"आज की चर्चा में आप सबका स्वागत है"
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।
सादर आभार :सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
अब सीधे चलते हैं आज की चर्चा की तरफ …
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कायदे से धूप अब खिलने लगी है।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
दे रहा मधुमास दस्तक, शीत भी जाने लगा,
भ्रमर उपवन में मधुर संगीत भी गाने लगा,
चटककर कलियाँ सभी खिलने लगी हैं।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
डॉ दिव्या श्रीवास्तव
देश का सबसे बड़ा बदलाव,
जो साठ साल से था जमा हुआ
वो पिघल-पिघल कर निकल गया !
जो दस साल से मौन-मूक था बैठा,
=====================================
सतीश सक्सेना
बाबाओं के पास न जाए, अपनी गाय बचानी है !
कैसे नोट कमायें ध्यानी, विस्तृत बुद्धि बनानी है !
पिछली पीढी को समझाने,कौन समय बर्वाद करे,
नन्हों को अनुराग सिखाने कवि ने कलम उठानी है !
======================================
अनु सिंह चौधरी
बीस दिनों में ही मुंबई के मौसम ने मिज़ाज बदल दिया, सर्दी बर्दाश्त करने की ताक़त भी। जब से दिल्ली उतरे, ऐसे कांप रहे हूैं जैसे डाली से बिछड़ी पीली पड़ती हुई कोई एक पत्ती। ठंड नहीं, ठंड का ख़्याल भर ठंडी हवा का थपेड़ा है।
======================================
शेखर सुमन
कीबोर्ड पर खिटिर-पिटिर करके
जाने कितने अफसानो को हवा दी थी कभी,
कीबोर्ड का हर एक बटन
मेरे सुख-दुख का
साझीदार हुआ करता था...
======================================
अर्चना चावजी
आज की सुबह जल्दी हो गई....
संक्रांति का असर है शायद......
ऐसा ही रहा तो दान-पुण्य भी हो लेंगे......
करने का क्या है?
होना तो तय है......
======================================
नवेदिता दिनकर
एक अजीब सा रूहानी रूमानी एहसास।
दबी दबी ढकी ढकी।
सड़को पर चलते आहटों की आवाज़।
दूर जलती मद्धिम रौशनी।
======================================
साधना वैद
तुम सुनो ना सुनो
सुबह की प्रभाती
दिन का ऊर्जा गान
साँझ का सांध्य गीत
रात्रि की लोरी
======================================
प्रमोद जोशी
हाल में मुम्बई में हुई 102वीं साइंस कांग्रेस तथाकथित प्राचीन भारतीय विज्ञान से जुड़े कुछ विवादों के कारण खबर में रही. अन्यथा मुख्यधारा के मीडिया ने हमेशा की तरह उसकी उपेक्षा की.
एक दर्द सा बहता आया है
कुछ चीखें उड़ती आयीं है
दहशत की सर्द हवाओं के संग
खून फिजां में छितराया है....
======================================
रचना त्रिपाठी
आज सुबह-सुबह मेरी बचपन की सहेली का फोन आया। वह एक तरफ थोड़ी परेशान सी लग रही थी तो दूसरी तरफ अपनी बात बताते हुए हँसती भी जा रही थी
======================================
राजीव कुमार झा
हम जब भी मिला करते हैं
क्यों लोग गिला करते हैं
कदम तपती राहों पर कब थमते हैं
फूल प्यार के खिजां में खिला करते हैं
======================================
ऋता शेखर 'मधु'
धरती रानी सोहती, पहन हरित परिधान,
क्यारी क्यारी सज गए, सकल सलोने धान|
सकल सलोने धान, देख कृषक जिया हर्षा,
जुटा रही आहार, मस्त मतवाली वर्षा
|=====================================
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
दिन भर जलना तपना, ढलना
होते नहीं निराश
कितना कठिन समय हो
रवि तुम! कब लेते अवकाश!
|=====================================
अनीता जी
सर्वोत्तम पद है मानव का पद ! क्या हमने इस पद की शपथ ग्रहण की है ? इस शपथ में हमें नकारात्मक भाव से मुक्त रहना, कटु वचन नहीं कहना तथा सभी को प्रेम देना इन तीनों बातों को शामिल करना है. हमें इस शपथ रूपी संकल्प की छत बनानी है ताकि कोई विकार प्रवेश न कर सके.
|=====================================
संजय भास्कर
साधना वैद ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है और आशालता सक्सेना मासी और माँ खुशकिस्मत हूँ दोनों का आशीर्वाद मुझ पर बना हुआ है दोनों ही हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती है अच्छा लिखने के लिए
|=====================================
ज्योति जी
BlogAdda की तरफ से ब्लॉगर्स के लिए एक स्पर्धा आयोजित की गई है। जिसमें ब्लॉगर्स को एक ब्लॉग पोस्ट लिखना है। जिसमें उन्हें अपनी जिंदगी के उस निर्णयात्मक क्षण के बारे में बताना है कि कैसे
|=====================================
डॉ. जेन्नी शबनम
हज़ारों उपाय, मन्नतें, टोटके
अपनों ने किए
अशुभ के लिए,
मगर
ग़ैरों की बलाएँ
परायों की शुभकामनाएँ
|=====================================
संघशील 'सागर"
गहरी झील ने हमारी किया है इशारा ।
मुबारक़ हो तुमको जनम दिन तुम्हारा ।।
निकले हैं जफ्ज़ दिल से क़बूल कर लो ।
इनके सिवा दुनियाँ में कुछ नहीं हमारा ।।
|=====================================
धन्यवाद,
सार्थक लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, राजेंद्र जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा सूत्र.
जवाब देंहटाएं'यूँ ही कभी' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
बहुत बढ़िया चर्चा....
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक links !!
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया...
शुभकामनाएं !!
अनुलता
बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद राजेन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में मेरी ग़ज़ल शामिल करने के लिए आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। चर्चा मंच बहुत ही सुंदर प्रयास है।
जवाब देंहटाएंThanks.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया...राजेंद्र जी
संजय भास्कर
बहुत ही सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएं