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रविवार, जनवरी 18, 2015

"सियासत क्यों जीती?" (चर्चा - 1862)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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आरजूओं का अलाव 

 


अर्पित ‘सुमन’ पर सु-मन 
(Suman Kapoor) 
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जीवन अनमोल है 

आज कल सुबह जब भी अखबार उठाओ तो  एक ख़बर जैसे अखबार की जरुरत  बन गई है की फलानी जगह पर इस बन्दे या बंदी ने आत्महत्या कर ली ..क्यों है  आखिर जिंदगी में इतना तनाव या अब जान देना बहुत सरल हो गया है ..पेपर में अच्छे नंबर नही आए तो दे दी जान ...प्रेमिका नही मिली तो दे दी जान ...अब तो लगता है जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है लोग इसी तनाव में आ कर इस रेशो को ऑर न बड़ा दे ... 
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मुसीबत गले पड़ी है 

Big%20Headache
''शादी करके फंस गया यार ,
अच्छा खासा था कुंवारा .''
भले ही इस गाने को सुनकर हंसी आये किन्तु ये पंक्तियाँ आदमी की उस व्यथा का चित्रण करने को पर्याप्त हैं जो उसे शादी के बाद मिलती है .आज तक सभी शादी के बाद नारी के ही दुखों का रोना रोते आये हैं किन्तु क्या कभी गौर किया उस विपदा का जो आदमी के गले शादी के बाद पड़ती है .माँ और पत्नी के बीच फंसा पुरुष न रो सकता है और  न हंस सकता है .एक तरफ माँ होती है जो अपने हाथ से अपने बेटे की नकेल निकलने देना नहीं चाहती और एक तरफ पत्नी होती है जो अपने पति पर अपना एक छत्र राज्य चाहती है... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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तुम ना झुकना केवल कहना 

ऐसी शक्ति देना हमको 
कि इस पीड़ा से निकल सकूँ. 
प्राणतत्व से दिग्दिगंत तक 
तुझमें ही मैं बस सकूँ... 
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शब्द एक अर्थ दो 

"मैं " शब्द एक अर्थ दो 
एक अर्थ मे " मैं " अहम को पोषित करता है 
तो दूजे में स्वंय की खोज करता है 
बस फ़र्क है तो सिर्फ़ उसके अर्थों में... 
एक प्रयास पर vandana gupta 

देहात पर राजीव कुमार झा 
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मजा लूटता और 

नया साल कैसे मने, सब के सब हलकान। 
बाँट रहे शुभकामना, ले नकली मुस्कान।। 
ले आया नव वर्ष यह, खुशियों की सौगात। 
ठिठुर रहे सब ठण्ढ से, और शुरू बरसात।।... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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माँ बाप, उस अखबार की तरह होते है.. 

माँ बाप उस अखबार की तरह होते है जो हर अलसायी सी सुबह हमारी आँखें खुलते ही मुस्कराते हुये दरवाजे पर दस्तक दे रहे होते है मौसम कैसा भी रहा हो मौसम कोई सा भी रहा हो... 
बुलबुला पर Vikram Pratap singh 
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गिरना - नरेश मेहता 

चीजों के गिरने के नियम होते हैं 
मनुष्यों के गिरने के कोई नियम नहीं होते 
लेकिन... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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क्यों कैद किया औरत को ?
घूंघट की दीवारों  में ,
घुटती है ; सिसकती है ,
घूंघट की दीवारों  में !... 
भारतीय नारी पर shikha kaushik 
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ग़ज़ल-  

आओ चलेंगे हम भी खुश्बू के शहर में 

आओ चलेंगे हम भी खुश्बू के शहर में, 
ग़ज़लें पड़ी हैं मेरी कुछ कर लें बहर में... 
Harash Mahajan 
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तुम.......मैं........... 

तुम मेरा दक्षिण पथ बनो 
मैं बनूँ पूर्व दिशा तुम्हारी 
तुम पर हो अवसान मेरा 
मै बनूँ सूर्य किरण तुम्हारी 
तुम तक जा कर श्वास थमे 
मेरी इससे बडी अभिलाषा क्या मेरी... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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आज भी वैसे ही
पिता को उपलब्धियां बताने का मन करता है |
आज भी वैसे ही
पिता से मिठाइयाँ बंटवाने का मन करता है |

कहने को कितना कुछ है मन में
कितना कहूं, कितना छुपा लूं
और कुछ चाहत नहीं है मेरी
सिर्फ पिता के सीने से लग जाने का मन करता है|... 

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"दोहे-गयी चाँदनी रात" 

उजड़ गया है अब चमननहीं रही वो बात।
अब अँधियारा पाक हैगयी चाँदनी रात।१।
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केश पलायन कर गयेटकला हुआ कपाल।
ऐसी हालत देख करहोता बहुत मलाल।२।
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पहले जैसा बल कहाँकहाँ सुहानी धूप।
यौवन अब है ही कहाँढला रूप का रूप।३।... 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर चर्चा सूत्र.
    'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया लिंक्स-सह चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. KYAA BAAT HAI MAYANK JI AAJ ZULFEN BAHUT YAAD AA RAHI HAIN ....? CHARCHA TO SUNDAR HOTI HAI AAPKI !!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! दूल्हा भट्टी की कहानी को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''अकविता (11) उसे कितना ख़्याल है '' को स्थान देने का ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छे लिंक, अच्छी चर्चा

    http://maihoonnaws.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतर रचनायें शामिल करी हैं आपने !

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्दा लिंक्स |मेरी रचनाओ को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार .

    जवाब देंहटाएं
  9. 'uchchaaran' blog par jaane me asmarth hone par yahin pratikriya de rahaa hoon :

    बहुत सहजता से कहें, दोहे अपनी बात।
    किसी 'चाँद' से ना मिटे, कोई अँधेरी रात।

    जवाब देंहटाएं


  10. 'उच्चारण' पर टिप्पणी डालने में कठिनाई हो रही है।

    आदरणीय मयंक जी, दोहों में वार्धक्य के जीवन दर्शन का एक पहलू बाखूबी चित्रित कर दिया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  11. खूबसुरत संकलन ,मेरी पोस्ट को स्थान देने केलिए आभार सर

    जवाब देंहटाएं

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