का एक पिता क्या सोच रहा होगा इमरान खान के बारे में उसकी अदनी सी कल्पना .......
... इमरान खान अपनी
नयी मासूका से फोन पर इश्क़ फर्मा रहे थे
फुनियाते हुये कहे जा रहे थे
मेरी होने वाली कमउम्र बेगम
हम अपने बच्चों को UK या USमें पढ़ायेंगे
देखो ना खराब तालिबान
हर जगह घुसे जाते है..
नयी मासूका से फोन पर इश्क़ फर्मा रहे थे
फुनियाते हुये कहे जा रहे थे
मेरी होने वाली कमउम्र बेगम
हम अपने बच्चों को UK या USमें पढ़ायेंगे
देखो ना खराब तालिबान
हर जगह घुसे जाते है..
--
आदमी ही आदमी से लड़ रहा
ये कैसा रोग इस दुनियाँ को जकड रहा
आदमी ही आदमी के मार्ग में
बाधा बन जाता है !
आदमी के ही हाथ से
आदमी का निवाला छिन जाता है...
मुसाफ़िर चलता जा ........
मुसाफ़िर चलता जा ........
--
--
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUdy1q5FguEYrQ9detS4fuLH5NyDW5DcsGRIjSB7vqfLTxzqb5ot8afbUgc_4PuG4w-iWAHum9GFWFkO5-2bwoBZZow70uKAEemAxB0oltfgp4hDCF9en5o2WWI6iP8K6UPTivXYgP9wah/s320/msword_1.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjicaKkHhAGWwQlxMUwjcgm3e1lr6RfR7htd8yb5j0-rzDPxqHrFgpYS5Ka0wvTSn152ySJkrPkt9JHRL0v2N7sd-td9WSBwtcF2ltb21PyHzjQCU43M4WWFeCxT20mJOfJDKRQZ5Otsi2U/s320/msword__2.jpg)
--
सुख दुख का है ताना बाना
जीवन तो है आना जाना
जोलहा जी इक साड़ी बनाना
रंग पिया ओहमा भर जाना...
जीवन तो है आना जाना
जोलहा जी इक साड़ी बनाना
रंग पिया ओहमा भर जाना...
--
--
"ठहर गया जन-जीवन"
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjM4EOXS1vAurEEiOnM9edMEx_ifdPsaaeHPCBKLo7UOczIIhq1THDhyphenhyphenWb-K4H0-lO-f0CoAKpfA9U4jlLKLuJHT8DC6NwVFLH8f1vFbRTSjd8HebEsYMYs8Zey43vutFuXfqQ6xng1fCA/s320/gangaram_1.jpg)
माता जी लेटी हैं
ओढ़कर रजाई
काका ने तसले में
लकड़ियाँ सुलगाई
गलियाँ हैं सूनी
सड़कें वीरान हैं
टोपों से ढके हुए
लोगों के कान हैं
खाने में खिचड़ी
मटर का पुलाव है
जगह-जगह जल रहे
आग के अलाव है...
बढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा ! सार्थक सूत्र !
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स-सह चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स, चर्चा में प्रस्तुति हेतु आभार ! आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''अकविता (10) - वक्तृता अथवा अंग्रेजी भाषा ?'' को स्थान देने का ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स, चर्चा में प्रस्तुति हेतु आभार ! आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएं