मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
रूठ कर रात बन्नो भी नींद में खोई हुई
उसने कहा था ' आ जाऊंगा ईद को
माहताब जी भर देखूंगा, कसम से।'
फीकी रह गई ईद, हाय, वो न आये
सूनी हवेली,सिवईयें रह गईं अनछुई !...
लावण्यम्`
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फेसबुक तो एक युक्तिभर है
यह उल्लेखनीय है कि इन्टरनेट तकनीक ने कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रा वृतांतों के साथ साथ साहित्य की कई दूसरी नयी विधाओं की संभावनाओं के भी द्वार खोले हैं। ये नयी विधाऐं न सिर्फ माध्यम के अनुकूल साबित हो रही है बल्कि उनमें अभिव्यक्ति का ऐसा संदेश भी है जो माहौल में ताजगी भरने वाला है। उसे और ज्यादा आत्मीय बनाता हुआ। गतिविधियों में पारदर्शिता बरतता हुआ और जनतांत्रिक स्थितियों के लिए माहौल गढ़ता हुआ। ये नयी विधाऐं अभी अपनी इतनी शैशव अवस्था में हैं कि उनका नामकरण भी नहीं किया जा सकता...
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तुम याद हमें भी कर लेना
जब झूम के उट्ठे सावन तो,
तुम याद हमें भी कर लेना
जब टूट के बरसे बादल तो,
तुम याद हमें भी कर लेना...
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तमन्ना इंसान की ...
रब का रहस्य जान ले’ सृष्टिकर्ता के काम को अपने हाथ में ले ले l पंडित ,पादरी ,मौलवी ,दूकान सजा रखा है ग्राहक को रिझाने में,इनमे कड़ा प्रतिस्पर्धा हैl रब में हैं ध्यान कम,दक्षिणा पर निर्भर पूजा तेईस घंटे ग्राहक सेवा ,एक घंटा रब की पूजा l सोचा क्या इन्सान कभी ,ऐसा दिन आयगा शांत रहेगा महासागर ,पहाड़ पर उफान आयगा...
कालीपद "प्रसाद"
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आज का मीडिया
मैंने अभी तक जो सुना था,
कि अंडरवर्ड से सब डरते है ।
लेकिन फिर पता चला कि...
ऋषभ शुक्ला
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कब लौटेंगे यारों अपने ,
बचपन वाले अच्छे दिन
छईं-छपाक, कागज़ की कश्ती,
सावन वाले अच्छे दिन
गिल्ली-डंडा, लट्टू चकरी ,
छुवा-छुवौवल, लुकाछिपी तुलसी-चौरा,
गोबर लीपे आँगन वाले अच्छे...
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एक लघु कथा
.... नदी में स्नान करते हुए साधु ने पानी में बहते हुए ’बिच्छू’ को एक बार फिर उठा लिया ’बिच्छू’ नें फिर डंक मारा। साधु तड़प उठा। बिच्छू पानी में गिर गया साधु ने पानी में बहते हुए ’बिच्छू’ को फिर उठाया । बिच्छू ने फिर डंक मारा...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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सरहद के आर-पार !!
बनाने वाले ने पहाड़ों से सरहदें बनाई नदियों से खींची थी लकीरें मगर आदमी-आदमी के मध्य सरहद आदमी ने रची रंग की सरहद भाषा की सरहद सियासी लिप्साओं की सरहद...
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कैसा ये रिश्ता है ....
विश्वास की मुट्ठी में
डर की उँगली
एक मुस्कान हौसले की लबों पर
सोचती हूँ कैसा ये रिश्ता है,,,
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अति अनुरागी
सब जगह एकसी न सही पर अनूठी होती।
सागर गागर रेगिस्तान मैदान सबमें मोती।
अति अनुरागी खोज लेते हैं अंधेरेमें जोती।
पिपासु जिज्ञासु की आस आस नहीं खोती...
स्व रचना पर
Girijashankar Tiwari
--दातों मे पीड़ा , कीड़ा या केरीज
... जिस तरह खाना खाने से पहले हाथ धोना आवश्यक होता है , उसी तरह खाने के बाद कुल्ला करना आवश्यक होता है ! लेकिन कुल्ला करना अनपढ़ और गांव के लोगों का काम माना जाता है ! खाने के बाद खाली एक घूँट पानी पीकर काम चलाने का ही नतीज़ा होता है कि पढ़े लिखे शहरी लोगों के दांतों मे भी डेंटल केरिज हो जाती है...
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"गीत-बिन पानी का घन"
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बहुत बढ़िया लिंक्स-सह-चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंvicharon kaa sundar milankarwate hain ji aap !! dhanywad ke paatr hain aap ! jo hamari chhoti si rachna ko badaa banaa dete hain aap ! shukriya !!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक ... सुन्दर चर्चा ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur vistrat sootr...rochak charcha..aabhar
जवाब देंहटाएंउत्तम चर्चा।
जवाब देंहटाएंhttp://www.ashokbajajcg.com/2015/01/blog-post_18.html
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा , धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंsundar charcha abhaar hamen shamil karne hetu
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा + लिंक ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंachche link ..............meri rachana ko sthan dene ke liye abhar.....
जवाब देंहटाएंhttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/