मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"गणतन्त्र पर्व पर"
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ज़िक्र-ए-इश्क़
गुफ़्तगू-ए-इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम समझते ही रह गए उन्हें ख़यालों की तरह...
Tushar Raj Rastogi
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निकलो ना यूं अयां होकर :
एक प्रेम ग़ज़ल...
निकलो ना यूं अयां होकर , के दुनिया बड़ी खराब है ,
रखना इसे संभाल कर , ये हुस्न लाज़वाब है !
नयनों की गहराई मे , राही ना डूब जाये कहीं ,
आँखें ये तेरी झील सी , मचलती हुई चेनाब हैं...
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~*~ काँच की बरनी और दो कप चाय ~*~
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई...
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स्वपीड़न
कोई कष्ट देता, सहजता से सहते,
पीड़ा तो होती, पर आँसू न बहते ।
कर्कश स्वरों में भी, सुनते थे सरगम,
मन की उमंगों में चलते रहे हम ।...
पीड़ा तो होती, पर आँसू न बहते ।
कर्कश स्वरों में भी, सुनते थे सरगम,
मन की उमंगों में चलते रहे हम ।...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय
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*** बताओ न ! ***
कहाँ कोई पूछता है,
कैसे प्रेम की गिरहों से
तुम्हें तराशकर निकाला मैंने,
और किस तरह तेरे समन्दर के गर्भ- गृह से
तुम्हारे उग्र उफान को किया था क़ैद,
अपनी सशक्त अंजुरि में...
अपराजिता पर अमिय प्रसून मल्लिक
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कलम ने कहा रोशनाई नहीं है -
कुर्ते का पैबंद ,कहे क्या कहे
शिगाफों से कोना कोई खाली नहीं है -
अँधेरों की दहशत घरों में समाई
होली तो होली दिवाली नहीं है ...
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'कह मुकरी'
बिन उसके मोरि रैन कटै न,
जीवन का अंधियार मिटै न,
उसके बिन मैं जल बिन मछरी,
ए सखि साजन?
ना सखि बिजुरी...
निर्दोष दीक्षित
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दादी जी को समर्पित!
बहुत कुछ अच्छा सिखाया आपने।
न पढ़ कर भी हमें पढ़ाया आपने।
डूबकर कितना लिखू आपके याद में।
कभी रुलाया तो कभी हंसाया आपने।...
प्रभात
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संज्ञान की प्रक्रिया की संरचना - २
हम जानते हैं कि आकाशीय पिण्डों, विशेषतः हमारी पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा की प्रकृति और गति के नियमों का प्रश्न लोगों को बहुत पहले से ही उद्वेलित ( agitated ) करता रहा है। जब से टेलीस्कोप का अविष्कार हुआ और खगोलवैज्ञानिक जटिल यंत्रों का इस्तेमाल करने लगे, चन्द्रमा के बारे में हमारी जानकारी असामान्य रूप से बढ़ गयी। फिर भी चन्द्रमा की उत्पत्ति, उसके अदृश्य भाग के धरातल, उसके क्रेटर, आदि के बारे में संतोषजनक उत्तर उपलब्ध नहीं थे। वैज्ञानिकों ने तरह-तरह के अनुमान लगाये, जो इन या उन तथ्यों को न्यूनाधिक युक्तियुक्त ढंग से समझाते थे। मगर हर महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर ऐसी प्राक्कल्पनाओं ( hypothesis ) की संख्या इतनी अधिक थी कि बहुत समय तक यह तय नहीं किया जा सका कि उनमें से सही कौन सी है। किंतु आज कृत्रिम उपग्रहों, स्वचालित अंतरिक्ष प्रयोगशालाओं, अंतरिक्षयात्रियों के अनुसंधान, आदि के ज़रिये उपरोक्त प्रश्नों में से बहुतों का सही-सही उत्तर पा लिया गया है...
समय के साये में...समय अविराम
हम जानते हैं कि आकाशीय पिण्डों, विशेषतः हमारी पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा की प्रकृति और गति के नियमों का प्रश्न लोगों को बहुत पहले से ही उद्वेलित ( agitated ) करता रहा है। जब से टेलीस्कोप का अविष्कार हुआ और खगोलवैज्ञानिक जटिल यंत्रों का इस्तेमाल करने लगे, चन्द्रमा के बारे में हमारी जानकारी असामान्य रूप से बढ़ गयी। फिर भी चन्द्रमा की उत्पत्ति, उसके अदृश्य भाग के धरातल, उसके क्रेटर, आदि के बारे में संतोषजनक उत्तर उपलब्ध नहीं थे। वैज्ञानिकों ने तरह-तरह के अनुमान लगाये, जो इन या उन तथ्यों को न्यूनाधिक युक्तियुक्त ढंग से समझाते थे। मगर हर महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर ऐसी प्राक्कल्पनाओं ( hypothesis ) की संख्या इतनी अधिक थी कि बहुत समय तक यह तय नहीं किया जा सका कि उनमें से सही कौन सी है। किंतु आज कृत्रिम उपग्रहों, स्वचालित अंतरिक्ष प्रयोगशालाओं, अंतरिक्षयात्रियों के अनुसंधान, आदि के ज़रिये उपरोक्त प्रश्नों में से बहुतों का सही-सही उत्तर पा लिया गया है...
समय के साये में...समय अविराम
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धड़कनों के सम पर मुहब्बतों के सुर :
माण्डव
क़्त कैसा भी हो इसकी ख़ासियत है, यह ठहरता नहीं, गुज़र जाता है. गुज़र कर कभी अफ़साने की शक्ल ले लेना , कभी गीत हो जाना, कभी एक ठंडी सी सांस लेकर, किसी अनकहे जज़्बे सा ही चमक कर बुझ जाना इसकी तासीर है. इसी तासीर को हवा देने के लिए शायर गज़लें लिखते हैं और मुसव्विर अपने कैनवास को आवारा रंगों से भर देते हैं...
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'द इंडियन एक्सप्रेस' में पद्म विभूषण के लिए सामने आए संभावित नामों में एक नाम अध्यात्म गुरू श्री श्री रविशंकर का भी था। बाबा रामदेव ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर के आधार पर सरकार को पत्र लिखकर पुरस्कार लेने से मना कर दिया। इसके पश्चात ही श्री श्री रविशंकर जी द्वारा पुरस्कार ठुकरा देने की ख़बर मिली। बाबा रामदेव को पद्म विभूषण देने को लेकर विरोधी स्वर उठ रहे थे। हो सकता है कि आने वाले समय में अधिक जोर भी पकड़ लेते।...
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1.
चुग़ली सी कर रहा है हमारे रक़ीब की,
इक झांकता गुलाब तुम्हारी किताब से।
2.
बारहा हो रहा ख़ूँगर मगर फिर भी क़शिश यह के,
तुम्हारे दर पे आ-आकर मैं अपना सर पटकता हूँ।
3...
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सार्थक लिंको के साथ बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति, सभी मित्रों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसभी को गाणपत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
सभी मित्रों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये। मेरी रचना "बढ़ती उम्र की शर्म क्यों?' शामिल करने के लए बहुत-बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाऐं । सुंदर चर्चा । आभार 'उलूक' का सूत्र 'आदमी होने से अच्छा आदमी दिखने के जमाने हो गये हैं' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंआभार ........ गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के सभी पाठकों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमेरी सोच मेरी मंजिल
ये मेरा परम सौभाग्य है की मेरी रचना चर्चा मंच पर शामिल हुई है..
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया मयंक जी.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर बहुत ही खूबसूरत चर्चा सजाई शास्त्री जी | मेरी रचना को मान देने के लिए दिल से शुक्रिया | सभी ब्लॉगर मित्रों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
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